एक 40-45 साल का मानसिक बीमार व्यक्ति है संसार नाथ (सुरेंद्र शर्मा)। जिसके दिमाग में कहानियों के अम्बार हैं। वह स्वयं कुँवारा है इसलिए लड़कियों, महिलाओं को लेकर उसके दिमाग में अच्छी खासी इमेज है। वह महिलाओं का, लड़कियों का सम्मान करता है। पेशे से फोटोग्राफर है। उसका एक चेला है चपन्नी (गुरप्रीत सिंह)। जो फोटो बनाने के अलावा बैंकों के काम भी लोगों के लिए घर बैठे ही कर देता है। संसार नाथ के पास एक लड़की आती है और कुछ फोटोशूट के अलावा शादी में वीडियोग्राफी के लिए कहती है। लड़कियों के मामले में वह नर्म दिल है इसलिए कम पैसों में भी काम करने के लिए तैयार हो जाता है।
लेकिन इसके साथ ही फ़िल्म में कई अन्य कहानियाँ भी साथ चलती है। खैर वह लड़की जिस लड़के रितम्बर (दीप मंडियाँ) से शादी कर रही है वह कुछ ठीक लड़का नहीं है। वह एटीएम से पैसे ऐंठने, लड़कियों को फंसाने के तरीके ही खोजता रहता है। संसार नाथ दिल से नर्म है और कुँवारा भी तो इसी नाते वह गोगो रानी (प्रीत कंग) की पढ़ाई में मदद करता है। उसकी स्कूल फीस से लेकर किताबें तक। इसके अलावा फ़िल्म में एक दरबारी की कहानी भी है जो सम्भवतः संसार नाथ जो फोटोग्राफी के अलावा कहानियाँ भी लिखता है, उसी के दिमाग की उपज है। फ़िल्म में कई सारे मोड़ और कहानियों का गुलदस्ता है। फ़िल्म के अन्त में संसार नाथ अपनी माँ के स्कैच को लेकर चलता है और उसी को साथ रखकर सो जाता है।
फिजाओं को बदलने का संदेश देती ‘कड़वी हवा’
फ़िल्म आम फिल्मों की तरह नहीं है। यह फ़िल्म खास है खास इसलिए की इसमें सिनेमाई तरीके का इस्तेमाल करने के बजाए प्रयोग किया गया है। वह प्रयोग सिनेमाई भाषा में स्टिल प्ले (फोटो प्ले) कहा जाता है। इसे देखकर ऐसे लगता है जैसे फ़िल्म अटक अटक कर चल रही हो लेकिन इस तरह का प्रयोग अभी तक किसी बॉलीवुड फ़िल्म या अन्य भाषा की फ़िल्म में भी नहीं देखा गया है। पंजाबी भाषा की इस फ़िल्म में यह प्रयोग सिनेमा को एक नया नजरिया प्रदान करता है। फ़िल्म में एक दो जगह शायरी का भी बेहतरीन इस्तेमाल किया गया है।
फ़िल्म में सबसे अहम क़िरदार है सुरेंद्र शर्मा यानी संसार नाथ का। कई पंजाबी फिल्मों में काम कर चुके सुरेंद्र शर्मा की अदायगी इस फ़िल्म में हर्फ दर हर्फ घूँट घूँट करके पी हुई लगती है। किस तरह अपने आपको वे पूरी तरह फ़िल्म के साथ बाँध कर रखते हैं यह भी आजकल के कलाकारों को सीखना चाहिए। इसके अलावा प्रीत कंग, रोशन, दीप मंडियाँ, भुल्लर, गुलाब चंद, गुरप्रीत सिंह सभी ने अपना अपना काम बेहतरी से किया है। इसके लिए निर्देशक ही तालियों के हकदार हैं कि इतना बेहतरी से काम वे उनसे करवा पाने में कामयाब हुए हैं।
ऑस्कर पाने वाली पैरासाइट की पूरी कहानी
निर्देशक के तौर पर सुखप्रीत गिल की यह पहली फ़िल्म है और अपनी पहली ही फ़िल्म में शानदार सिनेमाई प्रयोग से, उन्होंने सिने प्रेमियों के शैदाई दिलों में अपनी एक पहचान बनाने की कामयाब कोशिश की है। सिनेमेटोग्राफी, डायलॉग, स्टोरी भी निर्देशक ने स्वयं ही लिखी है।
फ़िल्म की डबिंग हो या कैमरा मैन साया फिल्म्स चंडीगढ़ सब उम्दा कैटगरी में रखने लायक हैं। फ़िल्म में वीएफएक्स का इस्तेमाल भी ठीक ठाक किया गया है। फ़िल्म कहीं भी फिसलती या लुढ़कती हुई नजर नहीं आती। बल्कि यह पूरे दो घण्टे लगभग बांधे रखने में कामयाब रहती है। फ़िल्म में गीत संगीत फ़िल्म के हिसाब से ही है। फ़िल्म के अन्त में साल 1980 की फ़िल्म ‘ख्वाब’ का गाना ‘तू ही वो हसीन है’ मोहम्मद रफ़ी की आवाज में सुंदर और कर्ण प्रिय लगता है। इसके अलावा जगजीत सिंह की आवाज में एक ग़ज़ल भी है ‘याद नहीं’ जो ‘सहर’ एलबम 2000 में रिलीज़ हुई थी।

अमृता प्रीतम
फ़िल्म के बीच में एक जगह अमृता प्रीतम की लिखी पंक्तियाँ “कोई लड़की हिन्दू हो या मुसलमान जो भी लड़की लौटकर अपने ठिकाने पहुंचती है। समझो उसी के साथ मेरी आत्मा भी ठिकाने पहुँच गयी” फ़िल्म को थोड़ा साहित्यिक रूप, रंग भी देने की कोशिश करती दिखाई देती है।
अपनी रेटिंग – 4 स्टार
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फ़िल्म को यहाँ क्लिक कर देखा जा सकता है।
तेजस पूनियां
लेखक स्वतन्त्र आलोचक एवं फिल्म समीक्षक हैं। सम्पर्क +919166373652 tejaspoonia@gmail.com
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