विमल कुमार
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Jun- 2024 -2 Juneएतिहासिक
एक नये आन्दोलन का इन्तजार
18 मार्च का दिन आज भी मुझे अच्छी तरह याद है, जब मैं शास्त्री नगर स्थित अपने फ्लैट की छत पर खड़ा होकर पटना को धू-धू कर जलते देख रहा था। यह मेरे जीवन का अनोखा दृश्य था, एक…
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May- 2022 -18 Mayरायल्टी विवाद
रॉयल्टी विवाद में रॉयल्टी और लेखकों का पक्ष
पिछले दिनों सोशल मीडिया पर विनोद कुमार शुक्ल की किताबों पर उन्हें उचित रॉयल्टी न मिलने और उनकी अनुमति के बिना उनकी ऑडियो किताबें निकालने का मामला उठा तो हिन्दी जगत में काफी विवाद खड़ा हो गया और धीरे…
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Apr- 2022 -5 Aprilपरचम
दिल्ली में एक और शाहीन बाग
करीब 2 साल पहले 15 दिसम्बर 2019 में जब दिल्ली के जामिया नगर इलाके में शाहीन बाग आन्दोलन शुरू हुआ था तो वह मीडिया की सुर्खियों में इस कदर छाया कि दुनिया भर की निगाहें उसकी तरह आकर्षित हुईं।…
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Oct- 2021 -25 Octoberसाहित्य
लोकप्रिय साहित्य से परहेज क्यों?
पिछले दिनों हिन्दी की यशस्वी लेखिका शिवानी की 98 वीं जयंती पर उनकी विदुषी पुत्री एवम प्रतिष्ठित पत्रकार लेखिका मृणाल पांडेय ने इस बात की शिकायत की कि हिन्दी के आलोचकों ने शिवानी जी को यथोचित स्थान नहीं दिया।…
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Sep- 2021 -21 Septemberशख्सियत
क्या एलिस फ़ैज़ के साये में दब कर रह गईं?
हमलोग बड़े लेख़को कलाकारों की जीवनी पढ़ते हैं तो उनकी पत्नियों के बारे में कम जानते हैं क्योंकि आम तौर पर जीवनीकार पत्नियों पर अधिक ध्यान नहीं देता। अंग्रेजी साहित्य में लेखक और उनकी पत्नियों के रिश्ते पर भी…
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Aug- 2021 -14 Augustविशेष
विभाजन विभीषिका दिवस के बहाने
प्रधानमन्त्री नरेन्द्र मोदी ने पिछले दिनों 14 अगस्त को “विभाजन विभीषिका स्मरण दिवस” मनाने की घोषणा की। उन्होंने कहा कि इसे हर साल मनाया जाएगा। हमारे समाज में दिवस मनाने की नरेन्द्र प्रथा और परम्परा है। हर माह कोई…
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Jul- 2021 -21 Julyचर्चा में
खतरे की घण्टी है पेगासस
द्वितीय विश्व युद्ध में जब जापान के हिरोशिमा और नागासाकी पर परमाणु बम गिराए गये तो उसकी विभीषिका से आहत होकर विश्व प्रसिद्ध वैज्ञानिक आइंस्टीन और अन्य वैज्ञानिकों ने गहरी चिन्ता जतायी थी और उन्होंने मनुष्यों के नरसंहार पर…
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Jun- 2021 -19 Juneचर्चा में
दो रुपये का लोकतन्त्र
क्या भारतीय लोकतन्त्र की कीमत मात्र दो रुपये हो गयी है? सुनने में यह बात बहुत अजीबो गरीब और अटपटी लगेगी लेकिन सच पूछा जाए तो आज हकीकत यही है। हालाँकि लोकतन्त्र को कभी खरीदा नहीं जा सकता है…
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May- 2021 -21 Mayपरचम
मरघट का मसीहा
“…खुदा कहलाने का शौक था जिसे मरघट का मसीहा बन कर रह गया ” यह पंक्तियाँ हिन्दी के चर्चित कवि एक्टिविस्ट अजय सिंह की है जो इन दिनों सोशल मीडिया पर काफी वायरल हो गयी हैं। लेकिन मेरे मित्र…
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5 Mayराजनीति
लोकतन्त्र में कब तक “खेला होबे”?
पश्चिम बंगाल के विधानसभा चुनाव का नतीजा जो भी आया हो लेकिन इस चुनाव में लगे नारे “खेला होबे” को वर्षों तक याद रखा जाएगा। भारतीय राजनीति में यह एक ऐसा अद्भुत नारा था जो इतना लोकप्रिय हुआ कि…
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