जूम इन

बम बहादुरों की बमबारी

 

इतनी समझदारी की उम्मीद करना बेवकूफी है कि किसी बेवकूफ को याद रहे कि वह बेवकूफ है। एक बेवकूफ जब भूलता है कि वह बेवकूफ है तब ही वह बेवकूफ होता है। मेरा साबका ऐसे एक बेवकूफ से हुआ था मगर उस बम बहादुर की कथा फिर कभी। अगर उससे साबका नहीं पड़ा होता तो बम बहादुरों को पहचानने का लसका न लगा होता। मूर्खों की उपयोगिता भी होती है, यह उसने सिद्ध किया। परिणाम यह हुआ कि अब मुझे बम बहादुर यत्र तत्र सर्वत्र दिखते हैं। इसे मैं अपना नजर दोष भी मानता हूं। लेकिन बम बहादुर एक ऐसा वायरस है कि वह आपको भी बम बहादुर बना देता है। आपको सब बम बहादुर दिखने लगते हैं। बम बहादुर मूर्खता का पर्यायवाची ही तो है। तभी बहादुर के साथ बम का अनुप्रास बना है। बम अंग्रेजी का गोला है और बहादुर हिन्दी का शोला। कई अनुभवियों की राय है बम बहादुर बम ब्लास्ट का तरजुमा है।

बम बहादुरों में बहादुरी दिखाने का शोला चटकता रहता है। बम बहादुर वाक बहादुर होते हैं। बोलते हैं तो बोलते हैं। न बोलने के पहले सोचते हैं न बोलने के बाद। बोलते वक्त हरगिज नहीं। अभी अभी ऐसे ही दो बम बहादुर मुंबई में दिखे हैं। यह महज संयोग है कि ये मुम्बई में दिखे। ये कहीं भी दिख सकते हैं। किसी भी छोटे या बड़े शहर में। शहर का आकार ऐसे व्यक्तित्वों के लिए व्यवधान का काम नहीं करता। राजधानियों और राजकाज में भी अपना जलवा दिखाते रहते हैं। बॉलीवुड भी इससे अछूता नहीं है।

बोलना जिम्मेदारी का काम है, इसका अहसास नहीं होता इन्हें। राजनीति में ऐसे बम बहादुर एक नहीं, कई हैं। सभी राजनीतिक दलों में हैं। क्या स्त्री क्या पुरुष। दोनों प्रजातियों के हैं। क्या साधु क्या साध्वी। क्या हिंदू क्या मुस्लिम। किसका किसका नाम लिया जाए ?

अगर किसी का नाम छूट गया, महान होने से रह गया, तो अवमानना का मामला बन जाएगा। बेवकूफों में मान का बोध प्रखर – प्रबल होता है। इनके शरीर में खून कम हड्डियाँ अधिक होती हैं। वे बजने लगती हैं। खड़ खड़।

इस भ्रम में हमें नहीं रहना चाहिए कि बम बहादुर केवल राजनीतिक दलों में ही पाये जाते हैं। ऐसी तख्ती कहीं नहीं लगी है कि बम बहादुरों का प्रवेश निषेध है। वे बेधड़क अपना आसन कहीं भी बिछा सकते हैं। सरकारी विभागों में भी खूब पाए जाते हैं। इनकी खाल में छिद्र नहीं होते हैं।

बम बहादुरों का एक स्वभाव अतिक्रमण का होता है। उदाहरण के लिए अगर कोई बम बहादुर पुलिस महकमा का अधिकारी है तो अपनी ड्यूटी में आतंकदाता का अन्दाज धारण कर सकता है। अगर टीवी के पर्दे पर बोलने का मौका मिला तो आपको किसी राजनैतिक दल के घर जमाई होने का अहसास करा देगा। अगर मन्त्री या राजनीतिक दल का प्रवक्ता हुआ तो वह आपको कपिल शर्मा का मजा देगा। अगर बॉलीवुड की प्रतिभा हुई तो वह आपको पॉलिटिकल मजा देगी। अगर टीवी एंकर हुआ तो वह मदारी होने का मजा देगा। कई बम बहादुर एंकर बॉलीवुडी एंटरटेनर की तरह एंग्रीमैन का जलवा दिखाते हैं। जर्नलिस्ट जोकर को शर्मिंदा करते हुए आपका ख्याल रखेगा ।

बम बहादुर अपनी वाक प्रतिभा से बैलों को काफी प्रभावित करते हैं। बम बहादुरों को देखकर बैलों में उत्तेजना पैदा होती है। सच कहता हूं, मुझे अभी भी होती है। बैल की उत्तेजना हास्य और कौतुक का दृश्य पैदा करता है। कई बार बम बहादुरों के आह्वान पर बैल सींग मार ही देता है। बम बहादुरों की यह सफलता होती है। वे आ बैल मुझे मार का वातावरण बना कर दर्शकों को उलझाए रखते हैं। सच तो यह है कि बम बहादुर हों या बैल दोनों एक ही होते हैं। मुर्गा लड़ाना हो या बैल लड़ाना, यह केवल शासकों का शगल नहीं, जरूरत भी होती है। शासक इसे गंभीरता से लेता है। इसके गंभीर नतीजे भी निकलते हैं। सरकार गिर सकती है। नई सरकार बन सकती है। विपक्ष का दायित्व ही है कि पदस्थ सरकार को हिलाता रहे।

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मृत्युंजय श्रीवास्तव

लेखक प्रबुद्ध साहित्यकार, अनुवादक एवं रंगकर्मी हैं। सम्पर्क- +919433076174, mrityunjoy.kolkata@gmail.com
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