डिजिटल इण्डिया का नारा हम पिछले कुछ वक्त से सुन रहे हैं। 2014 में नरेन्द्र मोदी पहली बार देश के प्रधानमन्त्री बने तब से ही डिजिटलीकरण पर जोर दिया जा रहा है, ऐसा सुनने में आ रहा था। देशवासी प्रयास कर रहे थे। लेकिन वो रफ्तार देखने को नहीं मिल पाई। मोदी खुद सोशल मीडिया पर एक्टिव रहे। उनके मन्त्री और अमूमन सभी राज्यों के मुख्यमन्त्री भी सोशल मीडिया के जरिए अपनी बातें जनता तक पहुँचाने लगे। नतीजा ये रहा कि 2019 का लोकसभा चुनाव ही एक तरीके से सोशल मीडिया पर लड़ा गया। ये कहना गलत नहीं होगा। इसके बाद भी युवाओं को छोड़कर ऑनलाइन तरीकों के इस्तेमाल में देशवासी उतने सक्रिय नहीं थे। लेकिन अब हालात बदलते से दिख रहे हैं।
एक और समझदारी की आवश्यकता – प्रकाश देवकुलिश
बात मीडिया की हो, या शिक्षा जगत की, हर जगह लॉकडाउन होने के बाद राजनेता भी ऑनलाइन तरीकों का इस्तेमाल ज्यादा करते दिखाई दे रहे हैं। वीडियो बनाया और अपलोड कर दिया। अब शिक्षा जगत में भी बदलाव देखने को मिल रहा है। बच्चों को देश का भविष्य कहा जाता है। ऐसे में जब देश लॉकडाउन की स्थिति में है तब देश के भविष्य को अंधेरे में नहीं रखा जा सकता। तमाम शिक्षण संस्थानों और प्रबन्धन ने तय किया कि लॉकडाउन की अवधि का इस्तेमाल बच्चों को शिक्षित करने में किया जाएगा।
कुछ दिन पहले नीलेश मिश्रा का एक इंटरव्यू देखा। जिसमें वे एक प्रसिद्ध सिने अदाकारा का इंटरव्यू लेते हुए अपने गाँव के स्कूल में प्रवेश करते हैं। जहाँ प्रोद्योगिकी का इस्तेमाल करके चंडीगढ़ में बैठी एक टीचर दूर उत्तर प्रदेश के गाँव में बच्चों को अंग्रेजी पढ़ा रही थीं। देख कर अच्छा लगा। लेकिन किसे पता था कि कुछ ही दिनों में इसी तकनीक का इस्तेमाल पूरे देश को करना होगा, वह भी स्कूली शिक्षा के लिए। अभी तक उच्च व तकनीकी शिक्षण संस्थान ऑनलाइन माध्यमों से पढ़ा रहे हैं। यूजीसी ने भी हाल में ऑनलाइन शिक्षा की दिशा में कई सकारात्मक बदलाव किये हैं। प्राइवेट सेक्टर तो ऑनलाइन माध्यम का उपयोग कर ही रहा है।
कोविड-19 के चलते सम्पूर्ण भारत लॉकडाउन में है। इस कोरोना वायरस का प्रकोप ऐसे समय पर फैला है जब भारत में समय वार्षिक परीक्षाओं का होता है। नये सेशन की शुरुआत होती है। लेकिन समय ऐसा बदला कि न तो परीक्षा ही पूरी हो सकी न रिजल्ट ही आ सके। इसीलिए सीबीएसई ने कक्षा एक से आठ के सभी छात्रों को अगली कक्षाओं में प्रमोट कर दिया है। हरियाणा स्कूल शिक्षा बोर्ड ने भी इसे अपना लिया है। दसवीं के बच्चों का विज्ञान का पेपर छूट गया था, उसके बिना ही उन्हें भी ग्यारहवीं कक्षा में प्रमोट किया जाएगा, हालांकि जो बच्चे 11वीं में विज्ञान लेंगे, उनसे तब पेपर ले लिया जाएगा।
कोरोना से भारत की दोहरी चुनौती – जावेद अनीस
1 अप्रैल से नये सेशन की शुरुआत हो चुकी है। लॉकडाउन के चलते सभी शिक्षण संस्थान बन्द हैं। ऐसे माहौल में नहीं जा सकता कि ये संस्थान कब तक बन्द रहेंगे। हालांकि प्रधानमन्त्री नरेन्द्र मोदी मुख्यमन्त्रियों के साथ वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए हुई मीटिंग में लॉकडाउन हटाने के संकेत दे चुके हैं, फिर भी आखिरी फैसला राज्य सरकारों को ही करना है।
पंजाब, हरियाणा और चंडीगढ़ में ऑनलाइन माध्यम से कक्षाएँ शुरू हो चुकी हैं। छात्रों को विभिन्न एप, व्हाट्सअप के जरिए सिलेबस और किताबों की पीडीएफ फाइल मुहैया कराई गयी हैं। ऑनलाइन शिक्षा जहाँ एक ओर आधुनिक इतिहास के सबसे महत्वपूर्ण बदलावों में से एक है तो दूसरी ओर यही वह माध्यम है जिससे हम सोशल डिस्टेंस जैसे बचाव के उपाय के साथ समय का सदुपयोग कर सकते हैं।
राज्य सरकारों हर संभव कोशिश करके इस प्रयास को सफल बनाने में जुटी हैं। जिनके पास उपकरणों का अभाव है, उन्हें उपकरण उपलब्ध कराना हो या ऑनलाइन पढ़ाने के लिए शिक्षकों को वर्कशॉप देना। क्योंकि नई पीढ़ी के लिए यह काम कठिन नहीं, लेकिन पुरानी पीढ़ी को इसकी अच्छी खासी जरूरत है। करोना संकट के समय शिक्षा का यह माध्यम हमारी प्राथमिकता भी है और समय की आवश्यकता भी। यह समय सूचना प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में उन्नत भारत के लिए अच्छा अवसर भी हो सकता है।
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