Category: राजस्थान

अनूठी जल संग्रहण प्रणाली
राजस्थान

नाहरगढ़ किले में अनूठी जल संग्रहण प्रणाली

 

राजस्थान में एक कहावत है कि यदि बहु एक घड़ा घी गिरा दे तो सास कुछ नहीं कहती, अगर पानी गिरा दे तो डांट जरूर पड़ती है। एक और कहावत है कि यदि साधारण मेहमान है तो मलाईदार दूध दो और विशेष मेहमान है तो पहले एक गिलास पानी दो फिर दूध। पानी भी लोटे में देते हैं जिसे ऊपर से पीना पड़ता है जिससे बचा हुआ पानी दूसरे कार्यों के लिए प्रयोग किया जा सके। प्रत्येक वर्ष मानसून की अनियमितता के कारण अतिवृष्टि एवं अल्पवृष्टि देश भर में कई राज्यों को प्रभावित करती है। राजस्थान में रेगिस्तानी इलाका होने के कारण, अल्पवर्षा, और नदियों में पर्याप्त जल की उपलब्धता न होना राजस्थान के लिए सदियों से संकट का कारण रहा है।

चांद बावड़ी दुनिया की सबसे गहरी बावड़ी हैं। इसकी संरचना विहंगम हैं जो कि मन मोह लेती हैं। यह बावड़ी 35 मीटर के वर्गाकार आकृति में बनी हुई हैं। यह 100 फीट गहरी हैं जो कि 13 मंजिला है। प्राचीन काल में वास्तुकारों और वहां के लोगों द्वारा जल संरक्षण और वाटर हार्वेस्टिंग के लिए बनाई गई इस प्रकार की कई बावड़ियां आज भी इस क्षेत्र में मौजूद हैं, जिनमें काफी पानी जमा रहता है। यह पानी क्षेत्र के निवासियों के वार्षिक उपयोग के काम में आता है। कुओं की अपेक्षा बावड़ियाँ ज्यादा गहरी होती हैं इसलिए इनमें अधिक मात्रा में पानी संरक्षित करके रखा जा सकता है। पुरातत्व एवं संग्रहालय विभाग के निदेशक हृदेष शर्मा के अनुसार ‘हेरिटेज वाटर वॉक’ के माध्यम से जयपुर के नाहरगढ़ किले एवं आमेर महल में स्थापित अनूठी जल संग्रहण प्रणाली को पर्यटकों से रूबरू कराया जा रहा है जिससे वह इस बारे में जागरूक हों।

नाहरगढ़ की व्यापक जल संरक्षण प्रणाली इस किले की सबसे महत्वपूर्ण विशेषताओं में से एक है। नाहरगढ़ में बने हुए जल संरक्षण टैंक में पानी लाने के लिए आस पास छोटी नहरों के जरिए पहाडिय़ों से वर्षा जल नीचे आता है। इन नहरों के तल पहाडिय़ों की ढलान पर इस तरह से बने हुए है कि वर्षा जल इनसे होता हुआ आसानी से आ जाता है।आमेर किले की वाटर लिफ्टिंग और वाटर हार्वेस्टिंग प्रणाली अद्भुत है। आमेर महल में पानी के दो स्त्रोत मावठा झील और महल में मौजूद वर्षा जल संचयन प्रणाली अब भी देखे जा सकते हैं। नाहरगढ़ में पानी पहाडिय़ों के माध्यम से नीचे आता है, वहीं आमेर महल में मावठा झील से कुछ सौ फीट ऊपर पानी पहुँचाने के लिए जटिल व्यवस्था का उपयोग किया जाता था।

जोहड़ का उपयोग प्राचीनकाल से होता आया है लेकिन मध्यकाल आते-आते लोगों ने जोहड़ को भुला दिया था जिससे जलसंकट उत्पन्न हो गया। खडीन का सर्वप्रथम प्रचलन 15वीं शताब्दी में जैसलमेर के पालीवाल ब्राह्मणों ने किया था। यह बहुउद्देशीय परम्परागत तकनीकी ज्ञान पर आधारित होती है। खडीन के निर्माण हेतु राज जमीन देता था जिसके बदले में उपज का 1/4 हिस्सादेना पड़ता था। जैसलमेर जिले में लगभग 500 छोटी बडी खडीनें विकसित हैं जिनसे 1300 हैक्टेयर जमीन सिंचित की जाती है। झालरा, अपने से ऊँचे तालाबों और झीलों के रिसाव से पानी प्राप्त करते हैं। इनका स्वयं का कोई आगोर (पायतान) नहीं होता है।

झालराओं का पानी पीने हेतु नहीं, बल्कि धार्मिक रिवाजों तथा सामूहिक स्नान आदि कार्यो के उपयोग में आता था। इनका आकार आयताकार होता है। कुई या बेरी सामान्यतः तालाब के पास बनाई जाती है। जिसमें तालाब का पानी रिसता हुआ जमा होता है। कुई मोटे तोर पर 10 से 12 मीटर गहरी होती हैं। इनका मुँह लकड़ी के फन्टों से ढँका रहता है ताकि किसी के गिरने का डर न रहे। पश्चिमी राजस्थान में इनकी अधिक संख्या है। भारत-पाक सीमा से लगे जिलों में इनकी मौजूदगी अधिक हैं। टांका राजस्थान में रेतीले क्षेत्र में वर्षा जल को संग्रहित करने की महत्वपूर्ण परम्परागत प्रणाली है। इसे कुण्ड भी कहते हैं। यह विशेषतौर से पेयजल के लिए प्रयोग होता है। यह सूक्ष्म भूमिगत सरोवर होता है। जिसको ऊपर से ढँक दिया जाता है। इसका निर्माण मिट्टी से भी होता है और सिमेण्ट से भी। 

1520 ई. में राव जोधाजी ने सर्वप्रथम एक नाड़ी का निर्माण करवाया था। पश्चिमी राजस्थान के प्रत्येक गांव में नाडी मिलती है। रेतीले मैदानी क्षेत्रों में ये नाड़ियाँ 3 से 12 मीटर तक गहरी होती है। इनमे जल निकासी की व्यवस्था भी होती है। यह पानी 10 महिने तक चलता है। नाड़ी वस्तुतः भूसतह पर बना एक गड्ढा होता है जिसमें वर्षा जल आकर एकत्रित होता रहता है। समय समय पर इसकी खुदाई भी की जाती है, क्योंकि पानी के साथ गाद भी आ जाता है जिससे उसमें पानी की क्षमता कम हो जाती है। कई बार छोटी-छोटी नाड़ियों की क्षमता बढा़ने के लिए दो तरफ से उनको पक्की कर दिया जाता है। नाड़ी बनाने वाले के नाम पर ही इनका नाम रख दिया जाता है। अधिकांश नाड़िया आधुनिक युग में अपना अस्तिव खोती जा रही है। इन्हें सुरक्षा की आवश्यकता है 

.

 विकास की बलि रेगिस्तान
24Mar
चरखा फीचर्सराजस्थान

विकास की बलि और रेगिस्तान

  जैसलमेर जिले के गांव कुछड़ी में आलाजी लोक देवता के नाम से छोड़ी गई 10 हजार बीघा...

30Mar
राजस्थान

म्हारो प्यारो राजस्थान : ‘राजस्थान दिवस विशेष’

  सोने री धरती अठे, चाँदी रो असमाण रंग रंगीळो रस भर्यो म्हारो प्यारो...

07Jul
दिल्लीपंजाबबिहारमध्यप्रदेशराजस्थानहरियाणा

लोकपरिवहन की दुर्दशा

  लोकपरिवहन सुविधा के अभाव में मध्यप्रदेश के लोग बुरी तरह से परेशान हैं।...

19Dec
छत्तीसगढ़मध्यप्रदेशराजनीतिराजस्थान

मोदी की जादूगिरी अब नहीं चलेगी

  या तो चुनाव पांच राज्यों- राजस्थान, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, तेलंगाना और...

19Dec
चर्चा मेंछत्तीसगढ़मध्यप्रदेशराजनीतिराजस्थान

हिंदी पट्टी की बदलती करवट

विजय कुमार तीन राज्य। तीन देव। ब्रह्मा, विष्णु, महेश। कम से कम तीन सुलगते...

03Dec
चर्चा मेंछत्तीसगढ़देशमध्यप्रदेशराजस्थानसमाज

राजनीति में गाली-गलौज वाली भाषा कहां ले जाएगी?

जब जनतंत्र में अपने विरोधी को दुश्मन समझा जाने लगे तो हमें सचेत होना चाहिए।...

01Dec
चर्चा मेंछत्तीसगढ़देशमध्यप्रदेशराजस्थानसमाज

ये तो उलझन वाले चुनाव हैं

sablog.in डेस्क/ हिन्दी पट्टी के तीन भाजपा शासित राज्यों में चुनाव के परिणामों को...

14Oct
चर्चा मेंदेशपूर्वोत्तरमध्यप्रदेशराजस्थानसामयिक

पुण्य प्रसून – चुनाव के साथ ही देश में बहार लौट रही है

देश में फिर बहार लौट रही है. पांच राज्यों के चुनाव के एलान के साथ हर कोई 2019 को...

12Jan
चर्चा मेंछत्तीसगढ़देशमध्यप्रदेशराजस्थान

हिन्दुत्व की ओर बढ़ती कांग्रेस !

गले में रुद्राक्ष की माला, माथे पर चंदन का टीका और होठों पर शिव का नाम। ये है...