हे नुक्ताचीनियो! क्या तुम बोध बेचे हुए बंदर हो? अगर तुम भक्त होते तो हम तुम्हें सम्मान से हनुमान कहते। बंदर हनुमान कहलाने का अधिकारी तभी होता है, जब वह दीक्षित होता है। चूंकि तुम विवेक बंधक बंदर हो इसलिए तुम केवल न्याय के अधिकारी हो। सही समय पहचान कर न्याय कर दिया जाएगा। अभी जितना चाहो उछल लो कूद लो। वन – वाटिका के फलों का आनंद ले लो। अदरक की खेती उखाड़ दो। जो उखाड़ना है उखाड़ लो। हर दिशा में हमारे हनुमान हैं। वे न्याय करेंगे। न्याय तुम्हारा प्रारब्ध है।
हे नुक्ताचीनियो! तुम्हें इतना ज्ञान नहीं कि जो रामलला को न्याय दे सकता है, वह सुशांत सिंह राजपूत को भी देगा। न्याय की सरकार का विस्तार होगा। हमारी सरकार न्याय की सरकार है। न्याय के रास्ते में जो आएगा, उसका न्याय कर दिया जाएगा।
हे नुक्ताचीनियो! सरकार न्याय के लिए संकल्पबद्ध है। हम न्याय के लिए धरोहर गिराते हैं। न्याय के लिए हम सरकार गिराते हैं। धरोहर हो या सरकार हम सब को समान भाव से गिराते हैं। गाड़ने और गिराने की बुनियाद पर ही न्याय का मंदिर बनाते हैं।
‘हम मन्दिर वहीं बनाएंगे’ यह घोष हमारा कितना गूंजा था। पाताल से देवलोक तक कांपा था। अगर कंपकंपी न छूटती, तो मंदिर के न्याय का शिलान्यास कैसे होता! जिस घोष से किसी की कंपकंपी छूटती है, उसी कंपकंपी से न्याय की ऊर्जा पैदा होती है। कंपकंपी किसी की छूटती है ऊर्जा किसी को मिलती है। भय और न्याय का सम्बन्ध अटूट है, वत्स।
हे नुक्ताचीनियो! यह कदापि नहीं समझना कि जिस घोष की प्रेरणा से शिलान्यास हुआ, वह किसी ऐसे वैसे की रचना थी। स्वयं मां शारदे का आह्वान था,” मंदिर हम वहीं बनाएंगे “। सही समय का संज्ञान भी मां शारदे की कृपा है। साक्षात मां सरस्वती वीणा धारिणी हमारा पथ प्रशस्त कर रही हैं कि मंदिर का निर्माण आरंभ हुआ। सही समय पर निर्माण कार्य पूरा होगा। मां शारदे कहती हैं, जब तक लोकतंत्र है चुनाव का बड़ा माहात्म्य है।
रथ व्यर्थ है। अगर कभी कोई अशान्त या सुशान्त न हों। जब रथ को कभी मिल जाते हैं अशान्त या सुशांत, तब भाव लीला या न्याय लीला ऐसी धूल उड़ाती है वत्स कि भय की माया जागती है। उससे न्याय का सिंहासन आलोकित होता है। जो भय की रचना करता है, वही भाग्य विधाता होता है वत्स।
भय और न्याय का सम्बन्ध गहरा है। जब तक भय भीषण नहीं होता शासन नहीं होता। ऐसा ही सघन सम्बन्ध भय और मंदिर का है। मंदिर का निर्माण भय की सृष्टि के लिए होता है। नये भारत का नया विधान है, वत्स। नये भारत का मूल मंत्र है, भय और मंदिर। मंदिर बना कर डराया भी जाता है। डर से मंदिर और मंदिर से डर उपजता है। डर और मंदिर दोनों ही सरकार के सैनिक भी हैं और बल भी। डर और मंदिर की उपासना सत्ता के छोटे बड़े सभी सरदार करते हैं, वत्स।
डर और मंदिर का रिश्ता पानी और मगरमच्छ का है। मगरमच्छ पानी में रहता है। जो पानी में रहता है,वह मगरमच्छ से कोई बैर नहीं करता। भले लोग तो उस पानी से भी दूर रहते हैं, जिसमें मगरमच्छ रहता है। क्या पता पानी भी डरता हो। वह सांस रोके चुप रहता हो कि मगरमच्छ को जलचर लीलने में विघ्न न हो।
तुम तो जानते हो वत्स! मगरमच्छ को जो मीठा जामुन खिलाता है, वह उसी के हृदय के मांस का शिकार करता है। वह बंदर ही था जिसने मगरमच्छ को मीठा जामुन खिलाया था। लेकिन वह अपनी समझदारी से उसका शिकार होने से बच गया था। जब ऐसा हुआ, मगरमच्छ ने समझदारी का शिकार कर लिया था कालांतर में। अब मगरमच्छ बंदर के झांसे में नहीं आता है। मारा ही जाता है।
सुशांत भावना और भय दोनों के रथ हैं। भावना जब उबलती है, भावना की विभीषिका से भवसागर में केलि कल्लोल के लिए निर्विघ्न वातावरण बनाता है, वत्स।
सुशांत सिंह राजपूत सरस्वती पुत्र था। उसके न्याय का दायित्व न्याय की सरकार का है। कदाचित उस राज्य में जहाँ सरस्वती पुत्र ने अन्तिम सांस ली, न्याय की सरकार होती तो क्या वहाँ की पुलिस केले और चने पर एकाग्र रहती? स्वांग में लगी रहती? कदापि नहीं वत्स। वे दीक्षित होते। हनुमान की तरह कार्य को सिद्ध करते। जिस तरह का उसने क्रीड़ा प्रेम दिखाया है, वह बंदर का स्वभाव है।
यह न्याय की सरकार और नल्ले की सरकार का भी अंतर है। स्वामी राम हों तो हनुमान ही सब कार्य सिद्ध कर देते हैं और रावण हो तो राम के कर कमलों से पुण्य को प्राप्त होते हैं। नल्ले की सरकार भी पुण्य को प्राप्त होगी।
अगर वहाँ न्याय की सरकार होती तो मीडिया पहले दिन से ही सुशांत न्याय कांड का इतिहास नहीं लिख रहा होता। चीन पर गोले बरसा रहा होता। पाकिस्तान को ललकार रहा होता। स्वतंत्र भारत के सत्तर बहत्तर सालों में यह न्याय का सबसे लम्बा अभियान है। मीडिया पर सुशांत ने अपनी मौत से जितनी जगह ली है, पहले किसी ने नहीं ली। यह नये भारत का निर्माण है, वत्स।
हे वत्स! सुशांत न्याय यज्ञ का महानुष्ठान प्रगति पर है। हर यज्ञ बलि मांगता है। बलि से ही यज्ञ के हवन में ऊर्जा पैदा होती है। जब न्याय की ज्वाला फूटेगी, पापियों का नाश होगा।
हे नुक्ताचीनियो! जय बोलो सुशांत की। बोलो जय न्याय की सरकार की!
मृत्युंजय श्रीवास्तव
लेखक प्रबुद्ध साहित्यकार, अनुवादक एवं रंगकर्मी हैं। सम्पर्क- +919433076174, mrityunjoy.kolkata@gmail.com
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