तेरा क्या होगा कालिया? कालिया नहीं, आलिया कहिए जनाब
सुशांत की मौत सपने की मौत है। सपने की मौत होती है तो दर्द गहरा होता है। गहरी पीड़ा से सारा हिंदुस्तान कराह रहा है। कराहता हुआ हिंदुस्तान न्याय माँग रहा है। न्याय है जो नाच रहा है। कहना यह है कि मामला घोलमट्ठा हो गया है। रायता फैला हुआ है। डोर का छोर ओझल है। हालात, नारी बीच साड़ी कि साड़ी बीच नारी है।
न्यायालय ने मुहर लगा दी है। मुहर लगा दी कि बिहार में हुआ एफआईआर सही था। मुहर लगा दी कि जाँच अब सीबीआई करेगी। यह भी मुहर लगा दी कि मुंबई पुलिस सही चल रही थी। सब सही चल रहा था तो आगे भी सही चलेगा। सब सही चलता रहेगा और न्याय पकता रहेगा। जैसे खिचड़ी पकती है।
कई बार खिचड़ी की दाल पकती है, कई बार नहीं पकती है। जिसकी गल जाती है, उसको मिल जाता है। क्या मिल जाता है? न्याय। न्याय का नियम ही है कि जिसकी गलेगी, उसे ही मिलेगा। जिसकी नहीं गलेगी, उसकी जलेगी। क्या गलेगी क्या जलेगी? दाल। न्याय की बटलोई में असली मुद्दा दाल है। सुशांत बिहार का लाल था। अब खिचड़ी की दाल है। बटलोई किसकी है? लोग आश्वस्त हैं कि बटलोई उसी की है, जिसके पास न्याय का शोरबा बनाने की रेसिपी है।
सुशांत के लिए न्याय की माँग में उबाल आया है। यह बासी कढ़ी में उबाल नहीं है। ताजा दूध का उबाल है। सर कलम करने की माँग उठी है। चैनलों पर ललकार है। मुंबई पुलिस के प्रधान के इस्तीफे के लिए हाहाकार है। हो सकता है यह उबाल रंग लाए। रंग लाए कि प्रधान को छुट्टी पर जाने के लिए मजबूर कर दिया जाए। अगर मजबूर किया जा सका तो सुशांत के लिए न्याय की लडा़ई ढाई घर आगे बढ़ेगी। शतरंज के खेल में घोड़े की मार से न्याय का अगला दरवाजा खुलेगा।
जनता भी उचित न्याय कर रही है। अपने उपभोक्ता होने की ताकत का अहसास करा रही है। ऐसा करा रही कि इंटरटेनरों की घिघ्घी बंधी हुई है। फिलहाल तो आलिया और उनके अब्बा जान की जान सांसत में है। आलिया ने एक शो में कहा था कि वह सुशांत को ‘मारना’ पसंद करेंगी। उनकी “सड़क दो” को न्याय का दरवाजा दिखा दिया गया है। आलिया सड़क पर आ गयी हैं। सड़क ही उनका अब ठिकाना है।
आलिया के अब्बा जान की चमड़ी मोटी है, मगर आलिया नाजुक जान हैं। डिस्लाइक के जितने पत्थर उन पर बरसे हैं कि भीतर तक छिल गयी होंगी। वैसे वे यह डिजर्व तो करती ही हैं। वे अक्ल से भी पैदल हैं। एक बार जब किसी चैनल पर राष्ट्रपति का नाम पूछा गया था तो अपनी बेशर्म मुस्कान के साथ अपनी मूर्खता ही छलका पाई थीं। उनका क्वालिफिकेशन केवल उनके अब्बा हैं। हिन्दी सिनेमा के पर्दे पर वह नाजायज उछलकूद करती रहती है। फेक और फेंकू इंटरटेनरों के हिसाब साफ करने के दिन आ गये हैं ।
आलिया को कालिया बनाते देख और इंटरटेनरों के होश हिल गये है। अपने लिए न्याय की उम्मीद में सुशांत के लिए न्याय माँगने लग गये। हाँ, पप्पू और परी की बात हो रही है। दोनों सुशांत के लिए न्याय माँगने वालों की लाइन में लग गये। जोर जोर से माँग करने लगे कि सुशांत के लिए सीबीआई जाँच हो। वरुण और परिणीति की फिल्म आने वाली ही है। डरा आदमी क्या क्या नहीं करता है। किसी भी ख्याल से भी खौफ खाता है। सुशांत के दीवानों का ख्याल ही खून ठंडा कर देता है।
आलिया के अब्बू महेश भट्ट नरम मिष्टी संदेश के शौकीन हैं। बिना पानी के खाते रहते हैं एक के बाद एक। लेकिन उनका गला कभी नहीं फंसता था। लेकिन इस बार फंस गया है। बंगाल का संदेश गले में फंदे की तरह फंसा है। संदेश कभी गले में मछली के कांटे की तरह फंस सकता है, इसका उन्हें अंदाजा नहीं था। सुशांत उनके गले की फांस बन गया है। अपनी इमेज सुधारने के लिए ताबड़तोड़ मीडिया मैनेजमेंट आरंभ कर दी है। हिंदुस्तान टाइम्स के उन्नीस अगस्त के अंक में पेड फीचर्स देखा जा सकता है। उनकी छीछालेदर की यह शुरुआत है। उनकी मोटी चमड़ी छिल रही है।
नसीर नेपोटिज्म के झंडाबरदार बन गये हैं। अभी तक नेपोटिज्म के लिए यूं सीधे सीधे बोलने वाला कोई नहीं था। वे कूद पड़े हैं अपने अंदाज में। सुशांत के लिए न्याय माँगने वाली कंगना पर बिल्कुल थर्ड डिग्री में बरस पड़े हैं। जनाब ने अपनी तहजीब भुला दी। जनाब के मिजाज नासाज हो गये हैं कंगना की जुर्रत देखकर। जाहिर है तीन तीन औलादें हैं, बाप का दिल है !
सुशांत मर गया तो क्या हुआ ! मर कर भी काम आएगा। वह देश के उन हिस्सों में हिंदुत्व की नैया पार लगाएगा, जहाँ हिंदुत्व की पताका राज सिंहासन तक नहीं पहुंची है। हो सकता है पटना के उस मुहल्ले का नाम सुशांत नगर कर दिया जाए। नहीं, नहीं। पटना रेलवे स्टेशन का नाम सुशांत सिंह राजपूत कर दिया जाए। मुगलसराय की तर्ज पर। सुशांत सिंह राजपूत की ऊँची प्रतिमा लगाई जाए। बिहारियों का गौरव बढ़ाने के लिए सुशांत सिंह राजपूत को पद्मश्री से सम्मानित किया जा सकता है?
कंगना जी आप बिहार आइए न। हम आपकी झोली भर देंगे। कुछ उधार नहीं रखेंगे। आपका राजतिलक करेंगे। प्लीज कंगना जी, सुशांत के वास्ते।
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