Mahatma Gandhi
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शख्सियत
आज गांधी के बाद लोहिया ही सबसे ज्यादा प्रासंगिक है
महापुरूषों की स्मृति और मूल्यांकन से ही कोई समाज ऊर्जा ग्रहण कर निखर सकता है। गांधी जी के बाद डॉक्टर राममनोहर लोहिया ही सबसे प्रखर विचारक-चिंतक रहे हैं। अपनी धरती-मिट्टी, उसकी सुगंध से जुड़े हुए है। छिटपुट लेखन-भाषण, सभा-गोष्ठियों…
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पुस्तक-समीक्षा
उसने गाँधी को क्यों मारा
गाँधी एक ऐसा शब्द है जिसे हमने बचपन से सुना, आज भी गाँधी के ऊपर सोशल मीडिया पर कोई पोस्ट चिपका दो तो पक्ष-विपक्ष वाले उन पर अपनी राय देने के लिए तैयार रहते हैं। महात्मा की हत्या करने…
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शख्सियत
सम्पूर्ण क्रान्ति के शिल्पी : लोकनायक जयप्रकाश नारायण
आजाद भारत के असली सितारे – 12 सक्रिय राजनीति से डेढ़ दशक तक दूर रहने के बाद 1974 में “सिंहासन खाली करो कि जनता आती है।” के नारे के साथ जब मैदान में उतरे तो सारा देश जिनके…
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साहित्य
महात्मा गाँधी की भाषा दृष्टि
गाँधी के जीवन में भाषा को लेकर पहली उलझन तब पैदा हुई जब वे चौथी कक्षा में थे। अपनी आत्मकथा में उन्होंने एक संस्मरण के जरिए बताया है कि किस तरह भूमिति जैसा प्रिय विषय अँग्रेजी माध्यम की वजह…
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एतिहासिक
आर्थिक समानता के लिये गाँधी की ट्रस्टीशिप
गाँधी के शब्दों में मै स्वराज हासिल करने के लिये प्रयासरत हूँ। उन जी-तोड़ मेहनत करने वाले और बेरोजगार लाखों करोड़ों लोगों के लिये, जिन्हे दिन में एकबार भी भरपेट खाना नसीब नही होता और बासी रोटी के एक…
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एतिहासिक
7 जून, 1893 का वो दिन
राजीव कार्तिकेय 7 जून, 1893 का वो दिन जिसने तय किया कि दुनिया का इतिहास और भूगोल कोई भी बदल सकता है! बगावती एहसास का वह ठंडा क्रांतिकारी मुसाफिर जो अपनी जिन्दगी की खामोशियों को ज्यादा से ज्यादा…
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शख्सियत
ऑस्कर जीतने वाली फिल्म ‘गाँधी’
{Featured in IMDb Critics Reviews} यूँ तो हमारे राष्ट्रपिता गाँधी पर कई बेहतरीन फ़िल्में बनी हैं। मसलन ‘फ़िरोज अब्बास मस्तान’ निर्देशित ‘गाँधी माय फादर’ जिसमें गाँधी का किरदार ‘दर्शन जरीवाला’ ने निभाया। इसके अलावा ‘कमल हसन’ ने भारत…
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हत्या का कोई तर्क नहीं होता – दीपक भास्कर
दीपक भास्कर आज 30 जनवरी है। आज के दिन फिर से एक बार, “ब्राह्मणवाद” ने अपनी सबसे क्रूरतम लक्षण का प्रदर्शन किया था। “महात्मा गांधी” की हत्या, एक हिन्दू-ब्राह्मण नाथूराम गोडसे द्वारा की गई थी। और अब हत्यारे नाथूराम गोडसे…
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मुनादी
कठिन समय में गाँधी
सभ्यता के विकास-क्रम में आज मनुष्य जिस चौतरफा संकट से घिरा हुआ है, ऐसा इसके पहले कभी नहीं था। बाजारोन्मुख उपभोक्तावादी संस्कृति ने मनुष्य की मानसिकता को भोग-विलास की भावना से जिस कदर भर दिया…
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