गम्भीर संकट में वैश्विक अर्थव्यवस्था
चीन के वुहान शहर में पिछले दिसम्बर में पहली बार सामने आए इसके पहले मामले के बाद कोरोना वायरस ने अब लगभग पूरे विश्व को अपनी गिरफ़्त में ले लिया है। विश्व स्वास्थ्य संगठन ने भी इसके व्यापक प्रभाव को देखते हुए इसे महामारी घोषित कर दिया है। इसकी चपेट में आकर अबतक हज़ारों लोगों की मौत हो चुकी है और लाखों लोग संक्रमित हो चुके हैं। कोरोना वायरस एक गम्भीर स्वास्थ्य संकट बन जाने के साथ-साथ वैश्विक अर्थव्यवस्था के लिए भी बहुत बड़ी चुनौती बन गया है।
पिछले कई दशकों में दुनिया ने ऐसा कोई संकट नहीं देखा जिसकी चपेट में आने से अमीर और ग़रीब, विकसित और पिछड़ा, कोई देश नहीं बचा और जिसके सामने फ़िलहाल सब लाचार दिख रहे हैं। जर्मनी की चांसलर एंजेला मर्केल ने इसे द्वितीय विश्व युद्ध के बाद विश्व के सामने आई सबसे बड़ी चुनौती क़रार दिया है वहीं प्रधानमन्त्री नरेन्द्र मोदी ने 19 मार्च को देश के नाम अपने संबोधन में कहा है कि इसकी व्यापकता प्रथम और द्वितीय विश्व युद्ध से भी ज्यादा है। दुनिया की अर्थव्यवस्था के लिए भी यह एक भयावह वक़्त है और डर है कि यह कहीं बिल्कुल ठहर ही न जाए।
आर्थिक सहयोग और विकास संगठन (OECD) के अनुसार कोरोना वायरस के चलते वैश्विक अर्थव्यवस्था की वृद्धि दर 2009 के बाद सबसे कम रहेगी। इसके जानकारों के मुताबिक़ विगत नवम्बर में किए गए 2.9% के अनुमान से घटकर यह दर अब 2.4% रहेगी। महामारी के लम्बा खिंचने और ज्यादा तीव्र होने पर यह दर और घटकर 1.5% तक आ सकती है। संयुक्त राष्ट्र व्यापार एवं विकास सम्मेलन (UNCTAD) के अनुसार कोरोना वायरस के कारण 2020 में वैश्विक अर्थव्यवस्था को भारी नुक़सान होने की संभावना है। कोरोना वायरस का आर्थिक नतीजा यूएस, यूरोपियन यूनियन एवं जापान में मंदी, एवं उत्पादन में कुल 2.7 ट्रिलीयन डॉलर का नुक़सान, जो यूके के कुल जीडीपी के बराबर है, के रूप में सामने आ सकता है। विश्व की एप्पल, निसान, जगुआर लैंड रोवर, जेसीबी जैसी बड़ी कम्पनियों ने इस वायरस के आने के बाद माँग में कमी और सप्लाई चेन प्रभावित होने से उत्पादन में आ रही कठिनाई का ज़िक्र किया है।
यदि स्थिति के आकलन की शुरुआत चीन से करें जिसका पूरे विश्व के लिए माँग और आपूर्ति, दोनों ही दृष्टि से बड़ा महत्व है, तो वहाँ सामान्य से गाड़ियों की बिक्री में 80%, यात्री परिवहन में 85% की कमी आई है। एक तरह से चीन की अर्थव्यवस्था ही पूरी तरह ठहर गयी है। ब्लूमबर्ग इकॉनामिक्स के अनुमान के मुताबिक़ 2020 की पहली तिमाही में चीन की जीडीपी की वृद्धि दर में पिछले साल के इसी अवधि के मुक़ाबले 1.2% की कमी आएगी। पर यह तो होना ही था, जब कोरोना वायरस के फैलाव पर क़ाबू पाने के लिये चीन के हुबे प्रान्त में, जिसके वुहान शहर से इस रोग की शुरुआत हुई, 5 करोड़ से ज्यादा लोगों को जनवरी से शुरु कर लगभग दो माह तक लॉकडाउन में कड़ाई से रखा गया।
पूरा विश्व चीन के इस सख़्त क़दम से हतप्रभ हो गया पर चीन को इससे संक्रमित लोगों की संख्या कम करने में सफलता मिली। वैश्विक सप्लाई चेन में चीन की महत्वपूर्ण भूमिका एवं लगातार बढ़ते हिस्से के कारण वहाँ इस महामारी के कारण उत्पादन में आई कमी से पूरा विश्व प्रभावित हुए बग़ैर न रह सकेगा, ख़ासकर जापान, कोरिया, ऑस्ट्रेलिया जैसे देश जिनके चीन से बड़े मज़बूत व्यापारिक रिश्ते हैं। वैसे भी 2003 में सार्स (SARS) संक्रमण के प्रकोप के दौर की तुलना में वैश्विक अर्थव्यवस्था पहले से ज्यादा परस्पर जुड़ गयी है और चीन अब वैश्विक उत्पादन, व्यापार, पर्यटन एवं कमोडिटी मार्केट में बड़ी भूमिका निभा रहा है।
अमेरिका में इस वायरस ने मार्च में जब अपने पैर पसारना शुरू ही किया था, तभी इसकी दहशत इतनी हो गयी कि महीने के दूसरे ही सप्ताह में डाउ जोंस औद्योगिक सूचकांक में 1987 के बाद की सबसे बड़ी गिरावट दर्ज की गयी। शेयर बाज़ार में उथल-पुथल का यह सिलसिला जारी है। अब तो इस वायरस के कारण अमेरिका में भी काफ़ी लोगों की मृत्यु हो गयी है। बढ़ती चिन्ता के बीच अर्थव्यवस्था को सहारा देने के लिये अमेरिका ने ब्याज दरें घटाई हैं ताकि कर्ज सस्ता हो और लोगों को व्यय करने के लिये प्रोत्साहन मिल सके, और जिससे अर्थव्यवस्था को सहारा मिले। साथ ही ट्रंप प्रशासन ने राहत के लिये कुल मिलाकर क़रीब एक ट्रीलियन यानी एक लाख करोड़ डॉलर का आर्थिक पैकेज लाने के प्रस्ताव रखा है जिसमें 500 बिलियन डॉलर सीधे अमेरिकी नागरिकों के खाते में (एक हज़ार डॉलर प्रति व्यक्ति) डालने के लिये और 500 बिलियन डॉलर कर्ज के रूप में व्यापार को सहारा देने के लिये देने की योजना है।
सिंगापुर के राष्ट्रीय विकास मन्त्री लॉरेंस वॉन्ग ने एक इन्टरव्यू में कहा है कि सबसे बड़ी परेशानी यह है किकोरोना वायरस से मुकाबले के लिए जो भी कदम उठाये जाने हैं या उठाये जा रहे हैं, वे सभी कारोबार और व्यापार के रास्ते में स्पीड ब्रेकर की तरह हैं तथा उनकी वजह से आर्थिक गतिविधि धीमी पड़ने या थप होने का खतरा बढ़ता जा रहा है|
बात भारत की करें तो यहाँ वैसे ही पिछले कुछ समय से आर्थिक मंदी जैसे आसार हैं और अब कोरोना वायरस की वजह से आर्थिक गतिविधियाँ बुरी तरह प्रभावित हुई हैं। खुद प्रधानमन्त्री ने भारतीय अर्थव्यवस्था को कोरोना वायरस के कारण काफ़ी नुक़सान होने की बात स्वीकार की है। खाने-पीने की चीज़ें और दूसरे ज़रूरी सामान ख़रीदने के लिए मची होड़ के बीच क़रीब-क़रीब अन्य सारे धन्धे ठप होते जा रहे हैं। जब लोग घरों से निकलने में डर रहे हैं तो बाज़ारों को सुना पड़ना ही है। निवेशकों में भय का माहौल बनने एवं वैश्विक रुझान ने देश में शेयर बाज़ार को बुरी तरह पटक दिया है जिसके चलते निवेशकों का लाखों करोड़ रुपया डूब गया है। कच्चे तेल की क़ीमत में तेज गिरावट से देश के राजस्व में बढ़त के बावजूद आर्थिक विशेषज्ञ मान रहे हैं कि स्थिति चिन्ताजनक रहेगी। आइसीआइसीआइ सिक्योरिटीज़ की एक रिपोर्ट के अनुसार कोरोना के कारण भारत में निर्माण, परिवहन और रसायन विनिर्माण क्षेत्र सबसे अधिक प्रभावित हुए हैं।
कन्फेडरेशन ऑफ़ इंडियन इंडस्ट्री (सीआईआई) भी मानती है कि आगामी महीनों में कोरोना वायरस के कारण भारतीय पर्यटन उद्योग काफ़ी प्रभावित होगा और इससे राजस्व प्राप्ति का अनुमान 60-65 प्रतिशत तक प्रभावित हो सकता है। यात्रा पर बढ़ते प्रतिबंध के कारण अन्य देशों की तरह भारत के विमानन उद्योग को काफ़ी नुक़सान होना निश्चित है। भारत की सबसे बड़ी विमानन कंपनी इंडिगो ने अपनी रोज़ाना बुकिंग में गिरावट का ज़िक्र करते हुए अपनी तिमाही आय में उल्लेखनीय गिरावट का अंदेशा जताया है। इस क्षेत्र के विशेषज्ञ मानते हैं कि विमानन सेवा क्षेत्र पर पहले की दूसरी महामारियों की तुलना में कोरोना वायरस की चोट ज्यादा गहरी होगी। सीआईआई के ही एक अनुमान के मुताबिक़ देश का होटल व्यवसाय पर भी इसका भारी असर पड़ेगा।
इकानॉमिक टाइम्स की एक रिपोर्ट के अनुसार जहाँ रेस्तराँ व्यापार में 30-35% की गिरावट देखी जा रही है वहीं होटल के कमरों की बुकिंग 70-75% से 20% तक गिरने की संभावना जताई जा रही है। विशेषज्ञों का कहना है कि सिनेमाघरों के बन्द किए जाने और शूटिंग पर रोक लगने से टेलिविज़न और फ़िल्म उद्योग को भारी नुक़सान हो रहा है। एक अनुमान है कि कोरोना के प्रभाव के कारण मनोरंजन जगत का 40-50 प्रतिशत व्यवसाय प्रभावित होगा।
वाणिज्य मंत्रालय के अनुसार भारत से परिधान का निर्यात 2018-19 में 1 लाख करोड़ रुपये से ज्यादा का था जो कोरोना वायरस के प्रकोप के लम्बे खिंचने से बुरी तरह प्रभावित होगा। कोरोना वायरस से जोड़कर बनी कुछ भ्रांतियाँ की वजह से पॉल्ट्री उद्योग पर बड़ी मार पड़ी है और मुर्ग़ियों को मुफ़्त में बाँटने या गड्ढों में फेंकने के समाचार टीवी पर आ चुके हैं।
पहले से ही बुरे दौर से गुज़र रहे ऑटो और रियल स्टेट सेक्टर के लिए कोरोना और मुश्किलें खड़ी कर देगा। कोरोना वायरस के कारण देश के कुल कारोबार को कम से कम तीन लाख करोड़ रूपये का झटका लगने की आशंका व्यक्त की जा रही है। पर इससे इतर एक राय नवोन्मेषी उद्योगों के लिए बने स्टार्ट अप चैंबर की है कि चीन में कोरोना से उत्पन्न हालात के मद्देनज़र भारत में विभिन्न क्षेत्रों में नए उद्यमों के लिए बड़े अवसर हैं और देश वैश्विक विनिर्माण अर्थव्यवस्था के बड़े केंद्र के रूप में उभर सकता है।
संकट गम्भीर है, यह तो साफ़ है। मगर असली चिन्ता यह है कि यह अंधेरी रात कितनी लम्बी होगी। जाने-माने अर्थशास्त्रियों का कहना है कि अब पूरी दुनिया की अर्थव्यवस्था पर मंदी का संकट तो साफ़ दिख रहा है। लेकिन इससे बड़ी चिन्ता यह है कि यह संकट कितना गहरा होगा और कितना लम्बा चलेगा, क्योंकि अभी जो दिख रहा है, इसका अगला दौर इससे कहीं ज्यादा ख़तरनाक और दर्दनाक होगा।
यदि चीन इस महामारी पर शीघ्र ही क़ाबू करने में कामयाब हो जाता है और ‘विश्व का यह कारख़ाना’ इस वर्ष की दूसरी तिमाही में कार्यशील हो जाता है तो वैश्विक अर्थव्यवस्था पर इस महामारी का संभावित नुक़सान सीमित हो सकता है। ऐसी स्थिति में वैश्विक आर्थिक विकास की दर अगले वर्ष 2021 में वापस 3.25% तक पहुँच सकती है। https://www.made-in-china.com/ के एक सर्वे में यह बात सामने आई है कि फ़रवरी के अन्त तक चीन में 80% उत्पादक कंपनियों ने काम शुरु कर दिया है। उम्मीद है कि अप्रैल के अन्त तक वहाँ कारख़ाने पहले की तरह सामान्य रूप से काम करने लगेंगे। यदि यह अनुमान सही साबित हुआ तो यह दुनिया को बड़ी राहत दे सकता है।
चीन से आई यह ख़बर, कि वहाँ स्थानीय स्तर पर इस महामारी से संक्रमित नया एक भी मामला 17 मार्च को रिपोर्ट नहीं हुआ, इस चुनौती से निपटने के लिये हौसला देती है। वैसे इस ख़बर का मतलब यह नहीं है कि चीन ने इस वायरस पर क़ाबू पा लिया है और यह पलटकर वहाँ लोगों को संक्रमित नहीं कर सकता है। इस महामारी के अन्य देशों में बढ़ते प्रकोप के बीच यह ख़बर भी उम्मीद जगाती है कि इस वायरस का टीका अमेरिका में मानवीय परीक्षण के दौर में है।
पर यह भी विचारणीय है कि यदि स्थिति सुधरने की बजाय और बिगड़ गयी या चीन में सब कुछ सामान्य होने में अनुमान से ज्यादा वक़्त लग गया, तब क्या होगा? वैसे भी भंडार में कच्चे माल एवं अन्य सामग्रियों की कमी की भरपाई और सप्लाई चेन के सामान्य हुए बिना क्षमतानुरूप उत्पादन हासिल करना संभव न होगा। चीन के अलावा इस महामारी से बुरी तरह आक्रांत जापान, फ्रांस, जर्मनी, इटली, दक्षिण कोरिया जैसी बड़ी अर्थव्यवस्थाओं को भी काफ़ी झटका लगना तय है। इसके मद्देनज़र अनुमान है कि महामारी के पहले 2020 के लिये वैश्विक अर्थव्यवस्था की अनुमानित वृद्धि दर 3.1% अब घटकर 2.2% के आसपास ही रह पाएगी। और यदि इसके क़हर ने विश्व की दस बड़ी अर्थव्यवस्थाओं में बाक़ी बचे यूएस, यूके, भारत, कनाडा और ब्राज़ील को भी पूरी तरह अपनी चपेट में ले लिया तब यह वृद्धि दर और घटकर 1.2% तक खिसक जाएगी। स्थिति और गम्भीर होने पर इस वृद्धि दर के शुन्य होने की संभावना को भी नकारा नहीं जा सकता।
अर्थव्यवस्था को नुक़सान पहुँचा रहे कारख़ानों, बाज़ारों को बन्द करने जैसे इंसानी संपर्क को न्यूनतम करने के लिए उठाये गये कदम इस वायरस को रोकने के लिये निहायत जरुरी हैं और फ़िलहाल इसका कोई विकल्प नहीं है। यह महामारी इस क़िस्म की है कि सभी प्रभावित देश अकेले ही अपने-अपने तरीक़े से इस पर क़ाबू पाने की कोशिश कर रहे हैं। एक बार इसपर क़ाबू पा लिया गया तो अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने के लिये ज़रूरी है कि बाज़ार में सामान की माँग हो और यह तभी संभव है जब ख़र्च करने के लिये लोगों की जेब में पैसा हो। यह पैसा कहाँ से आएगा, यही गुत्थी हर देश की सरकार को सुलझानी है। वैश्विक अर्थव्यवस्था में सुधार का काम देशों को अकेले-अकेले करने की बजाय मिलजुल कर करना बेहतर होगा क्योंकि समन्वित क़दमों का व्यापार और विश्वास पर सकारात्मक प्रभाव पड़ता है और इसके फलस्वरूप हर देश की समग्र उत्पादकता में अकेले की गयी कोशिश की तुलना में ज्यादा बढ़ोतरी होती है।
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