कोरोना के ज़ख्म और विद्यार्थियों की आपबीती
बीते कुछ महीनों से समूचे विश्व में चल रही कोरोना महामारी की मार समाज के हर तबके को प्रभावित कर रही है। जिसके चलते काफी लोग अपनी जान गँवा चुके हैं और बड़ी मात्रा में अभी भी लोग इस बीमारी से जूझ रहे हैं। इस आपदा में केन्द्र और राज्य सरकारें मिल कर बड़े पैमाने पर राहत कार्य कर रही हैं फिर भी वे वर्तमान विकट परिस्थिति में बहुत कम है।
14 अप्रैल अम्बेडकर जयन्ती की सुबह 10 बजे राष्ट्र के नाम अपने सम्बोधन में प्रधानमन्त्री ने देश में पिछले 21 दिनों से चल रहे देशव्यापी लॉक डाउन को अगले 19 दिनों के लिए यानी 15 अप्रैल से 3 मई तक बढ़ाने की घोषणा की है।
उन्होंने सम्बोधन की शुरुआत में कहा, “मैं सभी देशवासियों की तरफ़ से बाबा साहेब को नमन करता हूँ। भारत उत्सवों का देश है। हमेशा उत्सवों से हरा भरा है। ये अलग-अलग त्यौहारों का समय है।अनेक राज्यों में नए वर्ष की शुरुआत हुई। जितनी सादगी से लोग घरों में रहकर त्योहार मना रहे हैं ये प्रशंसनीय है। साथियों आज पूरे विश्व में कोरोना वायरस की महामारी की जो स्थिति है, उसमें भारत ने कैसे संक्रमण को रोकने का प्रयास किया है उसके आप सहभागी रहे हैं और साक्षी भी।”
लॉक डाउन और असली चेहरे
पिछली बार के 21 दिनों के बिना किसी तैयारी के लगाए गये लॉक डाउन की वजह से अधिक मात्रा में प्रवासी मजदूर और विद्यार्थी मूलभूत जरूरतों के लिए जूझते नज़र आ रहे हैं। अचानक मची उथल-पुथल के कारण भारी मात्रा में लोगों ने पैदल ही अपने घरों की ओर पलायन करना शुरू कर दिया। इससे पहले भी जब प्लेग नाम की महामारी फैली थी तो लोगों ने बड़ी मात्रा में पलायन किया था और सरकार के बहुत समझाने के बाद भी वह लोग आधे से ज्यादा सूरत शहर खाली कर चले गये थे। सरकार ने आश्वासन दिया, राशन दिया। लेकिन प्रशासन एक बार फिर से खुद को साबित करने में नाकाम दिखाई दे रहा है।
अब बारी शिक्षा की तरफ भी ध्यान देने की है। दिल्ली के मुख्यमन्त्री ने फरवरी महीने से ही दिल्ली के सभी स्कूलों को 31 मार्च तक बन्द कर दिया था। उसके बाद सभी सामूहिक एकत्रित होने वाली जगहें, जैसे सिनेमाघर, धार्मिक स्थल इत्यादि को बन्द कर दिया गया।
सरकार ने हालातों को देखते हुए नर्सरी से आठवीं तक के बच्चों को अगली कक्षा में प्रवेश दे दिया है। इससे कम उम्र के बच्चों को एक प्रकार से राहत मिली है। सवाल यह है कि जिन बच्चों को इस साल कहीं प्रवेश परीक्षा देकर प्रवेश लेना था, उन बच्चों का क्या? उनकी चिन्ता है कि कहीं साल ख़राब तो नहीं हो जाएगा? उनका अकादमिक स्तर प्रभावित तो नहीं हो जाएगा? क्या किसी तरह इन्हें फिर से उसी पटरी पर लाया जा सकेगा?
कोरोना और दिल्ली सरकार की गतिविधियाँ
दिल्ली में अच्छी शिक्षा के वादों को लाने वाली सरकार ने 30 मार्च को अपने आधिकारिक ट्विटर से वीडियो सन्देश द्वारा ट्वीट कर बताया था कि सरकार ने दिल्ली के सभी स्कूलों के शिक्षकों से कहा है कि जिन बच्चों ने 12वीं में इस वर्ष प्रवेश लिया है उनकी ऑनलाइन क्लास लें। जिनके लिए सरकार उन बच्चों को मैसेज के जरिए एक लिंक भी देगी और लिंक पर रजिस्टर करने वाले बच्चों को इन्टरनेट पैक डलवाने के पैसे भी भेजेगी। जरूरत पड़ने पर टीवी के जरिये भी क्लास ली जाएगी। साथ ही जो बच्चे पेपर नहीं दे पाये थे, अब उनसे कहा गया है कि जिन विषयों की जरूरत उच्च संस्थानों में प्रवेश के लिए जरूरी है केवल वही विषय ऑनलाइन से पढ़ाए जाएँगे। बाँकी छात्रों के लिए यह कैसी नाइंसाफी है यह समझने की बात है।
भारत में महामारी के बढ़ते दुष्प्रभावों को देखते हुए दिल्ली के सभी विश्वविद्यालयों को 13 मार्च से बन्द करने का आदेश दिया गया था। विश्वविद्यालय या महाविद्यालय के प्रशासन ने तो कह दिया कि छात्रावास खाली कर दिया जाए लेकिन प्रधानमन्त्री ने कह दिया कि जो जहाँ है वहीँ रहे। आज भी अपने सम्बोधन में प्रधानमन्त्री ने यही कहा कि जो जहाँ है, वहीं रहे। ऐसे में काफी बच्चे चाहकर भी अपने घरों को नहीं जा पाये।
कोरोना काल का सकारात्मक पहलू-डिजिटल होता भारत
ऑनलाईन कक्षाएँ हो तो रही हैं लेकिन बहुत कम हो रही हैं। नेटवर्क और नयी तकनीक के मोबाईल या लैपटॉप सभी विद्यार्थियों के पास नहीं हैं। ऐसे में बहुत बच्चे आनलाईन कक्षा चाहकर भी कक्षा का लाभ नहीं ले पा रहे हैं।
भारतीय जनसंचार संस्थान में दिल्ली में हिन्दी पत्रकारिता के छात्र ‘आकाश पाण्डेय ने बताया कि कोर्स अपने आखिरी चरण में था जब ये सब हुआ। छात्रों के रूटीन को जारी रखने के लिए संस्थान ऑनलाइन कक्षाएँ या वर्कशॉप इत्यादि करवा रहा है। उन्हें असाइनमेंट या तरह-तरह की गतिविधियों में समय देना होता है। आकाश का कहना है कि मैं गाँव में रहता हूँ। मेरे घर के पास नेटवर्क की बहुत दिक्कत है। क्लास लेने मुझे घर से दूर खेतों में जाना पड़ता है। सरकार का आदेश है कि बाहर नहीं जाना है। तो यह सब कैसे सम्भव होगा’।
वहीं दिल्ली प्रौद्योगिकी संस्थान में पढ़ने वाले तनवीर बताते हैं कि ‘उनकी भी ऑनलाइन कक्षाएँ लग रही हैं लेकिन उन्हें हिदायत है कि वह अपना माइक कक्षा के दौरान बन्द रखेंगे। उसे अन्त मे ही खोलेंगे। खुली कक्षा में छात्रों को जब मन हो तब अपनी जिज्ञासा शान्त करने की आज़ादी होती है और यहाँ चुप रहने को कहा जा रहा है। ऐसे में बच्चों को एक तरफ़ा ज्ञान देकर खानापूर्ति की जा रही है’।
आज भी सरकार के सहयोग स्कीम में अपने घरों से बाहर रह रहे विद्यार्थी कहीं नहीं हैं। जबकि व्यवस्था को हर तबके के बारे में सोचना चाहिये। कोरोना बजट से खाना तो परिवारों को खिलाया जा रहा है, सभी को राशन मिल रहा है, गरीबों को पैसे भी मिल रहे, लेकिन जो बच्चे दूर- दराज से आये हैं और कुछ कारणों से घर नहीं जा पाये। उन्हें अपनी बारी का अभी भी इन्तजार है।
समय का ये पल थम सा गया
बन्दी के पहले बच्चे गाँव या फिर अपने परिवार के पास नहीं जा सके। क्योंकि उनकी परीक्षा नजदीक थी। किसी को प्रतियोगिता परीक्षा की तैयारी करनी थी तो कोई ऑनलाइन कोर्स कर रहा था। कुछ बच्चे कोचिंग में फीस भर चुके थे तो कोई नौकरी कर के गुज़र बसर कर रहा था। इसमें सबसे ज्यादा परेशान वह बच्चे हैं जो सुदूर गाँव से यहाँ पढ़ने आये हैं। क्योंकि पूर्ण बन्दी के कारण उन्हें घर से पैसा नहीं मिल पा रहा है। इसलिए कि गाँव में उनके परिवार के लोग बैंक नहीं जा पा रहे और यहाँ उनके पास राशन नहीं है। इस पर सरकार चुप्पी साध कर बैठी है।
जामिया मिल्लिया इस्लामिया की छात्रा ‘पूजा का कहना है कि मैं बिहार के दरभंगा से आई हूँ और 2 साल से दिल्ली के लक्ष्मी नगर में एक पीजी में रहती हूँ। मेरा महीने का किराया 7 हज़ार रुपये है। हमारे पीजी में 18 मार्च से ही ताला लगा दिया गया था और कहा गया कि आप बाहर नहीं जा सकते। मेरा कॉलेज बन्द हो गया। मैंने सोचा यूपीएससी की कोचिंग जारी रहेगी। इसलिए मैं दिल्ली में ही रुक गयी। लेकिन यहाँ बहुत गन्दा व्यहवार किया जा रहा है।
पहले प्रतिदिन झाड़ू पोछा के लिए आंटी आती थी लेकिन अब खुद करना पड़ता है। पहले हमें तीन टाइम खाना दिया जाता था लेकिन अब बस दो टाइम दिया जाता है, वह भी रोज़ केवल चना और आलू। दूध पर भी पाबन्दी है। कहते हैं कि खुद लाओ। बच्चों की इम्मयून सिस्टम से खिलवाड़ किया जा रहा है। मेरा महीना 6 को होता है लेकिन मालकिन 30 से ही फ़ोन करके किराया माँग रही है। गाँव में पूर्णबन्दी है। पिताजी बैंक तक कैसे जाएँ और मैं किराया कैसे दूँ। हमें डर है कि किराया न देने पर हम बेघर न हो जाएँ।
कोरोना और अमीरों की बस्ती
कुछ बच्चे जो गाँव चले गये हैं, उनके पास मालिक किराये के लिए फोन कर रहे हैं। समस्या सिर्फ यह नहीं है कि सरकार के बार-बार गुज़ारिश करने के बाद भी मकान मालिक पैसे की माँग कर रहे हैं। बड़ी समस्या यह है कि कुछ पीजी वाले किराये के साथ खाने के पैसे की भी माँग कर रहे हैं जबकि बच्चा यहाँ है ही नहीं। ऐसे में जरुरत है कि सरकार इनकी शिकायतों के लिए कोई सहयोग केन्द्र बनाए जहाँ विद्यार्थी इस तरह की नाइंसाफियों के खिलाफ आवाज़ उठा सकें।
जे एन यू और अन्य प्रवेश परीक्षाओं की तैयारी करने वाले शारिक का कहना है कि ‘वह तैयारी के लिए पुस्तकें नहीं खरीद पा रहे हैं और घर पर सभी तरह की तैयारी हो नहीं पा रही है।’
सबसे ज्यादा समस्या उन बच्चों को है जो घरों में ट्यूशन पढ़ाकर अपनी पढ़ाई कर रहे थे। दिल्ली विश्वविद्यालय की सीमा का भी यही कहना है कि ‘मैं बच्चों को ट्यूशन पढ़ाती थी। इसलिए घर नहीं गयी। लेकिन अब यहाँ न अपना कुछ हो रहा है न मैं किसी और का भला कर पा रही हूँ। मेरे पापा को सैलरी नहीं मिली है। उन्हें घर से काम करने को कहा गया था। वह काम तो कर रहे हैं लेकिन अभी तक उन्हें पैसे नहीं दिए गये’।
गम्भीर संकट में वैश्विक अर्थव्यवस्था
कुछ ऐसे भी विद्यार्थी हैं जो सांध्य महाविद्यालयों में पढ़ते हैं और सुबह की पारी में कहीं नौकरी करते हैं। कुछ बच्चे रात में कॉल सेन्टरों में काम करते और दिन में पढ़ाई करते हैं। इनमें अधिकांश बच्चे बाहर से आये हैं। इन सबके भी हालात ठीक नहीं हैं। नौकरी करने वाले बच्चों में ज्यादातर अपनी पढ़ाई के साथ परिवार की जिम्मेदारी भी सम्भाल रहे थे। बीमारी दुनिया भर में है इसलिए ज्यादातर कॉलसेन्टर बन्द हो गये हैं। जिनके पास न तो राशन कार्ड है और ना ही रहने का स्थायी ठिकाना। ऐसे बच्चे ज्यादा परेशान हैं। किसी के घर में शादी थी तो किसी को अगली फसल लगाने के लिए घर पैसा भेजना था। किसी के घर कोई बीमार है तो उसके दवा की जिम्मेदारी उस पर थी। अब उनको समझ में नहीं आ रहा है कि क्या करें?
सरकार सभी का ध्यान रख रही है। सभी से बात कर रही है। लेकिन उन सभी में ये छात्र कहीं न कहीं पीछे छूट गये हैं। सरकार को इनकी तरफ ध्यान देने के साथ-साथ अपनी योजनाओं के पिटारे से इनके लिए भी कुछ करने की बहुत आवश्यकता है।
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