लोकभाषाओं, जनमाध्यमों और जनान्दोलनों में पैठ से हिन्दी होगी सशक्त
कोविड-19 महामारी के दौर में अकादमिक गतिविधियों की जीवन्तता को बनाए रखने के क्रम में राजकीय महाविद्यालय दमण के हिन्दी विभाग और गुजराती विभाग द्वारा संयुक्त रूप से 12 सितम्बर से 19 सितम्बर तक ‘हिन्दी सप्ताह 2020’ का आयोजन हुआ। सप्ताह भर चले इस ऑनलाइन कार्यक्रम का उद्घाटन 12 सितम्बर को प्रो. दयाशंकर त्रिपाठी (सरदार पटेल विश्वविद्यालय, वल्लभ विद्यानगर, आणंद) के प्रबोधनकारी वक्तव्य से हुआ। ‘राजभाषा हिन्दी की चुनौतियाँ व संभावनाएँ’ शीर्षकीय ई-संगोष्ठी के वक्तव्य में उन्होंने भारतीय भाषाओं के बीच संवादधर्मी आपसदारी की जरूरत पर बल देते हुए कहा कि हिन्दी की ताकत उसकी बोलियों व दूसरी भाषाओं के साथ की वह निकटता है, जिसे मध्यकालीन संतों ने बड़े यत्नों से अर्जित किया था और अब हमें भाषा के उस प्रवाहमयी रूप को बचाए और बनाए रखना है।
बीज-वक्तव्य में कार्यक्रम-संयोजक और संचालक डॉ. पुखराज जाँगिड़ ने ‘हिन्दी दिवस’ को ‘भारतीय भाषा दिवस’ के रूप में मनाने की जरूरत पर बल देते हुए कहा कि भारतीय भाषाओं की विलुप्ति के इस भयावह दौर में हमें अपनी भारतीय भाषाओं के संरक्षण में जुटना होगा क्योंकि गणेश नारायणदास देवी के नेतृत्त्व में संपन्न ‘भारतीय लोक भाषा सर्वेक्षण’ हमें बारम्बार आगाह करता है कि यदि हम सचेत न रहे तो आने वाले कुछ दशकों में हम अपनी अब तक की महानतम विरासत अर्थात् 400 भारतीय भाषाएँ खो देंगे। देवनागरी और नयी तकनीक के से सहयोग से विलुप्ति की ओर अग्रसर लिपिविहिन भारतीय भाषाओं को न केवल सहेजा और संरक्षित किया जा सकता है बल्कि उन्हें प्रचलन में लाया जा सकता है, लाया जा रहा है। लोकभाषाओं, जनान्दोलनों, जनमाध्यमों और विभिन्न ज्ञानानुशासनों से सीधा जुड़ाव ही हिन्दी ही असल ताकत हो सकता है।
प्राचार्य डॉ. संजय कुमार ने अपने स्वागत-वक्तव्य में भारतीय भाषाओं के समक्ष उत्पन्न लिपि के संकट पर अपनी चिंताएँ जाहिर करते हुए कहा कि मध्यवर्गीय परिवारों की नयी पीढ़ी में हिन्दी लिखने का अभ्यास खत्म हो रहा है और अपनी लिपि के अभाव में उनके लिए अपने अस्तित्व को बचाए रखना आसान न होगा। धन्यवाद ज्ञापन में उप-आचार्य डॉ. एस. बालासुब्रमण्यन ने कहा कि पिछले एक दशक से प्रायः सभी दक्षिण भारतीय राज्यों में हिन्दी की स्वीकार्यता और प्रचलन बढ़ा है। दक्षिण भारतीयों की बहुभाषिकता में हुई अनवरत वृद्धि के मूल में मातृभाषाओं पर उनकी गहरी पकड़ है। दक्षिण में हिन्दी-विरोध के मूल में रोजगार छिनने का संकट नहीं, बल्कि सभी भारतीय भाषाओं के समान सम्मान की सुनिश्चितगी है।
हिन्दी दिवस (14 सितम्बर) के दिन आयोजित देवनागरी लिपि विषयक ई-संगोष्ठी में महान् पत्रकार प्रभाष जोशी के जीवनीकार और पहले पीयूष किशन सम्मान से सम्मानित डॉ. रामाशंकर कुशवाहा ने ‘देवनागरी लिपि का समकालीन संदर्भ’ शीर्षकीय वक्तव्य में लिपि, भाषा, संस्कृति, समाज व राष्ट्र के अंतरसंबन्धों को स्पष्ट करते हुए उन्होंने कहा कि बाजार के दबाव में सही, लेकिन माइक्रोसॉफ्ट और गुगल द्वारा तैयार किया गया भारतीय लिपियों का यूनीकोड संस्करण नयी पीढ़ी के लिए किसी वरदान से कम नहीं है, जिसके सतत् प्रयोग से हम अपनी भाषाओं और अपनी लिपियों को सहेज सकते हैं।
19 सितम्बर को आयोजित ‘हिन्दी सप्ताह 2020’ का समापन समारोह में ‘हिन्दी के विमर्श और विमर्शों की हिन्दी’ विषयक ई-संगोष्ठी में लोकभाषा-साहित्य की मर्मज्ञ विदूषी डॉ. विभा ठाकुर ने ‘लोकभाषा-साहित्य और हिन्दी’ विषयक अपने वक्तव्य में मध्यकाल में संपूर्ण भारत की संपर्कभाषा रही हिन्दी के समकालीन विस्तार और विकास को लोकबोलियों और सहोदर भारतीय भाषाओं के साथ उसके शाब्दिक, वैचारिक और भावात्मक साझे से जोड़कर देखने पर बल दिया और बताया कि इसी राह से हम हिन्दी और तमाम भारतीय भाषों को समृद्ध कर सकते हैं।
हिन्दी में विमर्शों की स्थिति के बारे में बताते हुए दिल्ली विश्वविद्यालय के डॉ. छोटूराम मीणा ने कहा कि देशज जरूरतों और जमीनी आन्दोलनों से हिन्दी में आए स्त्री, दलित, आदिवासी, तृतीयलिंगी और पर्यावरणीय विमर्शों ने न केवल हिन्दी बल्कि सभी भारतीय भाषाओं में मजबूत उपस्थिति दर्ज कराई है, बल्कि नयी पीढ़ी को मानवीय और संवेदनशील भी बनाया है। विमर्श हमें बताते है कि वर्जनाओं और प्रतिबन्धों से परे जंगल किसी के लिए घनघोर और डरावना तो किसी छायादार और जीविका देने वाला क्यों है? मुद्रण से दूर रही वाचिक-संस्कृति के संरक्षण पर जोर देते हुए उन्होंने ‘रामायण’ के कुछेक दुर्लभ और विमर्शपक पाठों से श्रोताओं को परिचित कराते हुए हिन्दी के विकास के लिए हजारों नये देवेंद्र सत्यार्थियों और राहुल सांकृत्यायनों की आवश्यकता पर बल दिया।
मौजूदा दौर के जनमाध्यमों में हिन्दी की स्थिति से रूबरू कराते हुए मीडिया और सिनेमा विशेषज्ञ डॉ. रक्षा गीता ने हिन्दी को क्रांति की भाषा बताते हुए कहा कि ‘लाइक’, ‘कमेंट’ और ‘शेयर’ आधारित नया मीडिया हमारे समक्ष नयी चुनौतियों और नयी संभावनाएँ लेकर उपस्थित हुआ है। इसने न केवल मीडिया और साहित्य पर मुट्ठीभर लोगों के एकाधिकार को चुनौती देकर लोकतन्त्र के दायरे का विस्तार किया है, बल्कि हिन्दी का नया और जनप्रिय रूप भी निर्मित किया है। सम्पादक के डर और आलोचक के भय से परे तेजी से विकसित होते सोशल मीडिया, विशेषकर यूट्यूब की लघु फिल्में स्त्री-पुरूष के रिश्ते को, हमारे समाज के तल्ख़ यथार्थ को बेबाकी से हमारे सामने ला रही हैं।
प्राचार्य डॉ. संजय कुमार ने कहा कि भारतीयता के निर्माण में हिन्दी की केंद्रीय भूमिका रही है। संपर्क भाषा के साथ-साथ ज्ञानार्जन की भाषा के रूप में हिन्दी का विकास हिन्दी की चुनौती, सामर्थ्य और जिम्मेदारी को चिह्नित करता है। हिन्दी विभाग और गुजराती विभाग ने एक साथ मिलकर जिस खूबसूरती से इस कार्यक्रम को भारतीयता के संकल्प-सूत्र के रूप में संयोजित व संचालित किया, इसके लिए उनको बधाई और उम्मीद करता हूँ कि वे इस अकादमिक संवादधर्मिता की निरन्तरता को बनाए रखेंगे।
‘हिन्दी सप्ताह 2020’ के दूसरे संयोजक-संचालक व गुजराती विभाग के अध्यक्ष डॉ. भावेश कुमार वाला ने विभिन्न रचनात्मक गतिविधियों में संघप्रदेश दादरा नगर हवेली एवं दमण व दीव के सभी ज्ञानानुशासनों के विद्यार्थियों और शिक्षकों का बड़ी संख्या में सहभागिता के लिए, विभिन्न ई-संगोष्ठियों में आमन्त्रित अतिथि-वक्ताओं का उनके विचारोत्तेजक वक्तव्यों के लिए और राजभाषा विभाग व उनके पदाधिकारियों का उनके सतत् प्रोत्साहन के लिए आभार व्यक्त किया। इस दौरान आयोजित रचनात्मक गतिविधियों में बेहतर प्रदर्शन करने वाले भाषाप्रेमियों के प्रोत्साहित करते हुए उन्होंने बताया कि 14 सितम्बर को आयोजित हिन्दी वर्तनी प्रतियोगिता में मुस्कान कुमारी हितेंद्रभाई टंडेल ने पहला स्थान, रेशमा कालिदास हलपति ने दूसरा स्थान व काजल प्रमोद दुबे ने तीसरा स्थान प्राप्त किया। 15 सितम्बर को आयोजित हिन्दी प्रश्नोत्तरी प्रतियोगिता में मनीषा विजय तिवारी ने पहला स्थान, क्रुणाली चंद्रकांत भंडारी ने दूसरा स्थान व गणेशभाई खरपड़िया ने तीसरा स्थान प्राप्त किया।
16 सितम्बर की हिन्दी कहानी लेखन प्रतियोगिता में जाट रेखा रतन ने अपनी स्वलिखित कहानी ‘तुलना’ के लिए पहला स्थान व मुस्कान कुमारी हितेंद्रभाई टंडेल ने अपनी स्वलिखित कहानी ‘संघर्ष’ के लिए दूसरा स्थान प्राप्त किया। 17 सितम्बर की हिन्दी कविता लेखन प्रतियोगिता में जाट रेखा रतन ने अपनी स्वरचित कविता ‘काश! जिन्दगी सचमुच किताब होती’ के लिए पहला स्थान प्राप्त किया तो 18 सितम्बर की हिन्दी समीक्षा लेखन प्रतियोगिता में कुँवरपाल रामचंद्र गौतम ने जवाहरलाल नेहरू की पुस्तक ‘भारत की खोज’ की समीक्षा के लिए पहला स्थान व मुस्कान कुमारी टंडेल ने गोस्वामी तुलसीदास के महाकाव्य ‘रामचरितमानस’ की समीक्षा के लिए दूसरा स्थान प्राप्त किया। संघप्रदेश के और आभार व्यक्त करते हुए उन्होंने बताया कि कोविड-19 महामारी को ध्यान में रखते हुए सभी प्रतियोगिताएँ और ई-संगोष्ठियाँ ऑनलाइन वर्चुअल माध्यम पर आयोजित की गयी और इस दौरान भारत सरकार द्वारा जारी कोविड-19 सम्बन्धी दिशानिर्देशों व मानक प्रचालन प्रक्रिया का पूर्णतः पालन किया गया।
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