सामयिक

प्‍यार या व्‍यापार

 

बदलते समय के साथ सबकुछ बदलते जा रहा है। इस बदलाव से प्रेम अथवा प्रेम की परिभाषा भी अछूता नहीं रहा है। घर में और अपने आस-पास कई शादियां तय होते हुए देखा मैने, जिसमें पहली शर्त होती है, लड़के का ठीक-ठाक कमाना। बिना नौकरी वाले लड़के की तो शादी होनी बेहद मुश्किल होती है। किन्तु प्रेम करने के लिए ऐसी शर्त और स्थिति कभी नहीं देखी थी। लेकिन पिछले कुछ सालों से प्रेम पर भी यह शर्त लागू हो गयी है। अब अधिकांश ऐसा देखा जाता है कि जेब में पैसा और हैसियत देखकर प्रेम किया जाता है। आज प्रेम के नाम पर व्‍यापार और बाजार दोनों चल पड़ा है। इस बाजार को बनाए रखने के लिए तरह-तरह के लुभावने हथकंडे अपनाये जाने लगे हैं। इन्‍हीं हथकंडों में से एक है, ‘ वेलेंटाइन डे ’।

एक संत जो प्रेम के नाम पर कुर्बान हो गया, उसी संत के नाम पर प्रेम का व्‍यापार करना अप्रत्‍याशित है। प्रतिवर्ष 14 फरवरी के दिन संत वेलेंटाइन के नाम पर मनाया जाने वाला यह दिवस प्रेम के नाम पर एक बड़ा बाजार खड़ा करने में पूरी तरह से सफल सिद्ध हो रहा है। इस बाजार के झांसे से शायद ही कोई धर्म, वर्ग, जाति, लिंग आदि अछूता रह पाया है।

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     प्रेमी युगल हों या शादीशुदा युगल सभी के सिर पर प्रेम दिवस अथवा ‘वेलेंटाइन डे’ की खुमारी चरम पर रहने लगी है। लेकिन यह खुमारी खुशी का रूप तभी तक ले पाती है, जब तक जेब गर्म हो। जेब के ठंडा होने के साथ-साथ प्रेम भी ठंडा पड़ने लगता है और पल भर में ही प्रेम उड़न छू हो जाता है। अमीरी में जान न्‍योछावर करने वाले प्रेमी, गरीबी देखते ही जान लेने पर उतारू हो जाते हैं। आज प्रेम तभी तक पनप पा रहा है, जब तक तमाम ऐशो-आराम मिले या फिर सारी ईच्‍छायें पूरी होती रहे। छोटी-छोटी अरमानों का भी पूरा न होना करवा चौथ के दिन पत्‍नी द्वारा पति की हत्‍या कर देने के रूप में कभी देखने को मिल जाती है या फिर प्रेमी द्वारा प्रेमिका की हत्‍या के रूप में। प्रेम का रूप हिंसात्‍मक कैसे हो सकता है?

यह भी पढ़ें – आखिर क्या है प्रेम?

प्रेम की परिभाषा तो बलिदान और त्‍याग रही है, फिर उसमें हिंसा और लालच की बात कैसे आ सकती है? आज प्रेम का रूप जो भी हो लेकिन एक बात तय है कि यह प्रेम का वास्‍तविक रूप नहीं बल्कि विकृत रूप है और इसी विकृत रूप के आधार पर एक व्‍यापक बाजार टिका है, जहाँ प्रेम का व्‍यापार होता है।

पिछले 15-20 दिनों से वाट्सअप पर ‘वेलेंटाइन डे’ गिफ्ट के नाम पर एक लिंक शेयर किया जा रहा था। उस लिंक पर क्लिक करने के बाद कुछ प्रश्‍नों के उत्‍तर देने को कहा गया। प्रश्‍नों का जवाब जैसे ही दिया गया, उसमें कुछ गिफ्ट के चित्र दिखें और उस चित्र पर क्लिक करने के लिए कहा गया। जब मैंने गिफ्ट के चित्र पर क्लिक किया, तब उसमें एक संदेश आया कि आपके गिफ्ट का डिब्‍बा खाली है, किन्तु आपको दो बार और मौकें दिये जायेंगे। आप पुन: कोशिश करें। फिर दोबारा कोशिश करने के बाद उसमें मोबाईल फोन का चित्र दिखा। फोन मिलने की खुशी होनी तो तय थी, किन्तु मन में यह भी चल रहा था कि यह सब फर्जी है और व्‍यापार का हथकंडा है। क्षण भर बाद ही एक संदेश दिखा जिसमें लिखा था कि यह फोन आपको तभी मिल सकता है, जब आप इस लिंक को अपने 20 दोस्‍तों को भेजेंगे। इस पूरी प्रक्रिया को मैंने किसी तोहफे के लालच में नहीं बल्कि इसलिए पूरा किया ताकि बाजार के हथकंडे को समझ सकूं। अंतत: मैं अब समझ गयी थी कि क्‍यों अधिकांश वाट्स ग्रुप में ‘वेलेंटाइन डे’ गिफ्ट के नाम पर लिंक शेयर किया जा रहा था। Image result for ‘वेलेंटाइन डे’ sablog.in

कोरोना महामारी के बाद बाजार के साथ-साथ शिक्षा व्‍यवस्‍था भी पूरी तरह से चरमरा गयी। समय के साथ बाजार तो कुछ नियंत्रित भी हो गया, किन्तु शिक्षा व्‍यवस्‍था आज भी यथावत बनी हुई है। ऑनलाईन तकनीक के सहारे किसी तरह से पढ़ाई-लिखाई तो जारी है लेकिन शिक्षा की परिभाषा बदल गयी। शिक्षा के मद्देनजर कई वाट्सअप ग्रुप भी बनाया गया था, जिसमें भी ऐसे लिंक खूब शेयर किए गये और शिक्षा हेतु बनाया गया ग्रुप भी जाने-अनजाने बाजार के काम आ गया। गिफ्ट अथवा तोहफे के लालच में आकर विद्यार्थी तो विद्यार्थी, कुछ शिक्षकों तक ने भी ऐसे लिंक क्‍लास के लिए बनाये गये ग्रुप में शेयर करने से गुरेज नहीं किया ताकि उन्‍हें जीती हुई गिफ्ट मिल सके। इस प्रकार बाजार के हथकंडे में फंसकर लोग भूल जाते हैं कि वे क्‍या कर रहे हैं और उसका परिणाम अथवा दुष्‍परिणाम क्‍या होगा? कई दिनों तक लोग सबकुछ भूलकर लिंक शेयर करने में ही लगे रहें ताकि उन्‍हें मुफ्त में ही कोई बढि़या तोहफा मिल सके। इस प्रकार 20-20 लोगों के बीच लिंक शेयर करने के फंडे के कारण लाखों लोगों के बीच ‘वेलेंटाइन डे’ की चर्चा मुफ्त में हो गयी और बिना किसी विज्ञापन के एक बड़ी श्रृंखला शुरू हो गयी जिससे बाजार का संभावित विस्‍तार भी हो गया।

यह भी पढ़ें – प्रेम पर साइड इफेक्ट

टीवी धारावाहि‍क जो प्राय: लोगों के दिनचर्या का हिस्‍सा बन चुका है, वह भी ‘वेलेंटाइन डे’ के बाजार को व्‍यापक बनाने में बड़ी भूमिका निभा रहा है। अपनी प्रेयसी अथवा प्रेमी को ‘वेलेंटाइन डे’ गिफ्ट देना, ‘वेलेंटाइन डे’ के नाम पर बड़ी-बड़ी पार्टी आयोजित करना अधिकांश धारावाहिकों की पटकथा का महत्‍वपूर्ण हिस्‍सा बन चुका है। टीवी स्‍क्रीन अथवा फिल्‍मी परदे पर दिखने वाली चीजें बड़ी ही आसानी से जाने कैसे, कब, कहाँ हमारे जीवन का हिस्‍सा बन जाता है, यह पता ही नहीं चल पाता।

अभी कुछ दिन पहले आइंस्‍टीन के बारे में मैं अखबार में पढ़ रही थी, जिसमें उन्‍होंने प्रेम को ही दुनिया की गतिशीलता का प्रमुख कारण बताया। इस देश में ज्ञानी भी उसी को बताया गया जिसने ढाई आखर प्रेम का पढ़ा। प्रेम की हजारों अमर कथाएं इस दुनिया में प्रचलित है, जिसमें त्‍याग और समर्पण सर्वोपरि रहा है। इन अनमोल मान्‍यताओं से निकलकर प्रेम कब और कैसे क्षण-भंगूर सूख के साये में सिमट गया, यह गहन चिंतन का विषय है। प्रेम में डूबा व्‍यक्ति त्‍याग की भावना से परिपूर्ण होता है। प्रेम में कुछ लेने की नहीं बल्कि सिर्फ और सिर्फ देने की कामना होती है। कोई किसी से प्रेम करता है तो उस पर सर्वस्‍व न्‍योछावर करने की लालसा बनी होती है। प्रेम में व्‍यापार अथवा नफे-नुकसान की बात कतई नहीं की जा सकती और यदि ऐसा होता है तो वह प्रेम शब्‍द का प्रयोग करके व्‍यापार करके उससे लाभ कमाना है जो सदैव प्रेम की भावनाओं से परे है। जहाँ लाभ-हानि की भावना समाहित हो जाए, वहाँ प्रेम से दूर-दूर तक कोई सम्बन्ध नहीं हो सकता। वह सिर्फ व्‍यापार का रूप ही है।

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अमिता

लेखिका स्वतंत्र लेखक एवं शिक्षाविद हैं। सम्पर्क +919406009605, amitamasscom@gmail.com
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