मुगल-ए-आजम का विचार पक्ष
मुगल-ए-आजम वह फिल्म थी जो सबके सर चढ़ कर बोली थी। साठ साल पहले। सन साठ में।...
मुगल-ए-आजम वह फिल्म थी जो सबके सर चढ़ कर बोली थी। साठ साल पहले। सन साठ में।...
किसान अब वह नहीं है जिसके कन्धे पर हल होता था और हाथों में हँसिया। वो भी...
धर्मनिरपेक्षता जमीनी हकीकत नहीं है, बल्ली पर टंगी हुई एक मृत अवधारणा है अब।...
क्या कहा? कान के पर्दे फट रहे हैं? – सुनना ही क्या है? क्या कहा? आँखें कड़ुआ...
जनता गरम हवा में पकौड़े छानने लगती है, जब राजनेता घोषणाओं के जुमले से हवा गरम...
नयी पीढ़ी हर्षद मेहता का नाम नहीं जानती। न उसकी हरकतों को जानती है लेकिन वह...
खेल बिगाड़ने के खेल पर दुनिया टिकी हुई है। जो जितना माहिर है खेल बिगाड़ने में...
एक समाचार चैनल पर टीआरपी घोटाला का मामला दर्ज किया गया है। चैनल चलाना...
सितारों ने अदालत का दरवाजा खटखटाया है। नालिश की है। न्याय के लिए गुहार लगाई...
पहले थैली के चट्टे बट्टे होते थे। अब थाली के। थैली का जमाना जो लद गया। लद गया...