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निर्देशक – मनीष उप्पल
कास्ट – मनीष उप्पल
एक आदमी जो लॉकडाउन में परेशान हाल हो, चारों तरफ से नकारात्मक खबरें सुन-सुनकर इतना व्यथित है कि उसे कुछ समझ नहीं आ रहा। फिर वह धरती पर रेंगने वाले छोटे-छोटे कीड़े मकौड़ों को देख रहा है लेंस के जरिये। फिर वहां से अचककर खबरें सुनने लगता है। जिसमें पाल घर की खबरें, मजदूरों के दर्द उनकी परेशानियों की खबरें, कोरोना की खबरें, इरफान के निधन की खबरें, उनका अंतिम संदेश कई सारे चैनलों पर बेतहाशा खबरों की बाढ़ के बीच वह उठता है और खूब किताबें पढ़ता है अध्यात्म की, फिर ध्यान लगाता है और ईश्वर से वार्तालाप करता है। लेकिन क्या वाकई में ईश्वर से तादात्म्य स्थापित करना इतना आसान है?
कहानी तो इतनी सी ही है लेकिन मायने इसके तब बड़े हो जाते हैं। जब ऐसी परिस्थितियों में हम खुद को घिरा हुआ पाते हैं। इधर साहित्य में भी बड़े-बड़े नास्तिक हुए हैं लेकिन जब अंत समय नजदीक आया तो उन्हें ईश्वर का स्मरण अवश्य हुआ और हो भी क्यों न। हम आखरी उसी से तो जन्में हैं। अब आप उसे किस भी नाम से बुलाते रहें।
‘क्लोज टू जा’ फ़िल्म के नाम को लेकर कुछ प्रश्न आपके दिमाग में कौंध सकते हैं मसलन “जा” शब्द को लेकर। क्लोज का अर्थ हुआ नजदीक टू का अर्थ हुआ के और “जा” की व्याख्या मिलती है हिब्रू बाइबल में। जिसमें जा शब्द ईश्वर के लिए प्रयुक्त हुआ है। तो फ़िल्म का अर्थ हुआ ‘ईश्वर के नजदीक।’ जा शब्द चूंकि इस बाइबल में कई बार इस्तेमाल हुआ है और इब्रानी भाषा में कुछ इस तरह लिखा जाने वाला परमात्मा का यह नाम יהוה आम तौर पर हिंदी में “यहोवा” नाम से अनुदित किया जाता है।
फ़िल्म इस महामारी के दौरान मरने वाले लोगों के लिए समर्पित है ही लेकिन जैसा कि फ़िल्म की शुरुआत में भी दिखाया जाता है यह फ़िल्म इक्कसवीं सदी के सबसे बड़े अभिनेता कहे जाने वाले इरफान खान और उनके सीनियर रहे ऋषि कपूर को समर्पित है। इस फ़िल्म में इस्तेमाल किए गए प्रश्न श्री मद भगवत गीता तथा हिंदुस्तान के सबसे बड़े आध्यात्मिक गुरु ‘सद्गुरु’ के ब्लॉग से लिए गए हैं।
फ़िल्म कई फेस्टिवल्स में सलेक्ट हुई और कुछ में इसने पुरुस्कार भी हासिल किए। त्रावणकोर इंटरनेशनल फ़िल्म फेस्टिवल में ‘बेस्ट मोबाइल फ़िल्म’ , इंडियन फिल्ममेकर्स फ़िल्म फेस्टिवल (IFFF/ इफ़्फ़) में भी ‘बेस्ट मोबाइल फ़िल्म’ के अलावा अन्य कई में भी सराही तथा पुरस्कृत की जा चुकी है और अब एमएक्स प्लेयर पर यहाँ क्लिक कर इस 15 मिनट की छोटी सी फ़िल्म को देखा जा सकता है। फ़िल्म में कैमरा, एक्टिंग, वीएफएक्स, साउंड, बैकग्राउंड स्कोर सब ठीक होने के बाद भी कुछ ख़ालिस अहसास सा बाकी रह जाता है।
मोबाइल के जरिये फ़िल्म को फिल्माना, उसमें ही एडिट करना, उसी में वी एफ एक्स का सारा काम करना अपने आप में तारीफ़ के काबिल है। फ़िल्म में ओंकार की ध्वनि के माध्यम से आज्ञाचक्र एवं मूलाधार चक्र को जाग्रत करके ईश्वर से जो सम्बन्ध स्थापित करने की कोशिश निर्देशक, लेखक, निर्माता, एक्टर के रूप में मनीष उप्पल ने की है उसके लिए तारीफ के हकदार बनते हैं। वैसे ईश्वर के द्वारा कही गई बाइबल को जब मनुष्यों ने लिखा तो उस पर भी कुछ बहस हुई। ताजातरीन बहस में इजराइल के प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू ने येरुशलम में एक बार हो रही बैठक में पॉप से कहा कि ईसा मसीह हिब्रू बोलते थे। तिस पर पॉप ने जवाब दिया नहीं वे अरामीक बोलते थे। अब ईश्वर कभी बोलता है कभी नहीं। हर धर्म में अपने-अपने हिसाब से किस्से कहानियां गढ़ ली गई हैं।
फ़िल्म में एडिटिंग के नजरिए से एक नया प्रयोग देखने को मिलता है। इस प्रयोग को इससे पहले मेरे द्वारा ‘श्री गंगानगर इंटरनेशनल फ़िल्म फेस्टिवल’ में फ़िल्म ‘मीचक समारोह‘ में देखा गया था। जिसके बारे में भी काफ़ी चर्चा हुई थी। किसी ने इस नए प्रयोग को नकारा तो किसी ने इसका स्वागत किया। फ़िल्म में इसे वीडियो के माध्यम से दिखाया जाता है तो ‘स्टॉप ब्लॉक’ और तस्वीरों के जरिए दिखाया जाता है तो ‘फोटो प्ले’ कहा जाता है।
अपनी रेटिंग – 3.5 स्टार
तेजस पूनियां
लेखक स्वतन्त्र आलोचक एवं फिल्म समीक्षक हैं। सम्पर्क +919166373652 tejaspoonia@gmail.com
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