मृत्युंजय श्रीवास्तव
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Jan- 2024 -13 Januaryविशेष
सबलोग के पंद्रह वर्ष
( सबलोग के प्रकाशन के पंद्रह वर्ष पूरे होने पर 13 जनवरी 2024 को रांची में एक आयोजन किया गया। इस अवसर पर देश के विभिन्न हिस्सों से लेखक-विचारक इकट्ठे हुए।) ‘हौसला हो तो सूरत बदल सकती है’ यह…
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Aug- 2023 -1 Augustसिनेमा
शब्द, दृश्य और बहुसंख्यकवाद
शब्दों का कितना मारक असर होता है इसका अहसास बहुतों को पहली बार तब हुआ होगा जब राहुल गांधी को सार्वजनिक रूप से शहजादा और पप्पू कहा गया था। भारतीय राजनीति में शब्दों से विपक्ष को घायल करने का…
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May- 2023 -11 Mayपुस्तक-समीक्षा
गोपेश्वर सिंह का आत्मावलोकन
गोपेश्वर सिंह की नई पुस्तक ‘आलोचक का आत्मावलोकन’ का लोकार्पण विश्व पुस्तक मेला, दिल्ली (2023) में इसी जनवरी में हुआ। हिन्दी में गोपेश्वर सिंह ऐसे आलोचक हैं जो अपने को गाँधी, लोहिया और जेपी के चिंतन के करीब पाते…
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Aug- 2022 -6 Augustमुद्दा
हनुमान होना क्या होना है
हनुमान वह हैं जिन्होंने राम का मन्दिर मन में बनाने का सन्देश दिया था। हनुमान वह हैं जिनसे तीनों लोक उजागर हुआ है। हनुमान वह हैं जो संकट मोचन हैं। ऐसा इसलिए कि हनुमान ज्ञान गुण के सागर हैं।…
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Dec- 2021 -13 Decemberराजनीति
ममता बनर्जी की चमक
अनोखे जीवट वाली ममता बनर्जी भारतीय राजनीति की जानकार हैं। राजनीतिक हवा की तासीर भाँपने के लिए उन्हें किसी पीके के आँकड़ों की जरूरत नहीं पड़ती। जनता का मिजाज भी समझती हैं और राजनीतिक चाल भी। यह भी जानती…
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Nov- 2021 -15 Novemberसामयिक
भारत बाजार में नंगा है
दादा और गुरु दोनों शब्दों का अर्थ विस्तार हुआ है। अब दादा वे नहीं हैं, जिन्हें हम दादा कहा करते थे। गुरु भी अब वे नहीं हैं जो विधाता का बोध कराते थे। दादा अब वह है जो दमन…
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10 Novemberसामयिक
लोकतन्त्र का पचहत्तरवां साल और लड़की
‘लड़की हूँ, लड़ सकती हूँ ‘ यह नए हिंदुस्तान की नींव रखने वाला एक नारा नहीं, एक सोच है । यह नए भारत का आह्वान है। आधी आबादी को बराबरी का वादा करता है। लोकतन्त्र को यह नया आयाम…
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Oct- 2021 -26 Octoberसाहित्य
डॉ.कृष्णबिहारी मिश्र की दरवेशी दृष्टि
लेखक तीन तरह के होते हैं। एक वे जो लिखते हैं, मगर लेखक नहीं होते। दूसरे वे जो एक्टिविस्ट होते हैं और लिखते हैं। तीसरे तरह के विरल लेखक वे होते हैं जो लिखते हैं और लेखक होने के…
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Feb- 2021 -4 Februaryजूम इन
मुगल-ए-आजम का विचार पक्ष
मुगल-ए-आजम वह फिल्म थी जो सबके सर चढ़ कर बोली थी। साठ साल पहले। सन साठ में। महीना था अगस्त। तारीख थी पांच। रिलीज हुई थी यह फिल्म। केवल हिन्दी नहीं, भारतीय सिनेमा की पेशानी पर लिखी गयी इबारत…
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Jan- 2021 -9 Januaryजूम इन
भारत हिन्दू राष्ट्र बनेगा अगर किसान हारेगा
किसान अब वह नहीं है जिसके कन्धे पर हल होता था और हाथों में हँसिया। वो भी नहीं है जो बैलों के आसरे जीता था। उनकी पूजा करता था। न अब बैल हैं न हल। हँसिया की वह भूमिका नहीं, जो पहले थी। मगर किसान…
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