चतुर्दिक

भारतीय जनता और भारतीय जनता पार्टी के बीच का चुनाव

 

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने अपने चुनावी भाषणों में अभी तक जो कुछ कहा है, उन सब पर हमे ध्यान देना चाहिए। वे दस वर्ष से प्रधानमंत्री हैं, उनके अनुसार दस साल का काम तो ट्रेलर मात्र है ‘ऐपेटाइजर’ है। अभी तो पूरी थाली बाकी है। दस वर्ष तक थाली न मिलने की वास्तविक कारण क्या है? दस वर्ष में भारत कितना विकसित राष्ट्र बना? 2014 और 2019 के लोकसभा चुनाव में मोदी ने जितने वादे किये थे उनमें कितने पूरे हुए? जो सपने उन्होंने दिखाए थे वे कितने सच हुए? 2014 के संकल्प पत्र में उन्होंने जनता की बात की थी, उसकी बदहाली और गरीबी मिटाने का संकल्प लिया था। प्रत्येक व्यक्ति के खाते में 15 लाख रुपये आने की और काले धन की वापसी का आश्वासन दिया था। महंगाई दूर करने की और दाम स्थिर करने की बात कही थी। उस समय वे रोजगार का जिक्र करते थे, अपने लिए कुछ भी खर्च न करने का वादा कर रहे थे। तब एफ सी आई का रोजगार का जिक्र था। 2014 में बैंक का अनर्जक (एन पी ए) ऋण 2 लाख 41 हजार करोड़ था, जो अब कहीं अधिक है। पूंजिपतियों, उद्योगपतियों और कॉरपोरेटों के 16 लाख करोड़ के ऋण माफ किए गए। विगत दस वर्ष में भारत में अरबपतियों की संख्या में काफी वृद्धि हुई है और दूसरी ओर 80 करोड़ लोगों को 5 किलो अनाज दिया जा रहा है। नरेन्द्र मोदी के कार्यकाल में आर्थिक असमानता में हुई वृद्धि यह प्रमाणित करती है कि सरकार की नीतियां और योजनाएँ सामान्य जनता के हित में नहीं बनी। आज देश के 21 अरबपतियों के पास देश के 70 करोड़ भारतीयों की संपत्ति है। सुप्रीम कोर्ट की जस्टिस नागरत्ना के अनुसार नोटबंदी काले धन को सफेद करने का अच्छा तरीका था। जनवरी 2023 में सुप्रीम कोर्ट की 5 जजों की बेंच ने इस फैसले को सही ठहराया था। अब सुप्रीम कोर्ट और हाई कोर्ट के सेवा निवृत जज न्यायपालिका पर सरकारी दबाव के होने की भी बात कर रहे हैं। विधायिका, कार्यपालिका, प्रेस, न्यायपालिका- लोकतन्त्र के चारों स्तंभ कमजोर किये जा चुके। विपक्षी दलों के अनुसार भारत का अठारहवां लोकसभा चुनाव लोकतन्त्र और संविधान को बचाने के लिए है।

रघुवीर सहाय की एक प्रसिद्ध कविता है- आपकी हँसी “निर्धन जनता का शोषण है/ कह कर आप हंसे/ लोकतन्त्र का अंतिम क्षण है/ कह कर आप हंसे/ सब के सब हैं भ्रष्टाचारी/ कह कर आप हंसे/ चारों ओर बड़ी लाचारी/ कह कर आप हंसे/ कितने आप सुरक्षित होंगे मैं सोच‌ने लगा/ सहसा मुझे अकेला पाकर/ फिर से आप हंसे”। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और गृह मंत्री अमित शाह, अपने चुनावी भाषणों में विरोधी दलों को भ्रष्टाचारी कहने से नहीं चूकते- ‘सब के सब हैं भ्रष्टचारी’। मोदी का आरोप यह है कि इंडिया गठबंधन के दल भ्रष्टाचार पर कार्रवाई रोकने के लिए रैलियाँ कर रहे हैं। मोदी तमिलनाडु के अपने भाषण में भ्रष्टाचार पर द्रमुक का पहला कॉपीराइट बता रहे हैं। वे बता रहे हैं कि इंडिया गठबंधन का लक्ष्य कमीशन कमाना है। भाजपा अध्यक्ष नड्डा भी यह कहने से नहीं चूकते- काँग्रेस ने सभी क्षेत्रों में भ्रष्टाचार किया है। एक सुर के साथ सारे सुर हैं। चुनाव में भाजपा दस वर्ष के अपने कार्यों पर कम बोल रही है। सारा आक्रमण काँग्रेस पर है जबकि सत्ता में दस वर्ष तक भाजपा है। प्रधानमंत्री और गृह मंत्री के भाषणों पर ध्यान दिया जाए तो समान लक्ष्य है एजेंडा साफ है- काँग्रेस पर प्रहार। मोदी या शाह दोनों भ्रष्टाचारियों के पास जेल का बेल के विकल्प की बात कर रहे हैं। केजरीवाल का आंदोलन भ्रष्टाचार विरोधी था- ‘इंडिया एगेंस्ट करप्शन’ । भाजपा बता रही है कि झारखण्ड के मुख्यमंत्री और दिल्ली के मुख्यमंत्री दोनों जेल में हैं। दूसरी ओर लगभग सारे भ्रष्टाचारी भाजपा में जा चुके हैं। वे वहां मुख्यमंत्री, उपमुख्यमंत्री, सांसद, विधायक हैं। एक ओर जेल-बेल है, दूसरी ओर मंत्री-मुख्यमंत्री पद है। यह इस समय के चुनाव की सच्चाई है।

प्रधान नरेन्द्र मोदी ने अपने लिए संविधान को “गीता, रामायण, महा‌भारत एवं कुरान के समान कहा है। ये सभी धार्मिक ग्रन्थ हैं और भारतीय संविधान धर्मनिरपेक्ष (सेकुलर) है। मोदी कथन और अन्य भाजपाइयों के कथन में, सत्य कथन एक ही होगा। पिछले 5-6 वर्षों में कर्नाटक के हेगड़े ने कई बार संविधान में बदलाव की बात कही है। अब यह संख्या बढ़ रही है। राजस्थान की पूर्व भाजपा सांसद ज्योति मिर्धा और फैजाबाद के सांसद लल्लू सिंह ही नहीं, मेरठ से भाजपा प्रत्याशी, रामायण में राम की भूमिका से प्रसिद्ध अरुण गोविल भी संविधान बदलने की बात कह रहे हैं। लल्लू सिंह ने साफ शब्दों में यह कहा है कि 272 (बहुमत) से संविधान में संसोधन नहीं हो सकता। उसके लिए दो-तिहाई सांसद अपेक्षित है। 407 चाहिए। संविधान बदलना है, बहुत कुछ करना है। प्रधानमंत्री और उनके अनुयायियों के कथन में विरोध नहीं है। संविधान बदलने की बात करने वालों को भाजपा ने इस लोकसभा चुनाव (2024) में अपना प्रत्याशी घोषित किया है। चुनावी भाषणों में धर्म की बात करना संविधान आचार संहिता के अनुकुल है या प्रतिकूल?  इस चुनाव में मंदिर,  राम मंदिर,  शक्ति नवरात्र, मांस-मछली सबकी बात की जा रही है। इनमें से जनता के जीवन से जुड़ा क्या कोई भी मुद्दा है? मुद्दा को गायब करना और जो मुद्दा नहीं है, उसे मुद्दा बनाना वाक-छल के अतिरिक्त और कुछ नहीं है। मंदिर और राम मंदिर की बात कर हिन्दू वोटों का ध्रुवीकरण किया जा रहा है। प्रधानमंत्री ‘मोदी की गारंटी’ और ‘मोदी का परिवार’ (140 करोड़ भारतीय) की बात करते हैं, पर सच्चाई से आँखें मूँदते हैं कि किसानों की आत्महत्या नहीं रुकी है। विश्व बैंक के पूर्व प्रमुख अर्थशास्त्री कौशिक बसु ने हाल के अपने एक लेख में यह बताया है कि 2014 से 2022 तक एक लाख से अधिक किसान अपनी जान दे चुके हैं। पिछले वर्ष प्रकाशित इंटरनेशनल इंस्टीट्‌यूट फॉर एनवायरनमेंट एंड डेवलपमेंट के अनुसार भारत में किसानों की आत्महत्याएँ बढ़ रही हैं: 2022 में कर्ज और गरीबी के कारण 11 हजार 290 किसानों ने आत्महत्या की। 1994 में बेरोजगारी 11.8 प्रतिशत थी, जो 2018 में बढ़कर 25.9 प्रतिशत हो गयी है। 2022 में 29.1 प्रतिशत युवा स्नातक बेरोजगार थे। केंद्र में 30  लाख पद खाली हैं, जो अभी तक भरे नहीं गये, पिछले चालीस साल से कहीं अधिक बेरोजगारी आज है। एक दिन में 30 किसान और 4 नवयुवक आत्महत्या कर रहे हैं। प्रधानमंत्री ने 2 करोड़ को रोजगार देने की बात कही थी। भाजपा के पास जरूरी सवालों का कोई उत्तर नहीं है। एक ओर बेरोजगारों की संख्या बढ़ रही है, दूसरी ओर पूंजीपतियों और कॉरपोरेटों का मुनाफा बढ़ रहा है। 2023 के ग्लोबल हंगर इंडेक्स में दुनिया के 125 देशों में भारत का 111वां स्थान है, जबकि पाकिस्तान 102वें, बांग्लादेश 81वें, नेपाल 69वें और श्रीलंका 60वें स्थान पर है। आज किसानों पर कुल कर्ज 16.40 लाख करोड़ रुपये है और हमें यह जानना चाहिए कि लगभग इतना ही कर्ज सरकार ने पूंजी पूँजीपतियों और कॉर्पोरेटों के माफ कर दिए हैं, जो सरकार की पक्षपाती भूमिका का प्रमाण है। एक ओर भारत सर्वाधिक तेजी से बढ़ने वाली अर्थव्यवस्था है और दूसरी ओर आर्थिक समानता भी यहाँ काफी अधिक है। फ्रीडम इंडेक्स में 2014 में भारत 140 वें स्थान पर था। 2023 में विश्व के 180 देशों में यह 161 वें स्थान पर है। पिछले वर्ष यहां अरबपतियों की संख्या 169 थी, जो अब 200 हो गयी है। पिछले साल इनकी सम्पत्ति 675 अरब डॉलर थी, जो एक वर्ष में 41 प्रतिशत बढ़कर 954 अरब डॉलर हो गयी है। नीति आयोग के अनुसार देश की 20 प्रतिशत आबादी की दैनिक आय 46 रुपये है।

अंबेडकर ने कहा था- “भाषणों से बात नहीं बनती”। मोदी ने अपने 2014 और 2019 के चुनावी भाषणों में जनता से जो वादे किये थे, वे पूरे नहीं किए। 2019 के भाजपा के घोषणापत्र में 5 ट्रिलियन अर्थव्यवस्था की बात कही गयी थी, अर्थव्यवस्था पारदर्शी बनाने की भी बात थी, जनता से टैक्स कम लिये जाने की बात थी, 100 लाख करोड़ के निवेश की बात थी, भ्रष्टाचार मुक्त भारत का जिक्र था, सुधार की बात थी, हिमालय को सुरक्षित रखने और पूर्वोत्तर राज्यों के विकास की बात थी। इसके पहले 2014 में ‘बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ’ का नारा भी दिया गया था। अल्पसंख्यकों का सम्मान कागजी बनकर रह गया। ‘सबका साथ, सबका विकास’ के स्थान पर ‘सबका साथ, कुछ का विकास’ हुआ। जिस ग्राम स्वाराज की बात कही गयी थी, वहां गांवों से करोड़ों की संख्या में नौकरी-मजूरी करने के लिए लोगों का पलायन हुआ। 2022 तक किसानों की आय दोगुनी होने की बात थी, पर वह घटी। एक लाख के ऋण को ब्याज मुक्त करने की घोषणा की गयी थी। इसके विपरीत कर्ज दोगुना हो गया। किसान अब 7 प्रतिशत ब्याज दे रहे हैं। 2024 तक केंद्रीय और नवोदय 200 विद्यालय खोलने की बात थी, पर खुले बहुत कम।

प्रधानमंत्र नरेन्द्र मोदी स्वप्न दिखाते हैं। चुनावी भाषणों में अब वे अगले वर्ष 2025 में बिरसा मुंडा की 150वीं जयंती को राष्ट्रीय स्तर पर धूमधाम के साथ मनाये जाने की बात करते हैं, डिजिटल जनजाति कला-केन्द्र बनाने की उनकी योजना है। वे 2025 को जनजातीय गौरव अभियान से जोड़ कर जनतो को जोड़ रहे हैं। यह लक्षित किया जाना चाहिए कि अभी तक उन्होंने अपने किसी भी भाषण में 2025 में राष्ट्रीय स्वंयसेवक संघ की शतवार्षिकी की चर्चा नहीं की है और न करेंगे। सच्चाई यह है कि उनके, भाजपा के और आर एस एस के एजेंडे में 2025 का एक मात्र अर्थ आर एस एस की जन्म शतवार्षिकी है, जिसे चुनाव-परिणाम के पश्चात सामने रखा जाएगा, इस वर्ष की विजयादशमी के बाद जब आर एस एस की जन्मशती आरंभ होगी। इसके लिए किसी भी कीमत पर, किसी भी तरह से 2024 का चुनाव काफी मतों से जीतना जरूरी है। आर एस एस ने कभी भारतीय संविधान को महत्व नहीं दिया है। वह धार्मिक राष्ट्र, हिन्दू राष्ट्र के पक्ष में है, न कि धर्म निरपेक्ष राष्ट्र के पक्ष में। 2014 के बाद और 2019 प्रमुख रूप में भाजपा आर एस एस के एजेंडे को लागू करने में लगी है। इसी कारण अब खुलकर संविधान बदलने की बात कही जा रही है। प्रधानमंत्री का कथन है कि उनके फैसले किसी को भयभीत करने के लिए नहीं है। देश के लिए उनकी बड़ी योजनाएँ  हैं, जो देश के विकास के लिए, युवाओं के लिए हैं। 2025  में प्रधानमंत्री 700 से अधिक एकलव्य स्कूल खोलने की जो बात कर रहे हैं, उसका संबंध बिरसा मुंडा की 150वीं जयंती से कम और आर एस एस की शतवार्षिकी से कहीं अधिक है। उनकी चिन्ता में आदिवासी और हिमालय कितना है, यह इसी से साबित होता है कि वे अब तक न तो मणिपुर गये हैं और न लद्दाख। लद्दाख और सोनम वांगचुक कि चिन्ता भाजपा को नहीं है। भाजपा ने 2019 में लद्दाख को संविधान की छठी अनुसूची में शामिल करने का वादा किया था। केंद्र सरकार ने लद्दाख को केंद्रशासित प्रदेश बनाया और 2019 के बाद ही जम्मू कश्मीर को स्वतन्त्र राज्य नहीं रहने दिया। सोनम वांगचुक की भूख हड़ताल, अनशन आदि लद्दाख के पर्यावरण की रक्षा के लिए, चीन के अतिक्रमण को हटाने के लिए, राज्य का दर्जा देने और छठी अनुसूची में शामिल करने के लिए है। उन्होंने केंद्र सरकार को अपने वादे पर रहने की अपील की। चीन ने लद्दाख में जमीन पर कब्जा किया है। इसके खिलाफ वहां की जनता की आवाज सरकार नहीं सुन रही है। 22-24 डिग्री शून्य तामपान पर अनशन कर रहे सोनम वांगचुक की मांगों पर भी सरकार ने ध्यान नहीं दिया है। सोनम वांगचुक का कहना है- अगर हम यह अपील भी नहीं कर सकते तो चीन में जन्म लेना चाहिए, न कि भारत जैसे लोकतांत्रिक देश में।

अठारहवां लोकसभा चुनाव भारत में जनतन्त्र और संविधान की रक्षा के लिए है। इन चुनाव को मोदी बनाम राहुल गांधी और राजग बनाम ‘इंडिया’ का चुनाव भी कहना सही नहीं होगा। मोदी की लोकप्रियता कायम है, पर उनकी लहर समाप्त हो चुकी है। लोकप्रिय होने के साथ ही वे अविश्वसनीय भी हो रहे हैं क्योंकि पिछले दो लोकसभाओं में उन्होंने जो वादे किये, वे पूरे नहीं किये। जिस भ्रष्टाचार की बात वे चुनावी रैलियों में कर रहे हैं, उसकी हकीकत यह  है कि वह 2014 में 40 प्रतिशत था, जो 2019 में 14 प्रतिशत बढ़ा है। केंद्र सरकार को 54 प्रतिशत भ्रष्टाचार बढ़ाने का श्रेय दिया जा रहा है। भाजपा के दरवाजे सभी भ्रष्टाचारियों के लिए खुले हैं। मोदी का दस साल का काम स्वयं उनके ही शब्दों में ‘ट्रेलर’ और ‘एपिटाइजर’ रहा है। 71 प्रतिशत लोग यह मान रहे हैं कि पिछले 5 साल में महंगाई बढ़ी है। भाजपा यह चुनाव मुद्दों पर नहीं लड़ रही है। वह यह नहीं बताती कि केंद्र में 30 लाख पद अब तक खाली क्यों रहे? राम मंदिर बन जाने के बाद भी चुनानी राजनीति में इसे उपस्थित किया जा रहा है। नरेन्द्र मोदी भाजपा के स्टार प्रचारक हैं। उनके समक्ष अमित शाह और राजनाथ सिंह का चुनावी भाषण फीका है। मोदी की बात खबर बन कर दूर-दूर तक फैल जाती है। वे काँग्रेस को रामविरोधी बता रहे हैं और मतदाताओं से मटन-मछली की बात भी कर रहे हैं। ठीक चुनाव के समय प्रवर्तन निदेशालय द्वारा विरोधी दलों के नेताओं के यहां छापे मारना, दो मुख्यमंत्रियों को जेल भेजना और कुछ चैनलों को बंद किए जाने की सूचना देना एक एजेंडे के तहत है। ‘नेशनल दस्तक’ एक प्रमुख गैर सवर्ण चैनल है। इसे बंद करने का कोई कारण नहीं बताया गया है। यह चैनल लगभग 70-80 करोड़ पिछड़े समुदायों की आवाज उठाने वाला चैनल है। सच बोलने से, सरकार और उसके मुखिया के खिलाफ बोलने से रोकने के लिए एजेंसियाँ  काम कर रही हैं। यह चुनाव यह फैसला करेगा कि भारत अधिनायकवाद-बहुसंख्यकवाद के साथ है, तानाशाही के साथ है या लोकतन्त्र और संविधान की किसी भी कीमत पर रक्षा करने को तत्पर है। स्वाधीन भारत के इतिहास की यह एक निर्णायक घड़ी है। 96 करोड़ 80 लाख मतदाताओं के ऊपर भारत का भविष्य निर्भर है।

भारत की आबादी 144 करोड़ है, जिसमें 51.6 प्रतिशत पुरुष हैं और 48.4 प्रतिशत महिलाएं हैं। इस आबादी में 15 प्रतिशत मुसलमान हैं जिनकी संख्या 20 करोड़ 40 लाख के लगभग हैं। आदिवासी 9 प्रतिशत हैं- 10 करोड़ से कुछ अधिक। ओबीसी की संख्या 44 प्रतिशत है- लगभग 62 करोड़ लोग। अनुसूचित जाति 16.6 प्रतिशत और दलित 17 प्रतिशत हैं। सभी जातियों, वर्गों, समुदायों, धर्मो के लोग मतदान करते हैं। 96.8 करोड़ मतदाताओं में 49 प्रतिशत पुरुष और 47 प्रतिशत महिलाएं हैं। 2019 के लोकसभा चुनाव में 67.40 प्रतिशत लोगों ने मतदान किया था। इस बार यह संख्या बढ़ सकती है। जनता विभाजित है। वह लोकतन्त्र, संविधान और विचारधारा को न जानती है, न समझती है। वह धर्म और जाति की राजनीति में उलझी और फँसी हुई है। अभी इससे निकलने का कोई लक्षण दिखाई नहीं देता। एक दिन पूरे पाँच वर्ष के लिए कितना अहम और निर्णायक होता है, मतदाता कम समझता है। भारतीय लोकतन्त्र और संविधान की रक्षा का दायित्व उस बहुसंख्यक जनता पर है, जो अभी अशिक्षित है। शिक्षित-अशिक्षितों की संख्या भी कम नहीं है। वैश्विक पूंजी ने इस वर्ग को बहुत अंशों में घेर लिया है। भाजपा के पास जितना धन, संसाधन और कार्यकर्ताओं की एक विशाल फौज है, उतना सभी दलों को एक साथ मिला देने पर भी नहीं है। भाजपा अब एक व्यक्ति नरेन्द्र मोदी के अधीन है। मोदी सर्वस्व हैं। भाजपा ने अपना घोषणा-पत्र मात्र 13 दिनों में तैयार किया है। काँग्रेस ने अपने घोषणापत्र को ‘न्याय पत्र’ कहा है और भाजपा का घोषणा-पत्र ‘संकल्प पत्र’ है जिसे ‘मोदी की गारंटी’ भी कहा गया है। भाजपा के संकल्प पत्र में रोजगार, महंगाई, बुलेट ट्रेन, नमामि गंगे आदि का कोई जिक्र नहीं है। मोदी की बातों से किसान, मजदूर, छात्र, युवा, महंगाई, बेरोजगारी सब गायब हैं । भाजपा ने पिछले दो लोकसभा चुनावों- 20214 और 2019 में जो कुछ कहा था, वैसा कुछ इस बार के घोषणा-पत्र या संकल्प-पत्र में नहीं है। अब चुनाव के समय जारी किए जाने वाले घोषणापत्रों का बहुत पहले की तरफ अधिक महत्व नहीं रह गया है। महत्व शिक्षा, स्वास्थ्य, रोजगार, महंगाई और जान-माल की सुरक्षा के साथ नागरिक अधिकारों की रक्षा का है, न कि देश का रुतबा का। प्रधानमंत्री ने भी 2024 के चुनाव को 21वीं सदी के भारत का अहम चुनाव कहा है। यह चुनाव नए भारत का मिशन है। विकसित भारत का, नयी ऊर्जा देनेवाला चुनाव है… अमेरिका से ऑस्ट्रेलिया तक जब भारत का डंका बजता है, तो देशवासियों को लगता है, उसका सम्मान बढ़ा है। दुनिया के देश भारत से मुद्दों पर बात करने आते हैं। प्रधानमंत्री को वास्तविक मुद्दों की चिन्ता से अधिक देश की और अपनी छवि की चिन्ता है। देश की छवि बाहर बन नहीं, बिगड़ रही है। भारतीय लोकतन्त्र को लेकर देश के भीतर और बाहर वे सब लोग चिंतित हैं, जिनकी आस्था लोकतांत्रिक मूल्यों में है। चुनाव में सर्वाधिक महत्वपूर्ण भूमिका चुनाव आयोग की है। चुनाव की घोषणा के पश्चात उसके पास असीमित शक्तियाँ आ जाती हैं। मुख्य चुनाव आयुक्त राजीव कुमार को दिल्ली के पूर्व राज्यपाल, पूर्व विदेश सचिव, जूलियो रिबेरो सहित 87 पूर्व नौकरशाहों ने अपने पत्र में संविधान के अनुच्छेद 324 का इस्तेमाल करने को कहा है, केंद्र सरकार की मशीनरी को अपने नियंत्रण में लेने को कहा है और उनसे यह आग्रह किया है और आशा भी की है कि वे 70 वर्ष के नेतृत्व को बचाएं। चुनाव-घोषणा और आचार-संहिता लागू होने के बाद चुनाव आयोग के पास असीमित अधिकार हैं। अनुच्छेद 324 के अनुसार चुनाव आयोग कोई भी कदम उठाने को स्वतन्त्र है। संविधान ने उसे शक्ति प्रदान की है और सरकार ने मुख्य चुनाव आयुक्त को ‘जेड’ सुरक्षा प्रदान की है। चुनाव आयोग संवैधानिक अधिकारों का पालन नहीं कर रहा है। उसका काम निष्पक्ष चुनाव कराना है। टी एन शेषण और लिंगदोह से चुनाव आयोग कुछ सीखने को तैयार नहीं है। चुनाव आयोग की निष्पक्षता समाप्त हो चुकी है।

क्या भारत अधिनायकवाद-बहुसंख्यकवाद की ओर बढ़ गया है? क्या हम चुनावी तानाशाही (इलेक्टोरल डिक्टेटरशिप) की ओर बढ़ रहे हैं। देश पर खतरा उन लोगों से है, जो बार-बार देश पर खतरे की बात कर रहे हैं। प्रश्न संवैधानिक दायित्वों के निर्वाह का है। संवैधानिक दायित्वों का निर्वाह नहीं करनेवालों के लिए संविधान का कोई महत्व नहीं है? क्या संविधान से ऊपर कोई व्यक्ति- प्रधानमंत्री ही हो सकता है? चुनाव में बार-बार धर्म की बात करना मतदाताओं को धर्मोन्मुख कर मत प्राप्त करना है। प्रधानमंत्री ने अपने भाषण में मतदाताओं से यह कहा है कि वे यह न भूलें कि काँग्रेस ने श्री राम का अपमान किया। वे प्राण-प्रतिष्ठा समारोह में काँग्रेस के अयोध्या न जाने की बात कह रहे हैं। इस पाप करने वालों को कभी नहीं भूलिएगा भाइयों। अर्थ स्पष्ट है कि आप उन्हें वोट न दें। यह प्रत्यक्ष कथन नहीं, कथन का अभिप्राय है: काँग्रेस के घोषणापत्र को प्रधानमंत्री ने मुस्लिम लीग से जोड़ दिया है। वे स्वरोजगार की इकोटूरिज्म के नये इको सिस्टम की बात करते हैं, विकसित भारत और 2047 के भारत की बात करते हैं, जो स्वाधीनता का शताब्दी वर्ष होगा। चुनावी भाषणों में जन समस्याओं से बेखबर होकर इस सबकी बात करने का कोई औचित्य है? भाजपा की वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण इलेक्टोरल बॉन्ड के समर्थन में बोल रही हैं और उनके पति प्रमुख अर्थशास्त्री परकला प्रभाकर इसे दुनिया का सबसे बड़ा घोटाला कह रहे हैं। करण थापर से बातचीत में परकला प्रभाकर ने कहा है कि मोदी तानाशाह हैं और उनकी वापसी देश के लिए विपदा होगी। अंबेडकर ने स्वाधीन भारत के आरंभिक वर्ष में ही यह कहा था कि हिन्दू राज बनने से देश के समक्ष गंभीर खतरा उत्पन्न होगा, यह खतरा स्वतन्त्रता, समानता और भाईचारा के लिए होगा। अंबेडकर ने हिन्दू राष्ट्र को लोकतन्त्र के लिए अनुपयुक्त मानकर इसे हर कीमत पर रोकने की बात कही थी। इस चुनाव में हर कीमत पर लोकतन्त्र को जीवित रखने वाले कितने राजनीतिक दल हैं? राहुल गांधी ने बार-बार अपने भाषणों में लोकतन्त्र, संविधान, बेरोजगारी और महंगाई की बात कही है, युवाओं को ठगे जाने की बात कही है, पर उनकी यह बात कितने लोगों के दिलों में उतर कर कार्य रूप में परिणत होगी, कोई नहीं कह सकता।

2024 के बाद का भारत विकसित होगा या विभाजित? यह लोकतांत्रिक होगा या अलोकतांत्रिक? यह लोकशाही की ओर बढ़ेगा या तानाशाही की ओर? यह गूंगा और कायर-बुजदिल भारत होगा या मुखर, साहसी और निर्भीक भारत? यह चुनाव लोकतन्त्र और संविधान को बचाएगा या नष्ट करेगा? 2024 का चुनाव इंडिया और भाजपा के बीच न होकर भारतीय जनता और भारतीय जनता पार्टी के बीच होगा? भारतीय जनता में सब शामिल हैं- हिन्दू, मुसलमान, सिख, ईसाई, बौद्ध, जैन, सब। भारतीय जनता केवल हिन्दू नहीं है और जो हिन्दू हैं वे सब भाजपा के समर्थक नहीं हैं। एक बड़े अर्थ में इस चुनाव में विचारधारा महत्वपूर्ण होगी। यह सारा फैसला मतदाता करेंगे जो अभी कई धड़ों में विभक्त हैं। इस लोकसभा चुनाव में हिन्दी प्रदेश की भूमिका प्रमुख होगी। दिल्ली सहित दस हिन्दी भाषी राज्यों में लोकसभा की कुल 225 सीटें है, जिसमें बिहार की 40 में भाजपा को 17, छत्तीसगढ़ की 11 में 9, हरियाणा की 10 में 10, हिमाचल प्रदेश की 4 में 4, झारखण्ड की 13 में 11, मध्यप्रदेश की 29 में 28, दिल्ली की 7 में 7, राजस्थान की 25 में 24, उत्तर प्रदेश की 80 में 62 और उत्तराखण्ड की 5 की 5, कुल 177 सीट प्राप्त हुई थी। क्या इस लोकसभा चुनाव में भाजपा की सीट घटकर 100 तक आ सकती है? अखिलेश यादव और तेजस्वी यादव का प्रभाव-क्षेत्र उत्तरप्रदेश और बिहार ही है। अभी तक चुनाव की लहर न तो किसी के पक्ष में है, न विरोध में। हिन्दी भाषी राज्य के अतिरिक्त 48 सीट का महाराष्ट्र, 42 सीट का पश्चिम बंगाल, 25 सीट का आंध्रप्रदेश, 26 सीट का गुजरात, 39 सीट का तमिलनाडु विशेष महत्वपूर्ण है। दक्षिण के राज्यों में भाजपा का प्रभाव नहीं है। एक-एक संसदीय सीट को लेकर राजनीतिक दल गंभीर है। ऐसी संसदीय सीट कम है, जहां भाजपा और इंडिया के बीच सीधा मुकाबला हो। भारत में 10 लाख से अधिक पोलिंग बूथ है। सभी बूथ महत्वपूर्ण होंगे। भारतीय जनता पार्टी और भारतीय जनता के बीच का चुनाव है यह। फैसला जनता ही करेंगे कि वह क्या चाहती है?

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रविभूषण

लेखक जन संस्कृति मंच के राष्ट्रीय कार्यकारी अध्यक्ष हैं। सम्पर्क +919431103960, ravibhushan1408@gmail.com
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