
विभाजन विभीषिका दिवस के बहाने
प्रधानमन्त्री नरेन्द्र मोदी ने पिछले दिनों 14 अगस्त को “विभाजन विभीषिका स्मरण दिवस” मनाने की घोषणा की। उन्होंने कहा कि इसे हर साल मनाया जाएगा। हमारे समाज में दिवस मनाने की नरेन्द्र प्रथा और परम्परा है। हर माह कोई न कोई दिवस हम मनाते ही हैं लेकिन क्या हम इस दिवस को “विष वमन दिवस” कह सकते हैं? सुनने में आपको थोड़ी अतिशयोक्ति लगेगी, थोड़ा अजीब और अटपटा जरूर लगेगा। यह कौन सा दिवस हुआ। भला विष वमन का भी कोई दिवस होता है क्या, लेकिन अगर आप मोदी जी के इस नए नरेटिव को थोड़ा खुरचेंगे तो आपको इस दिवस की हकीकत का पता चल जाएगा।
आखिर हम कोई दिवस क्यों मनाते हैं? हम दिवस किसके लिए मनाते हैं? हम दिवस के जरिये उसकी सुखद स्मृति को मन में कैद कर रहे या उससे एक सन्देश समाज में दे रहें हैं। लेकिन भारत विभाजन की त्रासदी को याद कर हम आखिर कौन सी सुखद स्मृति मन में संजोये रखना चाहेंगे? क्या यह पुराने जख्मों को फिर से कुरेदने का काम नहीं होगा और हम वैसे ही इस समय महा संकट काल से गुजर रहे हैं। हमारी पीठ ज़ख्मों से भरी है।
ऐसे में पुराने जख्मों को याद करने का क्या तुक या औचित्य हो सकता है। और अगर हम अपने विभाजन को याद करते भी हैं इस दिवस के जरिए तो हम कौन सा सन्देश देना चाहेंगे। आपको मोदी सरकार की इस घोषणा के निहितार्थ पर बात करने से पहले यह जानकारी दी जानी चाहिएकि अर्जुन सिंह जब शिक्षा मन्त्री थे तो उन्होंने मौलाना आजाद के नाम पर राष्ट्रीय शिक्षा दिवस मनाने की परंपरा शुर की थी और विज्ञान भवन में हर साल कई कार्यक्रम भी हुए थे।
यह परंपरा यूपीए सरकार के कार्यकाल में चलती रही लेकिन जैसे ही मोदी सरकार सत्ता में आई उसने मौलाना आजाद की जयन्ती पर होने वाले इस कार्यक्रम को समाप्त कर दिया यानी मौजूदा सरकार अब कोई शिक्षा दिवस नहीं मनाती है। वह साक्षरता दिवस जरूर मनाती है जो वर्षों से कांग्रेस के जमाने से चली आ रही है। ऐसे में मोदी सरकार ने शिक्षा दिवस को क्यों बन्द कर दिया। क्या अपने देश के प्रथम शिक्षा मन्त्री की स्मृति में कोई दिवस मनाना अनुचित है जबकि मौलाना आज़ाद बहुत विद्वान और विवाद रहित सेक्युलर नेता थे। पक्के देशभक्त। ‘इंडिया विंस फ्रीडम’ उनकी मशहूर किताब है जो विभाजन के इतिहास को खोल करके रखती है।
लोहिया ने विभाजन पर जो चर्चित किताब ‘भारत विभाजन के गुनाहगार’ लिखी थी वह इसी किताब की दरअसल समीक्षा है। मोदी सरकार को मौलाना साहब की जयन्ती पर शिक्षा दिवस मनाना नहीं भाया जैसे राजीव गाँधी खेल रत्न नहीं भाया। उसने शिक्षा दिवस को इसलिए बन्द कर दिया क्योंकि वह एक मुस्लिम नेता की स्मृति में आयोजित समारोह था। जब मोदी सरकार के मन में एक कौम के प्रति इतनी नफरत है तो फिर विभीषण विभीषिका दिवस मनाने के पीछे उनका उद्देश्य क्या है?
आपने देखा होगा कि मोदी सरकार हर बार कोई नया आख्यायन रचने की कोशिश करती है ताकि जनता उसमें फंसी रहे और मोदी सरकार की विफलताओं को वह भूल जाए। विभाजन विभीषिका स्मरण दिवस भी मोदी जी का एक नया नैरेटिव है जिसमें विभाजन को लेकर आज की नई पीढ़ी के बारे में भ्रम फैलाया जाए और इतिहास को तोड़ मरोड़ कर पेश किया जाए। इतिहास को बदलने की मोदी सरकार की इसी कोशिश के खिलाफ प्रख्यात इतिहासकार इरफान हबीब ने इस साल के प्रारम्भ में ही “सोशल साइंटिस्ट” में एक लम्बा लेख लिखा है जिसमें उन्होंने बताया है कि विश्वविद्यालय अनुदान आयोग ने इतिहास का जो फ्रेमवर्क बनाया है वह वह कितना इतिहास विरोधी और गड़बड़ है तथा इतिहास को ही मिटाने की साजिश है।
आपको जानकर हैरानी होगी कि उस फ्रेमवर्क में भारत पाक विभाजन की घटनाओं और राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी की हत्या का अध्याय शामिल नहीं किया गया है। इसके पीछे सरकार का मकसद यह है कि गाँधीजी की हत्या और 1947 में फैले दंगे में संघ परिवार और हिन्दू महासभा की मिली भगत के बारे में जानकारी न दी जाए क्योंकि गाँधीजी के बारे में जब भी कोई जिक्र होता है तो नाथूराम गोडसे का नाम आता ही है और फिर हिन्दू महासभा तथा संघ परिवार से जुड़े लोग इसके लपेटे में आज तक आते हैं।
मोदी सरकार के लिए यह असुविधाजनक स्थिति पैदा होती है इसलिए संघ परिवार और भाजपा के लोग बार-बार गाँधी जी की हत्या में हाथ होने से अपना पल्ला झाड़ते हैं लेकिन उससे जुड़े लोग गोडसे की पूजा करते हैं। इतना ही नहीं जब कोई आरोप लगाता है तो संघ परिवार के लोग उसके पीछे पड़ जाते हैं और अदालत में भी घसीट लेते हैं। शायद यही कारण है कि मोदी सरकार ने इतिहास के उस फ्रेमवर्क से भारत पाक विभाजन की घटना और गाँधी जी की हत्या के प्रसंग को ही हटा दिया है।
जब एक तरफ मोदी सरकार इतिहास को मिटाने और उसे बदलने की कोशिश कर रही है तो वह भारत पाक विभाजन की घटना को किस रूप में याद करना चाहेगी। जाहिर है वह इस विभाजन के बारे में तथ्यों को नहीं बताएगी बल्कि वह गलत तथ्यों के परिप्रेक्ष्य में इस घटना का मूल्यांकन करेगी। इस आशंका की पुष्टि इस बात से होती है जब मोदी जी ने विभाजन विभीषिका स्मरण दिवस की घोषणा की तो उसके 2 दिन बाद ही केंद्रीय संस्कृति मन्त्री जी किशन रेडी ने एक कार्यक्रम में आजादी का जिक्र करते हुए हैदराबाद के निजाम के सिपाहियों द्वारा की गई कार्रवाई का जिक्र किया और कहा कि आज की युवा पीढ़ी को बताना जरूरी है कि किस तरह उन सिपाहियों ने हैदराबाद की हिन्दू जनता पर अत्याचार किए थे लेकिन मोदी सरकार के मन्त्री यह कभी नहीं बताएंगे कि हैदराबाद के निजाम ने भारत सरकार को 5 टन सोना उस जमाने में दिया और देश की आर्थिक स्थिति को मजबूत बनाया था।
यानी मोदी सरकार इतिहास को हिन्दू मुस्लिम के आईने में देखती है और उसका एकांगी इस्तेमाल करती है। वह इस स्मरण दिवस के जरिये देश में साम्प्रदायिकता और नफरत को फैलाने का एक हथियार बनाएगी। विभाजन पर कई किताबें लिखी जा चुकी हैं। डोमिनिक लपियर से लेकर दुर्गादास और राजमोहन गाँधी तक की किताबों में इसके किस्से मिल जाते हैं लेकिन लोहिया ने विभाजन के लिए कोई एक व्यक्ति को जिम्मेदार नहीं बताया था बल्कि यह सामूहिक जिम्मेदारी का मामला था लेकिन आज संघ परिवार विभाजन के लिए कभी गाँधी को तो कभी नेहरू को जिम्मेदार ठहराता है और इस बात का दुष्प्रचार करता है।
विभाजन के पीछे ऐतिहासिक पृष्ठभूमि को समझना जरूरी है कि किस तरह मुस्लिम लीग और हिन्दू सभा की धर्मिक कट्टरता ने देश को बांटने का काम किया। अब यह तथ्य सामने आगये हैं कि मुस्लिम लीग से पहले हिन्दू सभा ने विभाजन का प्रस्ताव पारित किया लेकिन मोदी सरकार के पास इतिहास को देखने का कभी कोई ऐतिहासिक परिपेक्ष नहीं रहा बल्कि वह घटनाओं को व्यक्ति केंद्रित क़ौम केंद्रित बना देती है और उसके हिसाब से इतिहास की व्याख्या करने लगती है।
विभाजन विभीषिका स्मरण दिवस मनाने के पीछे मोदी सरकार की यह साजिश लगती है कि वह इस बहाने इतिहास का कुपाठ करेगी। उसके पास लाखों व्हाट्सएप ग्रुप और आईटी सेल के हजारों कार्यकर्ता तथा डिजिटल प्लेटफॉर्म मौजूद है जहाँ रोज सत्य का गला घोंटा जा ता और झूठ की खेती की जाती है। यह दिवस एक दिन विष वमन दिवस बन जाएगा। इसलिए विभाजन विभीषिका स्मरण दिवस के पीछे मोदी सरकार के इस खेल को समझने की अधिक जरूरत है।