बाल विवाह के खिलाफ पुलिसिया कार्रवाई
23 जनवरी 2023 को असम सरकार ने बाल विवाह अपराधों में शामिल और इस प्रकार के विवाहों के आयोजन में सहायता करने वाले लोगों के खिलाफ सख़्त कार्रवाई अभियान चलाने का आदेश दिया था। 15 फरवरी तक के आंकड़ों के अनुसार असम पुलिस अभी तक 4000 से भी ज्यादा प्राथमिकियाँ दर्ज़ कर चुकी है और 3000 से ज्यादा लोगों को गिरफ्तार कर चुकी है। पुलिस जिन दो अधिनियमों के तहत बाल विवाह के आरोपियों पर मामले दर्ज़ कर रही हैं, वे अधिनियम हैं – बाल विवाह निषेध अधिनियम और यौन अपराधों से बाल संरक्षण अधिनियम (पोक्सो एक्ट)।
मातृसत्तात्मक आदिवासी समुदायों के अधिवास के रूप में जिस पूर्वोत्तर भारत को जाना जाता है, उसके सबसे बड़े राज्य असम में बाल विवाह का व्यापक प्रचलन पाया जाना अपने आप में एक विडंबना ही है। 2019 और 2020 के बीच जो राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण हुआ था, उसके अनुसार असम में 20-25 आयु वर्ग अंतर्गत कुल विवाहित महिलाओं में से 31.8 प्रतिशत का विवाह, विवाह हेतु स्त्रियों के लिए निर्धारित न्यूनतम वैधानिक आयु 18 वर्ष से कम आयु में ही हो गया था। बाल विवाह की यह दर राष्ट्रीय औसत 23.3 प्रतिशत से बहुत ज्यादा है। यह सर्वेक्षण यह भी दिखाता है कि राज्य में 15-19 आयु वर्ग अंतर्गत विवाहित कुल लड़कियों में से 11.7 प्रतिशत या तो सर्वेक्षण से पहले ही माँ बन चुकी थीं या सर्वेक्षण के वक्त गर्भवती थीं।
यह बाल विवाह का अभिशाप ही है, जिसके कारण असम में मातृ मृत्यु दर और शिशु मृत्यु दर काफी ज्यादा पाई जाती है। गर्भवती स्त्रियों, नव प्रसूताओं और नवजात शिशुओं में इसके कारण कुपोषण की स्थिति भी बहुत भयावह नज़र आती है। राज्य की आबादी के अशिक्षित और गरीब तबकों में बाल विवाह और उसके दुष्परिणामों को लेकर जागरुकता का नितांत अभाव देखने को मिलता है। बाल विवाह को लेकर यह भी एक आम पूर्वाग्रह है कि मुस्लिमों में इसका प्रचलन बहुत ज्यादा मिलता है।
बाल विवाह की विकराल सामाजिक समस्या पर लगाम लगाने के लिए राज्य सरकार द्वारा पुलिस के माध्यम से चलाई जा रही विशेष कार्रवाई की जरूरत से शायद ही कोई असहमत हो। राज्य के कुछ जिलों में तो स्थिति बहुत ही ख़राब है। उदाहरण के लिए राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण, 2019-2020 के अनुसार 20-24 आयु वर्ग अंतर्गत विवाहित महिलाओं में से धुबरी और दक्षिण सालमारा में क्रमश: 58.8 और 44.7 प्रतिशत का विवाह 18 वर्ष से कम आयु में ही हो चुका था।
बाल विवाह जैसी सामाजिक बुराई के खिलाफ असम सरकार की यह कार्रवाई वस्तुत: समय की माँग ही कही जानी चाहिए लेकिन किसी भी सामाजिक बुराई के उन्मूलन के लिए मात्र पुलिसिया कानूनी कार्रवाई पर्याप्त नहीं होती। इसके साथ-साथ कई कदम उठाने की जरूरत होती है। बाल विवाह के दुष्परिणामों के बारे में सतत् जागरुकता अभियान भी चलाया जाना अपेक्षित है। जब यह बात साफ़ है कि बाल विवाह का व्यापक प्रचलन अशिक्षित, गरीब और पिछड़े तबकों में ज्यादा पाया जाता है, तो जरूरत उनकी अशिक्षा, गरीबी और पिछड़ेपन को दूर करने की है, उनमें बाल विवाह के खिलाफ एक माहौल पैदा करने की है। यह सब न करके उन्हें बाल विवाह के अपराध में जेल में डाल देना समस्या को और ज्यादा गंभीर बनाने का ही काम करेगा।
समाज के अशिक्षित और गरीब तबकों में महिलाओं की स्थिति को सशक्त किये बिना बाल विवाह के खिलाफ शायद ही कोई स्थायी सफलता हासिल की जा सके। राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षणों में समय-समय पर यह बात निकलकर सामने आती रही है कि लड़कियों की शिक्षा और बाल विवाह की संभावनाओं के बीच नकारात्मक सम्बन्ध पाया जाता है। शिक्षित होने पर विवाह के बाज़ार में लड़की कहीं ज्यादा मोलभाव की स्थिति में होती है। कम उम्र में विवाह के दुष्चक्र से वह बच पाती है। अत: स्त्री शिक्षा सरकार की प्राथमिकता में होनी चाहिए। असम के जिन इलाकों में बाल विवाह अपराध का प्रतिशत ज्यादा है, वहाँ लड़कियों की शिक्षा को लेकर विशेष अभियान चलाये जाने की जरूरत है।
बाल विवाह के खिलाफ राज्य सरकार का जो वर्तमान अभियान चल रहा है, उसका एक आयाम भाजपा सरकार की सांप्रदायिक राजनीति से भी जुड़ा है। बाल विवाह के आरोपी मुस्लिम युवकों पर पोक्सो जैसा कठोर कानून लगाना और बड़ी संख्या में मुस्लिम लोगों को जेलों में डालना जबकि समान अपराध के आरोपी हिंदुओं के खिलाफ उतनी सख़्त कार्रवाई न करना, जैसी बातें राज्य में सर्वत्र सुनी जा सकती हैं। असम उच्च न्यायालय ने भी बाल विवाह के मामलों में पोक्सो अधिनियम के पूर्वाग्रही दुरुपयोग पर सवाल उठाया है। लोगों के निजी मामले में बिना बलात्कार की शिकायत के पोक्सो अधिनियम लगाकर दी जाने वाली पुलिसिया दखल पर अदालत की नाराजगी समुचित है। द ऑल इंडिया यूनोइटेड डेमोक्रेटिक फ्रंट (एआईयूडीएफ) के अध्यक्ष और सांसद बदरुद्दीन अजमल ने भी इस पूरे मामले में प्रधानमंत्री को जो पत्र लिखा है, उसमें उन्होंने मुसलमानों के प्रति भाजपा के दोगले व्यवहार को लेकर अपनी नाराजगी जाहिर की है।
बिना पूर्व सूचना के एकाएक बाल विवाह के खिलाफ पुलिसिया अभियान चलाने से लोग आतंकित हैं और महिलाओं के विरोध प्रदर्शन का सामना भी असम पुलिस को करना पड़ा है। घर के पुरुष सदस्यों की गिरफ्तारी से घर की स्त्रियों के सामने आय का कोई स्रोत नहीं बचा है। वे अपने आप को निराश्रित पा रही हैं। स्पष्ट है कि बाल विवाह की शिकार लड़कियों और गर्भवती महिलाओं के साथ-साथ नव-प्रसूताओं के लिए सामाजिक सुरक्षा योजनाएँ भी चलानी पड़ेंगी। परिवार के कमाऊ पुरुष सदस्यों को बाल विवाह अपराध में जेल में डालकर राज्य सरकार बाल विवाहिताओं को भूखे मरने की स्थिति में छोड़कर अपने दायित्व से मुँह नहीं मोड़ सकती।
अस्तु, बाल विवाह के खिलाफ पुलिसिया अभियान चलाने के साथ-साथ राज्य सरकार को समाज के सभी वर्गों को विश्वास में लेना चाहिए और बाल विवाह के खिलाफ सामाजिक जागरुकता अभियान चलाना चाहिए। शिक्षा के अधिकार को जमीनी स्तर पर उतारकर लड़कियों को शिक्षित करने का अभियान चलाना चाहिए। इसके साथ-साथ इसके खिलाफ आरम्भ किये गये पुलिसिया अभियान को सेकुलर ढंग से चलाना अपेक्षित है। पुलिसिया कार्रवाई की अमानवीयता और सांप्रदायिक संकीर्णता निश्चय ही आपत्तिजनक है। बाल विवाह पर प्रतिबन्ध विषयक नोटिस निकाले बिना अचानक से पुलिसिया डंडा हाथ में ले लेना राजनीतिक क़लाबाज़ी ही ज्यादा कहा जायेगा। सार रूप में बाल विवाह की सामाजिक समस्या का जड़ से उन्मूलन करने के लिए व्यावहारिक तरीकों पर काम करने जरूरत है।