नवम अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस के अवसर पर विशेष आलेख
देश की आज़ादी के 75 वर्ष पूर्ण होने पर आज़ादी का अमृत महोत्सव मनाने हेतु उत्तरप्रदेश में केंद्र और राज्य सरकार अमृत सरोवरों का बड़े पैमाने पर निर्माण करा रही है। केंद्र की ओर से हर संसदीय क्षेत्र में 75-75 सहित कुल 6000 सरोवर बनाए जाने हैं तो राज्य सरकार हर ग्राम पंचायत में दो-दो सरोवर बनाएगी। प्रदेश में 58,189 ग्राम पंचायतें हैं, ऐसे में कुल 01 लाख 16 हजार 378 ‘अमृत सरोवर’ बनेंगे। सरोवरों का जल स्वच्छ रहे, उनमें ग्रामों या शहर का गंदा पानी प्रवेश न करने पाए और सरोवर ग्रामीणों के पर्यटन का केंद्र बने रहें, इस उद्देश्य की प्राप्ति हेतु वित्तीय और संरचनागत प्रयासों का वृहत स्तर पर क्रियान्वयन किया जा रहा है। निश्चित तौर पर तालाब हमारे ग्राम्य परिस्थितिकी तंत्र का एक अभिन्न अंग हुआ करते थे। हमारी ज़मीन कब्जाने की आदतों, लालच की भावना, विकास की आँधी और अनियोजित विकास योजनाओं ने इन तालाबों को लील लिया है। अब केंद्र और राज्य सरकारों के प्रयासों से निश्चित तौर पर जल संरक्षण एवं जैव विविधता संरक्षण के सपनों को पर लगेंगे। अमृत सरोवरों की निर्माण योजना एक तरफ रोजगार के नवीन अवसरों का सृजन करने में सहायक होगी तो दूसरी ओर सिंचाई के लुप्त होते संसाधनों को पुनर्जीवित करने हेतु महत्वपूर्ण होगी। प्रस्तुत शोध आलेख मध्यप्रदेश के पातालकोट के भरिया बहुल जनजातीय ग्रामों, उत्तरप्रदेश के प्रयागराज जिले की बारा तहसील के शंकरगढ़ ब्लॉक के ग्रामों के तहत निर्माणाधीन अमृत सरोवरों एवं उत्तरप्रदेश के जौनपुर जिले की मछली शहर तहसील के एक प्राचीन लुप्तप्राय तालाब पर केंद्रित है और मानववैज्ञानिक क्षेत्रकार्य परम्परा तथा गुणात्मक शोध पद्धतियों के माध्यम से उपरोक्त वर्णित क्षेत्र के निवासियों के साक्षात्कार तथा अवलोकन के द्वारा तालाबों की वास्तविक स्थिति को समझने का प्रयास है। लुप्तप्राय सरोवर के नरेटिव के द्वारा यह भी प्रयास है कि उक्त प्रकृति के प्राचीन तालाबों के दर्द को भी समझते हुए उनको भी भविष्य में जीवंत करने का प्रयास हो सकें।
क्या है अमृत सरोवर योजना
अमृत सरोवर योजना को आरम्भ करने की औपचारिक घोषणा माननीय प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी ने 24 अप्रैल 2022 को की थी जिसके तहत हर जिले में 75 तालाब बनाए जाने हैं ताकि गर्मी के मौसम में उत्पन्न होने वाले जल संकट से निपटा जा सके और जल के भंडार एवं स्रोतों को सतत विकास की तर्ज पर संरक्षित किया जा सके। सिंचाई के साधनों का विकास तथा मानव-पशुओं-मवेशियों-पक्षियों के कल्याण की भावना के साथ निर्मित प्रत्येक तालाब का क्षेत्रफल 1 एकड़ (0.4 हेक्टेयर) होगा। इसमें लगभग 10,000 घन मीटर की जल धारण क्षमता होगी। पुराने तालाबों के कायाकल्प के साथ ग्रामीण क्षेत्रों के आर्थिक संसाधनों के संवर्धन की भी योजना है। प्रत्यक्ष रूप से भू-जल के स्तर को मेंटेन करना, जल स्रोतों के अनियंत्रित दोहन को रेगुलेट करना तो परोक्ष रूप से इस योजना के द्वारा कृषि, पशुपालन, रोजगार आदि सभी सेक्टरों के उत्थान का लक्ष्य रखा गया है। इस योजना में निर्देशानुसार 15 अगस्त, 2022 तक 25 तालाबों को विकसित करना था। सभी 75 अमृत सरोवरों को अमृत वर्ष के अंत तक यानी 15 अगस्त 2023 तक पूरा करने का लक्ष्य रखा गया है।उत्तर प्रदेश में मिशन अमृत सरोवर के तहत 8462 तालाबों का निर्माण किया गया है। उत्तर प्रदेश में कुल 1.20 लाख अमृत सरोवरों का निर्माण किया जाना है जो कि देश में सर्वाधिक है। मिशन के प्रथम फेज में उत्तर प्रदेश में 75 जिलों में 75 अमृतसर सरोवर का निर्माण तय समय सीमा से पहले ही कर लिया गया। बड़े स्तर पर करोड़ों के निर्माण के परिणाम स्वरूप अनेक लोगों को रोजगार मिले हैं। किसानों की आय में भी सिंचाई संसाधनों में विकास के परिणाम स्वरूप वृद्धि हुई है। उत्तर प्रदेश का पहला अमृत सरोवर रामपुर जिले के पटवाई में सफलता पूर्वक तैयार हुआ।
पूर्व के अनुभव : राजस्थान से एक केस अध्ययन
राजस्थान की राजधानी जयपुर से मात्र 40 किलोमीटर दूरी पर स्थित बापू गांव में 70 वर्षीय कल्याण मल सिंह ने 1981 के बाढ़ और सूखे की समस्या से सीख लेते हुए ग्रामवासियों की मदद से एक तालाब का निर्माण प्रारंभ किया और कालांतर में ग्रामीण सहभागिता से निर्मित इस तालाब ने बापू गांव की न केवल जल की समस्या का निदान किया बल्कि भविष्य में भी कृषि उपयोग हेतु सिंचाई के संसाधनों का बेहतर संजाल निर्मित किया। गांव में इस प्रयास के परिणाम स्वरूप समृद्धि आई और उनकी आर्थिक स्थिति में भी सुधार हुआ। इस तालाब का नाम ग्रामीणों ने ‘रामसागर’ रखा। मजेदार बात यह है कि गांव के हर एक परिवार ने इस तालाब को खोदने में अपना श्रमदान किया। प्रत्येक परिवार को दो चौकड़ी अर्थात 2 स्क्वायर फीट मिट्टी की खुदाई तालाब के निर्माण हेतु करना था। इस तरह से प्रत्येक पुरुष स्त्री और बच्चे ने तालाब के निर्माण में अपना सहयोग दिया। तालाब के निर्माण से गांव की बाढ़ और सूखे की समस्या सदा के लिए खत्म हो गई। बिना सरकारी संसाधनों का उपयोग किए यह ग्रामीण सहभागिता और एकीकृत प्रयास की अनूठी मिसाल है। वर्तमान में अमृत सरोवर मिशन भी निश्चित तौर पर हर एक गांव को समृद्ध करने में महत्वपूर्ण होगा।
देश में जल की समस्या निरंतर विकराल होती जा रही है। विगत 70 वर्षों में देश के कुल 80 लाख कुँए और तालाबों में से 60 लाख मृतप्राय हो चुके हैं। बचे हुए आधे से ज्यादा काम के नहीं हैं। वर्ष 2010 से 2020 के मध्य देश की कई छोटी नदियाँ विलुप्ति की कगार पर पहुँच चुकी हैं। नीति आयोग की मानें तो आगे आने वाले 10 वर्षों में देश की लगभग 40 प्रतिशत आबादी स्वच्छ पेयजल से वंचित हो जाएगी। यह स्थिति और भयावह हो जाएगी यदि हम नहीं चेते। ऐसे में अपने वर्षों पुराने तालाबों और जल के प्राकृतिक स्रोतों को तथा छोटी सहायक नदियों को बचाना एवं पुनर्जीवित करना एकमात्र विकल्प है।
ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य में देखने पर पाते हैं कि हमारे देश में अनेक झीलों और तडागों का निर्माण कालान्तर में किया गया। युधिष्ठिर और यक्ष संवाद तालाब के जल के लिए था तो सिंधु घाटी सभ्यता में तडाग एवं कूपों के साक्ष्य अत्यंत प्राचीन हैं। सिंचाई और जल संरक्षण के उद्देश्य से मौर्य काल में सौराष्ट्र में सुदर्शन झील/जलाशय का निर्माण गिरनार की पहाड़ियों में चन्द्र गुप्त मौर्य ने कराया था। दक्षिण भारत के अनेक मंदिरों में कूपों और तालाबों की उपस्थिति उल्लेखनीय है। भोजपाल जो अब भोपाल कहलाता है, में राजा भोज द्वारा निर्मित 18 तालाबों का एक विशाल संकुल एवं भीमकुंड वाटर इंजीनियरिंग का एक उत्कृष्ट उदाहरण है। हमारा समृद्ध इतिहास और देशज ज्ञान हमारे वर्तमान को बेहतर बनाने के लिए अनेकों आयाम अपने भीतर समेटे हुए है।
उपरोक्त पृष्ठभूमि में देश में अमृत सरोवर योजना के दृष्टिगत अनेक राज्यों एवं केंद्र शासित प्रदेशों में तालाबों का निर्माण द्रुतगामी गति से जारी है। प्रस्तुत तालिका संख्या 1 से देशभर में जलाशयों के निर्माण की स्थिति को समझा जा सकता है।
तालिका संख्या 1: राज्य एवं केंद्र शासित प्रदेशों में 23/03/ 2023 तक अमृत सरोवरों के चिन्हीकरण एवं निर्माण की स्थिति
क्रम संख्या | राज्य/ केंद्र शासित प्रदेश | चिन्हित अमृत सरोवर स्थलों की संख्या | प्रारंभ किए गए कार्यों की संख्या | पूर्ण किए गए अमृत सरोवरों की संख्या |
1 | आंध्र प्रदेश | 4,381 | 2,639 | 1,044 |
2 | अरुणाचल प्रदेश | 2,546 | 1,299 | 920 |
3 | असम | 3,511 | 2,687 | 1,798 |
4 | बिहार | 3,486 | 2,114 | 870 |
5 | छत्तीसगढ़ | 3,702 | 2,551 | 1,106 |
6 | गोवा | 169 | 144 | 112 |
7 | गुजरात | 2,663 | 2,619 | 1,692 |
8 | हरियाणा | 7,281 | 2,939 | 1,059 |
9 | हिमाचल प्रदेश | 2,141 | 1,279 | 771 |
10 | जम्मू एवं कश्मीर | 4,061 | 2,677 | 2,427 |
11 | झारखंड | 3,978 | 2,005 | 1,116 |
12 | कर्नाटक | 6,330 | 4,760 | 1,968 |
13 | केरल | 871 | 591 | 149 |
14 | मध्य प्रदेश | 7,394 | 5,966 | 2,928 |
15 | महाराष्ट्र | 3,073 | 2,255 | 1,478 |
16 | मणिपुर | 1,311 | 729 | 570 |
17 | मेघालय | 1,047 | 382 | 236 |
18 | मिजोरम | 1,136 | 778 | 716 |
19 | नागालैंड | 356 | 227 | 52 |
20 | ओडिशा | 3,950 | 2,765 | 951 |
21 | पंजाब | 1,951 | 1,151 | 619 |
22 | राजस्थान | 4,967 | 3,373 | 1,545 |
23 | सिक्किम | 279 | 217 | 144 |
24 | तमिलनाडु | 3,086 | 2,168 | 1,386 |
25 | तेलंगाना | 4,296 | 2,571 | 841 |
26 | त्रिपुरा | 997 | 988 | 676 |
27 | उत्तराखंड | 1,915 | 1,238 | 1,108 |
28 | उत्तरप्रदेश | 17,606 | 11,751 | 9,694 |
29 | पश्चिम बंगाल | 270 | 16 | 7 |
30 | अंडमान एवं निकोबार | 352 | 198 | 139 |
31 | दादरा नगर एवं हवेली, दमन एवं दीव | 80 | 59 | 59 |
32 | लद्दाख | 173 | 112 | 109 |
33 | पुदुचेरी | 168 | 148 | 135 |
स्रोत: (https://pib.gov.in/PressReleseDetailm.aspx?PRID=1911899) यह सूचना माननीय राज्यमंत्री, ग्रामीण विकास, भारत सरकार माननीय साध्वी निरंजन ज्योति द्वारा राज्यसभा में प्रस्तुत किए गए दस्तावेज पर आधारित है। PK/3300 (Release ID: 1911899)
उपरोक्त शोधकार्य के तारतम्य में इस तथ्य के दृष्टिगत कि उत्तर प्रदेश में मार्च 2023 तक सर्वाधिक अमृत सरोवरों का सफलतापूर्वक निर्माण किया गया है, शोध के इस अंश में एक अमृत सरोवर की दर्द भरी दास्तान को सरोवर के स्वयं के नरेटिव के माध्यम से देखने एवं समझने का प्रयास किया गया है।
सरोवर की मनोवृत्ति, उसके दर्द और व्यापक स्तर पर मानव द्वारा निरंतर दोहित एवं शोषित प्रकृति की पीड़ा को भी समझने का प्रयास है प्रस्तुत नरेटिव:
“सुना बेटवा तू बहुत छोट के रहा जब तोहार परदादा हमका गाँव के लगभग बीचऊ- बीच बनये रहेन। तब ई गाँव में कवनऊ तलाब-बावड़ी नाइ रही। हमहू अकेल रहे। हम गाँव के कवनउ लड़िकन के बियाहे में मिला बाजा में सुनी की ‘ई विविध भारती का इलाहाबाद केंद्र है अब आप हिंदी में समाचार सुनिये’ सुनी, सोची कि देश के जनसंख्या बाढ़त बा एतना तेजी में, हमरउ कौनउ भाई होइहैं की नाइ। एक दिन तोहार परदादा और गाँव के पुरनिया सोचेन की इहु के भाइ होइ चाहैं। तब हमार दुइ भाइ भएन। दिक्कत ई भई की का नाम रखी एनहन के। कुर्मियाना में हम रहे नाउ रक्खेन “मियाँ के गड़हा”, हमरे मझिलका के नाउ “दुधवानी” और ऊ रहा दलित बस्ती के लगे। छोटके के नाउ “पजावा” पड़ि गवा, रहा बराईं लोगन के बीच लेकिन जमीनिया कुर्मी लोगन के रही। हमार नाउ मिया के गड़हा यह बिन पड़ा कि हम गाँव के सबसे बुजुर्ग और नेक मियाँ जी के दुआरे के नज़दीक रहे। लेकिन हम कभौं भेद-भाव नाइ केहे कउनउ जाति से। न मुसुरमान-हिन्दू में। कैसे करित हमरे संस्कार में ई नाइ रहा मुसुरमान-हिन्दू। हमका कुल मिल के खोदे रहेन और अपने पसीना से भरे रहेन लबालब उप्पर तक। तब हमहू जवान रहे ऊपर तक छलकत इतरात।
हमरे कान्हे के एक ओरी एक खे ढीटोहरी के पेड़ रहा जेकरे छाहे कुल लड़िकन इकट्ठा होइँ और बाजा सुनईं। कजरी, बिरहा, आल्हा कुलि सुनईं। हमका आल्हा सुनि के मजा आवई। तोहार सब के कइयऊ पीढ़ी हम देखे।
तोहार परदादा आपन घर-ओसारा बनावै के लिए हमरे पेटे के माटी खोदे रहेन। पानी हमहीं से लेहे रहेन। उनके पास छ: मूठी के दुइ बरधा रहेन एकदम उज्जर। दिन भर बैलगाड़ी से माटी-गारा ढोवईं और बड़ी बखरी बनए रहेन। दिनभर लगा रहईं और दुपहरिया में इहीं ढीटोहरी के तरे बैठ के भेई चना के दाल और पियाज खाइ के काम में लगि जाईं। लेकिन एक चीज बढ़िया रही कि जब किहियु के घर-ओसारा बनइ त पूरा गाँव के लड़िका- सेयान-बुढ़ापा सब मिलि के काज करत रहेन। किहियु के छान-छप्पर छवाय त सब मिलि के करत रहेन। गाँव में किहियु के बियाह पड़इ त ‘मटमंगरा‘ के माटी हमहीं से लेइ।
विद्वानों के अनुसार ‘मटमंगरा’/मटकोरा मिट्टी से याचना का रस्म है। भारतीय परंपरा में मिट्टी को मां माना गया है क्योंकि वह धन धान्य दोनों की आपूर्ति करती है। वह वृक्षों द्वारा फल फूल और स्वास्थ्य जीवन के लिए औषधियां प्रदान करती है। अपने छाती से फसल उगाकर सभी का पेट भरती है तथा गर्भ से रत्न प्रदान करती है। मटकोरा, गृहस्थ जीवन में प्रवेश के पूर्व धरती से याचना है कि वह हमें स्वस्थ जीवन और मजबूत आर्थिक आधार प्रदान करें। वह धनधान्य पूर्ण करें जो गृहस्थ जीवन का आवश्यक तत्व है। जहां तक इस मटकोरा परंपरा के निभाने के प्रक्रिया की बात है तो इसमें वर तथा वधू दोनों पक्षों की महिलाएं शादी के निर्धारित तिथि के दो तीन दिन पूर्व सम्पादित करती हैं। महिलाएं समूह में मंगल गीत गाती एक दउरी में जौ, पान, कसैली तथा पीला कपड़ा का एक टुकड़ा रख गांव के बाहर जाती हैं। वहां साथ लाए फावड़ा की ऐपन सिंदूर से पूजा के बाद जम कर नाच गाना के बीच वर अथवा वधू के बुआ द्वारा जमीन से मिट्टी खोदने के साथ ही पांच महिलाओं का खोईंछा/कोछा भरा जाता है। इस बीच लगुहा महिलाओं के प्रति सुहाग गालियां गायी जाती है। बुआ के नहीं रहने पर मिट्टी खोदने का रस्म वर अथवा वधू की बहन द्वारा पूरा किया जाता है। तत्पश्चात खोदी गयी मिट्टी को दउदा/दउरी में रख महिलाएं घर वापस आ जाती है। यहां महिलाओं द्वारा साथ लायी गयी मिट्टी को मकान के आंगन में रख पंडित जी के पूजा के बाद उस कलश स्थापित किया जाता है। बाद में दूल्हा और दुल्हन को हल्दी लगाने के साथ ही उनकी कलाई में धागा में बंधी लोहे की अंगूठी तथा जवाइन बांधा जाता है जिसे कंगन अथवा ककन कहते हैं। (https://www.jagran.com/uttar-pradesh/ballia-8995222.html)
घर लीपइ बिना गाँव भर के मनई आवईं और हमरै माटी खोदि के लै जाईं। बतियाईं कि मियाँ के गड़हवा के पुरेड़ सबसे बढ़िया बा। गाँव के कोहार बरतन-हांड़ी अउर भोरिका(कुल्हड़) बनवइ बिन इहीं आवईं। किहू के सुतरी बनवई बिना सनई भेवई के रहै त हमरेन पानी में भेवत रहेन।
हमार एक दोस्त रहा भगैना, शिवरात्री के पूजा, नाग पंचमी के गुड़िया पीटई सब उहिं जाईं। भगैनवा में पानी सब कहईं बहुत बढ़िया रहइ। ओंमें सिंघाड़ा अउर कमल गट्टा दुनू होत रहा। कमल गट्टा और कमल ककड़ी दुनू सब उहिं से पावत रहें। सिघाड़ा एतना होइ की कैयव परिवार के लालन-पालन के जरिया रहा। मच्छवाही होई त सब बेचई अउर खाई भरे के पाई जाईं। रोजगार के साधन रहा हमार दोस्त भगैनवा। हर साल दुइ-तीन मेला भगैनवा के तीरे जरूर लागईं। अउर गाँव के मनई आपन-आपन चीज बेचई बिना आवईं। केउ चोटहिया जलेबी त केउ गट्टा-रामदाना। खेती-बाड़ी के अउज़ार, घरेलू समान सब बिचात रहा। घरैतिन के टिकुली-बिन्दी त नई लड़किनउ के खातिर झुमका-बाला मिलत रहा। ‘झुमका गिरा रे बरेली के बज़ार में’ गाना मेलवा में खोब बाजत रहा। सुनील दत्त और साधना के असर गाँव के लड़िका-लड़कीयन पर देखाई देई लाग रहा। लड़कियन अपने माई से छुपि के बिसाती से ओठलाली के दाम पूछईं जाईं और लड़िकन बाइसकोप में देखी के अमिताभ बच्चन के बैल-बाटम पैंट के नकल करत रहेन।
यंह मामिले में भगैनवा भाग्यशाली रहा कि ऊ फैशन के बयार देखि पावत रहा। लेकिन हमका ओसे कभऊं-कभऊं जलन होत रही। कारण ई कि हमार पानी-माटी सब लेत रहेन, इस्तेमाल करत रहेन लेकिन हमरे तीरे कवनउ मेला- बज़ार कबहूँ केऊ नाए लगाएस। केऊ बहुत ध्यान नाई दिहेस की हमरउ तबियत-पानी ठीक बा कि नाइ। धीरे-धीरे हमार तबियत और बिगड़त गइ। सड़क-चकरोड बनई लाग त सब गाड़ी-घोड़ा हमरे सीना तक चढ़ि के दौउड़ई लागेन। पक्का घर बनेन त हमका चारौं ओर से पाट देहन। हमार पीड़ा केऊ नाइ देखेस अउर न समझेस। हम तिल-तिल के मरै लागे जइसे वेंटिलेटर पर गवा कवनऊ मरीज़। का हम कउनौ अपराध केहे रहे सब के पानी दई के या माटी दई के? तोहार पुरखा-पुरनिया हमका जियाए रहेन, तू सभे अपने नून-रोटी कमाई के चक्कर में गाँवइ आउब-जाब बंद कइ देहा, शहर में बसि गया। कबहूँ हमार हाल-पुरसा नाइ पूछा। हमका वेंटिलेटर से के उतारे? हमार पानी पी के बड़ा भया, एतना बड़ा होइ गया कि भूलिन गया। हमहूँ के भूली गया ओइसे जइसे अपने पुरखा-पुरनिया के और आपन जड़। इन्तज़ार करत अही कवनऊ ‘भागीरथी’ अइहैं अउर हमहू के तरिहईं। सुने त हई एक खे योगी के नाम। हर जिला में पचहत्तर तलाउ ज़िन्दा करइ के बात बा। देखी हमहूँ पे योगी के कब नज़र पड़ी। कब वेंटिलेटर से उतरइ के मौका मिले। हम अही “मियाँ के गड़हा”
अमृत सरोवरों पर अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस के अवसर पर 21 जून 2023 को ‘योग आयोजन’ निश्चित तौर पर एक सुखद भविष्य को इंगित करता है लेकिन जब तक आम जन मानस इन तडागों के प्रति संवेदनशील नहीं होगा, उनमें जागरूकता नहीं होगी तब तक इनके जीर्णोद्धार के वास्तविक लक्ष्य को हासिल कर पाना मुश्किल होगा। यह भी जरूरी है कि सरकारें, नीति-नियंता और जन मानस तीनों ही “मियाँ का गड़हा” जैसे उपेक्षित तालाबों का भी संज्ञान लें और उनकी उपयोगिता को भी बढ़ाने हेतु कटिबद्ध हों ताकि ऐसे तड़ागों की दर्द भरी दास्तान एक सुखद दास्तान के रूप में हमारी आने वाली पीढ़ियों को पढ़ने-सुनने को मिल सके।
प्रख्यात समाज सेवी और गाँधी वादी विचारक काका साहब कालेलकर ने सरकारी कार्यशैली पर टिप्पणी करते हुए कहा था ‘सरकारी काम तो सरकारी होता है असरकारी थोड़े ही होता है।’ हमें अमृत सरोवरों के संदर्भ में कार्य करते समय कालेलकर जी की इस चेतावनी को भी ध्यान में रखना होगा तभी सफलता की गुंजाइश बनेगी।
संदर्भ सूची
https://pmmodischeme.com/amrit-sarovar-yojana/
https://www.drishtiias.com/hindi/daily-news-analysis/amrit-sarovar-mission
https://www.naidunia.com/chhattisgarh/raipur-what-is-amrit-sarovar-yojana-know-the-status-of-amrit-sarovar-scheme-of-the-center-in-chhattisgarh-7617101
https://m.jagran.com/uttar-pradesh/lucknow-city-amrit-sarovar-scheme-will-give-employment-to-more-then-3-lakh-people-with-life-in-up-farmers-and-fishermen-families-will-get-benefits-22793959.html
https://www.thehindu.com/features/education/Ponds-and-prosperity/article14671608.ece
https://avenuemail.in/ponds-and-wells-becoming-history-a-tragedy-of-village-culture/
https://indiaclimatedialogue.net/2015/01/02/village-digs-pond-prospers-era-frequent-droughts/
https://www.aajtak.in/agriculture/farming/story/kamal-ki-kheti-farmers-can-can-earn-bumper-profit-by-cultivating-lotus-in-the-field-lbsa-1495834-2022-07-08
https://www.jagran.com/uttar-pradesh/ballia-8995222.html
https://government.economictimes.indiatimes.com/news/governance/uttar-pradesh-tops-in-country-8462-lakes-developed-under-mission-amrit-sarovar/94164150
https://pib.gov.in/PressReleaseIframePage.aspx?PRID=1911899
टिप्पणी नोट:
(1) प्रस्तुत आलेख शोधार्थी द्वारा अलग अलग काल खंड में अलग अलग क्षेत्रों में किये गए क्षेत्रकार्य (फील्डवर्क) पर आधारित है। क्षेत्रकार्य मानववैज्ञानिक शोध की ऐसी विधा/ पद्धति है जिसमें शोधकर्ताओं को स्वयं क्षेत्र में समाज में जाकर लोगों से वार्ता एवं अवलोकन करके आंकड़ों का संग्रह करना पड़ता हैं।
(2) चूंकि इसमें भारत सरकार के एक माननीय मंत्री द्वारा राज्यसभा में प्रस्तुत आंकड़ों की आद्यतन तालिका है अतः यह स्वयंमेव सरकार की अमृत सरोवर योजना के आंकड़ों का विश्लेषण भी प्रस्तुत करता है।
(3) लेखक द्वारा मध्य प्रदेश के छिंदवाड़ा जिले के पातालकोट क्षेत्र में जो कि भरिया जनजाति बहुल है, में जनवरी-फरवरी 2020 में क्षेत्रकार्य किया गया था जहाँ मनरेगा के तहत भरिया ग्रामों में मनरेगा मज़दूरों द्वारा तालाबों का उत्खनन हो रहा था, भू अपरदन रोकने हेतु छोटे पत्थरों से बंधे भी बनाये जा रहे थे। चूंकि पातालकोट में जल की समस्या अत्यंत विकट है अतः यहाँ के तालाबों की चर्चा छायाचित्र के माध्यम से की गई जो पृष्ठभूमि तैयार करने हेतु है। मध्यप्रदेश के पातालकोट के कुछ अन्य छाया चित्र अवलोकनार्थ संलग्न हैं
(4) आलेख इकोनॉमिक टाइम्स में दिनांक 13 सितंबर 2022 को प्रकाशित एक खबर (जिसका लिंक संदर्भ सूची हेतु प्रस्तुत ) (https://government.economictimes.indiatimes.com/amp/news/governance/uttar-pradesh-tops-in-country-8462-lakes-developed-under-mission-amrit-sarovar/94164150) के हवाले से कह रहा है कि ग्रामीण विकास विभाग के कमिश्नर श्री जी. एस. प्रियदर्शी ने बताया कि “मुख्यमंत्री श्री योगी आदित्यनाथ के निर्देशों के अनुपालन में 15,497 तालाबों को चिन्हित करने के पश्चात विभिन्न ग्राम पंचायतों में 8462 अमृत सरोवरों का निर्माण पूरा कर लिया गया है” इसी द्वीतीयक स्रोतों से प्राप्त सूचनानुसार उत्तर प्रदेश में सरोवरों के सर्वाधिक निर्माण का जिक्र करता है। आलेख में प्रस्तुत आंकड़े जो 8462 निर्माण की बात है उसकी पड़ताल नहीं हुई लेकिन प्रयागराज जिले के शंकरगढ़ ब्लॉक में निर्माणाधीन एक अमृत सरोवर के निर्माण में लगे ग्रामीण मज़दूरों से एवं आसपास के ग्रामीणों से चर्चा क्षेत्रकार्य के दौरान की गई।
(5) नरेटिव क्षेत्रीय भाषा में उत्तर प्रदेश के संदर्भ में है, चूंकि ग्रामीण ही तालाबों के विलुप्त या कब्जा होने से सबसे ज्यादा प्रभावित हैं और तालाबों के जीर्णोद्धार से सबसे ज़्यादा उनके ही लाभान्वित होने की संभावना है अतः नरेटिव देशज भाषा में है जो ग्रामीणों से बातचीत और साक्षात्कार पर आधारित है। देशज भाषा में प्रस्तुत नरेटिव ग्रामीण समुदाय को इस से कनेक्ट होने में और जागरूकता बढ़ाने में अधिकाधिक प्रभावी होगा और योजना की सफलता में भी सशक्त भूमिका का निर्वहन करेगा। कहानी शोध आधारित एम्पीरिकल/अनुभवजन्य नरेटिव है जो तालाब जिसका नाम “मियाँ का गड़हा” स्वयं सुना रहा अपने दर्द को बयान करते हुए की किस तरह मानवजनित गतिविधियों के कारण प्रकृति/प्राकृतिक स्रोतों का दोहन एवं शोषण हो रहा है। तालाब का दर्द देशज भाषा में ज्यादा प्रभावी होगा ऐसा शोधार्थी का विचार है। इसीलिए कहानी का जिक्र किया गया।
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