शख्सियत

स्त्री शिक्षा के संवाहक : डॉ. भीम राव आम्बेडकर

 

“शिक्षा शेरनी का दूध है”- डॉ. भीम राव आम्बेडकर। डॉ. भीम राव आम्बेडकर ने शिक्षित होने पर ही जाना कि केवल भारत ही ऐसा देश है जहाँ देश के नागरिकों को जाति के आधार पर बाँट कर उनके साथ भेदभाव किया जाता है, जो कि बेहद अमानवीय स्तिथि है। बाबा साहेब भीमराव आम्बेडकर स्वयं समाज में अछूत, शुद्र या दलित समझी जाने वाली जाति से आते थे, इसलिए अपने समाज के दुःख दर्द, पीड़ा को वे भली-भांति समझ रहे थे।

वे जानते थे कि बिना शिक्षित हुए वे न स्वयं आगे बढ़ सकते हैं और न अपने समाज को आगे बढ़ा सकते हैं। इसलिए तमाम विषम परिस्थितियों से लड़ते, जूझते, संघर्षरत रहते हुए उन्होंने अपनी शिक्षा पूर्ण की। ये शिक्षा ही थी, जिसने डॉ. भीम राव आम्बेडकर को विश्वप्रसिद्ध महानायक एवं संविधान निर्माता बनाया।

 भारत का संविधान ही है, जिसकी प्रस्तावना में ही लिखा है; “हम भारत के लोग”। ये प्रथम पंक्ति ही हमें बताती है कि ‘भारत के सभी लोग समान हैं’। सभी को समान संवैधानिक अधिकार प्राप्त हैं। शिक्षित व्यक्ति न केवल स्वयं का वर्तमान और भविष्य सुधार सकता है बल्कि वह अपने परिवार एवं समाज को भी उनके अधिकारों एवं कर्तव्यों के बारे में जागृत कर सकता है। शिक्षा ही वह मजबूत सम्बल या हथियार है जिसके बल पर व्यक्ति बड़ी से बड़ी लड़ाई जीत सकता है।

महात्मा ज्योतिराव फुले, सावित्री बाई फुले और डॉ. भीम राव आम्बेडकर ने शिक्षा के महत्त्व को समझते हुए समाज में स्त्री शिक्षा यानि बालिका शिक्षा पर विशेष बल दिया और स्त्रियों की शिक्षा को महत्वपूर्ण मानकर इस दिशा में पूरी निष्ठा के साथ कार्य भी किया।

डॉ. भीम राव आम्बेडकर स्त्री शिक्षा को लेकर कितने चिन्तित और गम्भीर थे इसका अनुमान हम स्त्रियों की शिक्षा के लिए किये गये उनके अथक प्रयासों से लगा सकते हैं। डॉ. आम्बेडकर का स्त्री शिक्षा को लेकर स्पष्ट मत था कि “किसी भी समाज की उन्नति का अनुमान उस वर्ग की महिलाओं की उन्नति को देखकर ही हो सकता है। शिक्षा, स्वच्छता, महत्वाकांक्षा, आत्मविश्वाश, सीमित परिवार, पुरुष के साथ कंधे से कन्धा मिलाकर चलना और बराबरी का अधिकार मांगना नारी के विशेष कर्त्तव्य हैं।”

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डॉ. आम्बेडकर अक्सर समाज के लोगो के बीच कहा करते थे कि दुनिया की आधी आबादी केवल महिलाओं की है, इसलिए जब तक उनका चहुँमुखी विकास नहीं होगा कोई भी देश चहुँमुखी विकास नहीं कर सकता। यदि महिलाएँ एक जुट हो जाएँ तो वे क्या नहीं कर सकती। डॉ. आम्बेडकर महिलाओं की सांगठनिक शक्ति में विश्वास रखते थे और स्त्री शिक्षा के प्रबल समर्थक भी थे। वे लोगों को अक्सर अपने परिवार के बच्चों और महिलाओं को शिक्षित करने की बात करते थे।

इतना ही नहीं भारतीय स्त्रियों के उत्थान और विकास में भी भी डॉ. आम्बेडकर का विशिष्ट योगदान रहा है। सन 1941में सर बी.एन. राव की अध्यक्षता में, एक समिति हिन्दू कोड बिल का प्रारूप तैयार करने के लिए बनाई गयी, जिस पर 1946 तक बहस चलती रही,फिर उसे एक प्रवर समिति के अंतर्गत डॉ. बाबा साहेब भीम राव आम्बेडकर को सोंपा गया। डॉ. आम्बेडकर ने अथक परिश्रम और मेहनत से “हिन्दू कोड बिल का निर्माण किया। जिसकी प्रशंसा करते हुए तत्कालीन प्रधानमन्त्री पंडित नेहरू ने इस बिल को अपने प्रधानमंत्रित्व काल की महत्वपूर्ण उपलब्धि बताया।

‘हिन्दू कोड बिल’ का उद्देश्य हिन्दुओं के परम्परागत कानूनों में एकरूपता लाकर, उनमें सुधार कर क़ानूनी रूप देना और उनका आधुनिकीकरण करना था। डॉ. आम्बेडकर ने कहा था कि “यह बिल हिन्दू धर्मशास्त्रों के आधार पर ही बनाया गया है, यदि हिन्दू न्याय पूर्ण जीवन पद्धति चाहते हैं तो उनके लिए यह बिल मार्ग प्रशस्त करता है। किन्तु रुढ़िवादी हिन्दुओं सहित सरदार पटेल और डॉ. राजेन्द्र प्रसाद ने भी इस बिल का विरोध किया। बाबासाहेब ने सविंधान के द्वारा महिलाओं को सारे अधिकार दिए है जो मनुस्मृति ने नकारे थे। नारी सशक्तिकरण (हिन्दु कोड बिल) और डाॅ बाबासाहेब ...
यह बिल हिन्दू नारी के पैरों की परम्परागत बेड़ियों को तोड़ने वाला था। किन्तु विडम्बना यह थी कि पुरुष पतियों की बातों में आकर स्वयं हिन्दू स्त्रियां अपने हक़ में बने इस विधेयक को नहीं समझ पाई और इस बिल का विरोध किया। डॉ. आम्बेडकर हिन्दू कोड बिल के माध्यम से महिलाओं के अधिकार सुरक्षित करने के लिए चिन्तितथे इसलिए वे इस बिल को सम्पूर्णता में संसद में पास कराना चाहते थे इस बिल के मुख्यतः 4 भाग थे।

1. हिन्दुओं में बहुविवाह की प्रथा को समाप्त करके केवल एक विवाह का प्रावधान, जो विधि सम्मत हो।
2. महिलाओं को सम्पत्ति में बराबर अधिकार देना तथा पुत्र या पुत्री गोद लेने का अधिकार।
3. पुरुषों के समान नारियों को भी तलाक का अधिकार देना। हिन्दू समाज में पहले केवल पुरुष ही तलाक दे सकते थे।
4. आधुनिक और प्रगतिशील विचारधारा के अनुरूप हिन्दू समाज को एकीकृत करना।

 डॉ. आम्बेडकर का मानना था कि “सही मायने में प्रजातन्त्र तभी आएगा, जब महिलाओं को पिता की सम्पत्ति में बराबरी का हिस्सा मिलेगा। उन्हें पुरुषों के सामान अधिकार मिलेंगे। महिलाओं की उन्नति तभी होगी जब उन्हें परिवार समाज में बराबरी का दर्ज़ा मिलेगा। शिक्षा और आर्थिक तरक्की उनकी इस काम में मदद करेगी”।
बाबा साहब आम्बेडकर तो स्त्री मुक्ति के समर्थक थे। केवल दलित स्त्री नहीं बल्कि सम्पूर्ण भारतीय स्त्रियों के अधिकारों की सुरक्षा के लिए उन्होंने हिन्दू कोड बिल का निर्माण किया। 11 अप्रैल 1947 को ये बिल पेश किया गया। और कट्टर हिन्दू ताकतों और कई राजनेताओं के विरोध पूर्ण दबाव के चलते तत्कालीन प्रधानमन्त्री पण्डित पंडित नेहरू ने बिल के केवल एक हिस्से पर चर्चा करने की सलाह दी।

जिसमें केवल “विवाह और तलाक”भाग को कानून बनाने योग्य समझा गया। ‘हिन्दू कोड बिल’ पूर्णतः पारित नही हो सका। स्त्री मुक्ति का स्वप्न और अभिलाषा रखने वाले डॉ. भीम राव आम्बेडकर को अपने अथक परिश्रम से बनाये गए बिल की हत्या से इतनी निराशा और हताशा हुई कि उन्होंने अपने क़ानूनमन्त्री पद से ही इस्तीफा दे दिया। बेहद दुखी मन से उन्होंने कहा था “संविधान पास होने की अपेक्षा हिन्दू कोड बिल पास हो जाए तो मुझे अधिक आनन्द होगा”।

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स्त्री को सामान नागरिक के रूप में दर्जा देने का स्वप्न देखने वाला तथा स्त्रियों के पक्ष में न्याय न होने पर अपने पद से इस्तीफा देने वाला कोई साधारण व्यक्ति नहीं हो सकता। जब ये बात देश की महिलाओं की समझ में आई तो बाबा साहेब के इस्तीफा देते ही देश भर में हिन्दू कोड बिल के पक्ष में प्रतिक्रिया हुई। अनेक देशी तथा विदेशी महिला संगठन बिल के समर्थन में आए।

सभी वर्ग की महिलाओं को जागरूक करते हुए उन्होंने एक बार कहा था:” आपको अपनी गुलामी का अन्त स्वयं करना चाहिए। इसका अन्त करने के लिए आपको भगवान् या अतिमानवीय शक्ति पर निर्भर नहीं रहना चाहिए। आपका उद्धार व्रत, उपवास व तीर्थ यात्रा से नहीं वरन राजनीतिक सत्ता में निहित है।” शास्त्रों के प्रति भक्ति भावना आपको दासता, अभाव तथा निर्धनता से बचा नहीं पाएगी। कहने का तात्पर्य यह है कि बाबा साहेब भीम राव आम्बेडकर शिक्षा को प्रत्येक व्यक्ति के लिए बेहद जरुरी मानते हैं।    

शिक्षा प्रत्येक व्यक्ति के बोद्धिक और सामाजिक विकास के लिए बेहद जरुरी है। प्रत्येक जागरुक नागरिक का यह कर्त्तव्य होना चाहिए कि वह यह सुनिश्चित करे कि उसके आस-पास, गली मोहल्ले एवं पड़ोस में कोई भी बच्चा शिक्षा से महरूम न रहे। वह विद्यालय जरुर जाए। पढ़ना-लिखना प्रत्येक बच्चे का अधिकार हैं। शिक्षा ही किसी भी समाज की आर्थिक, सामजिक, राजनीतिक एवं सांस्कृतिक शक्ति का आधार है। शिक्षित हो कर ही हम समाज में रोज-बरोज होने वाले नवीन बदलावों को महसूस कर सकते हैं। देश-दुनिया और समाज की नवीन जानकारियाँ प्राप्त कर सकते हैं। शिक्षित होकर ही हम पुराने घृणित एवं अपमान जनक पेशों को छोड़कर नए रोजगार और सम्मानित नौकरियाँ प्राप्त कर सकते हैं।

विज्ञान एवं तकनीक की नवीन खोजों एवं माध्यमों के बारे जान कर उनका उपयोग अपने तथा समाज की बेहतरी में कर सकते हैं। इतना ही नहीं समाज में फैली तमाम तरह की रूढियों, कुप्रथाओं, अन्धविश्वासों, आडम्बरों का अन्त भी हम स्वयं शिक्षित होकर ही अपने समाज में कर सकते हैं। शिक्षा हमें न केवल एक जागरूक नागरिक बनाती है। बल्कि हमें स्वयं को स्वस्थ एवं स्वच्छ रखने के प्रति सचेत करती है। इसप्रकार शिक्षा ही हमें ज्ञान से उन्नत कर हम में आत्मविश्वास एवं जागृति की मशाल भी जगाती है। इसलिए किसी भी समाज के सर्वांगीण विकास के लिए शिक्षा बेहद जरुरी है। यही कारण है कि शिक्षित हो, संगठित हों और संघर्ष करो का नारा डॉ. भीम राव आम्बेडकर ने दिया।

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पूनम तूषामड़

लेखिका ने जामिया मिल्लिया से पीएच डी किया है और आम्बेडकर कॉलेज, दिल्ली विश्वविद्यालय में अतिथि प्राध्यापिका हैं।  सम्पर्क +919013893213, tushamadpoonam@gmail.com
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