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लोकतन्त्र की रक्षा के लिए  ‘संविधान सम्मान यात्रा’ -बसन्त  हेतमसरिया

 

यह भारतीय इतिहास का एक महत्वपूर्ण दौर है, जिसमें हम एक ऐसे चौराहे पर खड़े हैं जहाँ इस देश की अवधारणा एवं इसकी भौतिकता को बचाने की जिम्मेदारी देश के आमजनों के कन्धों पर  आ पड़ी है, ताकि सबके लिए जिस सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक न्याय की कल्पना बाबा साहेब अम्बेडकर ने की थी, उस सपने को पूरा किया जा सके । समय की आवश्यकता है कि शान्तिपूर्ण, लोकतान्त्रिक ओर संवैधानिक माध्यमों से समाज में आपसी समझ और सहनशीलता को बढ़ाया जाए। आर्थिक समता, सामाजिक न्याय, पर्यावरण संरक्षण, शाश्वत-विकास, संसाधनों पर लोगों के अधिकारों की स्थापना और जाति और पितृसत्ता के विनाश पर आधारित समाज का निर्माण हमारा लक्ष्य है। इसी भावना के साथ ‘जन आन्दोलनों का राष्ट्रीय समन्वय’ (एनएपीएम) ने ‘संविधान सम्मान यात्रा’ की योजना बनायी। हमारे संविधान ओर लोकतन्त्र  के मूल्यों को संरक्षित करने के लिए एक राष्ट्रव्यापी यात्रा का कार्यक्रम बना। एक ऐसे दौर में जब देश में संविधान, लोगों के अधिकार, आजीविका, पर्यावरण और विविधता पर सुनियोजित ढंग से हमले हो रहे हैं, बड़े पैमाने पर घोटाले उजागर हो रहे हैं, संसाधनों की लूट हो रही है, डर का माहौल बन रहा है और जन-हित के कानूनों को कमजोर किया जा रहा है, पूरे देश में लोगों  से संवाद करने के लिए यात्रा की यह पहल एक साहसिक और बेहद आवश्यक कदम माना जा सकता है

देश में व्याप्त  साम्प्रदायिकता का  माहौल एवं सरकारों के मौन समर्थन से चल रही हिंसा, जातीय तनाव, संसाधनों की बेरोक-टोक लूट और संवैधानिक मूल्यों के क्षरण एवं हनन के विरोध में विश्व अहिंसा दिवसपर 02 अक्टूबर 2018 को राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के 150 वें जन्मदिन पर ब्रिटिश साम्राज्य को अपने नमक सत्याग्रह द्वारा चुनौती देने के लिए उनके द्वारा चुने गए, गुजरात के ऐतिहासिक प्रतिरोध स्थल दांडी से संविधान सम्मान यात्राकी शुरुआत हुई। पूरे देश के विभिन्न राज्यों में अलग-अलग संघर्षों से जुड़े हुए लोगों ने यात्रा के साथ जुड़कर दांडी में महात्मा गाँधी प्रतिमा स्थल से यात्रा की शुरुआत की। गुजरात में तीन दिनों के दौरान भरूच, धोलेरा, भावनगर, मिठी विरधी, वडोदरा, अहमदाबाद सहित कई अन्य स्थानों  पर जाकर सरकार की जनविरोधी नीतियों एवं दमन से प्रभावित विभिन्न समुदायों से मुलाकात और बातचीत की गयी, जिसमें एक्सप्रेस-वे, स्मार्ट सिटी, बुलेट ट्रेन, स्पेशल इनवेस्टमेंट रीजन (एस.आई.आर.) के नाम पर जमीन की लूट के खिलाफ लोगों में आक्रोश स्पष्ट दिखाई दिया। नर्मदा योजना से प्रभावित किसानों और मछुआरों ने पानी न मिलने और मछली कम होने के कारण पैदा हुए संकट की बात सामने रखी। इस तरह मिठी विरधी में परमाणु परियोजना के खिलाफ सफल संघर्ष ओर वाड़ी गाँव में पावर प्रोजेक्ट के लिए किए गए भूमि अधिग्रहण के विरोध में  आन्दोलनरत लोगों की बात उनकी जुबानी सुनी गई और उनकी लड़ाई में अपना समर्थन व्यक्त किया गया। बावलयारी में महीनों से लगी धारा 144 से अपने गाँव में एक तरह से कैद कर दिए गए लोगों से गुजरात मॉडल और पुलिस राज की बानगी भी दिखी।

अपने अगले पड़ाव में यात्रा राजस्थान पहुँची और यहाँ तीन दिनों में अलवर, कोटपुतली, जयपुर, उदयपुर, अजमेर, सहित कई जगहों पर सम्पर्क एवं सभाएँ की गईं । गोरक्षा के नाम पर भीड़ द्वारा पहलू खान एवं अन्य लोगों की हत्याओं, दलितों के ऊपर हो रहे हमलों, अवैध खनन, भूख से मौत, आदिवासियों एवं ग्राम-सभा के अधिकारों पर हमले जैसे मामले यात्रा के दौरान उठे एवं इनके खिलाफ लड़ रहे लोगों के समूहों ने अपने संघर्षों से परिचय कराया।

राजस्थान से यात्रा चार दिनों के लिए मध्यप्रदेश पहुँची, जहाँ मंदसौर, रतलाम, धार, खरगोन, नर्मदा घाटी, इंदौर, जबलपुर, चुटका, सिवनी, छिंदवाड़ा सहित कई छोटे-बड़े गाँव-नगरों में संघर्षशील संगठनों के साथ संवाद  हुआ और उनकी लड़ाई के साथ एकजुटता व्यक्त की गई। मंदसौर में वर्ष 2017 के 6 जून को अपनी फसलों के उचित मूल्य के लिए शान्तिपूर्वक संघर्षरत किसानों पर गोली चलाने में हुई 6 लोगों की मौत और किसानों के साथ सरकार की वादाखिलाफी और दमन से वहाँ के साथियों ने अवगत कराया, तो वहीं रतलाम और नर्मदा घाटी में सरदार सरोवर बाँध के लाभों का छलावा भी उजागर हुआ। मध्यप्रदेश में यात्रा ने बाबा साहब भीमराव अम्बेडकर की जन्मस्थली पर जाकर उन्हें श्रद्धाँजलि भी दी। राज्य में सेंचुरी जैसे बड़े उद्योगों द्वारा मजदूरों पर अत्याचार और उनके शोषण के मामले भी सामने आए।

इसके बाद छत्तीसगढ़ में यात्रा अपने तीन दिनों में दुर्ग, भिलाई, रायपुर, बिलासपुर गई। इस राज्य में खनिजों की लूट, खनन के लिए विस्थापन, आदिवासियों के लिए आवाज उठाने वाले मानवाधिकार कार्यकर्ताओं को सरकार द्वारा नक्सली, देशद्रोही करार देकर उन पर मुकदमे थोपना और परेशान करना जैसे मामले प्रमुखता से सामने आए। नई राजधानी रायपुर से विस्थापित प्रभावितों ने संघर्ष से पीछे न हटने और इसे आगे जारी रखने का संकल्प व्यक्त किया।

यात्रा ने अपना दूसरा चरण 20 अक्टूबर को महाराष्ट्र की राजधानी तथा देश की आर्थिक राजधानी मुम्बई से शुरु किया। इसके पहले, प्रथम चरण में यात्रा महाराष्ट्र के विदर्भ क्षेत्र में नागपुर और गढ़ चिरौली भी जा चुकी थी। महाराष्ट्र में यात्रा मुंबई के अलावा पुणे, सतारा, सांगली, कोल्हापुर, कणकवली एवं अन्य कई जगहों पर भी पहुँची। कुरखेड़ा और कोरची तहसील के 87 गाँव के लोगों ने वन-अधिकार कानून 2006 के अन्तर्गत अपने अधिकार लेकर पिछले वर्ष ग्राम सभा को 12 करोड़ रुपए का लाभ देकर इस कानून के सकारात्मक परिणाम का उदाहरण सामने आया। राज्य में आवास का अधिकार, शहरी गरीबों का विस्थापन, कार्पोरेट-बिल्डर-राजनेताओं का विनाशकारी गठजोड़, सम्पत्ति का बढ़ता केन्द्रीकरण, किसानों से जुड़ी समस्याओं जैसे मामले यात्रा के दौरान विभिन्न समूहों के साथ संवाद में सामने आए। 

महाराष्ट्र से गोवा जाकर यात्रा ने मोपा, पंजिम, खरेवाडो बीच जाकर वहाँ की समस्याओं पर चर्चा की। राज्य में बन रहे एयरपोर्ट से प्रभावित लोगों, सागरमाला परियोजना के विनाशकारी दुष्प्रभाव, पर्यटन के लिए प्रसिद्ध गोवा के पर्यटन उद्योग को मुनाफे के लिए कारपोरेट के हवाले कर देने, एवं मारमुगोवा बन्दरगाह के फैलाव से पैदा हो रही समस्याओं पर चर्चा हुई।

यात्रा तीन दिनों के लिए गोवा से कर्नाटक पहुँची। राज्य में यात्रा उत्तरी कन्नड़ा, भटकल, शिवमोगा, दावणगेरे, चित्रदुर्गा, बेल्लारी, सहित कई स्थानों पर गई। इन कार्यक्रमों से पश्चिमी तट को बचाने, साम्प्रदायिकता के आधार पर बँट रहे समाज के खतरे, प्रदूषण एवं विस्थापन, जैसे इस राज्य के कई ज्वलन्त मुद्दों पर चर्चा हो सकी, साथ ही कर्नाटक में एनएपीएम के नए सम्पर्क एवं सम्बन्ध बनाने का अवसर भी मिला।

यात्रा अगले दो दिनों तक देश के सबसे नए राज्य तेलांगाना में रही। तेलंगाना में यात्रा की महबूबनगर, शादनगर, बेमूलाघाट, हैदराबाद एवं कई अन्य जगहों पर रैली, सभाएँ हुई। राज्य में भूमिहीनों को जमीन दिलाने, विस्थापन, श्रमिकों को उचित मजदूरी, पितृसत्तात्मक एवं जातीय उत्पीड़न जैसे मुद्दों पर संघर्ष कर रहे समूहों के साथ चर्चा हुई।

तेलंगाना से चलकर अगले तीन दिनों तक यात्रा के आन्ध्रप्रदेश में पश्चिमी गोदावरी जिला, डेरू, अमरावती, ओंगोल के अलावा कई गाँवों में कार्यक्रम आयोजित हुए। सारे प्रावधानों की अवहेलना कर राज्य की नई राजधानी अमरावती के लिए 50,000 एकड़ जमीन का अधिग्रहण और इसके लिए पश्चिमी मॉडल वाले विकास की अंधी नकल पर काफी असन्तोष एवं रोष सामने आया। राज्य में मछुआरों के लिए समुद्र में मछली पकड़ने पर लगाए जा रहे प्रतिबंध, सागरमाला परियोजना एवं औद्योगिक गलियारे के नाम पर तटीय क्षेत्र में बड़े पैमाने पर बन्दरगाहों एवं पावर प्लांट का निर्माण, विस्थापन, जमीन के मुआवजे की राशि देने में गड़बड़ी जैसे मामलों की भी जानकारी मिली।

यात्रा ने अगले तीन दिन तमिलनाडु और पांडिचेरी में बिताए। इस दौरान चेन्नई, पुट्टुचेरी, शन्मुघम, पेरूमंगलम के अलावा पांडिचेरी से गुजरने पर परमाणु विरोधी संघर्ष, झुग्गी-झोंपड़ीवासियों के जबरन विस्थापन, विशेष आर्थिक क्षेत्र  (सेज) के खिलाफ आन्दोलन जैसे मुद्दों से रूबरू हुए। यात्रा  तमिलनाडु के थुथुकुडी भी गई, जहाँ स्टरलाईट कम्पनी के खिलाफ शान्तिपूर्ण प्रदर्शन कर रहे लोगों पर पुलिस द्वारा गत वर्ष गोली चलाने से तेरह लोगों की मौके पर और दो लोगों की इलाज के दौरान मौत हो गई थी।

दूसरे चरण में यात्रा का आखिरी पड़ाव केरल रहा, जहाँ यात्रा का दो दिनों का कार्यक्रम था। केरल अभी हाल ही में तूफान और बाढ़ की भीषण त्रासदी झेल चुका है। केरल में यात्रा पेरिंगमला, थिरुअनन्तपुरम्, अलपुज्झा, थ्रिशूर सहित कुछ गाँवों में पहुँची। केरल में यात्रा को छात्रों के साथ सम्वाद का अवसर मिला।

यात्रा का तीसरा चरण 11 नवंबर को झारखण्ड से शुरु हुआ। झारखण्ड में यात्रा के कार्यक्रम रामगढ़, हजारीबाग, राँची, खुंटी और सिमडेगा जिलों में आयोजित हुए। प्राकृतिक संसाधनों से समृद्ध इस राज्य में भूख से हो रही लगातार मौतों, विस्थापन, आदिवासी समुदाय के अधिकारों का हनन चर्चा के मुख्य मुद्दे रहे। यहाँ राज्य सरकार की प्राकृतिक संसाधनों को कार्पोरेट को दे देने में सक्रियता स्पष्ट दिखी। झारखण्ड में एनएपीएम द्वारा प्रकाशित ‘भूख से मौत’ पर एक लघु पुस्तिका का लोकार्पण भी हुआ।

झारखण्ड से चलकर यात्रा तीन दिनों के लिए ओडिशा पहुँची। यात्रा के कार्यक्रम राऊरकेला से शुरु होकर सुन्दरगढ़, राजगांगपुर, झारसुगुड़ा, संबलपुर, बोलांगीर, रायगढ़ा, कंधमाल, भुवनेश्वर, कटक, भद्रक एवं कई अन्य जगहों में आयोजित किए गए। यात्रा के दौरान नियमगिरि के संघर्ष को देखने-जानने का मौका मिलने के अलावा किसानों की कर्जमुक्ति के लिए संघर्ष, विस्थापन, खनिज संपदा की लूट, ग्राम सभा की उपेक्षा, आदिवासियों पर अत्याचार की जानकारी भी मिली।

ओडिशा के बाद पश्चिम बंगाल में यात्रा के तीन दिनों के कार्यक्रम कोलकाता, सुन्दरवन, फरक्खा, धुलियान, जफरगंज, सिलिगुड़ी, इस्लामपुर एवं कई अन्य जगहों पर आयोजित हुए। इन कार्यक्रमों में वन अधिकार कानून लागू न होने, गंगा पर राष्ट्रीय जल मार्ग बनाने और इसके लिए बड़ी संख्या में बराज बनाने से बाढ़ के खतरे, नदी कटाव, एवं इसके चलते हो रहे विस्थापन जैसे मुद्दों पर चर्चा के अलावा स्वामी ज्ञान स्वरूप सानंद (प्रो. जी.डी. अग्रवाल) को श्रद्धांजलि देने के लिए हुगली नदी के किनारे कार्यक्रम आयोजित किया गया। प्रो. अग्रवाल ने गंगा को बचाने के लिए हाल ही में आत्मोत्सर्ग कर दिया था ।

पश्चिम बंगाल के बाद 19 से लेकर 23 नवंबर तक यात्रा का पूर्वोत्तर राज्यों में कार्यक्रम रहा। यात्रा पूर्वोत्तर के असम और नागालैंड राज्यों में गई। असम के बारपेटा, गुवाहाटी, बोंगइगाँव एवं कोकराझाड़ में एवं नागालैण्ड के डीमापुर में यात्रा के कार्यक्रम हुए। असम में बोड़़ो समुदाय के साथ उनके मुद्दों और संघर्षों पर चर्चा के अलावा राष्ट्रीय नागरिकता पंजी की व्यवस्था को गलत तरीके से लागू कर वर्तमान सरकार द्वारा अपनी साम्प्रदायिक नीतियों को आगे बढ़ाने के विरुद्ध जोरदार आवाज उठती दिखी। वहीं नागालैंड में 2015 में हुए नागा समझौते को सरकार द्वारा सार्वजनिक न किए जाने से बने संशय एवं राज्य के बाहर देश में नागाओं के साथ नस्लीय भेदभाव पर चर्चा हुई। दमन के प्रतीक बन चुके ‘आफ्स्पा’ के बने रहने पर भी लोगों का गहरा रोष सामने आया।

24 से 26 नवम्बर तक यात्रा बिहार के अररिया, सुपौल, मोतिहारी, समस्तीपुर, मुजफ्फरपुर, पटना गई। बिहार के कार्यक्रमों में बड़ी संख्या में मजदूर-किसान, महिला, छात्रों-नौजवानों की भागीदारी रही। इन सबने इस सरकार द्वारा उनके साथ की गई वादा-खिलाफी, बढ़ते भ्रष्टाचार और सिमटते अवसर पर आवाज उठाते हुए समाजवाद, बंधुत्व, धर्मनिरपेक्षता, आजादी जैसे मूल्यों पर आधारित देश बनाने के लिए संकल्प लिया। यात्रा के मुजफ्फरपुर कार्यक्रम में शेल्टर होम्स में हुए अमानवीय शारीरिक और मानसिक अत्याचार पर क्षोभ व्यक्त करते हुए इस तरह की घटनाओं के लिए राज्य सरकार को जिम्मेदार बताया गया।

उत्तर प्रदेश में अपने पाँच दिवसीय कार्यक्रम में यात्रा बलिया, आजमगढ़, वाराणसी, सहारनपुर, मुजफ्फ़रनगर वगैरह स्थलों पर गई और वहाँ कई कार्यक्रम आयोजित हुए। राज्य के विभिन्न कार्यक्रमों के माध्यमों से दलितों पर अत्याचार, आतंकवाद के नाम पर निर्दोष लोगों पर सरकारी कहर, विश्वविद्यालयों का भगवाकरण, साम्प्रदायिक विद्वेष और दंगे की राजनीति, किसानों की बढ़ती लागत और घटती आय जैसे मामले प्रकाश में आए।

30 नवंबर को यात्रा दिल्ली में ‘किसान मुक्ति मार्च’ में शामिल हुई, जिसमें पूरे देश से लगभग एक लाख किसानों ने कर्ज मुक्ति एवं अपनी फ़सल की उचित लागत की माँगों को लेकर शिरकत की। एक अन्य कार्यक्रम में देश को जाति और धर्म के नाम पर बाँटने की कोशिशों का पुरजोर तरीके से विरोध करने का संकल्प दोहराया गया।

अगले दो दिनों तक यात्रा के हरियाणा के पानीपत, कुरुक्षेत्र, अम्बाला एवं अन्य कुछ जगहों पर कार्यक्रम आयोजित हुए। हरियाणा में किसानों की समस्याएं, साम्प्रदायिक सौहार्द और रोजगार-व्यापार की बिगड़ती स्थिति चर्चा के केन्द्र में रहे। 

हरियाणा से निकलकर यात्रा का अगला दिन पंजाब के लुधियाना, जालंधर और खटकड़कलाँ में शहीद भगतसिंह के पैतृक घर में बीता। शहीद भगतसिंह के घर पर बिताए गए पल यात्रियों के लिए बहुत ही भावुक और अविस्मरणीय रहे। पंजाब में भी किसाना, दलितों के अधिकारों, संविधान पर हो रहे हमलों एवं बढ़ती साम्प्रदायिकता चर्चा के मुख्य बिन्दु रहे।

इसी बीच यात्रा की एक छोटी टुकड़ी ने 2 से 4 दिसम्बर तक जम्मू-कश्मीर की यात्रा की। कश्मीर घाटी में बिताए गए दो दिनों में श्रीनगर में कई समूहों, छात्रों, पत्रकारों एवं इतिहासविद् के साथ कश्मीर मामले पर चर्चा कर इसे समझने और उनके संघर्षों को जानने का प्रयास किया गया। जम्मू में समाज के विभिन्न तबकों के साथ भी एक बैठक की गई। जम्मू-कश्मीर के लोगों को इस बात की शिकायत है कि उनके साथ किए गए वादों को निभाया नहीं गया, बल्कि पीएसए और आफ्स्पा जैसे दमनकारी कानूनों को लादकर निर्दोष लोगों को जेलों में डाला गया और आतंकवाद के नाम पर निरपराध युवाओं को निशाना बनाया गया। चर्चाओं में यह बात सामने आई कि उनके साथ प्यार से पेश आने की बजाय उपनिवेश की तरह व्यवहार किया गया और यह सिलसिला अब भी जारी है।

हिमाचल प्रदेश में 4-5 दिसम्बर में यात्रा के जाने पर शिमला, नाहन में हुई सभाओं में भी अन्य राज्यों की तरह रोजगार, जातिगत भेदभाव और महिलाओं के साथ हिंसा जैसे मुद्दे उठाए गए। यहाँ बाल तस्करी एवं बन्धुआ मजदूरी के सवाल भी उठे। अगले दो दिनों में उत्तराखण्ड के टेहरी-गढ़वाल, मसूरी एवं देहरादून में हुई सभाओं में बाँधों के नुकसान, और राज्य में बन रही अनगिनत जल विद्युत परियोजनाओं पर चिन्ता जताई गयी।

हर राज्य की अपनी-अपनी विशिष्ट समस्याओं और चुनौतियों के अलावा जो बातें सामान्य रूप से पूरे देश में दिखीं, उनमें देश में असमान्य रूप से बिगड़ा हुआ साम्प्रदायिक सद्भाव का वातावरण और इस पर एक समान चिन्ता, आम जनों विशेषकर आदिवासी, दलित, किसान, अल्पसंख्यक जैसे समुदायों को उनके अधिकारों से वंचित रखा जाना, महिलाओं के साथ बढ़़ती हिंसा, युवाओं के लिए घटते अवसर, विकेंद्रीकृत लोकतान्त्रिक तन्त्र के स्थान पर मजबूत होती केन्द्रीकृत शासन व्यवस्था, संसाधनों की लूट के लिए कार्पोरेट को पूरी छूट और सरकारी संरक्षण, अवसरों एवं न्याय व्यवस्था का गरीबों की पहुँच से दूर होना, पर्यावरण को क्षति पहुँचाने वाली एवं आमजनों के लिए गैर-जरूरी योजनाओं पर काम, सामाजिक सुरक्षा योजनाओं से बड़ी तादाद में जरूरतमंदों का वंचित रहना और शासनतन्त्र का बल प्रयोग कर विरोध को दबाना जैसे गम्भीर मामले प्रमुख थे। पूरे देश में यात्रा के दौरान इस बात पर आम सहमति थी कि देश में ऐसी सरकार स्वीकार नहीं की जा सकती, जो संविधान के साथ छेड़-छाड़ और उसका अनादर करने की हिमाकत करती है।

अंततः संविधान का जश्न मनाते हुए दिल्ली के जन्तर-मन्तर पर 10 दिसम्बर 2018, अन्तर्राष्ट्रीय मानवाधिकार दिवस के दिन यात्रा का समापन हुआ। अगले ही दिन दिल्ली के गाँधी शान्ति प्रतिष्ठान में यात्रा की समीक्षा करते हुए ‘जन आन्दोलन का संकल्प पत्र’ तैयार और स्वीकार किया गया।

जन आन्दोलन का संकल्प पत्र

 

हम भारत के नागरिक निवासी, भारतीय संविधान से अनुबन्धित हर मूल्य, अधिकार, संरचना और प्रक्रिया एवं मार्गदर्शक सिद्धान्त का सम्मान करते हुए संविधान के पालन के प्रति हमारा कर्तव्य, जिम्मेदारी और संकल्प घोषित करते हैं।

हम मानते हैं कि देश के हर कानून, नीति और शासन-प्रशासन की व्यवस्था में समता और न्याय प्रतिबिंबित होना चाहिए। जात-पात, पंथ, प्रान्त, मजहब या लिंग के आधार पर कोई भेदभाव या गैर-बराबरी हमें मंजूर नहीं। हम हर प्रकार की, रंग-रूप, वेश-भाषा, खान-पान, संस्कृति की विविधता के साथ एकता में विश्वास करते हैं। 

हम संविधान में उल्लिखित धर्मनिरपेक्षता ओर समाजवाद की बुनियाद पर, देश में राजनीति, अर्थनीति, सामाजिक न्याय और शासन-प्रणाली हो, इसके लिए कटिबद्ध हैं। हम चाहते हैं कि हर नागरिक को रोजगार, आवास, शिक्षा और स्वास्थ्य, शुद्ध पानी और भोजन, न्यूनतम जरूरी मात्रा में मुफ्त या कम कीमत पर उपलब्ध हो। 

हम मानते हैं कि हर गांव, गली-मोहल्ला, नगर के तहत आने वाले जल, जंगल, जमीन, पेड़, नदी, मछली, सुक्ष्म व प्रमुख खनिज के साथ चारागाह, खेती और परती जमीन पर स्थानीय निवासियों का पहला अधिकार है। ग्राम सभा की सहमति और नजरिया तथा आयोजन के साथ ही संसाधनों का उपयोग, वितरण या हस्तांतरण हो, यह जरूरी है। 

देश में विकास की अवधारणा, नियोजन और दिशा, संविधान के अनुच्छेद 243 के तथा सभी अनुसूची योग के अनुसार विकेन्द्रित व जनकेन्द्रित ही होना अनिवार्य है।

देश के संसाधन और धन, देश के ज्ञान, तकनीक और उत्पादन की लेन-देन, यहां के निवासियों की हर स्तर पर सहमति, जरूरतें, प्राथमिकताएं आधारभूत मानकर ही राष्ट्रीय-अंतर्राष्ट्रीय दायरे में होनी चाहिए। हर अंतर्राष्ट्रीय अनुबंध को संबंधित व प्रभावित विधानसभा एवं संसद में बहस और अनुमति के बाद ही अंतिम रूप दे सकते हैं। साथ ही अंतर्राष्ट्रीय या राष्ट्रीय पूंजी निवेश को भी पारदर्शिता, जवाबदेहिता और त्रिस्तरीय पंचायती राज की प्रभावित इकाइयों की, ग्राम सभा और वार्ड सभा की सहमति के द्वारा सुनिश्चित करना चाहिए।

हर विकास परियोजना की निर्णय प्रक्रिया में स्थानीय निवासियों के हर अधिकार की सुनिश्चित, सर्वेक्षण और दस्तावेज के साथ परिपूर्ण होनी चाहिए इसमें पेसा कानून (आदिवासी स्वशासन), वन अधिकार कानून (विविध राज्य व कार्य क्षेत्र स्तरीय वार), (आवास अधिकार की योजनाएँ) शहरी व गरीब बस्तियों सम्बन्धी कानून (विविध राज्य व कार्य क्षेत्र स्तरीय वार), (आवास अधिकार की योजनाएँ) शहरी व गरीब बस्तियाँ सम्बन्धी कानून 2009, भू-अधिग्रहण पुनर्वास कानून, 2013, केन्द्रीय व अन्य जनवादी कानूनों का पूर्ण पालन होना पूर्व शर्त के रूप में जरूरी है। 

हमें देश में सद्भाव और जगत में वसुधैव कुटुम्बकम की भावना बनाकर रखनी है । इंसानियत का आधार है संविधान द्वारा प्रदत्त जीने का अधिकार। किसी भी कारण से मनुष्य के खिलाफ हिंसा हमें नामंजूर है। हम पड़ोसी देशों के साथ भी युद्ध नहीं, सद्भाव का रिश्ता चाहते हैं। हम फांसी की सजा नहीं, आजीवन कारावास तक ही मर्यादा मानते हैं।

हमें भारत में हासिल किए विकास के लाभों के बँटवारे में, भूमि, पानी, बिजली, आवास, मछली या आर्थिक लाभ व सम्पत्ति में, समता का उद्देश्य सर्वप्रथम जरूरी है। किसानी और प्रकृति तथा मेहनत के साथ आजीविका पाने-वाले, जीने-वाले सभी समुदायों और उद्योगपति व पूंजीपतियों के बीच की गैर-बराबरी खत्म हो, ऐसे निर्णय नीति व प्रक्रिया शासन को अपनानी चाहिए। संविधान के अनुच्छेद 39 का आर्थिक समता के सिद्धान्त का सम्पूर्ण पालन होना आवश्यक है। 

हमें कम्पनियों के पक्ष में असमर्थनीय छूट, भूमि, जल जैसे  संसाधनों का हस्तांतरण नामंजूर है। हम कम्पनी और अन्य समुदायों के बीच बढ़ती गैर-बराबरी मिटाने के लिए, संगठित और असुरक्षित श्रमिकों के बीच बढ़ती दूरी न्यूनतम करने के लिए तत्काल ठोस कदम उठाना शासकीय प्राथमिकता होनी चाहिए। 

किसान की परिभाषा में दलित, आदिवासी, महिला, किसान, खेतिहर-मजदूर, मछुआरे, वनों पर निर्भर आदिवासी, पशुपालक आदि शामिल हों और हर प्राकृतिक उपज की पूरी लागत से डेढ़ गुना दाम देकर उन्हें आर्थिक बराबरी की ओर ले जाना चाहिए। इसके लिए एक बार, अबकी बार ऐसे सभी समुदायों को सम्पूर्ण कर्ज माफी देनी चाहिए।

हमारा मानना है कि दलित, आदिवासी और बहुजन समाज के लिए संवैधानिक दायरे के अनुसार आरक्षण जारी रखते हुए भी सहयोगी सेवाएं उपलब्ध करा कर भेदभाव निर्मूलन की दिशा में शासन बढ़े, उसके लिए नीतियाँ बनाएँ।

  दलितों, आदिवासियों पर हम अत्याचार नहीं सहेंगे। अत्याचार विरोधी कानून 1989 का सख्त पालन जरूरी है। इन समुदायों के खिलाफ हिंसा के प्रकरणों में कड़ी सजा होनी जरूरी है। अल्पसंख्यकों के विकास और सम्मान के लिए हम चाहते हैं कि सच्चर कमिटी रिपोर्ट पर सम्पूर्ण अमल हो।

हम चाहते हैं कि महिलाओं पर अत्याचार भी मानव अधिकार का उल्लंघन मानते हुए रोके जाएँ। इस दिशा में हम हर बेटी को बचाने, पढ़ाने और सुरक्षा देने के लिए हर स्तर पर व्यवस्था और विशाखा कमिटी सहित न्या. वर्मा आयोग की सिफारिश पर अमल चाहते हैं । 

भारतीय संविधान के अनुच्छेद 19 के तहत अभिव्यक्ति और संचार की स्वतंत्रता देश के हर नागरिकों को और माध्यमों पर प्रभाव या व्यापारी हस्तक्षेप, पेड न्यूज विज्ञापन या किसी भी माध्यम से ना हो। शासकीय माध्यमों में विविध समुदाय, जनसंघर्ष व विचारों को तथा चुनावी परिप्रेक्ष्य में राजनीतिक दलों एवं प्रत्याशियों को समान मौका और अवकाश दिया जाए। 

चुनाव प्रक्रिया में ईमानदारी और भ्रष्टाचार मुक्ति के लिए वस्तुओं के वितरण पर या उसके आश्वासन पर रोक लगाई जाए। हर पार्टी प्रत्याशी के घोषणा पत्र को बंधनकारक माना जाए। चुनाव की फंडिंग शासन से, चुनाव आयोग के द्वारा हो और वह सूचना अधिकार कानून, 2005 के दायरे में शामिल हो। रोजगार गारंटी कानून के अमल के वक्त न्यूनतम वेतन की सुनिश्चित और ग्राम सभा के साथ रोजगार निर्माण के नियोजन की बात पर कोई समझौता नहीं हो।

हमें पर्यावरणीय कानून, पेसा कानून, वन अधिकार कानून या अन्य कानूनों को कमजोर करने की कोई भी कोशिश मंजूर नहीं है। भूमि अधिग्रहण कानून, 2013 को नजरअंदाज करके राज्य स्तरीय कानून बनाने की साजिश भी तत्काल रोकी जाए।

हम चाहते हैं विश्वविद्यालय, न्यायपालिका, विविध न्यायाधिकरण एवं प्राधिकरण में शासकीय या राजनीतिक हस्तक्षेप खत्म हो। राष्ट्रीय बैंकों को तथा सार्वजनिक उद्योगों को कमजोर या दिवालिया या बंद न होने देकर उन्हें इस संकट में धकेलने वालों पर कार्रवाई जरूरी है। जन संगठनों, छात्र संगठन, श्रमिक संगठन, दलित या आदिवासी संगठन में विभाजन की साजिश शासन या उनके नुमाइंदों की ओर से ना हो। 

(10 दिसंबर 2018 को संविधान सम्मान यात्रा के समापन पर तैयार किया गया संकल्प पत्र) 

 

लेखक सामाजिक कार्यकर्ता व एनएपीएम झारखण्ड के संयोजक हैं|

सम्पर्क- +919934443337, bkhetamsaria@gmail.com

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लोक चेतना का राष्ट्रीय मासिक सम्पादक- किशन कालजयी
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