साहित्य

प्रेमचंद और किसानों की व्‍यथा कथा

 

किसानों की व्‍यथा सदियों पुरानी है। यह बात जगजाहिर है कि दुनिया के लिए अन्‍नदाता कहे जाने वाले  खुद ही अन्‍न को तरसता रहा है। गुलाम भारत हो या आजाद किसानों की दुर्दशा किसी से छुपी नहीं है। नील की खेती से लेकर आज तक किसान अपना विद्रोह किसी-न-किसी रूप में जाहिर करते रहे हैं। महेन्‍द्र सिंह टिकैत से लेकर राजेश टिकैत तक निरंतर किसानों की बात उठा रहे हैं। यह सदी तो सदियों तक याद की जायेगी, जब किसानों का सबसे लंबा प्रदर्शन सरकार के खिलाफ हुआ। किसान, समाज की सबसे मजबूत कड़ी में से एक हैं, जो सबके पेट को भरने के लिए जिंदगी भर संघर्ष करते हैं, लेकिन वो खुद कभी वह सुख-सुविधायें नहीं प्राप्‍त कर पाते हैं, जिसके वे हकदार होते हैं। किसानों को हक और सुख-सुविधाओं से भले ही वंचित रखा गया हो किंतु, समाज के साथ-साथ साहित्‍य और सिनेमा में  उन्‍हें प्रमुख जगह दी गई है। ‘दो बिगहा जमीन’ हो या फिर ‘मदर इंडिया’ सभी ने किसानों की व्‍यथा पर प्रमुखता से प्रकाश डाला है।

मानव जीवन को उपन्‍यास मानने वाले प्रेमचंद ने अपने उपन्‍यासों के माध्‍यम से भारतीय जीवन में घट रही समस्‍याओं का सुन्‍दर चित्रण किया है। हिन्‍दी साहित्‍य के इतिहास में प्रेमचंद के पूर्व उपन्‍यासों में तिलस्‍मी, ऐयारी, जासूसी जैसे विषयवस्‍तु को लेकर रचनायें की जा रही थी, जिसका मुख्‍य उद्देश्‍य लोगों का मनोरंजन करना था। प्रेमचंद से पहले हिन्‍दी साहित्‍य की धाराएं स्‍वाभाविक रूप से प्रवाहित न होकर कुछ वर्ग विशेष का समर्थन कर रही थी। अत: साहित्‍य और कला के क्षेत्र में राजा, नवाब अथवा अमीर वर्ग का वर्चस्‍व था। आम जनता का म‍हत्‍व नहीं के बतौर था। ऐसे वातावरण में प्रेमचंद का आगमन होता है। प्रेमचंद ने अपनी लेखनी से जनता को जन सा‍हित्‍य ही नहीं दिया, बल्कि उनकी भाषा को भी साहित्‍य से जोड़ दिया, जिसका प्रभाव जनता पर बेहद गहरे तौर पर पड़ा।

प्रेमचंद के ज्‍यादातर उपन्‍यास आम जनता की समस्‍याओं को लेकर लिखा गया है। उनके उपन्‍यास की सफलता कथावस्‍तु से अधिक चरित्र-चित्रण पर निर्भर करती है। लाचार, निर्बल, निम्‍न वर्ग, गरीब, मजदूर, पीडि़त, असहाय, किसान, दलित, शोषित, स्‍त्री-पुरुष आदि की समस्‍याओं को उन्‍होंने अपने लेखन का आधार बनाया, जिसे प्रेमचंद ने समझा, जाना, पहचाना, तब कहीं जाकर इन समस्‍याओं को उपन्‍यास के माध्‍यम से उठाया। उनके उपन्‍यास कथा का लक्ष्‍य मात्र मनोरंजन करना नहीं रहा है, बल्कि समाज की यथार्थ स्थिति से परिचित कराना भी है। किसानों की पीड़ा की व्‍यथा का य‍थार्थ चित्रण गोदान के अलावा अन्‍य उपन्‍यासों में भी किया गया है। सालों गुजर जाने के बाद भी प्रेमचंद के किसानों की यथास्थिति बनी हुई है। आज भी किसान कठिन परिश्रम करने के बाद, दो वक्‍त की रोटी तक नहीं जुटा पाता है।

‘प्रेमाश्रम’ उपन्‍यास में कादिर और दुखरन के माध्‍यम से किसानों की यथार्थ स्थिति का चित्रण करते हुए वे लिखते हैं कि “कादिर-भाई, बलराज बात तो सच्‍ची कहता है। इस खेत में कुछ रह नहीं गया, मजदूरी भी नहीं पड़ती। अब मेरे ही घर देखो, कुल छोटे-बड़े मिलाकर दस आदमी हैं। पांच-पांच रूपये भी कमाते तो छ: सौ रूपये साल भर के होते। खा-पीकर पचास रूपये बचे ही रहते। लेकिन इस खेती में रात-दिन लगे रहते हैं, फिर भी किसी को भर पेट दाना नहीं मिलता।” उपन्‍यास में कही बातें बेहद मर्मस्‍पर्शी है और किसी को भी किसानों के दर्द पर सोचने को मजबूर कर देती है।

 उपन्‍यास ‘कायाकल्‍प’ किसानों की व्‍यथा के एक अन्‍य पक्ष को उजागर करता है। राजा अथवा अमीर वर्ग कैसे अपनी शान शौकत के लिए गरीब किसानों से जबरदस्‍ती लगान वसूल करता है, इस पर बखूबी प्रकाश डाला गया है। इसके अलावा राजा साहब के अधीन कार्यरत कर्मचारियों द्वारा जबरदस्‍ती जरूरत से अधिक अन्‍याय-अत्‍याचार किया जाता है। राजतंत्र का अत्‍याचार किसानों पर जोर-शोर से दिखाई पड़ता है, जिस पर इस उपन्‍यास में बहुत गंभीरता से प्रकाश डाला गया है। “राजा साहब भी कर्मचारियों के पंजे में आ गए। उनसे कुछ कहना-सुनना व्‍यर्थ है। चारों तरफ लूट-खसोट हो रही थी। गालियां और मारपीट तो साधारण बात थी। किसी के बैल खोल लिए जाते थे, किसी की गाय छीन ली जाती थी, कितनों ही के खेत कटवा लिए गए। बेदखली और इजाफे की धमकियां दी जाती थीं। जिसने खुशी से दिए, उसका तो दस रुपये ही से गला छूटा। जिसने हीले-हवाले किए, कानून बधारा, उसे दस रूपये के बदले बीस रूपये, तीस रूपये, चालीस रूपये देने पड़े।”

प्रेमचंद के उपन्‍यासों में किसानों के संघर्ष के अलग-अलग पक्षों को उजागर किया गया है। ‘कर्मभूमि’ में बताया गया है कि किसान कड़ी मेहनत कर जब अच्‍छी फसल उत्‍पादन करते हैं तो फसल की सही कीमत नहीं मिलती, ज‍बकि खेतों में बीज बोते समय वही फसल की कीमत व्‍यापारियों द्वारा किसानों को ही दुगुनी, तिगुनी मूल्‍य पर खरीदना पड़ता है। ऐसी स्थिति में किसान घर चलाये, लगान दे, बीज खरीदें या अन्‍य काम करे। अच्‍छी उत्‍पादन करने के बावजूद किसानों की समस्‍यायें ज्‍यों-की-त्‍यों बनी रहती है। इस स्थिति का उपन्‍यास में बेहद मार्मिक चित्रण किया गया है- “इस साल अनायास ही जिन्‍सों का भाव गिर गया। इतना गिर गया जितना चालीस साल पहले था। जब भाव तेज था, किसान अपनी उपज बेच-बाचकर लगान दे देता था, लेकिन जब दो और तीन की जिन्‍स एक में बिके तो किसान क्‍या करे? कहां से लगान दें? कहां से दस्‍तूरियां दें? कहां से कर्ज चुकाये? विकट समस्‍या आ खड़ी हुई और यह दशा कुछ इसी इलाके की न थी। सारे प्रांत, सारे देश, यहां तक कि सारे संसार में यही मंदी थी। चार सेर का गुड़ कोई दस सेर में भी नहीं पूछता। आठ सेर का गेहूँ डेढ़ रूपये मन में ही महँगा है। तीस रूपये का कपास दस रूपये में जाता है, सोलह रूपये मन का सन चार रूपये में। किसानों ने एक-एक दाना बेच डाला, भूसे का एक तिनका भी न रखा, लेकिन यह सब कुछ करने पर भी चौथाई लगान से ज्‍यादा न अदा कर सकें।”

इसी प्रकार ‘गोदान’ में जिस तरीके से किसानों के मुद्दे को उठाया गया है, वह तो जन-जन के जहन में उतर चुका है। यह उपन्‍यास किसान जीवन पर आधारित बेहतरीन रचना है। किसानों के साथ सिर्फ कृषि (खेती) की समस्‍यायें नहीं होती, बल्कि कृषि पर आधारित होने वाले आर्थिक मूल्‍य के साथ विभिन्‍न प्रकार के अन्‍य दायित्‍वों का भी निर्वहन उन्‍हें करना पड़ता है, जैसे- समाज, परिवार, लोक-लाज आदि। एक किसान की वास्‍तविक पीड़ा क्‍या होती है, उसका वास्‍तविक चित्रण प्रेमचंद ने ‘गोदान’ उपन्‍यास में, होरी पात्र के माध्‍यम से किया है। “होरी ने खाट डालते हुए कहा- वह मालिक हैं, जो चाहें करें, मेरे पास रूपए होते तो यह दुर्दशा क्‍यों होती? खाया नहीं, उड़ाया नहीं, लेकिन उपज ही न हो और जो हो भी, वह कौडि़यों के मोल बिके, तो किसान क्‍या करें?”

       प्रेमचंद ने अपने उपन्‍यासों- ‘प्रेमाश्रम’, ‘कर्मभूमि’, ‘कायाकल्‍प‘, ‘गोदान’ आदि में किसान जीवन का ऐसा संवेदनाशील वर्णन किया है जो न सिर्फ भारतीय किसानों की समस्‍यायें हैं बल्कि यह वैश्विक स्‍तर के लिए चिंतन का विषय है। उन्‍होंने स्‍वयं अपने उपन्‍यास में कहा है कि भारत में समाजिक व्‍यवस्‍था ऐसी है कि किसान कड़ी मेहनत, संघर्ष करने के बाद भी दो वक्‍त का खाना नहीं जुटा सकता, बाकी की समस्‍यायें तो बाद की है। उन्‍होंने अपने रचना संसार में समाज के ऐसे ही समस्‍याओं को बेहद जीवंत तौर पर प्रस्‍तुत किया है। हर कहानी हमारी-आपकी कहानी कहती हुई प्रतीत होती है। उनकी कहानियों के हर पात्र में हम अपने-आप को महसूस करने लगते हैं। यही वजह है कि प्रेमचंद कालजयी रचनाकार और कथा सम्राट की संज्ञा से सुशोभित किए गये।

.

Show More

संतोष बघेल

लेखक शिक्षाविद् एवं स्‍वतन्त्र लेखक हैं| सम्पर्क- +919479273685, santosh.baghel@gmail.com
3 2 votes
Article Rating
Subscribe
Notify of
guest

1 Comment
Oldest
Newest Most Voted
Inline Feedbacks
View all comments

Related Articles

Back to top button
1
0
Would love your thoughts, please comment.x
()
x