फिल्म वाले जो भी होते हैं, मजाकिया होते हैं। बड़े जतन से मजाकिया बनते हैं। जब बोलते हैं मजाकिया अंदाज में बोलते हैं। जहाँ भी बुलाए जाते हैं, मजाकिया होने के नाते बुलाए जाते हैं। जहाँ जाते हैं, वहाँ का माहौल मजाकिया हो जाता है।
यह देश उनके लिए मजाक भूमि है। इस देश का कानून उनके लिए मजाक है। मजाक मजाक में कानून का मजाक बना देते हैं। केवल फिल्मों में नहीं, व्यवहार में भी।
अपनी फिल्मों में पुलिस को मजाक के लिए ही रखते हैं। आपस में भी इनका मजाक का रिश्ता होता है। जब ये आपस में मिल बैठते हैं, सब का मजा लेते हैं। सबका मजाक बनाते हैं।
मजे मजे में अपराध करते हैं। मजे मजे में रास्ते में सोए लोगों को कुचल देते हैं। मजे मजे में हिरण मार डालते हैं। मजे से अपने घर में आतंकियों के हथियार पार्क कर देते हैं। संसद में पहुंच जाते हैं मजाक मजाक में।
संसद और गंगा का हाल बदहाल है। गंगा की सफाई योजना चल रही है। संसद और विधानसभा में पेस्ट कंट्रोल वाले छिड़काव कब करेंगे?
फिल्मी दुनिया से बहुतेरे संसद पहुंचे हैं। वैसे ही जैसे वैकेशन में जाते हैं तफरीह के लिए। इन एंटरटेनरों के लिए संसद की कुर्सी किसी अवार्ड की तरह है। एंटरटेनर होने का अवार्ड। सरकार भी इन मसखरों को मजाक मजाक में अवार्ड बांट देती है।
राजनीतिक दल भी इंटरटेनरों को शामिल करके अपनी राजनीति को चोखा बनाते हैं। ये फिल्मी बाजार के सांसद राजनीति के अतिथि कलाकार होते हैं। मूक और बधिर। न देश की सुनते हैं न देश को समझते हैं। मुद्रा पहचानते हैं। लेने के मौके पर टकटकी। जितना मिला, लपेट लिया। खाया पीया। ये खाने पीने वाले। मौज और मुद्रा इनका धर्म।
बॉलीवुड के इन अघाए पदार्थों में संसद के अतिथि बनने का हौसला गजब का है। किसी को भी यह भरोसा है कि चाहने भर से उसे टिकट मिल जाएगा। मिलता भी है। ये मजा देने वाले मसखरे मजाक मजाक में देश की मान – मर्यादा का मजाक बना देते हैं।
बिडंबना देखिए ये एंटरटेनर इंफ्लुएंसर बन गये हैं। गर्त के सारे दरवाजे खोलते रहे हैं। ऊपर से गुमान यह कि दीन दुखियों और परेशान लोगों का दर्द दूर करते हैं। तनाव हरते हैं। सबसे ज्यादा टैक्स अदा करते हैं। पाँच लाख लोगों को रोजगार देते हैं।
लेकिन माता जी को यह समझ कब आए कि अपराध की दुनिया में पाँच लाख से अधिक लोग लगे हैं। देह के धंधे में पाँच लाख से अधिक पुरुष और स्त्रियां लगे हैं। माता जी से पूछने की इच्छा होती है कि क्या उनकी आरती उतारी जाए?
बॉलीवुड या संभ्रांत समाज अगर ड्रग का नशा करता है, तो उनका क्या तिलक लगा कर सम्मान किया जाए? माता जी अगर आपको लगता है कि बॉलीवुड को बदनाम किया जा रहा है तो बॉलीवुड के धुरंधर आगे आएं और ब्लड टेस्ट कराकर दामन पाक है, इसका सबूत दें। बोलिए जया जी! कभी काम की बात भी किया करें।
एंटरटेन बहुत कर चुकीं।
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मृत्युंजय श्रीवास्तव
लेखक प्रबुद्ध साहित्यकार, अनुवादक एवं रंगकर्मी हैं। सम्पर्क- +919433076174, mrityunjoy.kolkata@gmail.com

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