मुद्दा

बिगड़ैल छात्र राजनीति पर अंकुश लगाने का समय

 

आज छात्र राजनीति का शुद्धिकरण करना अत्यंत आवश्यक है। चुनाव प्रक्रिया को धनबल और बाहुबल से मुक्त करके, लिंगदोह नियमावली को व्यावहारिक बनाकर और उसका सख्त अनुपालन सुनिश्चित करके एकबार फिर छात्र राजनीति को रचनात्मक और सकारात्मक बनाया जा सकता है। व्यक्तिगत हित से ऊपर उठकर और संस्थान हित को सर्वोपरि मानने वाले छात्रनेता ही छात्रों का प्रतिनिधित्व करने के हकदार हैं।

पिछले दिनों दिल्ली विश्वविद्यालय छात्र संघ के अध्यक्ष रौनक खत्री, जोकि कांग्रेस समर्थित छात्र संगठन एन एस यू आई से संबद्ध हैं, ने दिल्ली विश्वविद्यालय मुख्य परिसर स्थित जवाहर वाटिका के ताले हथौड़े से तोड़ दिये और रोकथाम करने वाले सुरक्षाकर्मियों को डराया–धमकाया। इसीप्रकार उन्होंने कुछ दिन पहले श्रीराम कॉलेज ऑफ कॉमर्स जैसे प्रतिष्ठित संस्थान में घुसकर वहां के शिक्षक–शिक्षिकाओं के साथ अत्यंत अभद्र, अशालीन और अमर्यादित व्यवहार किया था। उनके इस व्यवहार से शिक्षा जगत खासकर दिल्ली विश्वविद्यालय स्तब्ध और क्षुब्ध है। श्रीराम कॉलेज ऑफ कॉमर्स शिक्षक संघ और दिल्ली विश्वविद्यालय शिक्षक संघ सहित लगभग सभी शिक्षक संगठनों और हजारों छात्रों–शिक्षकों ने उनके खिलाफ सख्त कार्रवाई की मांग की थी।

रौनक खत्री ‘विजिलेंटी जस्टिस’ / कंगारू कोर्ट के नए रहनुमा बनने पर उतारू हैं। शान बघारने और सस्ती लोकप्रियता पाने के लिए वह ऐसी निंदनीय स्टंटबाजी करते रहते हैं और उसकी रीलें बनाकर उन्हें सोशल मीडिया प्लेटफार्मों पर वायरल कराते हैं। ऐसा लगता है मानो उनपर इसप्रकार की बदतमीजियों का रिकॉर्ड बनाने की सनक सवार है। आर्ट्स फैकल्टी के डीन प्रो. अमिताव चक्रवर्ती, लॉ फैकल्टी के चुनाव अधिकारी, अदिति कॉलेज की प्राचार्या के साथ बदतमीजी, केशव महाविद्यालय के “इंस्पेक्शन”, इंजीनियरिंग विभाग के चीफ इंजीनियर के साथ बदसलूकी जैसी घटनाओं की फेहरिस्त लंबी है। उनके सोशल मीडिया अकाउंट ऐसी वारदातों से अटे पड़े हैं। ऐसा आचरण घोर आपत्तिजनक, निंदनीय और अक्षम्य है। विवि प्रशासन को ऐसे अमर्यादित व्यवहार और हिंसक आचरण का गंभीर संज्ञान लेकर उसकी नकेल कसने की जरूरत है, अन्यथा यह बेलगाम होती प्रवृत्ति लाइलाज बीमारी बन बैठेगी। संबंधित राजनीतिक दल को भी ऐसे अमर्यादित आचरण का तत्काल संज्ञान लेना चाहिए। ऐसे हिंसक और डरावने वातावरण में छात्र, शिक्षक और प्रशासनिक कर्मी निश्चिंततापूर्वक अपना कर्तव्य पालन नहीं कर सकते।

इक्कीसवीं सदी आते–आते मुख्यधारा की राजनीति में अपराधियों और धन–पशुओं का वर्चस्व और बोलबाला होने लगा था। छात्र संघ और छात्र राजनीति भी इस बदलाव से अछूती नहीं रह सकी। आज छात्र राजनीति मुख्यधारा की राजनीति का शॉर्टकट रास्ता है। उसमें घुसपैठ करने का प्लेटफार्म है। आज मुख्यधारा की राजनीति की जो भी बुराइयां हैं, वे छात्र राजनीति में भी साफ दिखाई देती हैं। बल्कि ये मुख्यधारा की राजनीत का पूर्वाभ्यास (रिहर्सल) बन गई हैं। उल्लेखनीय है कि पिछले दो–तीन दशक से प्रमुख छात्र संगठनों से दिल्ली विश्वविद्यालय छात्र संघ चुनाव लड़ने/जीतने वालों में अधिसंख्य जाट–गुर्जर समाज से हैं। ऐसा क्यों है? क्या इसका संबंध दिल्ली देहात और एन सी आर में जमीन की बढ़ती हुई कीमतों, खरीद–फरोख्त और किरायेदारी से है। यह विचारणीय प्रश्न है। आज छात्रसंघ चुनाव जीतने की अर्हता जाति, धनबल और बाहुबल बन गया है। लालच और डर का खुला खेल दिल्ली विश्वविद्यालय छात्र संघ चुनावों में होता है।

लिंगदोह नियमावली की खुलेआम धज्जियां उड़ाई जाती हैं। न सिर्फ कॉलेजों और दिल्ली विश्वविद्यालय की इमारतों को बल्कि दिल्ली भर की सरकारी/सार्वजनिक इमारतों और संपत्ति को विरूपित किया जाता है। करोड़ों की संख्या में पैंपलेट, पोस्टर, स्टीकर और होर्डिंग लगाए जाते हैं। प्रत्येक प्रत्याशी सैकड़ों बड़ी–बड़ी गाड़ियों का काफिला लेकर कैंपेन के लिए निकलता है। फार्म हाउस, क्लब, डांसबार, मल्टीप्लैक्स आदि की बुकिंग करके वहां पीने–खाने और नाचने–गाने की पार्टियां आयोजित की जाती हैं। दिल्ली–एन सी आर के बेरोजगार नौजवान चुनावी महीने में यकायक बिजी हो जाते हैं। यारी–दोस्ती, मौज–मस्ती और लेन–देन उनकी उपलब्धता और सक्रिय भागीदारी सुनिश्चित करते हैं। सभी छात्र संगठनों में एक–दूसरे से आगे निकलने की होड़ लगी रहती है। जो प्रत्याशी या संगठन धनबल और बाहुबल का इस्तेमाल नहीं करता, या उसके इस्तेमाल में झिझकता है; उसे कमजोर मान लिया जाता है। पूरी चुनावी व्यवस्था इतनी दूषित हो चुकी है कि सही और सकारात्मक साधनों से लड़कर चुनाव जीतना लगभग असंभव है। इसके लिए सिर्फ छात्र नेताओं को दोषी नहीं ठहराया जा सकता। उनके अलावा उनके संगठन, चुनावी तन्त्र और मतदाता यानि कि छात्र समुदाय भी इस चतुर्दिक गिरावट के लिए जिम्मेदार हैं। प्रत्याशियों की अकादमिक क्षमता, भाषण कला, मुद्दों की समझ और सक्रियता के प्रति छात्रों (मतदाताओं) की उदासीनता दुखद और दुर्भाग्यपूर्ण है। वास्तव में, आज छात्र राजनीति नहीं कर रहे, बल्कि अधिकांश मामलों में राजनेता छात्र का वेश धारण करके छात्र राजनीति की आड़ में दबंगई और गुंडागर्दी कर रहे हैं और राजनीतिक कैरियर की जमीन तैयार करते दिखाई पड़ते हैं। जो छात्र ही नहीं हैं, वे भला कैसी छात्र राजनीति करेंगे, यह समझना कोई मुश्किल पहेली नहीं है। बढ़ती गुंडागर्दी और हिंसा के कारण कई राज्य सरकारों और कई विश्वविद्यालयों ने छात्र संघ चुनावों पर रोक लगा दी है।

उल्लेखनीय है कि इसबार दिल्ली उच्च न्यायालय ने दिल्ली विश्वविद्यालय छात्र संघ चुनाव में लिंगदोह नियमावली के उल्लंघन का गंभीर संज्ञान लिया था। लेकिन उसके द्वारा की गई कार्रवाई नाकाफी साबित हुई है। पिछले कुछ सालों से देखने में यह भी आ रहा है कि दिल्ली विश्वविद्यालय छात्र संघ के चुने हुए छात्रनेता शिक्षकों, प्रशासनिक कर्मियों और अधिकारियों आदि के साथ अभद्रता, गाली–गलौज और मारपीट तक करने लगे हैं। विभिन्न कॉलेज छात्रसंघ भी उनकी ऐसी करतूतों की नकल करते हैं। कोई भी छात्र संगठन इस दुष्प्रवृति का अपवाद नहीं है। पिछले साल भी ऐसी ही कुछ घटनाएं वायरल हुई थीं, हालांकि तत्कालीन दिल्ली विश्वविद्यालय छात्रसंघ अध्यक्ष दूसरे दल और समुदाय से थे।

विश्वविद्यालयों को गुंडों का चारागाह नहीं बनने दिया जाना चाहिए। अगर ऐसा नहीं किया गया तो वह दिन दूर नहीं जब छात्रनेता कैंपस में मनमानी करेंगे और चौथ/लेवी वसूलेंगे। छात्रावासों और अतिथि गृहों पर अवैध कब्जे करके उन्हें अपने अड्डे बना लेंगे। जोर–जबरदस्ती, छेड़छाड़, मारपीट और मर्डर विश्वविद्यालय का रोजनामचा हो जाएगा। देश के दर्जनों विश्वविद्यालयों में ऐसा होना शुरू हो गया था। इसलिए वहां छात्रसंघ चुनाव पर रोक लगा दी गयी है।

इसीप्रकार माननीय न्यायालय को भी इन घटनाओं का स्वतः संज्ञान लेकर ऐसे आपराधिक तत्वों के खिलाफ सख्त कार्रवाई करनी चाहिए। चुनाव प्रक्रिया पर भी निरंतर निगरानी रखने की आवश्यकता है। छात्रसंघ को मुख्यधारा की राजनीति की बुराइयों के पूर्वाभ्यास का मंच (प्लेटफार्म) नहीं बनने देना चाहिए। अगर हम निरन्तर बढ़ती ऐसी घटनाओं और प्रवृत्तियों पर अंकुश नहीं लगाएंगे तो इस अपराध के सहभागी माने जाएंगे। कवि रामधारी सिंह ‘दिनकर’ ने अकारण ही नहीं लिखा था –

“समर शेष है, नहीं पाप का भागी केवल व्याध!

जो तटस्थ हैं, समय लिखेगा उनके भी अपराध!!”

कैम्ब्रिज, ऑक्सफोर्ड, हार्वर्ड, लिवरपूल, लंदन स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स जैसे विदेशी संस्थानों में छात्रसंघ की अत्यंत सकारात्मक और रचनात्मक भूमिका होती है। यूनिवर्सिटी ऑफ लिवरपूल में सक्रिय स्टूडेंट्स गिल्ड छात्र राजनीति का उल्लेखनीय और अनुकरणीय उदाहरण है। वे पठन–पाठन, सांस्कृतिक और खेलकूद गतिविधियों और कैंपस की बेहतरी के लिए समर्पित और सक्रिय सच्चे छात्र प्रतिनिधि होते हैं। ऐसा अन्य तमाम विदेशी विश्वविद्यालयों में भी सुनाई/दिखाई पड़ता है। सांस्थानिक हितों के लिए समर्पित ऐसे कर्तव्यनिष्ठ छात्र प्रतिनिधि ही लोकतन्त्र को स्वस्थ और परिपक्व बनाने में अपना योगदान दे सकते हैं।

राजनीति में कैरियर बनाने की चाह में छात्र राजनीति को दूषित करने वाले भारतीय विश्वविद्यालयों के छात्रनेता अपनी परीक्षाओं के साथ–साथ मुख्यधारा की राजनीति में भी क्यों ‘फेल’ हो रहे हैं? उन्हें इस विषय पर आत्ममंथन करना चाहिए।

लोकतन्त्र में छात्र संघों और छात्र नेताओं की बहुत महत्वपूर्ण भूमिका रही है। छात्रसंघ युवा मन का सकारात्मक, संगठित और साकार रूप हैं। वे युवाओं की शक्ति और ऊर्जा के अभिव्यक्त और मान्य प्रतिनिधि रहे हैं। स्वाधीनता आन्दोलन से लेकर जयप्रकाश नारायण के संपूर्ण क्रांति आन्दोलन, आपातकाल विरोधी आन्दोलन, राम मंदिर निर्माण आन्दोलन, बांग्लादेशी घुसपैठियों के खिलाफ ऑल असम स्टूडेंट्स यूनियन (आसू) द्वारा चलाए गए आन्दोलन, आरक्षण संबंधी सामाजिक न्याय आन्दोलन, श्रीनगर के लाल चौक पर राष्ट्रध्वज फहराने संबंधी तिरंगा आन्दोलन और निर्भया कांड के बाद चले भ्रष्टाचार विरोधी अन्ना/लोकपाल (इंडिया अगेंस्ट करप्शन) आन्दोलन तक सभी बड़े समाज–सत्ता प्रतिष्ठान बदलने संबंधी आन्दोलनों में छात्रों और छात्र संघों की बड़ी भूमिका रही है। उल्लेखनीय है कि आपातकाल विरोधी आन्दोलन में दिल्ली विश्वविद्यालय छात्र संघ (डूसू), जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय छात्र संघ और पटना विश्वविद्यालय छात्र संघ की अग्रणी भूमिका थी। अरुण जेटली,विजय गोयल,सीताराम येचुरी,प्रकाश करात, देवी प्रसाद त्रिपाठी, नीतिश कुमार, लालू प्रसाद यादव, सुशील कुमार मोदी,रविशंकर प्रसाद आदि तमाम बड़े नेताओं की गिरफ्तारी हुई और लंबे संघर्ष और जद्दोजहद के बाद भारत देश में लोकतन्त्र की बहाली हुई। यह वह दौर था जब छात्र व्यवस्था में सुधार या बदलाव की सकारात्मक राजनीति करते थे। वे व्यक्तिगत स्वार्थों और महत्वाकांक्षाओं से परे जाकर सामाजिक–राष्ट्रीय मुद्दों और छात्रहित के लिए त्याग और समर्पण के साथ काम करते थे। वे सपने देखने वाले जुनूनी लोग थे। वे ‘कैरियरिस्ट’ नहीं थे। राजनीति उनके लिए कैरियर नहीं थी। वे पढ़ते–लिखते भी थे। सामाजिक–राजनीतिक मुद्दों की समझ रखने वाले अच्छे वक्ता होते थे। वे चुनाव जीतने के लिए स्थानीय थैलीशाहों और गुंडों के मोहताज नहीं थे। न उन्हें किसी बड़े घर का बेटा या राजनीतिक परिवार का उत्तराधिकारी होने की आवश्यकता थी। वे कॉमन स्टूडेंट्स में से निकले हुए असाधारण प्रतिभा वाले मेहनती और जुझारू लोग थे। इसलिए उनका छात्रों पर प्रभाव होता था। छात्र उनके आह्वान पर,उनकी एक आवाज पर जुड़ते और जुटते थे।

निश्चय ही, लोकतांत्रिक व्यवस्था में चुने हुए प्रतिनिधियों का बहुत अधिक महत्व होता है। सच्चे प्रतिनिधि व्यवस्था के प्रति असहमति व्यक्त करते हैं और असुविधाजनक सवाल भी उठाते हैं। मगर कानून को अपने हाथ में लेने या गैर–कानूनी और हिंसात्मक हथकंडों का प्रयोग उनकी नैतिक आभा को धूमिल करता है। इसलिए साधन और साध्य की पवित्रता में संतुलन बनाते हुए छात्रों के अधिकारों के लिए आवाज़ उठाने और आवश्यकता पड़ने पर व्यवस्था का विरोध भी किया जाना चाहिए। ज्ञापन, संवाद, धरना–प्रदर्शन, अनशन, बहिष्कार,सविनय असहयोग /अवज्ञा आदि ऐसे बहुत से तरीके हैं जिनसे अधिकारों के लिए आवाज उठाई जा सकती है। अपनी उपस्थिति दर्ज कराई जा सकती है,पहचान बनाई जा सकती है और व्यवस्था विरोध की लड़ाई भी लड़ी जा सकती है। लेकिन इन साधनों को अपनाने के लिए समझदारी, धैर्य और आत्मबल चाहिए। ये तीनों ही गुण वर्तमान समाज से लुप्तप्रायः हैं। छात्र–समुदाय भी इसका अपवाद नहीं है। वर्तमान छात्र–राजनीति को अपने गौरवशाली इतिहास को जानने की आवश्यकता है। उन कारणों और साधनों को भी समझना जरूरी है जिनकी वजह से कोई आन्दोलन गौरवशाली इतिहास का हिस्सा बनता है। जिसतरह मुख्यधारा की राजनीति रेवड़ी संस्कृति और रॉबिनहुडवाद की शिकार हो गई है। छात्र राजनीति को उसकी नकल करने से बचते हुए पॉपुलिस्ट मुद्दों को अपना लक्ष्य न बनाते हुए संस्थान हित और छात्र हित के लिए सतत संघर्ष का रास्ता चुनना चाहिए। उल्लेखनीय है कि पॉपुलिज्म और शॉर्टकट जितने आकर्षक लगते हैं, उससे कहीं अधिक अनर्थकारी हैं

.

Show More

रसाल सिंह

लेखक दिल्ली विश्वविद्यालय के रामानुजन कॉलेज में प्राचार्य हैं। सम्पर्क +918800886847, rasal_singh@yahoo.co.in
5 1 vote
Article Rating
Subscribe
Notify of
guest

0 Comments
Oldest
Newest Most Voted
Inline Feedbacks
View all comments

Related Articles

Back to top button
0
Would love your thoughts, please comment.x
()
x