मुद्दा

पिछली महामारियों से कुछ नहीं सीखा …

 

1994 में अपनी पुस्तक ‘द कमिंग प्लेग’ में लौरी गैरेट ने चेतावनी दी थी ‘जब मानव जाति थोड़ी-सी चीजों, सीमित और भीड़भरी जमीन और दुष्प्राप्य साधनों के लिए आपस में झगड़ती रहेगी, इसका फायदा रोगाणुओं को मिलेगा। वे हमारे जीवभक्षी पशु हैं और अगर हम ऐसे ज्ञानी लोग राष्ट्रीय सार्वभौमिक गाँव में  रहना नहीं सीखते हैं जिसमें रोगाणुओं को कम अवसर हैं तो वे विजयी होंगे। ‘यदि आपको लौरी गैरेट का ऐसा लिखना अतिशयोक्तिपूर्ण कथन जान पड़े तो 2004 में अमेरिका के इंस्टीट्यूट आफ मेडीसन द्वारा किया गया यह  विश्लेषण देखें –‘जानना काफी नहीं है, हमें उस पर काम करना चाहिए। स्वीकृति ही काफी नहीं है, हमें करना भी चाहिए। ‘2002 की एस.ए.आर.एस. महामारी का तीव्रगामी संयमन सार्वजनिक स्वास्थ्य  की सफलता है, पर इसके साथ एक चेतावनी भी है – यदि एस.ए.आर.एस. फिर घटित होता है तो दुनिया भर में स्वास्थ्य सेवाओं पर दबाव पड़ेगा। बराबर सतर्कता अपरिहार्य है। लेकिन इस चेतावनी पर दुनिया भर में किसी ने ध्यान नहीं दिया। 2012 से 2019 तक ब्रिटिश सरकार केवैज्ञानिक सलाहकार इयान बोयड ने बतलाया था कि एक इन्न्फ़्लुएंजा महामारी में ब्रिटेन में दो लाख लोगों की मृत्यु हुई थी, पर इससे भी वहाँ की सरकार ने कुछ नहीं सीखा। हाँ, यह अवश्य सीखा कि सहायता करनी चाहिए, पर कैसे? इस पर कुछ नहीं किया।

सरकारकी इच्छाओं और प्रतिबद्धता पर संयम का प्रभाव पड़ा । राजनीतिक दबाव था सरकार की भूमिका को कम करना। इसका परिणाम यह हुआ कि देश पूरी तरह कमजोर होगया । एस.ए.आर.एस. और उसके बाद फैले इंफ्लुएंजा पर कुछ न करने के भले ही कुछ भी कारण रहे हों , तथ्य यह है की देश पूरी तरह तैयार नहीं था।Antibodies from COVID-19 patients inhibit SARS-CoV-2 infection in cells

एस.ए.आर.एस. पर दुनिया भर में कुछ नहीं कर सकना एक पूरी पीढ़ी की सबसे बड़ी असफलता है। 1994 में एच.ई.एन.डी.आर.ए., 1998 में NIPAH, 2003 में एस.ए.आर.एस., 2012 में एम.ई.आर.एस. और 2014 में इबोला ये सभी बड़ी महामारियाँ जानवरों के वायरस से ही मानवों में पहुँचीं। अब कोविड 19 भी एस.ए.आर.एस. के ही एक दूसरे प्रकार के कोरोना वायरस का परिणाम है।

यह कोई आश्चर्य की बात नहीं है कि इन चेतावनियों पर ध्यान नहीं दिया गया। हम में से बहुत कम लोगों को किसी महामारी का अनुभव है और हम सब इस बात के लिए अपराधी हैं कि हमने पिछली महामारियों से कुछ नहीं सीखा, उनसे निपटने की तैयारी नहीं की।आकस्मिक विपत्ति  से मानव की स्मृति की कमजोरी का पता चलता है। किसी इत्तफ़ाकिया दुर्लभ घटना के लिए पहले से कोई योजना कैसे बनाई जा सकती है। निश्चय ही उत्सर्ग बहुत बड़े होंगे , लेकिन हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि प्राकृतिक जोखिम अपरिहार्य हैं, तबाही नहीं।

ऐसी स्थिति में सरकार का का पहला काम अपने लोगों को बचाना है। महामारी को रोका जा सकता है,संगरोधन करके। 1980 के दशक में एच.आई.वी.के प्रकटीकरण से नई महामारी के खतरों का पता चल ही गया था। उसके बाद से अब तक (लंदन के ‘द गार्डियन’ में छ्पी एक रिपोर्ट के अनुसार) 75 मिलियन लोग संक्रमित हुए हैं और 32 मिलियन लोगों की मृत्यु हुई हैं। एच.आई.वी. की रफ्तार एस.ए.आर.एस. के समान भले ही न रही हो पर उसकी छाया मात्र से नए वायरस के प्रकोप के लिए तैयार रहना चाहिए था।

किसी भी संकट की घड़ी के समय लोग और राजनीतिज्ञों का ध्यान विशेषज्ञों की ओर जाता है, पर कभी-कभी ही नहीं, वरन प्रायः विशेषज्ञों, जो भावी योजनाएँ बनाते रहते हैं, के द्वारा किए गए अनुमान भी गलत साबित हो जाते हैं। पहले तो सरकारों ने सोचा कि यह कोरोना वायरस इंफ्लुएंजा के समान होगा, पर इंफ्लुएंजाहलका नहीं है। भारत में 1918 में इंफ्लुएंजा से मरने वालों की संख्या एक करोड़ 20 लाख थी। पर इंफ्लुएंजा कोविड 19 नहीं है।Looking for the original source of coronavirus Jagran Special

चीन एस.ए.आर.एस. के अनुभव से घबड़ाया हुआ था। वहाँ की सरकार ने जब देखा कि एक नया वायरस फ़ेल रहा था तो चीनी अधिकारियों ने  हाथ धोने की सलाह नहीं दी, कफ़ और खांसी के लिए उपयुक्त दवाएं नहीं बनाईं और हाथ पोंछने वाले टिस्यू के निस्तारण के लिए नहीं कहा। उन्होने पूरे शहर को संगरोधन (क्वेरेंटाइन) में डाल दिया और अर्थ व्यवस्था पर ध्यान नहीं दिया।

इसी प्रकार हमारी सरकार ने भी शुरू में  कोरोना वायरस के फैलने पर शुरू में कोई विशेष ध्यान नहीं दिया, उसकी गंभीरता को नहीं समझा। यह सरकार की बहुत बड़ी गलती थी। कोरोना वायरस के खतरों को न समझ पाना और उसके लिए शुरू में पर्याप्त तैयारी न करना सरकार के लिए खतरा साबित हो जाता अगर बाद में  द्रुत गति से सरकार ने उस पर नियन्त्रण न किया होता। बाद में सरकार ने जो कदम उठाए उसके  लिए विश्व स्तर पर प्रधान मंत्री की प्रशंसा हुई। अभी भी मेडिकल स्टाफ की कमी और डाक्टरों, नर्सों आदि के संक्रमित होने के कारण होने वाली उनकी मृत्यु भी सरकार के लिए चिंता की बात हैं। पर्याप्त मेडिकल सामग्री, उपकरणों, साधनों आदि की कमी भी एक समस्या है। यह एक प्रकार से सिपाहियों के शस्त्रास्त के बिना युद्ध में जाने के समान था। यह एक प्रकार से आत्महत्या थी। साधनों की कमी के कारण भी मेडिकल स्टाफ तो अपने कर्तव्य में लगा रहा और उस पर आक्रमण की घटनाओं से साकार को अध्यादेश भी लाना पड़ा। यह एक अभूतपूर्व कदम था पर सरकार की मजबूरी थी। नर्सों और डाक्टरों के लिए स्वयं की सुरक्षा के लिए उपकरणों की कमी तो शुरू से ही रही है, पर उसकी गंभीरता का आभास इस समय हो रहा है। कुछ अस्पतालों  द्वारा स्टाफ के लिए पर्याप्त सुरक्षात्मक उपकरण अवश्य हैं पर अधिकांश में उपलब्ध नहीं हैं।How Bad Is the Coronavirus? Let's Compare With SARS, Ebola, Flu - Bloomberg

सरकार द्वारा बराबर कहा जाता रहा है कि हम विशेषज्ञों और वैज्ञानिकों की सलाह के अनुसार काम कर रहे हें, उनके द्वारा बतलाए हुए सुझावों पर ध्यान दे रहे हें, पर यह एक सचाई है कि सरकार मेडिकल स्टाफ के लिए जरूरी और पर्याप्त सामग्री नहीं जुटा पाई है। ऐसा जान पड़ता है कि सरकार ने इटली में हुई मानव ट्रेजेडी से कुछ नहीं सीखा।

यह निश्चय ही बहुत दुखद है। कोविड 19 ने हमारे समाजों की भंगुरता को उजागर किया है। वह समन्वय, सहयोग और साथ-साथ काम करने की हमारी असमर्थता को सामने लाया है। लेकिन शायद हम प्राकृतिक दुनिया का नियन्त्रण नहीं कर सकते। शायद हम लोग वैसे प्रभावी और दबंग नहीं हैं जैसा कि अब तक समझा जाता रहा है।

यदि कोविड 19 मानवों को कुछ विनम्रता के साथ अनुप्रमित करता है, तो संभव है कि हम अंततः इस महामारी के पाठ के अभिग्राही रहें। या फिर हम पुराने आत्मसन्तुष्ट अपवाद रूप में डूबे रहें और अगली महामारी के संकट का इंतजार करें जो निश्चय ही आएगा। हाल के इतिहास को देखें तो वह हमारी सोच के बहुत पहले ही आ जाएगा।

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महेन्द्र राजा जैन

लेखक लायब्रेरी असोसियेशन, लन्दन के फेलो हैं। सम्पर्क- mrjain150@gmail.com
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