काशी में सृजन संवाद : लेखकीय यात्रा पर बात एवं कविता पाठ
बनारस लिट् फेस्ट काशी साहित्य-कला उत्सव के अन्तर्गत होने वाले कार्यक्रमों की श्रृंखला में सामाजिक-सांस्कृतिक संस्था नव भारत निर्माण समिति ने सिद्धगिरी बाग स्थित श्रीकृष्णा हरिविलास सभागार में सृजन संवाद का आयोजन किया। पाठक और लेखक एक दूसरे से रूबरू थे। साहित्य सृजन पर विस्तार से सार्थक चर्चा हुई। लेखक से मिलिए कार्यक्रम में तीन प्रतिष्ठित लेखकों ने अपनी रचना यात्रा पर प्रकाश डाला। दिल्ली से पधारे वरिष्ठ पत्रकार, लेखक, कवि प्रताप सोमवंशी से उनकी चर्चित नाट्य कृति ‘लोई चलै कबीरा साथ’ पर दीनबन्धु तिवारी एवं कंचन सिंह परिहार ने बात की। शोध, कल्पना, सहज मनोविज्ञान एवं दर्शन के सहारे लिखी गई इस महत्त्वपूर्ण कृति में एक पत्रकार की खोजी और साहित्यकार की रचनात्मक कल्पनाशील दृष्टि की बखूबी झलक मिलती है।
प्रताप सोमवंशी ने चर्चा क्रम में कहा कि इस कृति को रचने की प्रेरणा कबीर पर केन्द्रित एक एकल नाटक में लोई के संवाद से मिली। प्रताप सोमवंशी ने बताया कि अपनी नाट्यकृति के सम्बन्ध में खोजबीन के दौरान उन्होंने पाया कि कबीर को तीन लोगों ने अच्छी तरह से समझाया है। फ्रैंकलिन अर्नेस्ट केई (1931 में ‘कबीर एण्ड हिज़ फॉलोअर्स’ में शोधपरक पुस्तक प्रकाशित की, जिसमें कबीर मठों में तत्समय प्रवृत पाखण्डों का भी उल्लेख है); मनोहरलाल जुत्शी (बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय के प्रथम रजिस्ट्रार) एवं आचार्य हजारीप्रसाद द्विवेदी। इसके अलावा अली सरदार जाफरी द्वारा संकलित कबीर के सौ पदों की पुस्तक से भी अपने नाटक के लिए सामग्री एवं विचारदृष्टि प्राप्त हुईं।
उन्होंने कहा कि यदि शिव काशी के कण कण में व्याप्त हैं तो कबीर बनारस के कहन में विन्यस्त हैं। लोई एक बेहद साधारण स्त्री की प्रतिनिधि है। उन्होंने यह भी कहा, लोई के मार्फ़त वे छह सौ वर्ष पुरानी स्त्री के माध्यम से आज की नारी की बात करना चाहते थे।
कबीर – लोई संवाद के माध्यम से कबीर की स्त्री दृष्टि को साकार करने की कोशिश है।
प्रताप सोमवंशी का कहना था कि कबीर पर लगे स्त्री विरोधी होने के आरोप को बारीकी से टटोलती है यह नाट्यकृति। लोई की अपनी स्वतन्त्र अस्मिता है और वह कबीर की पूरक है, उनका सम्बल भी। इस दौरान उन्होंने अपनी कविताओं का भी पाठ किया।
राम तुम्हारे युग का रावण अच्छा था
दस के दस चेहरे सब बाहर रखता था
कविता की इस पंक्ति पर श्रोताओं ने देर तक तालियां बजाईं। आगे इन्होंने एक से बढ़कर एक शेर सुनाए – राम के संग सीता मइया तो हर युग में वनवास गईं हैं
राज तिलक के बाद नगर निष्कासन भी हो जाता है
खुद को कितनी देर मनाना पड़ता है
लफ्जों को जब रंग लगाना पड़ता है
लक्ष्मण रेखा भी आखिर क्या कर लेगी
सारे रावण घर के अंदर निकलेंगे
लोगों ने राम से सीखा तो यही बस
हर शख्स सोने का हिरण ढूंढ रहा है
‘लेखक से मिलिए’ के दूसरे सत्र में वरिष्ठ लेखिका डॉ. नीरजा माधव ने अपनी लेखकीय यात्रा तथा उससे जुड़े रोचक अनुभवों एवं प्रसंगों पर प्रकाश डाला। हिन्दी में थर्ड जेंडर पर लिखी पहली औपन्यासिक कृति ‘यमदीप’ की संकल्पना व उसके पीछे की प्रेरणा का उल्लेख करते हुए उन्होंने बताया कि इस उपन्यास का बीज आकाशवाणी के लिए एक कार्यक्रम के निर्माण के दौरान पड़ा जब लगा कि इस उपेक्षित एवं बहिष्कृत समाज पर केन्द्रित एक स्वतन्त्र कृति की आवश्यकता है। उन्होंने बताया कि पाँच वर्षों के अथक अध्ययन के माध्यम से यह कृति साकार हो सकी।
एक अन्य चर्चित उपन्यास ‘गेशे जम्पा’ की चर्चा करते हुए उन्होंने बताया कि इसमें तिब्बत और तिब्बतियों की पीड़ा, संघर्ष और सपनों को उकेरने का प्रयास किया गया है।
‘अर्थात् राष्ट्रवाद’ पुस्तक पर चर्चा क्रम में उन्होंने कहा कि राष्ट्रवादी होना साम्प्रदायिक होना नहीं है। देश की मिट्टी व उसकी संस्कृति और परम्परा से प्रेम की खुली अभिव्यक्ति ही राष्ट्रवाद है।
डॉ. माधव से वरिष्ठ साहित्यकार डॉ. रामसुधार सिंह एवं बृजेश सिंह ने संवाद किया।
गौरतलब है कि नीरजा माधव को उनकी कृतियों के लिए तत्कालीन राष्ट्रपति ने नारी शक्ति सम्मान से सम्मानित किया था। डॉ. नीरजा माधव द्वारा थर्ड जेंडर पर लिखे गए उपन्यास ‘यमदीप’ पर चर्चा के दौरान प्रखर गांधीवादी चिन्तक एवं गांधी दर्शन के अध्येता विमल तिवारी ने इसी विषयवस्तु पर आधारित कृष्णमोहन झा की कविता ‘हिजड़े’ की आखिरी पंक्तियों को उद्धृत कर प्रसंगानुकूल काव्यात्मक हस्तक्षेप कर सभागार के वातावरण को और अधिक जीवन्त बना दिया।
“और यह जो गाते-बजाते ऊधम मचाते
हर चौक-चौराहे पर
उठा देते हैं वे अपने कपड़े ऊपर
दरअसल, वह उनकी अभद्रता नहीं
उस ईश्वर से प्रतिशोध लेने का
उनका अपना एक तरीक़ा है
जिसने उन्हें बनाया है
या फिर नहीं बनाया।”
सृजन संवाद में ‘लेखक से मिलिए’ के तीसरे सत्र में बर्लिन से पधारीं उद्यमी, कथाकार, कवयित्री डॉ. योजना जैन ने अपनी कृतियाँ ‘बनारस मीट्स बर्लिन’ (उपन्यास), ‘इमली का चटकारा’ (कहानी संग्रह), ‘कागज पर फुदकती गिलहरियाँ’ (कविता संग्रह) पर प्रकाश डाला। इस दौरान उन्होंने अपनी कविताओं का पाठ किया।
डॉ. योजना से नीरजा शर्मा एवं शरद श्रीवास्तव ने संवाद किया। इस अवसर पर काशी साहित्य कला उत्सव की स्मारिका का लोकार्पण राज्यसभा की सांसद सीमा द्विवेदी, दीपक मधोक, अशोक कपूर, बृजेश सिंह एवं वरिष्ठ लेखकों ने किया। आरम्भ में दीप प्रज्ज्वलन से कार्यक्रम की शुरुआत हुई। इसके बाद बनारस लिट् फेस्ट आयोजन समिति के अध्यक्ष दीपक मधोक ने इस आयोजन के उद्देश्यों पर प्रकाश डाला। उन्होंने बताया कि दो सफल एवं सार्थक आयोजन के बाद बनारस लिट् फेस्ट का तीसरा संस्करण आगामी वर्ष 7 से 9 मार्च तक आयोजित होगा, जिसमें अन्तर्राष्ट्रीय स्तर के लगभग 500 अतिथि लेखक, कलाकार, संगीतज्ञ एवं बुद्धिजीवी भाग लेंगे। प्रो. अमिताभ राव, प्रो. देवब्रत चौबे, हिंदुस्तान अखबार के संपादक रजनीश त्रिपाठी, रमनजी, डॉ. लतिका राव, कुमार विजय, धवल प्रकाश, अमित शिवरमानी, शिखा सिंह, धर्मेंद्र कुमार, दान बहादुर सिंह, अजय उपासनी, नरेंद्र नारायण राय, राजेश सिंह, त्रिनेत्र, चेतना, आकृति, डॉ. अपर्णा आदि की सक्रिय भागीदारी रही। अनेक वरिष्ठ साहित्यकारों सहित विविध क्षेत्रों के अध्येताओं, साहित्य रसिक पाठकों, संस्कृतिकर्मियों, बुद्धिजीवियों की उपस्थिति रही। कार्यक्रम का संयोजन संचालन प्रमोद पाण्डेय एवं आभार आयोजन समिति के उपाध्यक्ष अशोक कपूर ने व्यक्त किया।