गोदी मीडिया, आईटी सेल और व्हाट्सएप यूनिवर्सिटी
गोदी मीडिया, आईटी सेल और व्हाट्सएप यूनिवर्सिटी की तिकड़ी इस देश में इतनी शक्तिशाली हो गयी है कि वह कोई भी ‘नरेटिव’ कभी भी स्थापित कर के निकल ले रहे हैं। उसके बाद सत्यता की कसौटी पर गलत पाये जाने पर भी उससे जो नुकसान होना होता है, वह हो चुका होता है। मुसलमानों के प्रति विद्वेष का ऐसा सार्वजनिक प्रदर्शन अंग्रेजी राज में देखने को मिला था, उसके बाद अब देखा जा रहा है। झूठ के इस संगठित और सुनियोजित अभियान पर जहाँ से अंकुश लग सकती थी, कहना ना होगा कि इस निन्दा अभियान को शह वहीं से प्राप्त है। प्रगतिशील, धर्मनिरपेक्ष और उदार हिन्दुओं ने अपने जानते लगातार इसका प्रतिकार किया है।
बल्कि गौर करने पर लगता है कि मुसलमानों से ज्यादा मुसलमानों के लोकतांत्रिक अधिकारों की लड़ाई सोशल प्लेटफार्म पर इन्हीं हिन्दुओं ने लड़ी है। लेकिन अब जब कि यह स्पष्ट है कि यह लड़ाई ऐसे नहीं जीती जा सकती है तो नई तैयारियों का समय आन पहुँचा है। आईटी सेल ने व्हाट्सएप यूनिवर्सिटी के जरिये मुसलमानों के बारे में जो ‘परसेप्शन’ बना दिया है उस छवि को तोड़ने की जवाबदेही भी निश्चित तौर पर भारतीय मुसलमानों की बनती है। यदि वे इस निन्दा अभियान से और बाकी ज्यादतियों से डर कर चुप बैठ जाते हैं तो यह भारतीय लोकतंत्र के लिए कतई शुभ संकेत नहीं है। आजादी के बाद भारतीय मुसलमानों के लिए यह बेहद चुनौतीपूर्ण समय है।
सीएए और एनआरसी के मसले को छोड़ दें तो कभी संगठित होकर उन्होंने इसका प्रतिकार नहीं किया। अब यह आइने की तरह साफ हो गया है कि जो भी केन्द्र सरकार और केन्द्रीय नेतृत्व की आलोचना करेगा उसपर देशद्रोही, अर्बन नक्सल, एंटी नेशनल आदि के लेबल चिपका दिये जायेंगे। आई टी, ईडी, सीबीआई जैसी संस्थायें उसके पीछे लगा दी जायेंगी। मकसद साफ है कि आप सवाल पूछना बंद कर दें। ऐसे सवाल जो सरकार को मुश्किल में डाल दे। ताकि आप ऐसी मूर्खताओं के अभ्यस्त हो जायें कि ‘अगस्त में तो बच्चे मरते ही हैं’ या ‘सर्दियों में पेट्रोल के दाम बढ़ते ही हैं।’
बतौर नागरिक जब भी आप इन सवालों पर सोचना शुरू करते हैं, तो इस आशय का ‘नरेटिव’ गढ़ दिया गया है कि मुसलमानों से भारत को सुरक्षित रखने के लिए क्या एक आम हिन्दू थोड़ी मँहगाई बर्दाश्त नहीं कर सकता है। अन्यथा जिस रफ्तार से वे बच्चे पैदा कर रहे थे कि अगला विभाजन बस होने को ही था। विश्व कप के बाद भारत-पाकिस्तान के मैच को हुए कितने साल हो गये हैं, लेकिन व्हाट्सएप पर पाकिस्तान के हाथों भारत के हार के बाद पटाखे अभी भी फोड़े जाने की अनुगूंज सुनी जा सकती है। बकरीद में हलाल होते बकरों के आगे होली और नवरात्रि और अन्य अवसरों में बकरों की बलि अब बीते जमाने की बात है।
यह भी पढ़ें – व्हाट्सएप यूनिवर्सिटी
कहने का आशय यह कि गोदी मीडिया, आईटी सेल और व्हाट्सएप यूनिवर्सिटी ने मिलकर एक ऐसी आबादी तैयार कर दी है, जो इन बातों पर ही विश्वास करने को तैयार बैठी है। और इनको रोजाना खुराक मिलती रहती है, जिससे इनकी उत्तेजना को बरकरार रखा जा सके। इसलिए उसमें नेहरू और गांधी की लगातार उपस्थिति देखी जा सकती है कि कैसे ये दोनों भारत के विभाजन के लिए जिम्मेदार थे। जिस दिन गांधी-नेहरु नहीं होते, उस दिन जिन्ना और मुस्लिम लीग को यह जिम्मेदारी मिली होती है। बीच-बीच में नेहरू के मुस्लिम वंशावली की कहानी भी एक नियमित अंतराल पर सुनाई जाती रहती है।
दरअसल यह सब किया जा रहा होता है, तो स्वाधीनता आंदोलन में हिन्दू महासभा और राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ की भूमिका पर एक पर्दा डाला जा रहा होता है। इस पूरी कवायद ने एक आम हिन्दू के मन में यह बात बिठा दी है कि विभाजन धर्म के आधार पर हुआ था और कायदे से विभाजन के बाद सारे मुसलमानों को पाकिस्तान चले जाना चाहिए था। उनका इस देश में होना अगली विभाजन की पूर्वपीठिका है। इसलिए उनको दोयम दर्जे का नागरिक बना कर रखना ही एकमात्र विकल्प है। राम मंदिर, धारा 370 का उन्मूलन, सीएए एनआरसी, ट्रिपल तलाक, लव जिहाद आदि पर बने कानून मुसलमानों की चूलें कसने के लिए है।
मुसलमानों को इस हालात में बनाये रखने के लिए केन्द्र में कांग्रेस और राज्य के स्तर पर अन्य प्रादेशिक दलों को बाहर रखना जरूरी है। अपने जानते इस बात को ठीक से समझा दिया गया है। और जनता भी इस बात को समझ कर बैठी हुई है। वह मान रही है कि इस हिन्दू राष्ट्र की थोड़ी कीमत तो चुकानी होगी। और वह चुकाने को तैयार है। क्योंकि उसके मन में यह भी बिठा दिया गया है कि आखिर विकल्प क्या है? जो चैनल साल में तीन बार किम जोंग और छह बार बगदादी के मरने की खबर चलाते थे वे अब पाकिस्तान का मर्सिया गाने में मुब्तिला हैं कि पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था किस कदर बैठ चुकी है।
यह सबकुछ गोदी मीडिया, आईटी सेल और व्हाट्सएप यूनिवर्सिटी के बल पर अंजाम दे दिया गया है। व्हाट्सएप से जुड़े सामान्य जनों का भी एक अनिवार्य काम खतरे में पड़े हिन्दू की स्थिति से अपने सम्पर्क सूत्र के अन्य लोगों को अवगत कराना है। यह श्रृंख्ला इतनी बड़ी है कि एक आम आदमी के लिए व्हाट्सएप के ऐसे बेसिर पैर के ‘फारवार्डेड मैसेज’ की ताकत का अनुमान करना ही संभव नहीं है। लेकिन इस पूरी गतिविधि ने भारतीय लोकतंत्र में नागरिक-बोध को गहरे प्रभावित किया है। दूसरे किसी राजनीतिक दल के पास इससे दो-दो हाथ करने की कोई रणनीति नहीं है। और ना ही इसके लिए संसाधन जुटाने या खड़ा करने की कोई मुहिम देखी जा सकती है। राममंदिर निर्माण के लिए जिस कदर चंदा मांगने का अभियान चलाया गया वह अभूतपूर्व है। इससे मालूम हुआ कि कैसे वे एक-एक घर तक पहुँच पाने की स्थिति में है।
मीडिया को गोदी मीडिया में तब्दील करने के बाद सबसे बड़ी चुनौती के तौर पर ‘अल्टरनेटिव मीडिया’ उभर कर आया है। सोशल मीडिया का इस्तेमाल इस त्रयी के खिलाफ जिस ढंग से हाल के दिनों में देखने को मिला है, उसको काबू कर पाना इस निजाम के लिए मुश्किल का सबब हो गया है। क्योंकि यह प्रतिरोध और प्रतिकार ‘कोई’ भी कर दे रहा है। इस ‘कोई’ को नियंत्रित कर सकना मुश्किल है। इसलिए अब सोशल मीडिया और ओटीटी प्लेटफार्म को नियंत्रित करने की नई नियमावली तैयार की जा रही है। आनेवाले दिन और मुश्किल भरे होंगे।
यह भी पढ़ें – साहस और प्रमाण से अब भी दुनिया को बदला जा सकता है
किसान आंदोलन ने इस ‘दुष्ट त्रयी’ से निबटने के बतौर कुछ विकल्प प्रस्तावित किये। इस निजाम से प्रभावित समुदायों को उन तौर-तरीकों पर गौर फरमाना चाहिए। असल बात है अपनी आवाज और अपने पक्ष को अवाम तक पहुँचाने के लिए एक जिम्मेदार माध्यम का होना। यदि यह माध्यम आपको ना मिले तो आपको उसका विकल्प खड़ा करना होगा। किसान आंदोलन ने यह किया। अपने समाचार पत्र निकाले, अपना व्हाट्सएप ग्रुप बनाया, अपना आई टी सेल बनाया। गोदी मीडिया का लगातार बहिष्कार किया। भारतीय मुसलमानों को भी इन विकल्पों के बारे में सोचना चाहिए कि कैसे वे खुद के बारे में फैलाये जा रहे आधारहीन प्रवादों का खंडन कर सकंे? ऐसा करके वे ना सिर्फ अपने कौम का भला करेंगे बल्कि इस देश में लोकतांत्रिक व्यवस्था की पुर्नबहाली का मार्ग भी प्रशस्त करेंगे।