शुद्ध देसी रोमांस : स्त्री परिवर्तन की कहानी
यह फिल्म दो हजार तेरह में बनी थी। आदित्य चोपड़ा की कम्पनी ने यह फिल्म बनाई थी। निर्देशक हैं मनीष शर्मा। इसके पहले भी उन्होंने कई फिल्मों का निर्देशन किया है। ‘वेडिंग प्लानर’ बनाई थी दो हजार दस में। शुद्ध देशी प्रेम की कहानी की पृष्ठभूमि में भी वेडिंग प्लानर है। इस फिल्म की घटनाएँ भी एक वेडिंग प्लानर के इर्द-गिर्द घटती हैं। इस फिल्म में वेडिंग प्लानर की भूमिका निभाई है ऋषि कपूर ने। ग्लोबल भारत में शादी और वेडिंग प्लानर का बिजनेस बचेगा कि नहीं, इसके जवाब पर उनकी नजर बनी रहती है।
इस फिल्म के तीन मुख्य किरदार हैं। सुशान्त सिंह राजपूत, परिणीति चोपड़ा और वाणी कपूर। एक चौथा किरदार भी है, लेकिन दर्शक उसे किरदार नहीं मानता। उस किरदार की उपेक्षा नहीं करनी चाहिए। उस पर गौर करना चाहिए। इस फिल्म का वह किरदार है शहर जयपुर और वहाँ का बाजार। जयपुर और बाजार के निहितार्थ को समझने से फिल्म का मर्म समझ में थोड़़ा ज्यादा आयेगा। जयपुर एक छोटा शहर है मगर उसका बाजार अन्तर्राष्ट्रीय है। इस अन्तर्राष्ट्रीय बाजार की छाया में जो संस्कृति और लाइफ स्टाइल पनप रही है, इसकी खबर देती है यह फिल्म; नया भारत – ग्लोबल भारत की संस्कृति और जीवनशैली।
इस फिल्म ने जयपुर के नवीन नागरिक गठन के बारे में बताया है। हम जानते हैं कि राजस्थान का कोटा शहर एजुकेशन हब बना। देश के दूसरे हिस्सों से माँ बाप अपने बच्चों को वहाँ ट्यूशन और तैयारी के लिए भेजने लगे। जो बने, वे बने। जो नहीं बने, वे जयपुर शहर में बनने के लिए आ गये। गायत्री (परिणीति चोपड़ा) एक ऐसी ही लड़की है। कोटा भेजी गयी थी बनने के लिए। न बनीं, न लौटीं। जयपुर में बनी रहीं। जयपुर ऐसे युवकों और युवतियों से भर गया। रघुराम (सुशान्त) के बारे में ऐसा कुछ नहीं बताया गया है, लेकिन समझा जा सकता है कि सुशान्त ने जिस रघुराम को पर्दे पर उतारा है, वह भी गायत्री के गोत्र का ही है। केवल रघुराम ही नहीं,बल्कि वे सारे युवक भी जो दूल्हे के दोस्त की भूमिका में हैं, वे भी ऐसे ही युवक हैं। यह फिल्म प्रकारान्तर से यह बताती है कि पढ़ाई की कोटा संस्कृति ने एक ऐसी पीढ़ी बनाई जो स्वतंत्रता की कामी है। अपने इतिहास से अपना परिचय बनाना पसंद नहीं करती।
गायत्री कोटा में कुछ न बन सकी पर बावजूद वह अपने परिवार के, गुवाहाटी नहीं लौटती है। क्यों? कारण उसी ने बताया है। उसका संवाद है, ‘लेक्चर सुनना आसान काम नहीं था। ये मत करो, ये करो।’ दूसरी युवती है इस फिल्म में तारा। तारा की भूमिका वाणी कपूर ने अदा की है। यह वही पात्र है जिससे रघु शादी के लिए मंडप तक पहुँच गया है, माला फेर के समय भाग खड़ा होता है। अपनी दूसरी मुलाकात में तारा रघु को बताती है, ‘तुम्हारे भाग जाने से लाभ यह हुआ कि मैं जयपुर आ सकी। सबकी छुट्टी हो गयी और सबसे छुट्टी हो गयी।’ यह ‘सब’ और कोई नहीं रिश्तेदार हैं। गायत्री ने परिवार में लौटना उचित नहीं समझा तो दूसरी ओर तारा अपने रिश्तेदारों से आजाद होती है।
शुद्ध देसी रोमांस नव युवतियों के प्वाइंट ऑफ व्यू से बनाई गयी फिल्म है। यह फिल्म यह बताती है कि इस समय की लड़कियाँ परिवार से मुक्त अपनी जिन्दगी का एक खण्ड जीना चाहती हैं, वर्जनाओं और निषेधों से मुक्त। वर्जिनिटी और सेक्सुअल रिलेशन नये भारत का इश्यू नहीं है। अब यह बन रही या कह लीजिए बन चुकी स्वदेशी संस्कृति है।
बस में गायत्री और रघु का लिप लॉक दृश्य और बेड सीन यही बताने के लिए फिल्माये गये हैं। तारा के साथ भी किसिंग सीन और बेड सीन इस नयी संस्कृति को अभिव्यक्त करने के लिए बनाए गये हैं। आज किसिंग सीन का मतलब लिप लॉक ही है। इस फिल्म में यह भी साफ किया गया है कि स्त्री पुरुष के सम्बन्ध तीन तरह के हैं। पहला दोस्ती का सम्बन्ध, दूसरा ब्याय फ्रेंड का रिश्ता और तीसरा पति पत्नी का रिश्ता। ये तीन अलग सम्बन्ध हैं। युवतियों के प्वाइन्ट आफ व्यू से इस फिल्म में यह बता दिया गया है कि जो ब्याय फ्रेंड का उचित पात्र है वह हस्बैंड का भी योग्य पात्र हो, आवश्यक नहीं।
आज के समय में लिव इन रिलेशन को स्वीकार करने की प्रवृत्ति बनी है। गौर करने की बात यह भी कि स्वीकार या सार्वजनिक लड़कियाँ ही कर रही हैं। पुरुष चुप रहता है।
ऊपर सारी चर्चाएँ करके केवल यह समझने की कोशिश की गयी है कि आज की युवतियाँ अपने लिए अपना कायदा या संहिता लिख रही हैं। उन्हें इसे किसी से एप्रूव कराने की जरूरत नहीं रह गयी है।
यहाँ यह याद आ ही जा रहा है कि साठ साल पहले एक फिल्म बनी थी मुगल-ए-आजम। इस फिल्म में एक स्त्री यानी अनारकली ने भी आमूल परिवर्तन की सूचना दी थी, राज दरबार में यह गा कर कि प्यार किया तो डरना क्या? इन साठ सालों में अनारकली हो या गायत्री या तारा, इनके मार्फत यह समझा जा सकता है कि स्त्रियाँ अपना परचम लिए मार्च कर रही हैं। पीछे से पीछा छुड़ाती हुईं।
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