सुशांत एक और सवाल अनेक
जनता जी नमस्कार। आपसे मुखातिब हूँ। आपको याद दिलाना है। याद दिलाना है कि आप चाबी से चलते हैं। आपके इमोशन की चाबी बनी है। बनाई है टीवी वालों ने। सभी चैनलों के पास है। आप मायूस मत होइए यह सोच कर कि टीवी वालों की चाबी से चलने वाले खिलौने हैं आप। आप ऐसे ही हैं। मामला चाहे कोरोना के मारे मजदूरों का हो या मामला सुशांत का, उसी से आपको चलाया गया है। आपसे जब चाहे जो करा ले। हिप्नोटिज्म की सारी कलाएँ आप पर आजमाई जाती हैं। जनता भाई आप तो आप हो, पढ़े लिखे, कवि लेखक भी हिप्नोटाइज हो जाते हैं।
जनता भाई एक बात बताना! हम आपसे यह जानना चाहते हैं कि कोई गले में फांसी लगा कर मरा है या किसी ने गला दबा कर मारा है, यह तय करना क्या टेढ़ी खीर है? यह तो चुटकी में जान लेना डाक्टर का काम है। डाक्टर की रिपोर्ट पर तो आज तक किसी ने संदेह नहीं किया है। क्या सुशांत के पिताजी ने अपने एफआईआर में ऐसा कुछ कहा है जनता भाई? नहीं कहा। नहीं कहा तो बात साफ है। साफ है कि …. साफ है कि बेटा डिप्रेसन में था।
डिप्रेसन में होने का मतलब ही होता है तर्क का तार टूट जाना। इसको जोड़ने का काम करता है मनोचिकित्सक। बताया जाता है कि मनोचिकित्सक उसका इलाज कर रहे थे। जनता भाई, यह बताओ कि मनोचिकित्सक के हवाले से सुशांत की मानसिक अवस्था के बारे में तुमको कुछ नहीं बताया जा रहा है, क्यों? तुम्हारे मन में यह सवाल आया कि टीवी वाले चाबी घुमाएँगे, तभी पूछोगे?
अच्छा जनता भाई ! आपने जमाना देखा है। यह बताइए कि भारत पिछड़ा हुआ देश है? भारत ने इतनी प्रगति तो अवश्य की है कि किसी की हत्या कोई मंहगा सौदा नहीं है। कहते हैं प्रोफेशनल किलर एक ढूंढ़ो हजार मिलते हैं। जिन सफेदपोश लोगों पर मर्डर करने का संदेह किया जा रहा है, क्या उनके लिए सुशांत या दिशा को मारने की सुपारी देना मुश्किल काम था? यह काम तो इशारे ही इशारे में हो जाता। सारे देश में हत्या या अगवा का व्यवसाय भाईचारे के फार्मूले पर नहीं फलाफूला हुआ है? क्यों जनता भाई तुम क्या कहते हो? पूछ कर बताओगे? ठीक कहते हो, जो बताएँगी या बताएँगे वही बताना, चैनल के बोले ही बोल रहे हो दशकों से !
सुशांत या दिशा कोई ऐसे कंस या पूतना प्रजाति के नहीं थे, कि उन्हें अपने हाथों ठिकाने लगा कर ही बॉलीवुड की रक्षा की जा सकती थी। भला कोई सफेदपोश ऐसी नादानी क्यों करेगा कि अपने हाथों ही या अपनी हाजिरी में ही अपने मकसद को अंजाम देगा ? क्या हमारे सियासतदां और पहुंचे हुए लोग ऐसे बेवकूफ हैं? क्या कहते हो जनता भाई? लानत है ! चुप ही रहोगे?
मर्डर बिना मकसद नहीं किया जाता। हलाल हमेशा लाभ के लिए किया जाता है। मर्डर केस की छानबीन में जांच ऐजेंसी इसी बात पर नजर रखती है कि हत्या से किसको लाभ मिल सकता है। सवाल यह बनता है कि सुशांत की हत्या से किसे लाभ मिल सकता था? यहाँ तक पहुंचने के लिए यह जानना जरूरी है कि सुशांत के पास ऐसा क्या था, जिसके लिए उसकी हत्या की जाए? या सुशांत ऐसे क्या तोप थे कि उन्हें रास्ते से हटाना ही एकमात्र रास्ता था? दहाड़ुओं से क्यों नहीं पूछते हो जनता भाई?
सुशांत को बॉलीवुड में आए अभी जुम्मा जुम्मा आठ दिन हुए थे। उन्होंने अभी ऐसा कोई तीर भी नहीं मारा था कि धरती पाताल हिल जाए। उनकी उपलब्धि बहुत सामान्य थी। सामान्य किस्म की फिल्में की थीं। जो भी फिल्में की थीं उनमें से कोई भी मील का पत्थर बनने की संभावना नहीं रखती। न ही उन्हें अब तक ऐसे निर्देशक मिले थे, जिन्होंने अपनी सिनेमाई क्षमता से पहचान बनाई हो। हाँ, मगर लगे रहते, करते रहते तो मुकाम जरूर बनाते। मुकाम बना भी रहे थे। बना लेते तो उनकी उपेक्षा कौन करता? किनारा कौन करता? मुंबई में उसकी सब पूजा करते हैं जो बॉक्स ऑफिस पर धमाल करता है। क्यों जनता भाई! कुछ बोलोगे भी कि खाली माथा हिलाओगे?
सुशांत के मरने के बाद से ही यह लगातार बताया जा रहा है कि सुशांत का बायकॉट किया जा रहा था। बहुत संभव है ऐसा किया गया हो। लेकिन क्या सुशांत को यह नहीं मालूम था कि बाजार में टिकना भी एक कला है? जो लोग बाजार में टिकते हैं टिकने का कौशल भी अपनाते ही होंगे। सुशांत कोई दुधमुंहे तो नहीं थे कि वे इसे नहीं समझते थे? आखिर उन्हें बॉलीवुड की निर्मम दुनिया में दस साल तो हो ही गए थे। अपने को बेचने का कोई तो हुनर सीखा होगा और साधा होगा, तभी तो इतने काम मिले थे। जितना काम सुशांत को मिला, बहुतों को उतना नहीं मिला।
रिया पर यह आरोप है कि उसने पैसों का गबन किया। रिया को इसकी क्या जरूरत थी? रिया सुशांत के साथ लिव इन रिलेशन में थीं। सुशांत उनके मोहपाश में थे। उनके साथ कंपनियां बनाई थीं। यह लिव इन से ज्यादा का रिश्ता था। बिना भरोसे के कोई किसी को बिजनेस पार्टनर कैसे बनाएगा? जब यह सब वैधानिक तरीके से और सुचारु रूप से हुआ, तो आत्महत्या के लिए उकसाने में रिया का क्या लाभ हो सकता था? अगर पैसे पर हाथ फेरना उसकी मंशा थी तो वह यह कैसे भूल सकती थी कि सुशांत अपने को एक दुधारू गाय या सोने का अंडा देने वाली मुर्गी साबित कर चुका था।
सुशांत के पिताजी ने कहा है कि फरवरी के अंत में मुंबई पुलिस को सुशांत के असुरक्षित होने की सूचना दी थी। दी होगी, पुलिस ने ध्यान नहीं दिया होगा, यह भी सच होगा। लेकिन उसकी सुरक्षा के लिए और क्या किया? वे या सुशांत के परिवार के दूसरे लोग खोज खबर लेने क्यों नहीं आए मुंबई? वे और परिवार के लोग यह भी कह रहे हैं कि रिया ने सभी के साथ सुशांत का कनेक्शन काट दिया था। मान लिया कि ऐसा किया था। तो पिताजी ने मुंबई आना जरूरी क्यों नहीं समझा? वो मुंबई आना चाहते थे,यह सोशल मीडिया पर वायरल हो रहे चैट में है। उसी चैट में यह भी है कि उन्होंने ने एअर टिकट मांगा था। हो सकता है सुशांत के मैनेजर ने टिकट न भेजा हो या सुशांत ने ही मना कर दिया हो। लेकिन क्या उनकी आर्थिक स्थिति ऐसी थी कि जब तक टिकट न आ जाए, वे नहीं जा सकते थे मुंबई? जनता भइया अपने से पूछो और सब से पूछो। कि चाबी से ही चलोगे?
वायरल हो रहे चैट से यह भी पता चलता है कि पिताजी ने यह भी लिखा था कि सुशांत उनका बेटा है और उन्हें यह जानने का अधिकार है कि उसका क्या इलाज हो रहा है? यह सच है कि सुशांत के पिताजी उम्रदराज हैं, मगर वे अभी इतने फिट तो दिखते हैं कि मुंबई आकर चिकित्सकों से बातचीत कर सकते थे। कई मनोचिकित्सकों से राय मश्विरा कर सकते थे। डाक्टरों का दल बनाया जा सकता था। मगर ऐसा नहीं किया गया, क्यों? तब भी जब कि सुशांत से उनका संपर्क टूटा हुआ था। टूटे संपर्क को जिंदा क्यों नहीं किया गया? आखिर सुशांत के पिताजी पटना में अकेले ही तो रह रहे होंगे? सभी बेटियों की शादी हो चुकी है। पत्नी पहले ही चल बसी थीं। बेटे के डिप्रेस होने के बावजूद वे पटना मे ही क्यों टिके रहे?
बताने वाले टीवी पर अब बता रहे हैं कि दिशा के मरने के बाद सुशांत कह रहे थे कि अब उन्हें भी मार दिया जाएगा। अगर उन्हें ऐसा लग रहा था तो उन्होंने अपनी सुरक्षा के लिए क्या किया? उनके जीजा पुलिस के एक उच्च अधिकारी हैं, क्या सुशांत ने उनसे इसकी चर्चा की थी? सुशांत पुलिस के पास क्यों नहीं गए? और तो और अगर उन्हें मारे जाने का डर था, तो मुंबई क्यों नहीं छोड़ी?
इतने सब के बावजूद यह सवाल बना ही हुआ है कि लिव इन रिलेशन और बिजनेस पार्टनर होने के बाद भी रिया सुशांत का फ्लैट छोड़कर क्यों चली गईं? यह जानते हुए भी कि सुशांत मानसिक रूप से अस्वस्थ हैं या डिस्टर्ब हैं। क्या रिया यह नहीं सोच रही होंगी कि अगर वह न निकल आई होतीं तो सुशांत को बचा लेतीं? सोच तो अंकिता भी रही होगी कि जब वह बुझा बुझा दिख रहा था, तब कुछ किया होता तो ठीक होता। पिता भी ऐसे ही सोच रहे होंगे और बहनें भी। लेकिन अब क्या? लौट कर कौन आया है !
.