प्रेम पर साइड इफेक्ट
प्रेम हमारे जीवन का एक ऐसा हिस्सा है जिसके बिना रहना किसी भी हाल में शायद ही संभव है। हर मनुष्य किसी-न-किसी रूप में प्रेम की तलाश में रहता है। यही कारण है कि कुछ मौसम भी प्रेम का संदेश देता है। भारतीय परम्परा के अनुसार बसंत ॠतु के आते ही पूरा मौसम खुशनुमा हो जाता है। ऐसा प्रतीत होने लगता है कि प्रेम भरे इस मौसम में हम भी प्रेम में डूब जायें। वहीं दूसरी तरफ पश्चिमी प्रभाव के कारण फरवरी का महीना आते-आते युवा वर्ग के बीच में, खासतौर पर युगल जोड़ियों पर एक खास उत्साह परवान चढ़कर बोलने लगता है। प्रेम के उत्साह को मनाने के लिए कई दिन जैसे- रोज डे, प्रपोज डे, चॉकलेट डे, टेडी डे, प्रॉमिस डे, हग डे, किस्स डे के बाद अंतत: वेलेंटाइन डे का वह दिन आ जाता है, जिसका साल भर प्रेमी युगल भी इंतजार करते हैं और प्रेम का इजहार करने वाले युवक-युवतियां भी इंतजार करते हैं। पिछले लगभग दो दशक से भारत में संत वेलेंटाइन प्रेम का प्रतीक बनकर उभरे हैं, जिसके परिणाम स्वरूप चाहे वे विवाहित हो या अविवाहित 14 फरवरी (वेलेंटाइन डे) को अपने प्रेम का इजहार विभिन्न प्रकार से करने लगे हैं। लेकिन इन सब के बीच ऐसा भी प्रतीत होने लगा है कि कहीं प्रेम सिर्फ एक दिन तक के लिए ही सिमट कर न रह जाये।
एक समय ऐसा था, जब प्रेमी अपनी प्रेमिका को दूर से देखने के लिए सिर्फ मीलों का सफर पैदल या साईकिल से तय करके जाया करते थें और बिना कुछ कहे-बोले ही चुपचाप लौट आते थें। कई बार तो ऐसा भी होता था कि सिर्फ छत पर अपनी प्रेमिका के सूखते कपड़े को देखकर ही संतोष करना पड़ता था। संदेशों के आदान-प्रदान के लिए मोहल्ले या घर के छोटे अबोध बालक-बालिकाओं का प्रयोग संदेश-वाहक के रूप में किया करते थें। प्रेम के राज का खुलासा भी तभी होता था, जब संदेशवाहक से किसी तरह की चूक हो जाती थी और चिट्ठी भाई या पिता के हाथ में पड़ जाती थी। फिर क्या था शामत तो प्रेमिका पर ही आती थी, कभी कुटाई खानी पड़ती थी तो कभी काले पानी के बराबर की सजा देकर कैदी बना दिया जाता था, लेकिन प्रेम शायद ही मरता था। कई प्रेमी तो प्रेम का निर्वहन करते हुये अपनी प्रेमिका की शादी में बारातियों का स्वागत मजदूरों की तरह किया करते थें या अपनी प्रेमिका के बच्चों को ही अपना बच्चा समझ कर खेलाया करते थें। हद तो तब हो जाती थी जब प्रेमिका के बच्चों के द्वारा उन्हें मामा कहकर बुलाया जाता था और उसे भी सच्चे प्रेमी हृदय से स्वीकार किया करते थे। प्रेम की पराकाष्ठा इससे भी स्पष्ट दिखता है कि प्रेम में चोट खाया हर प्रेमी खुद को कितना भी नुकसान पहुँचा लेता था, लेकिन अपनी प्रेमिका को खरोंच तक नहीं आने देता था।
एक वो जमाना था, जब प्रेमिका की खुशी ही सर्वोपरि होती थी और एक ये जमाना है जब अधिकांश प्रेमी और प्रेमिका दोनों ही सिर्फ अपनी ही खुशी और स्वार्थ का ध्यान रखते हैं। आज प्रेम का इजहार लोग “आई लव यू” कहकर करते हैं, जहाँ प्रेम कम और स्वार्थ ज्यादा झलकता है। लेकिन जहाँ तक मेरा अनुभव रहा है और मैंने जिस प्रेम को देखा और जिया है उस सच्चे प्रेम में कभी इजहार की जरूरत ही नहीं पड़ती थी। वे तो एक खुशनुमा एहसास होता था, जिसे सिर्फ और सिर्फ महसूस किया जाता था। परन्तु अब बहुत दुख के साथ यह कहना पड़ता है कि वे खुशनुमा एहसास और प्रेम आज विलुप्तप्राय हो गया है।
आज प्रेमी-प्रेमिका जिन इच्छाओं की पूर्ति के लिए एक-दूसरे से जुड़ते हैं यदि उसकी पूर्ति न हो तो एक-दूसरे को मरने-मारने पर उतारू हो जाते हैं। या फिर एसिड अटैक और गैंगरेप का शिकार करवा देते हैं। कहीं ‘सावधान इंडिया’ और ‘क्राइम पेट्रोल’ का अपराध में लिप्त प्रेम परवान चढ़ने लगा है तो कहीं फिल्मी दुनिया और विज्ञापन की दुनिया का सिरफिरा प्रेम सिर चढ़कर बोलने लगता है। फिल्मी गानों के बोल भी तकनीक के प्रभाव और आधुनिकता के साथ बदल गया है, जिससे रस में डूबे गीत रसहीन प्रतीत होने लगे हैं। इस तरह वास्तविक प्रेम पर साइड इफेक्ट होने लगा है। आज विज्ञापनों में या फिल्मों में प्रेम के जिस तरीके को दिखाया जाता है, वास्तविक दुनिया में भी हर युवक-युवती उसी प्रेम को पाना चाहता है। अगर कोई वेलेंटाइन डे पर अपनी पत्नी या प्रेमिका या प्रेमी को प्रेम का एहसास उपहारों या अन्य माध्यमों से न कराये तो यह मान लिया जाता है कि उनके बीच कोई प्रेम नहीं है, जो एक समय के बाद अवसाद का कारण बन जाता है और फिर यह अवसाद प्रेम को अलगाव का रूप देने में देर नहीं लगाता। इन स्थितियों को जीवन्त रूप देने में टीवी सीरियल्स की भूमिका भी महत्वपूर्ण रूप में देखी जा सकती है।
आधुनिक युग में प्रेम पर साइड इफेक्ट सबसे ज्यादा किसी चीज का हुआ है तो वे है तकनीक का। तकनीक के आने के बाद ऐसा प्रतीत होने लगा है, जैसे प्रेम कोई संक्रमण काल से गुजर रहा हो। यह संक्रमण तो कई बार युवक-युवतियों की जान तक लेने से भी कोई गुरेज नहीं करता। आज इस तकनीक के कारण प्रेम में जुड़ना और अलग होना दोनों ही बेहद सहज हो गया है। मुझे लगता है इन सुलभ साधनों ने प्रेम के मायने और संदर्भ दोनों को पूरे तरीके से बदल कर रख दिया है। घंटों चैटिंग, फोन कॉल, वीडियो कॉल के साथ-साथ अश्लीलता और फूहड़ता के विभिन्न तरीकों ने प्रेम को तोड़-मरोड़कर रख दिया है। प्रेम का जो विकृत रूप हमारे सामने है वह समाज के लिए एक भयावाह संदेश से कम नहीं है, साथ ही एक विकृत समाज का नींव भी है।
आज सोहनी महिवाल, हीर-रांझा, रोमियो-जुलियट, देवदास-पारो आदि जैसे वे ऐतिहासिक प्रेमी युगल शायद ही बन पायेंगे क्योंकि आज प्रेम में आने वाले अड़चनों और संघर्षों और अंडरवर्ल्ड के भाई की भूमिका वाले प्रेमिका का भाई शायद ही देखने को मिलता है, जो प्रेम के बीच में खलनायक की भूमिका का सफलतापूर्वक निर्वहन किया करता था। आज अधिकांश युगल उन्मुक्त पंक्षी की तरह जीते हैं। समाज के खुलेपन और आधुनिकता की आड़ ने प्रेम संबंधों को बर्बाद करके रख दिया है। हर दिन स्कूल, कॉलेज आदि की आड़ में युवक-युवतियां एक विकृत प्रेम का शिकार हो रहे हैं। अब घर से निकलने के लिए न तो किसी बहाने की आड़ लेनी पड़ती है और न ही घरवालों के सवाल-जवाब से होकर गुजरना पड़ता है। अब मां-बाप के डांट-मार भी खत्म होते जा रहे हैं, जिसके कारण डर-भय के साथ-साथ संस्कार भी अंतिम दौर से गुजर रहा है। इस तरह प्रेम पर कई तरह के साइड इफेक्ट आसानी से देखे जा सकते हैं, जो प्रेम के लिए किसी श्रद्धांजलि से कम नहीं है।
प्रेम दिवस मनाने वाले हर युगल अथवा युवक-युवतियों को यह समझना होगा कि जिस तरह चांद से चांदनी दूर नहीं हो सकती, उसी तरह मिलना-बिछड़ना सब प्रेम का ही रूप है और इसे हर हाल में खुशी-खुशी स्वीकार करना चाहिए। प्रेम तो एक एहसास से जिसे रूह से महसूसकिया जा सकता है।
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