मुद्दाहरियाणा

मनोहर लाल के नाम एक चिट्ठी

हां, हम नतमस्तक नहीं थे

धन्यवाद, मनोहर लाल जी कि आपने अपने दरबारियों से यह पोस्टर और फोटो जारी करवा दिया। नहीं तो इतिहास के इस खूबसूरत क्षण का कोई प्रमाण हमारे पास नहीं था: हरियाणा का मुख्यमंत्री खड़ा है और किसानों का प्रतिनिधिमंडल मुढढे पर बैठा हुआ है। काश लोकतंत्र में ऐसी तस्वीर बार बार दिखाई देती!

 

मैं मान रहा हूं कि आपके मुंहलगों ने यह काम आपके इशारे के बिना नहीं किया होगा। अच्छा हुआ इस बहाने पता लग गया कि “नागरिकों” के सिर्फ बैठे रहने से अहंकारी सत्ता कितनी परेशानी होती है।

इस तस्वीर के पीछे की कहानी आप जानते हैं। लेकिन पोस्टर देखने वालों को समझ नहीं आएगी इसलिए बता दूं:

* पिछले साल भर में किसानों की समस्याओं के बारे में आपको कई प्रतिवेदन और ईमेल भेज चुके हैं। जवाब छोड़ो, एक बार भी पावती तक नहीं आई।

* 31 जुलाई को 1500 किसानों के हस्ताक्षर के साथ बाजरा की खरीद के बारे में आपके नाम प्रतिवेदन भेजा था। ना कार्यवाही, ना जवाब, ना पावती।

* 4 सितंबर को सरकार को बाजरा किसान की दिक्कत बयान करते हुए ईमेल भेजा। आपको प्रति भेजी। ना जवाब, ना पावती।

* 18 सितंबर को स्वराज इंडिया हरियाणा के महासचिव दीपक लांबा ने आप के दफ्तर आकर किसानों के प्रतिनिधिमंडल के लिए समय मांगा। कोई तारीख नहीं मिली। फोन पर याद दिलाया, कोई जवाब नहीं मिला।

* 20 सितंबर को आपको ई-मेल लिख कर किसान प्रतिनिधिमंडल के लिए समय मांगा। कोई सवाल जवाब नहीं।

* कल 27 सितंबर को चंडीगढ़ पहुंच कर ट्वीट के माध्यम से फिर मैंने मुलाकात के लिए याद दिलाया। कोई जवाब नहीं।

* हमें पत्रकारों से सूचना मिली कि आप निवास पर है तो 1:30 बजे हम वहां पहुंचे, मिलने का समय मांगा। हमें बताया गया कि मुख्यमंत्री प्रतिनिधिमंडल से मिलेंगे और फिर अंदर ले जाकर स्टील की पाइप और लोहे की जाली के पीछे बैठा दिया गया, जहां मुख्यमंत्री जनता के दर्शन करने आते हैं। डेढ़ घंटे बाद आप दर्शन देने आए। आपके कमांडो ने आकर हुक्म दिया “सब खड़े हो जाओ”। तब हमने फैसला किया कि हम बैठे रहेंगे। जो लोग आपके दर्शन की अभिलाषा में आए थे वह नतमस्तक थे, गदगद थे, गुलदस्ते दे रहे थे। हम किसान का दुख दर्द और आक्रोश बताने आए थे, जनता के प्रतिनिधि से हिसाब मांगने आए थे।

हां, हमने बैठे बैठे सवाल पूछे!

हां, हमने तीखे सवाल पूछे!

हां, हमने ऐसे सवाल पूछे जिसका आपके पास जवाब नहीं था!

मुख्यमंत्री से कोई शालीन लेकिन सीधी बात कर सकता है यह देखकर आप के दरबारी भौचक्के थे। लेकिन मुझे उस वक्त लगा कि आपने शालीनता से जवाब दिया। मुलाकात के लिए समय न मिलने के बारे में आपने हैरानी और दुख जाहिर किया। इसलिए मैंने बाहर आकर इस प्रकरण को मीडिया में नहीं उठाया।

लेकिन जब आपके दरबारियों ने आपके इशारे पर यह पोस्टर जारी कर ही दिया है, तो मैं भी अपने मन की बात कह दूं:-

बाजरा के किसानों ने रेवाड़ी में मुझे अपनी आवाज उठाने के लिए पगड़ी पहनाई थी। मुझे गर्व है कि मैंने उनकी पगड़ी नीची नहीं होने दी। लोकतंत्र के लिए वह शुभ दिन होता है जब कुर्सी वाले खड़े हों, और जनता बैठी हो। जो नेता और उसके दरबारी इतना भी बर्दाश्त नहीं कर सकते उनका अहंकार लोकतंत्र तोड़ता है।

आपका शुभचिंतक,

आपके राज्य का एक नागरिक,

योगेंद्र यादव

पुनश्च: अगर आप अपने दरबारियों की हरकत से असहमत हैं तो मुझे क्षमा कीजिएगा। और इन छुटभईयों को राजदरबार और लोकतंत्र का फर्क समझा दीजिएगा।

योगेंद्र यादव

लेखक स्वराज अभियान के राष्ट्रीय संयोजक हैं.

@yogendraYY के फेसबुक से साभार

कमेंट बॉक्स में इस लेख पर आप राय अवश्य दें। आप हमारे महत्वपूर्ण पाठक हैं। आप की राय हमारे लिए मायने रखती है। आप शेयर करेंगे तो हमें अच्छा लगेगा।

लोक चेतना का राष्ट्रीय मासिक सम्पादक- किशन कालजयी

5 1 vote
Article Rating
Subscribe
Notify of
guest

0 Comments
Inline Feedbacks
View all comments


sablog.in



डोनेट करें

जब समाज चौतरफा संकट से घिरा है, अखबारों, पत्र-पत्रिकाओं, मीडिया चैनलों की या तो बोलती बन्द है या वे सत्ता के स्वर से अपना सुर मिला रहे हैं। केन्द्रीय परिदृश्य से जनपक्षीय और ईमानदार पत्रकारिता लगभग अनुपस्थित है; ऐसे समय में ‘सबलोग’ देश के जागरूक पाठकों के लिए वैचारिक और बौद्धिक विकल्प के तौर पर मौजूद है।
sablog.in



विज्ञापन

sablog.in