
प्रेम का जहर
साल 2025 का आगाज दो बेहद ही ऐतिहासिक फैसले के साथ प्रारम्भ हुआ, जिसमें एक फैसला कोलकात्ता का था और दूसरा केरल से सम्बन्धित। जब कोलकात्ता के ‘आरजी कर’ अस्पताल में पूरे देश को झकझोर देने वाली बलात्कार और निर्मम हत्या की घटना पर सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुनाया उसी दौरान एक और बहुत ही महत्वपूर्ण फैसला आया, जिसमें एक प्रेमिका को अपने प्रेमी की हत्या करने के जुल्म में फांसी की सजा सुनाई गयी। यह सजा ग्रीष्मा और शेरोन की प्रेम कहानी में हुई थी, जिसने पूरे देश में प्रेम सम्बन्ध और लिव इन रिलेशन को फिर से चर्चा के दायरे में ला दिया। यों तो इस कहानी को प्रेम कहानी कहना अतिश्योक्ति होगी, लेकिन ये कहानी प्रेम के नाम पर ही शुरू हुई थी, इसलिए इसे प्रेम कहानी का नाम दे रही हूँ। वैसे तो अधिकांश किस्सों में प्रेमी ही प्रेमिका के साथ हिंसा करते रहे हैं, लेकिन केरल की इस कहानी में सम्भवतः पहली बार प्रेमिका ने अपने तथाकथित प्रेमी को पहले पैरासिटामोल का ओवरडोज़ देकर मरने की कोशिश की, जिसमें असफल होने पर एक धीमा जहर देकर मार डाला। वहीं, एक दूसरी घटना तेलंगाना से भी सामने आयी, जिसमें पति ने ही अपनी पत्नी के टुकड़े-टुकड़े करके प्रेशर कुकर में उबालकर झील में फेंक दिया। प्रेम के नाम पर शुरू इन रिश्तों का अंजाम ऐसा भी हो सकता है, किसी ने सोचा भी नहीं होगा।
ख़बरों के मुताबिक शेरोन और ग्रीष्मा की मुलाकात पढाई के दौरान हुई थी। दोनों धीरे-धीरे दोस्त बन गए और साथ रहने लगे। इसी बीच इस रिश्ते से अनजान ग्रीष्मा के घर वालों ने उस पर कहीं और शादी करने का दबाव बनाना शुरू किया। इस दौरान ग्रीष्मा का परिवार एक ज्योतिष के संपर्क में आया जिसने बताया कि ग्रीष्मा की दो शादियां होगी। उसके पहले पति की मृत्यु हो जाएगी और दूसरे पति के साथ वह सुखी जीवन जीयेगी। इसी चक्कर में ग्रीष्मा ने अपने प्रेमी को यह सोचकर मार डाला कि इसके मरने के बाद वह जल्दी से एक सुखद जीवन प्रारम्भ कर सकेगी। लेकिन सच कहाँ छिप पाता है और एक दिन ग्रीष्मा का सच भी सबके सामने आ ही गया। न्याय प्रणाली ने भी इस केस में जो सख्ती दिखाई वो काबिले तारीफ है। सम्भवतः यह भी पहली बार हुआ कि इतनी तीव्र गति से ग्रीष्मा जैसी अपराधी को फांसी की सजा सुनाई गयी।
हम अक्सर ऐसा कहते हैं कि शिक्षा की कमी के कारण अपराध पनपता है। किंतु, ये दोनों ही घटनायें दक्षिण भारत की है जहाँ शिक्षा दर अन्य राज्यों की तुलना में अधिक है, जिसमें केरल सर्वाधिक शिक्षित राज्य है। हर साल प्रेम के नाम पर ऐसी कई घटनायें होती ही है, जो प्रेम को शर्मशार कर देती है। देश के अन्य हिस्सों में भी इस तरह की घटनायें निरंतर घट रही है और ये हिंसक रूप प्रेम में पनप ही नहीं सकता। छोटे-छोटे शक और अपेक्षाओं की वजह से मौत के घाट उतारे जाने की ख़बरें आती है, जो प्रेम सम्बन्ध में नहीं बल्कि स्वार्थ सम्बन्ध में होते हैं।
प्रेम के ऐसे-ऐसे हिंसात्मक रूप उस काल खण्ड में आ रहे हैं, जब प्रेम को जबरदस्त तरीके से प्रदर्शित किया जा रहा है। फ़रवरी के प्रारम्भ होते ही पूरी मीडिया भी प्रेममय दिखने लगती है। सभी टीवी धारावाहिक प्रेममय हो जाता है। प्रेम के नाम पर पूरा बाजार खुलेआम सजकर तैयार होने लगता है। इसके नाम पर हो रही कमाई से पूरा बाजार गर्म हो जाता है। हर तरफ प्रेमियों के लिए लुभावने ऑफर के बौछार होने लगते हैं। प्रेम के नाम पर कई दुकानें भी खुलने लगी है, जिसमें सस्ते रिश्ते बनाने का जरिया बेचने वाली दुकानें भी शामिल हो गयी हैं। ये सस्ते रिश्ते बेचने वाली दुकानें न केवल रिश्तों के नाम पर अपने स्वार्थ साधने का जरिया दे रही है बल्कि ये प्रेम को कलंकित करने का साधन भी परोस रही है। पश्चिमीकरण का ऐसा प्रभाव हुआ कि तोहफे की कीमत से रिश्तों की गहराई तय की जाने लगी है। प्रेम का प्रदर्शन न करने वालों पर सवाल उठने लगे हैं। जेब में पैसे न हो तो रिश्ते भी दम तोड़ने लगे हैं।
हमारे देश में पश्चिमी प्रभाव का प्रेमोत्सव पिछले कुछ वर्षों में चरमोत्कर्ष पर पहुंच गया है। भारत में भी प्रतिवर्ष 7-14 फरवरी तक प्रेम सप्ताह मनाया जाने लगा है। इसके जरिये एक सुनियोजित प्रेम का प्रारम्भ होता है। जबकि प्रेम कभी भी सुनियोजित नहीं हो सकता है। प्रेम को तो एक एहसास कहा जाता है जो रूह से जुड़ा होता है, जो चाह करके भी सुनियोजित नहीं हो सकता है। यह तो बिना सोचे-समझे बस जिससे होना होता है, हो जाता है। यदि इसे सुनियोजित करके किया जाता है तो वह प्यार नहीं बल्कि व्यापर होता है। प्यार में इतनी जल्दबाजी और उतावलापन भी नहीं होता है कि 7 दिनों में 7 कदम आगे बढ़ जाये। भारतीय परम्परा में तो प्रेम को बहुत ही खुबसूरत, शालिन, पवित्र और उच्च दर्जा दिया गया है। यहाँ तक की प्रेम को अमरत्व की प्राप्ति हुई है। सच्चे प्रेम को यहाँ पूजा गया है। लेकिन जिस प्रेम सप्ताह को युवा वर्ग के साथ-साथ शादीशुदा जोड़ियां बड़े उत्साह से मानते हैं इसमें अश्लीलता और हिंसा दोनों समाहित है जो प्रेम के रूप पर कहीं भी खड़ा नहीं उतरता। हमारे देश का प्रेम तो त्याग की भावना से जुड़ा रहा है, जहाँ लेने की नहीं बल्कि देने की रीत रही है।
इस देश में तो प्रेमी-प्रेमिका एक-दूसरे को बिना देखे भी सदियों तक प्रेम करते रहे हैं। चाँद को देखकर प्रेमी अपने प्रेयसी को महसूस करते रहे हैं और उसी में अपनी प्रेमिका की छवि तलाश लेते थे। उनकी यादों को अपनी जिंदगी बनाकर बिना किसी गिले-शिकवे और बिना किसी ख्वाइश के जी लेते थे। किंतु, आज का तथाकथित प्रेम एक लाल गुलाब जो प्रेम का प्रतीक कहा जाता है के माध्यम से शुरू होता है और कीक डे और स्लैप डे के साथ ख़त्म हो जाता है। इस उत्सव में चुंबन, आलिंगन के लिए भी एक दिन सुनिश्चित कर दिया गया है जबकि ये सब स्वाभाविक प्रक्रिया है जिसे पहले से तय नहीं किया जा सकते हैं। यह उत्सव प्रेम को हिंसा के रूप में समाप्त करने की सीख पहले ही दे देता है, जो हमारे देश की परम्परा का हिस्सा हो ही नहीं सकता।
सबसे अचंभे की बात यह है कि 15-21 फरवरी तक एंटी वैलेंटाइन सप्ताह भी मनाया जाता है, जिसमें प्रेम में पड़ने वाले युगल यदि नाखुश हो तो सप्ताह भर में ही अपने रिश्ते से आजाद होकर ब्रेकअप का उत्सव मनाता है। क्या भारतीय परम्परा में ऐसी रीत स्वीकार्य हो सकती है? क्या प्रेम का यही रूप है? आज के युवाओं के बीच प्रेम का जो रूप दिख रहा है, मुझे नहीं लगता वह कहीं से भी प्रेम कहलाने लायक है। आज बॉय फ्रेंड-गर्ल फ्रेंड का होना एक स्टेटस सिम्बल बन गया है। अपने तथाकथित प्रेम का सोशल मीडिया के माध्यम से फूहड़ प्रदर्शन भी इसी स्टेटस का आम चलन हो गया है। ऐसे युगल, प्रेम में सिर्फ पाने की सनक रखते हैं। इनमें त्याग या फिर सामने वाले की ख़ुशी से ज्यादा अपनी ख़ुशी प्यारी होती है और जब ये ख़ुशी पूरी नहीं होती है तो उनका हिंसात्मक रूप सामने आने लगता है और फिर श्रद्धा और शेरोन जैसे लोग मौत के घाट उतर दिए जाते हैं। प्रेम में कभी कुछ पाने की भावना नहीं होती है। इसमें फूहड़ता, वासना और अश्लीलता का समावेश नहीं होता बल्कि ये तो एक पवित्र रिश्ते को जन्म देता है जो जीवन को उजाले से भर देता है। जबकि आज का तथाकथित प्रेम लोगों के जीवन को अँधेरे से भर रहा है। इसकी वजह से या तो प्रेमी-प्रेमिका आत्महत्या कर ले रहे हैं या फिर अपने पार्टनर की हत्या कर दे रहे हैं। प्रेम के बिना कोई रिश्ता सफल नहीं हो सकता और जहाँ प्रेम होता हैं उस रिश्ते की हैप्पी एंडिंग होती है न कि हिंसात्मक अथवा दुखद। इसलिए प्रेम में निहित मूल्यों को समझना बेहद जरूरी है।
आज हम जिस प्रेम को देख रहे हैं, वह कहीं-न-कहीं एक विकृत प्रेम का ही रूप है, जिस पर लगाम लगाना बेहद जरूरी है। उत्तराखण्ड पहला राज्य है जिसने देश में यूसीसी लागू किया है और इसमें लिव इन रिलेशन में रहने वाले लोगों के लिए भी सख्त कदम उठाये गए हैं। ऐसे तो कहा जाता है कि प्रेम पर पहरा नहीं लगाया जा सकता है, लेकिन इसकी आड़ में बढ़ रही सामाजिक विकृति को जरूर रोका जा सकता है। सरकार, माता-पिता और समाज के संयुक्त प्रयास से ही ऐसी घटनाओं पर शिकंजा कसा जा सकता है। जिस दिखावे और आकर्षण को युवा वर्ग प्रेम समझते हैं, उन्हें यह बताना होगा कि प्रेम का रूप इससे बहुत अलग है। प्रेम, वासना और स्वार्थ से परे होता है। विदेशों के तर्ज पर भारत में भी सरकार को सेक्स एजुकेशन पर जोर देना चाहिए। हमारे देश में माता-पिता अपने बच्चों से सेक्स और प्रेम पर बात करना मर्यादा को तोड़ना समझते हैं, ऐसे लोगों को भी अपनी सोच बदलने की जरूरत है। अगर समय रहते सही कदम नहीं उठाये गये, तो यह तथाकथित प्रेम हमारी भावी पीढ़ी के लिए एक जहर बनकर उन्हें नष्ट करने में देर नहीं करेगा। साथ ही राधा-कृष्ण, लैला-मजनू, सोहिनी-महिवाल, हीर-राँझा जैसे अमर प्रेम को भी आज की भयावह प्रेम की वजह से लोग भूला देंगे। प्रेम का नाम लेते ही लोगों की नजरों में सिर्फ एक खौफनाक मंजर ही दौड़ेगा।