गुजरातचतुर्दिकचर्चा में

गुजराती लेखकों के विरोधी स्वरों की गूँज

 

गुजरात साहित्य अकादमी एक सरकारी संस्था है और गुजराती साहित्य परिषद गुजराती साहित्य के विकास और उन्नति के लिए सही अर्थों में साहित्य परिषद है, जिसकी स्थापना रणजीत राय मेहता (25.10.1881 – 04.06.1917) ने गुजराती समाज के सभी वर्गों के लिए साहित्य सृजन और जन जन में साहित्य भावना उत्पन्न करने के लिए 1905 में की थी। अहमदाबाद के आश्रम मार्ग पर यह परिषद स्थित है। 1936 में महात्मा गांधी इस साहित्य परिषद के अध्यक्ष थे। कन्हैया लाल मुंशी 1955 में इसके अध्यक्ष बने थे।

गुजराती साहित्य परिषद के पहले अध्यक्ष गोवर्धन राम माधवराव त्रिपाठी थे। परिषद का भवन ‘गोवर्धन भवन’ है। परिषद की अध्यक्ष नाम सूची से यह ज्ञात होगा कि यहां कितने बड़े और महत्वपूर्ण लेखक रहे हैं। बकुल त्रिपाठी, नारायण देसाई, भोला भाई पटेल, धीरू पारीक जैसे लेखक परिषद के अध्यक्ष थे। वर्तमान में 80 वर्षीय प्रकाश एन शाह परिषद के अध्यक्ष हैं। लेखक, पत्रकार, सम्पादक प्रकाश एन शाह के पहले प्रसिद्ध गुजराती कवि सीतांशु यशश्चन्द्र परिषद के अध्यक्ष थे। प्रकाश एन शाह का चयन 562 वोटों से हुआ था और दूसरे स्थान पर हर्षद त्रिवेदी थे, जिन्हें 533 वोट प्राप्त हुए थे।

‘निरीक्षक’ गुजराती साहित्य परिषद का पाक्षिक पत्र है। इसके सम्पादकीय में अभी प्रकाश एन शाह ने प्रसिद्ध डेनिस लेखक एच सी एण्डरसन (02.04.1805 – 04.08.1875) की प्रसिद्ध कहानी ‘ द एम्परर्स न्यू क्लास’ की समानता ‘नंगा राजा’ से की है। पारुल खक्कर ने ‘शव वाहिनी गंगा’ कविता में ‘मेरा साहब नंगा’ लिखा है। एण्डरसन की कहानी 7 अप्रैल 1837 को ‘द लिटिल मरमेड’ शीर्षक से प्रकाशित हुई थी, जो दूसरे शीर्षक से इनके पहले संग्रह ‘फेयरी टेल्स टोल्ड फॉर चिल्ड्रन’ में है। इस कहानी का 100 से अधिक भाषाओं में अनुवाद हो चुका है।

‘निरीक्षक’ पत्रिका के 16 जून 2021 के अंक में पारुल खक्कर की एक नयी कविता ‘तारे बोलावन नहीं’ (आपको बोलना नहीं चाहिए) प्रकाशित है। यह कविता इनकी पूर्व कविता  ‘शव वाहिनी गंगा’ के विरोधी स्वरों के कारण लिखी गयी है। इस कविता का विरोध गुजरात साहित्य अकादमी के अध्यक्ष और वहां से प्रकाशित पत्रिका ‘शब्द सृष्टि’ के सम्पादक विष्णु पण्ड्या ने किया था। पण्ड्या ने अपने सम्पादकीय में कविता और कवयित्री का नामोल्लेख न कर ‘एक गुजराती कविता’ की बात कही थी और यह लिखा था कि कविता खराब है, यद्यपि कवि अच्छा है।

गुजराती साहित्य परिषद की पत्रिका ‘निरीक्षक’ के ताजे अंक (16 जून) के लेखकों में से लगभग आधे (आठ) गुजरात साहित्य अकादमी के विरोध में है। इस प्रकार गुजरात साहित्य अकादमी और गुजराती साहित्य परिषद एवं दोनों संस्थाओं के अध्यक्ष के विचार एक दूसरे से सर्वथा भिन्न हैं । सलिल त्रिपाठी, रमेश सवानी, मनीषी जानी, योगेश जोशी, रवीना दादरी और अन्य कई लेखक पारुल के समर्थन में आ गये हैं। आरम्भ में गुजराती लेखकों के बीच शांति और चुप्पी सी थी, वह अब पूर्णतः समाप्त हो गयी है।

गुजरात के बाहर इस घटनाक्रम को लाने में अँग्रेजी के दो समाचार पत्रों ‘द टेलीग्राफ’ और ‘इंडियन एक्सप्रेस’ की बड़ी भूमिका रही है। 19 जून (शनिवार) के टेलीग्राफ के पहले पृष्ठ की ‘लीड स्टोरी’ मेहुल देवकला की है – ‘हाउ टू आर्डर गंगा स्नान ऑफ पोएट्री’। इंडियन एक्सप्रेस के अनुसार (18 जून, ऋतु शर्मा, लिटरेचियर्श डिमाण्ड विथ्ड्रावल ऑफ गुजरात साहित्य अकादेमी एडिटोरियल )  गुजरात के 169 सुप्रसिद्ध साहित्यिक हस्तियों ने सम्पादक और सरकार से सम्पादकीय वापस लेने की मांग की है।


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बड़ी बात यह है कि इसमें केवल कवि, लेखक और साहित्यकार ही नहीं है। 84 वर्षीय अंतरराष्ट्रीय ख्याति के चित्रकार, लेखक, कला-समालोचक पदम भूषण से सम्मानित गुलाम मोहम्मद शेख, 68 वर्षीय सुप्रसिद्ध नृत्यांगना मल्लिका साराभाई (अंतरिक्ष वैज्ञानिक विक्रम साराभाई की पुत्री, पदम भूषण से सम्मानित), 82 वर्षीय सुप्रसिद्ध समाजशास्त्री घनश्याम शाह, जो यूनिवर्सिटी ऑफ शिकागो में विजिटिंग प्रोफेसर रहे हैं, प्रसिद्ध अर्थशास्त्री इन्दिरा हीखे (सेन्टर फॉर डेवलपमेंट अल्टरनेटिव्स, अहमदाबाद में अर्थशास्त्र की प्रोफेसर और निदेशक) और अन्तर्राष्ट्रीय गोल्डन फॉक्स अवार्ड 2020 से सम्मानित एवं ‘कौन से बाबू’ फिल्म के निर्देशक मेहुल देवकला भी हैं। इन सभी 169 व्यक्तियों के नाम और काम से हिन्दी संसार बहुत कम परिचित है।

एक्टिविस्ट निर्झरी सिन्हा (प्रावदा मीडिया फाउण्डेशन की डायरेक्टर) भी हस्ताक्षर कर्ताओं में हैं , जिनके पति मुकुल सिन्हा ने ‘जन संघर्ष मंच’ का (स्वतंत्र नागरिक अधिकार संगठन) गठन किया था। भरत मेहता, अदिति देसाई, अनिल जोशी, इला जोशी, इलियास शेख, मीनाक्षी जोशी, प्रकाश एन शाह, सुधीर चंद्र, विजय मेहता आदि का नाम-यश बड़ा है। पारुल खक्कर की कविता के समर्थन में इतिहासकार, समाजशास्त्री, अर्थशास्त्री, फिल्मकार, चित्रकार, सक्रियतावादी सब एक साथ हैं और सब ने मिलकर उस सम्पादकीय पर एक साथ प्रबल स्वरों में विरोध प्रकट किया है, जिसमें कविता और अभिव्यक्ति की स्वतन्त्रता पर हमला किया गया था।


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गुजरात के लेखकों, बौद्धिकों, विविध क्षेत्रों में कार्यरत, विविध अनुशासनों के प्रमुख प्रतिष्ठित व्यक्तियों के एक बड़े समूह ने विष्णु पण्ड्या के सम्पादकीय के विरोध में एक वक्तव्य जारी किया है। इस वक्तव्य में सम्पादकीय की भर्त्सना है और ‘शब्द सृष्टि’ पत्रिका के पृष्ठ 89 पर लिखे इस कथन का विरोध है कि ‘यह कविता नहीं है, यह अराजकता के लिए एक कविता का दुरुपयोग है’। वक्तव्य में अपने सम्पादकीय में लेखक के नाम के ना होने को अनैतिक, आपराधिक और खतरनाक सरकारी प्रक्रिया के अनुसार कहा गया है। वक्तव्य में यह कहा गया है कि आलोचना, संवाद और विरोध एक शक्तिशाली लोकतन्त्र की शक्ति है। सम्पादकीय को ‘हथौड़े से कलम पर प्रहार’ कहा गया है।

गुजरात के लेखकों, बुद्धिजीवियों के अनुसार यह एक खतरनाक और फासिस्ट प्रवृत्ति है। सम्पादकीय को परोक्ष रूप से गुजरात के लेखकों को दी गयी धमकी के रूप में देखा गया है। लेखक को कोई भी सम्पादक एक सत्तावादी अधिकारी स्वर में यह नहीं कह सकता कि उसे क्या लिखना चाहिए और क्या नहीं लिखना चाहिए। गुजराती लेखकों ने हाल में सुप्रीम कोर्ट द्वारा दिए गये आदेश-निर्देश या मत का उल्लेख किया है कि सरकार की आलोचना राष्ट्रद्रोह नहीं है। लेखकों ने गुजरात साहित्य अकादमी के अध्यक्ष विष्णु पण्ड्या और गुजरात सरकार दोनों से सम्पादकीय को गुजराती भाषा और गुजरात पर एक दाग/धब्बा कहकर इसे वापस लेने की मांग की है।

 केवल देश में ही नहीं, विदेश में भी पारुल खक्कर की कविता चर्चा में रही है। ‘द गार्जियन’ में इस पर लिखा गया और पिछले महीने जर्मनी के एक प्रमुख पत्र में नृतत्वविद शालिनी रंडेरिया और बल्गेरियाई जर्मन लेखक इलिजा द्रोजानो द्वारा ‘शव वाहिनी गंगा’ का अनुवाद प्रकाशित हुआ और कविता की व्याख्या भी की गयी। यह समय एकजुट होने का है और गुजरात के लेखक, बौद्धिक एकजुट हैं। उनके विरोधी स्वर हमें सुनने चाहिए और उन स्वरों में अपने स्वर भी मिलाने चाहिए।

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रविभूषण

लेखक जन संस्कृति मंच के राष्ट्रीय कार्यकारी अध्यक्ष हैं। सम्पर्क +919431103960, ravibhushan1408@gmail.com
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