शहरनामा

पैदल यात्री के पक्ष में

 

मनुष्य जब से इस पृथ्वी पर है, तबसे पैदल चलना उसके जीवन का अभिन्न अंग रहा है। आज भी अधिकांश सार्वजनिक परिवहन यात्राएँ पैदल यात्रा से ही शुरू और समाप्त होती हैं। इसलिए सड़क पर पहला अधिकार पैदल यात्रियों का ही है और होना भी चाहिए। पर विडंबना यह है कि मनुष्य ने अपनी सुविधा और तेज सफर के लिए जब वाहनों का उपयोग शुरू किया, तब सड़क पर अपने पैदल चलने के अधिकार पर उसने खुद ही कुठाराघात कर लिया। भारत जैसे देश में तो पैदल चलने वालों को सामाजिक तौर पर कमतर मानने जैसी प्रवृत्ति भी पनपी। पर मनुष्य को देर-सवेर इस अप्राकृतिक परिवर्तन का ख़ामियाज़ा तो भुगतना ही था। इसके कारण पर्यावरण और स्वास्थ्य से जुड़ी गंभीर समस्याएँ उसके सामने आ खड़ी हुई हैं। 

दरअसल जैसे-जैसे मनुष्य की ज़िंदगी तेज रफ़्तार होती गई वह पैदल चलने के महत्व को भूलता गया है। पैदल चलना सिर्फ एक साधारण गतिविधि नहीं है, बल्कि स्वास्थ्य, पर्यावरण, और समाज के लिए बेहद फ़ायदेमंद है। 

स्वास्थ्य के लिए फ़ायदे

रोज़ाना पैदल चलने से हृदय रोग, मोटापा, मधुमेह और उच्च रक्तचाप जैसी बीमारियों का खतरा कम होता है। मानसिक स्वास्थ्य बेहतर होता है, तनाव और डिप्रेशन कम होता है। इससे मांसपेशियाँ और हड्डियाँ मज़बूत होती हैं।

पर्यावरण को फ़ायदा

पैदल चलने से वाहनों का उपयोग कम होता है, जिससे वायु प्रदूषण और कार्बन उत्सर्जन कम होता है। इससे शहरी इलाक़ों में ट्रैफ़िक जाम और ध्वनि प्रदूषण कम करने में मदद मिलती है। 

शहर और समाज को फ़ायदा

पैदल चलने वाले इलाक़ों में सामाजिक संपर्क बढ़ता है, जिससे सामुदायिक भावना मज़बूत होती है। पैदल चलने वाले इलाक़ों में व्यापार बढ़ता है, जिससे स्थानीय अर्थव्यवस्था को फ़ायदा होता है। कम वाहन चलने से दुर्घटनाएँ कम होती हैं, जिससे सड़क सुरक्षा में सुधार होता है

बचत और सुविधा

पैदल चलना परिवहन का एक मुफ़्त साधन है, जिससे ईंधन और पैसे की बचत होती है। जिन शहरों में पैदल यात्रियों के अनुकूल बुनियादी ढाँचा होता है वहाँ का सार्वजनिक परिवहन अधिक प्रभावी होता है।

अगर शहरों को अधिक स्वस्थ, स्वच्छ और टिकाऊ बनाना है, तो पैदल चलने की संस्कृति को बढ़ावा देना बेहद ज़रूरी है। सरकारों को शहरी और ख़ासकर भीड़-भाड़ वाली सड़कों पर फुटपाथ, पेडेस्ट्रियन ज़ोन, ग्रीन वॉकवे और सुरक्षित क्रॉसिंग के निर्माण को प्राथमिकता देनी चाहिए ताकि लोग अधिक पैदल चलने के लिए प्रेरित हों।

यह संतोष की बात है कि दुनिया भर में पैदल चलने को लेकर जागरूकता बढ़ी है और पिछले कुछ सालों से इसे बहुत प्रोत्साहन दिया जा रहा है। इसकी मुख्य वजह ग्लोबल वॉर्मिंग, आधुनिक शहरीकरण, और वाहन से सफर एवं दफ़्तर में बैठकर काम करने के कारण बढ़ती स्वास्थ्य सम्बन्धी समस्याएँ हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन और उस जैसी अन्य संस्थाएँ लोगों को शारीरिक गतिविधियों को बढ़ाने पर जोर दे रही हैं। स्मार्ट सिटी प्रोजेक्ट और नए शहरी विकास मॉडल “वॉकेबल सिटी” की ओर बढ़ रहे हैं।

दुनिया में पैदल यात्रियों की सुरक्षा और उनके अधिकारों पर ध्यान देने की शुरुआत धीमे ही सही पर औद्योगिक क्रांति के बाद ही हो गई थी, लेकिन 20वीं शताब्दी में जब सड़कों पर ऑटोमोबाइल की संख्या बढ़ने से दुर्घटनाएँ बढ़ीं तब यह मुद्दा महत्वपूर्ण हो गया। 1920-1930 के दशक में पैदल यात्रियों के सुरक्षित सड़क पार करने के अधिकार का संज्ञान लेते हुए कई देशों में पहली बार ज़ेब्रा क्रॉसिंग बने और यातायात सिग्नल लागू किए गए। 1980 के बाद शहरी नियोजन में पहले पैदल यात्री (पेडेस्ट्रियन फ़र्स्ट) की नीति अपनाई जाने लगी। 

2015 में आयोजित पेरिस जलवायु सम्मेलन का मुख्य उद्देश्य वैश्विक तापमान वृद्धि को 1.5 डिग्री सेल्सियस तक सीमित रखना और ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन को कम करना था। इस संदर्भ में, सतत परिवहन (सस्टेनेबल ट्रांसपोर्ट) पर विशेष जोर दिया गया, जिसमें पैदल यात्रा को भी महत्वपूर्ण माना गया। इसके तहत दुनिया के देशों को शहरी परिवहन नीति में बदलाव कर अपने शहरों को पैदल यात्रियों के अनुकूल बनाने के लिए प्रोत्साहित किया गया। इसके लिए शहरों में अधिक फुटपाथ, पैदल ज़ोन और सार्वजनिक परिवहन के साथ पैदल यात्री कनेक्टिविटी पर ध्यान देने की बात कही गई।

इसके साथ ही कार्बन फुटप्रिंट कम करने के लिए वाहनों की संख्या कम करने और लोगों को अधिक से अधिक पैदल चलने के लिए प्रेरित करना ज़रूरी माना गया और इसके लिए उपाय सुझाए गए। शहरों को पैदल चलने योग्य शहर (वाकेबल सिटीज) बनाने पर जोर दिया गया, जिनमें ऐसे क्षेत्र विकसित करने का सुझाव दिया गया जहाँ पैदल चलने वालों को प्राथमिकता मिले और गाड़ियों का उपयोग सीमित हो। भारत, ब्राज़ील जैसे विकासशील देशों को पैदल यात्रियों की सुरक्षा और इसके लिए बुनियादी ढाँचे में निवेश बढ़ाने की सलाह दी गई। संयुक्त राष्ट्र और अन्य संस्थानों ने ग्रीन ट्रांसपोर्ट पोलिसीज की सिफ़ारिश की, जिसमें पैदल यात्रियों के अनुकूल नीतियाँ अपनाने पर जोर दिया गया। कई देशों ने इसके बाद अपनी नीतियों में बदलाव किए और अपने यहाँ पैदल यात्रियों के लिए बेहतर बुनियादी ढाँचे का विकास किया।

कोरोना महामारी (कोविड-19) के बाद पैदल यात्रियों पर पहले से भी ज़्यादा ध्यान दिया जाने लगा है। महामारी के संकट ने मनुष्य को एक बार फिर नगरीय जीवन की वर्तमान में स्थापित पद्धतियों पर पुनर्विचार करने को विवश कर दिया। महामारी ने शहरी परिवहन और सार्वजनिक स्थानों के उपयोग के तरीक़े को पूरी तरह बदल दिया। लॉकडाउन के दौरान लोगों को खुली जगहों और वॉकिंग स्पेस की ज़रूरत महसूस हुई। तब कई शहरों ने अस्थाई पैदल यात्री क्षेत्र और चौड़े फुटपाथ बनाए, जिन्हें बाद में स्थाई बना दिया गया।

महामारी के दौरान सार्वजनिक परिवहन का उपयोग घटा, जिससे लोग साइकिलिंग और पैदल चलने की ओर बढ़े। सरकारों ने इसे बढ़ावा देने के लिए कार फ्री जोन्स और स्लो स्ट्रीट्स प्रोजेक्ट शुरू किए। लोगों में स्वास्थ्य को लेकर जागरूकता बढ़ी, जिससे उनमें पैदल चलने की प्रवृत्ति बढ़ी। 15-मिनट सिटी (जहाँ हर ज़रूरी चीज पैदल 15 मिनट की दूरी पर उपलब्ध हो) जैसी अवधारणाएँ लोकप्रिय हुईं। सरकारों और शहरी योजनाकारों का दृष्टिकोण बदला और अब शहरी नियोजन में सिर्फ वाहनों के लिए ही नहीं, बल्कि पैदल यात्रियों और साइकिल चालकों के लिए भी योजना बन रही है। कई देशों में पहले पैदल यात्री (पेडेस्ट्रियन फ़र्स्ट) नीतियाँ लागू की गईं, जिसके तहत शहरों को अधिक वॉकफ़्रेंडली बनाया जा रहा है। 

दुनिया भर के शहर अब पैदल यात्रियों को प्राथमिकता देने के लिए अपने बुनियादी ढाँचे और नीतियों में बदलाव कर रहे हैं। कई देशों में पैदल यात्रियों की सुरक्षा और सुविधा को प्राथमिकता देने के लिए विशेष पैदल यात्री नीति बनाई गई है। ये नीतियाँ यातायात नियमों, शहरी नियोजन, और बुनियादी ढाँचे से जुड़ी होती है। मजे की बात यह है कि दुनिया में रहने के लिए जो देश सबसे अच्छे माने जाते हैं, जहाँ सड़क दुर्घटनाएँ सबसे कम होती हैं, उन्हीं देशों में कोरोना के बाद पैदल यात्रा को बढ़ावा देने पर अधिक ध्यान दिया जा रहा है, क्योंकि यह सुरक्षित, स्वस्थ, और पर्यावरण के अनुकूल तरीक़ा है।

यूरोप में पैदल यात्रियों की सुरक्षा को लेकर सबसे अधिक ध्यान दिया जाता है और उनके अधिकारों को लेकर सबसे अधिक सजगता है। नीदरलैंड, जर्मनी, फ़्रांस, नॉर्वे, स्वीडन जैसे कई देशों ने इस दिशा में काफ़ी काम किया है। इन देशों में पैदल यात्रियों को बहुत सम्मान और सड़क पर प्राथमिकता दी जाती है। पैदल यात्रियों के सुरक्षित चलने के लिए सड़क पर अलग जगह है और ट्रैफ़िक सिस्टम उनके अनुकूल बनाया गया है।

पैदल यात्रियों के सुरक्षित सड़क पार करने के लिए ज़ेब्रा क्रॉसिंग पर गाड़ियों का रुकना अनिवार्य होता है। ट्रैफ़िक लाइट के लाल न होने पर भी ज़ेब्रा क्रॉसिंग पर गाड़ियाँ रुककर पैदल यात्रियों को सड़क पार करने में प्राथमिकता देती हैं। इन देशों में ट्रैफ़िक क़ानूनों को कड़ाई से लागू किया जाता है, जिससे पैदल चलने वालों की सुरक्षा सुनिश्चित की जा सके। नॉर्वे और स्वीडन में विजन जीरो नीति के तहत सड़क दुर्घटनाओं को पूरी तरह खत्म करने का लक्ष्य रखा गया है। पेरिस, लंदन, न्यूयॉर्क जैसे अनेक शहरों में पैदल चलने वालों को अधिक प्राथमिकता दी जा रही है और वहाँ पैदल यात्री क्षेत्र बढ़ाए गए हैं और कारों के लिए जगह कम की गई है।

अब तो विकसित देशों के साथ-साथ विकासशील देशों में भी पैदल यात्रियों की सुरक्षा और सुविधाओं को बेहतर बनाने के लिए योजनाएँ बनाई जा रही हैं। एशिया में जापान, सिंगापुर, हॉंगकॉंग, दक्षिण कोरिया जैसे देशों में भी पैदल यात्रियों के लिए सुविधाएँ बनी हैं। 

पैदल यात्री के पक्ष में

भारत विश्व के उन देशों में से एक है जहाँ पैदल चलना बेहद असुरक्षित है। सड़क हादसों में होने वाली मौतों के मामले में भारत पूरी दुनिया में पहले नंबर पर है। तुलनात्मक रूप से देखें तो भारत में सड़क दुर्घटना में होने वाली मौतों की दर प्रति 10 हजार किमी पर लगभग 250 है, जबकि चीन, अमेरिका और ऑस्ट्रेलिया में यह आँकड़ा क्रमशः 119, 57 और 11 है। एक्सपर्ट्स के मुताबिक़, बढ़ते हादसों और मौतों के लिए गाड़ियों की संख्या में वृद्धि के अनुपात में सड़कों की लंबाई का न बढ़ना और हादसों को लेकर पुलिस का उदासीन रवैया भी ज़िम्मेदार है।

भारत में होने वाली सड़क दुर्घटनाओं में पैदल यात्रियों की मौत की संख्या बहुत ज़्यादा है। इसकी प्रमुख वजह भारत की सड़कों पर सुरक्षित पैदल चलने के लिए सुविधाओं का नितांत अभाव है। भारतीय शहरों में पैदल चलना लाखों लोगों के लिए पीड़ा है, क्योंकि वे ऐसा करते हुए अपनी जान रोज जोखिम में डालते हैं। पैदल यात्री सुविधाओं के न रहने के कारण देश की बेहतर होती सड़कें और गाड़ियों की बढ़ती रफ़्तार पैदल यात्रियों के लिए उत्तरोत्तर अधिक असुरक्षित होती जा रही है। 

इससे यह समझा जा सकता है कि सड़कों पर सुरक्षित पैदल चलने की व्यवस्था के अभाव में होने वाली दुर्घटनाओं में बच्चों और महिलाओं की संख्या ज़्यादा होगी। एक आँकड़े के अनुसार देश में सड़क दुर्घटना में मरनेवाले लोगों में 17% पैदल चलने वाले होते हैं। 2019 में सड़क दुर्घटना में मरने वाले पैदल यात्रियों की संख्या 25,858 थी। चिंता की बात यह है कि यह संख्या 2014 में हुई ऐसी मौतों से 85% ज़्यादा है।

सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्रालय द्वारा प्रकाशित रिपोर्ट ‘भारत में सड़क दुर्घटना के आँकड़े, 2022’ के अनुसार, देश में 2022 में सड़क दुर्घटना में कुल 1,68,491 मौतें हुईं। 2018 से 2022 के डेटा के आधार पर देश में 5 साल में सड़क हादसों में 7.77 लाख मौतें हुई हैं। 2021 की तुलना में 2022 में सड़क हादसों में 11.9% का इज़ाफ़ा हुआ और मृतकों की संख्या में 15.3% की बढ़ोतरी हुई। इन आँकड़ों में कमी या स्थिरता आने की बजाय अभी भी वृद्धि जारी है। इसका मतलब है कि हमारी सड़कें सुरक्षित होने की बजाय और अधिक असुरक्षित होती जा रही हैं और इसका सबसे अधिक ख़ामियाज़ा पैदल चलने वालों को भुगतना पड़ता है।

केंद्रीय सड़क परिवहन मंत्री नितिन गडकरी पिछले साल एक मौके पर खुद कह चुके हैं कि दुनिया में सड़क हादसों को लेकर सबसे ख़राब रिकॉर्ड हमारा है। जब भी मैं किसी अंतरराष्ट्रीय कॉन्फ़्रेन्स में शामिल होने जाता हूँ और वहाँ सड़क हादसों को लेकर बात होती है, तो मैं अपना मुँह छुपाने की कोशिश करता हूँ। इसी तरह लोकसभा में सड़क हादसों पर एक चर्चा के क्रम में नितिन गडकरी ने कहा कि जब मैंने सड़क परिवहन मंत्रालय का ज़िम्मा संभाला था, तो मैंने 2024 तक सड़क हादसों और इससे होने वाली मौतों को 50% कम करने का लक्ष्य रखा था। एक्सीडेंट कम करना तो भूल जाइए, मुझे तो ये स्वीकार करने में भी कोई शर्म नहीं कि ये बढ़ गए हैं।

पैदल चलने वालों की मौत में हो रही निरंतर वृद्धि को उजागर करने और इस ओर सरकार का ध्यान आकृष्ट करने के लिए अलग-अलग स्तर पर नागरिक संगठनों द्वारा प्रयास किए जा रहे हैं। गैर-सरकारी संगठनों के एक राष्ट्रीय गठबंधन, समनेट इंडिया (पूणे) द्वारा 11 अक्टूबर 2021 से एक राष्ट्रव्यापी अभियान छेड़ा गया, जिसके तहत केंद्र सरकार से माँग की गई कि वह 11 जनवरी को ‘राष्ट्रीय पदयात्री दिवस’ घोषित करे और देश के लिए ‘राष्ट्रीय पदयात्री नीति’ बनाए। अभियान के तहत झटका डॉट ओआरजी के सहयोग से इस माँग से लोगों को जोड़ने और उनका समर्थन जुटाने के लिए एक ऑनलाइन याचिका भी शुरू की गई। इस अभियान का उद्देश्य पैदल चलने के लिए देश में सुरक्षित और सुविधाजनक बुनियादी ढाँचा और एक ऐसी संस्कृति विकसित करने पर बल देना है जिससे पैदल चलने की प्रवृत्ति को प्रोत्साहन मिले। संस्था द्वारा इस पर माँग पर विचार करने का अनुरोध करते हुए अन्य अनेक संस्थाओं द्वारा समर्थित एक प्रतिवेदन माननीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी को भेजा गया है, जिसकी अनुशंसा उनसे कई सांसदों ने भी की है। पैदल यात्रियों के अधिकारों और इस अभियान के विषय में लोगों में जागरूकता बढ़ाने के लिए देश के कई शहरों यथा महाराष्ट्र के पूणे, नागपुर और झारखंड का रामगढ़ कैंट, में पदयात्री दिवस का आयोजन भी हुआ।

देश के दिल्ली, मुंबई, बेंगलुरु, पुणे जैसे कुछ शहरों के कुछ हिस्सों में अच्छे फुटपाथ उपलब्ध हैं। देश के कुछ शहरों में चुनिंदा सड़कों पर निर्धारित समय में सिर्फ पैदल यात्रा की अनुमति देने का रुझान सामने आया है। लेकिन इस तरह के सारे कदम अब तक सांकेतिक स्तर तक ही सीमित रहे हैं। इस तरह की पहल का व्यापक विस्तार होने में सबसे बड़ी कठिनाई यह है कि भारत में लोगों को अपनी कार रखने का जुनून है, जिसकी मुख्य वजह है उसका जरुरत से भी ज़्यादा सामाजिक प्रतिष्ठा की बात होना।

ख़ुशी की बात यह है कि केंद्र सरकार ने एक दशक पहले शहरी परिवहन में बदलाव की पहल की और उसके द्वारा जून 2015 में शुरू किए गए स्मार्ट सिटी मिशन के तहत चुने गए 100 शहरों को टिकाऊ शहरी केंद्रों में विकसित करने पर काम चल रहा है। इन शहरों में विकसित हो रहे बुनियादी ढाँचे में पैदल यात्रियों की सुरक्षा और सुविधा को ज़रूर ध्यान में रखा गया है। यहाँ चौड़े और सुरक्षित फुटपाथ, पेडेस्ट्रियन फ़्रेंडली सड़कें, ज़ेब्रा क्रॉसिंग, एलिवेटेड वॉकवे और स्काईवॉक, ग्रीन कॉरिडोर, स्मार्ट सिटी लाइट और सीसीटीवी सुरक्षा, दिव्यांगों और बुजुर्गों के लिए विशेष सुविधाएँ, ट्रैफ़िक-फ्री और वॉकिंग-फ़्रेंडली ज़ोन बनाए जा रहे हैं। स्मार्ट सिटी की सभी परियोजनाओं को पूरा करने के लिए इस मिशन की निर्धारित समय सीमा 31 मार्च 2025 को समाप्त हो गई है। आशा है कि शहरी परिवहन के इस मॉडल का शीघ्र ही देश के अन्य शहरों तक विस्तार होगा।

जलवायु परिवर्तन के कारण जिस तरह दुनिया बढ़ती प्राकृतिक आपदाओं का एवं बैठ कर काम करने की गतिहीन जीवनशैली के परिणामस्वरूप लोग जिस तरह स्वास्थ्य संबंधी गम्भीर समस्याओं का सामना कर रहे हैं, उससे उबरने के लिए हमें यथाशीघ्र प्रकृति के अधिक अनुरूप जीवनशैली अपनाने के ज़रूरत है। इस दिशा में एक प्रमुख कदम के तौर पर मनुष्य द्वारा परिवहन के लिए ईंधन आधारित वाहनों के उपयोग में कटौती और कम दूरी की यात्रा पैदल ही तय करने की आदत को अपनी जीवनचर्या का अंग बनाना बेहद ज़रूरी है

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बसन्त हेतमसरिया

लेखक सामाजिक कार्यकर्ता व एनएपीएम झारखण्ड के संयोजक हैं। सम्पर्क +919934443337, bkhetamsaria@gmail.com
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