मुद्दा

भगत सिंह, गाँधी और फाँसी

 

आज भगत सिंह का जन्म दिन है और मैं लंदन के इंडिया ऑफिस लायब्रेरी में उनपर केंद्रित तत्कालीन ब्रिटिश हुक्मरानों द्वारा प्रतिबंधित दुर्लभ कविताओं, गीतों और पोस्टरों को बंद लिफाफों से संभाल कर निकाल कर रहा हूं.ये कागज के वे अभागे पन्ने हैं जिन्हें भगत सिंह के साथ शहीद होना था! लगभग नब्बे साल से वे आज़ाद भारत के   सूरज का इंतजार करते थक कर पीले और चिंदियों में तब्दील हो रहे हैं। आज से पांच दिन बाद गांधी जी का जन्म दिन होगा। गांधी जी और भगत सिंह को एक दूसरे के प्रतिपक्ष में खड़ा करने की पुरानी बीमारी रही है, अपने देश में। कम लोग जानते हैं कि भगत सिंह की फांसी के बाद मालवीय जी के संपादन में अभ्युदय का जो भगत सिंह अंक प्रकाशित हुआ उसमें सबसे मार्मिक लेख गांधी जी का ही था। यह अंक भी प्रतिबंधित हुआ। ब्रिटिश सरकार के निशाने पर गांधी और भगत सिंह कितने थे इसका पता करना हो तो इंडिया ऑफिस के प्रतिबंधित साहित्य कोश को देखना होगा। न सिर्फ़ इन दोनों की रचनाओं बल्कि इनके बारे में दूसरों की रचनाएं ही नहीं बल्कि पोस्टर और चित्र तक प्रतिबंधित किए गए।

बहुत लोगों को अभी भी लगता है कि गांधी यदि चाहते तो भगत सिंह की फांसी टल सकती थी। ऐसा मानने वालों से मेरा निवेदन है कि वे गांधी की आखिरी लंदन यात्रा पर ध्यान दें। भगत सिंह की फांसी के लगभग पांच महीने बाद  वे दूसरी गोल मेज सम्मेलन के लिए दस सितंबर को लंदन आए थे। इस सम्मेलन का हस्र क्या हुआ यह बताने की ज़रूरत नहीं है। लंदन के इस आखिरी प्रवास में गांधी जी को सिर्फ़ लंदन स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स में बुलाया गया था। तारीख थी दस नवंबर। इस व्याख्यान में उन्हें किसने बुलाया था इसका कोई रिकॉर्ड उपलब्ध नहीं और न ही कोई तसवीर मौजूद है। जबकि सबको पता है कि गांधी जी अपनी तस्वीरों को कितना संभाल कर रखते थे।

लंदन स्कूल ऑफ़ इकोनॉमिक्स के उस व्याख्यान के बारे में एक सूचना यह उपलब्ध है कि उसमें प्रख्यात राजनीति शास्त्र के चिंतक प्रोफेसर हेराल्ड लास्की मौजूद थे। हेराल्ड लास्की की मूजदगी की वजह कृष्ण मेनन हो सकते हैं जो लास्की के विद्यार्थी थे। दूसरा महत्वपूर्ण नाम बी आर अम्बेडकर का है जो उस समय अपनी पढ़ाई कर रहे थे। गांधी जी का वह भाषण अपेक्षाकृत बहुत लंबा था और वे ब्रिटेन सहित दुनिया के अन्य हिस्सों के विद्यार्थियों के बीच भारत की आजादी की अनिवार्यता पर बोल रहे थे। विश्व व्यापी आर्थिक मंदी की छाया में लंदन के लिए गांधी और उनकी बातें बेवक्त की बांसुरी थे जिसमें उनकी कोई दिलचस्पी नहीं थी। वे दस सितंबर को आए थे लंदन और पांच दिसंबर को वापस हुए थे। जिस शहर में आदमी की पढ़ाई लिखाई होती है उससे उसका लगाव स्वाभाविक रूप से हो जाता है। इस यात्रा में उन्हें लंदन और अपने कुछ मित्रों से ज्यादा उम्मीद थी लेकिन आर्थिक मंदी की छाया में शीत ऋतु की तरफ़ बढ़ रहे लंदन ने उनको भीतर तक झकझोर दिया था। इस दौर में वे सिर्फ चार्ली चैपलिन से मुलाकात करने में कामयाब रहे। इस लंदन प्रवास के प्रसंग के बाद भी किसी को अगर यह मुगालता हो कि गांधी इतने मजबूत थे कि वे भगत सिंह की फांसी स्थगित करा सकते थे, अपनी मान्यता पर पुनर्विचार करें

.

Show More

गजेन्द्र पाठक

लेखक हिन्दी विभाग, हैदराबाद विश्वविद्यालय, हैदराबाद में प्रोफेसर हैं| सम्पर्क- +918374701410, gpathak.jnu@gmail.com
5 1 vote
Article Rating
Subscribe
Notify of
guest

0 Comments
Oldest
Newest Most Voted
Inline Feedbacks
View all comments

Related Articles

Back to top button
0
Would love your thoughts, please comment.x
()
x