{Featured in IMDb Critics Reviews}
यूँ तो हमारे राष्ट्रपिता गाँधी पर कई बेहतरीन फ़िल्में बनी हैं। मसलन ‘फ़िरोज अब्बास मस्तान’ निर्देशित ‘गाँधी माय फादर’ जिसमें गाँधी का किरदार ‘दर्शन जरीवाला’ ने निभाया। इसके अलावा ‘कमल हसन’ ने भारत के बंटवारे और गाँधी की हत्या की पृष्ठभूमि को आधार बनाकर ‘हे राम’ बनाई, इसके साथ ही ‘राजकुमार हिरानी’ की ‘लगे रहो मुन्ना भाई’ में भी गाँधी को किसी न किसी रूप में रखा ही गया और इसमें ‘दिलीप प्रभावलकर’ ने गाँधी का किरदार निभाया। ‘द लीजेंड ऑफ़ भगत सिंह’ ‘राजकुमार संतोषी’ की, ‘केतन मेहता’ की फ़िल्म ‘सरदार’, ‘श्याम बेनेगल’ की ‘द मेकिंग ऑफ़ गाँधी’ ‘जहनू बरुआ’ की ‘मैंने गाँधी को नहीं मारा’ जिसमें ‘अनुपम खेर’ ने शानदार अभिनय किया। ये कुछ चुनिंदा फिल्में हैं जो कहीं न कहीं पूर्णतया तो कहीं न कहीं अंशतः ‘गाँधी’ को आधार बनाकर बनाई गई शानदार और सफल फ़िल्में हैं।
फ़िलहाल ‘बेन किंग्सले’ अभिनीत ‘ऑस्कर अवार्ड’ से आज ही के दिन 11 अप्रैल को नवाजी गई शानदार फ़िल्म ‘गाँधी’ (1982) जिसे ‘रिचर्ड एटनबरो’ ने निर्देशित एवं निर्मित किया और ‘अमरीश पुरी’, ‘ओम पुरी’ तथा ‘पंकज कपूर’ ने भी सहायक के रुप में बेहतरीन साथ दिया। 1982 में बनी इस लोकप्रिय फिल्म का आधार हमारे बापू मोहनदास करमचन्द गाँधी ही हैं। फिल्म का निर्देशन रिचर्ड एटनबरो द्वारा किया गया है और यह फिल्म कई पुरूस्कार अपने नाम कर चुकी है। मसलन सर्वश्रेष्ठ फिल्म अकादमी, सर्वश्रेष्ठ निर्देशक, सर्वश्रेष्ठ कथानक, सर्वश्रेष्ठ एडिटिंग, सर्वश्रेष्ठ अभिनेता (बेन किंग्सले), सर्वश्रेष्ठ कला निर्देशन, सर्वश्रेष्ठ छायांकन, सर्वश्रेष्ठ ड्रेस डिजाइन, सर्वश्रेष्ठ मेकअप, सर्वश्रेष्ठ साउंड आदि। इस फिल्म की शूटिंग 26 नवम्बर 1980 में शुरू हुई और 10 मई 1981 को यह फिल्म बनकर तैयार हो गई। इस फिल्म में गाँधी जी के अन्तिम संस्कार को दिखाने के लिए तीन लाख से अधिक लोगों का एक्स्ट्रा के रूप में इस्तेमाल किया गया जो अपने आप में एक गिनीज वर्ल्ड रिकॉर्ड भी है।
इस महाकाव्य रूपी फिल्म में एक छोटा सा दृश्य आपको संपूर्ण फ़िल्म की अद्भुत क्षमता को दिखाने समझाने में बडा सहायक होगा। दशकों के महान विस्तार में डूबी इस फिल्म का शुमार दुनिया की महाकाव्यात्मक फिल्मों में किया गया। आरम्भ से लेकर अन्तिम दृश्यों तक एक एक मानवीय धागा कहानी की संवेदना को समेटे हुए है। एटनबरो की इस (गाँधी) फिल्म का केनवास इतना भव्य है कि इसे फिर से करना किसी भी फिल्मकार के लिए एक बडा ख्वाब होगा। यह फ़िल्म विश्व सिनेमा की सर्वकालिक फिल्मों की सभी मापदंडों को पूरा करती है। अतुलनीय केनवस को जीवन्त करना हमेशा से असम्भव के निकट रहा है। बापू को एक बार फिर जीवित देखने की कामना फिल्म को आकार दे जाती है।
महात्मा गाँधी के जरिए भारत की कहानी बताने का संकल्प इसमें नजर आता है और फ़िल्म के शीर्षक को देखते हुए उसी के अनुरुप किरदार का भी उपयुक्त अभिनेता चयन का सिलसिला भी मुश्किल गंभीरता की माँग करता है। काफी खोजबीन बाद ‘बेन किंग्सले’ को महात्मा गाँधी का ड्रीम रोल दिया गया था। पूरी कहानी में अभिनेता ने किरदार को पूरी तरह अपना लिया और बेन किंग्सले में गाँधी जी का पूरा अक्स देखने को मिलता है। फिल्म से गुजरते हुए ज्यादातर हिस्सों में एहसास होता है कि हम अपने महात्मा उर्फ्फ़्फ़ बापू को देख रहे हैं। सहज-सरल-विनम्र होकर एक पावरहाउस अभिनय का दस्तावेज एटनबरो की फिल्म में दर्ज है। इस कलाकार ने भी महात्मा गाँधी का काफी गहन अध्ययन किया होगा तभी वह इतना जीवन्त किरदार दुनिया के सामने पेश कर पाने में सफल हुए। फ़िल्म के ज्यादातर दृश्यों में महात्मा के व्यक्तित्व की झलक ‘बेन किंग्सले’ के कला कौशल में नजर आती है। हो न हो इसके लिए बापू का नैतिक आचरण भी किरदार को बडी प्रेरणा देता दिखाई देता है।
फिल्म की कहानी महात्मा गाँधी के जीवन में दक्षिण अफ्रीका की कथा को स्थापित करते हुए शुरू होती है। जब वे वकालत की पढाई के सिलसिले में वहाँ गए थे। शिक्षा-दीक्षा के दरम्यान वहाँ की कडवी व अमानवीय रंगभेद नीति की वजह से उन्हें काफी जिल्लत उठानी पड़ी। तमाम तत्कालीन व्यवस्था को लेकर चलती हुई फिल्म ‘गाँधी’ एक ऐतिहासिक दस्तावेज का दर्जा रखती है। इतिहास की घटनाओं का बंधन फिल्म को विस्तृत केनवास पर बनाने के लिए बाध्य कर गया लगता है। अफसोस कि देश के मुस्तकबिल का मार्गदर्शन करने वाले बापू आजाद भारत को ज्यादा समय तक देख न सके और सत्य-अहिंसा के बापू को एक हिंसक अंत का दिन देखना पड़ा।
एटनबरो की यह फिल्म केवल सुखद अंत वाली कहानी नहीं। अतीत बदला नहीं जा सकता किन्तु फिर भी गाँधी जी की हत्या हमें एक संदेश दे जाती है कि जीत अंतत: अहिंसा की होगी। फिल्म का संगीत दिया था रवि शंकर और जोर्ज फेनटन ने। इस फिल्म को 55 वें ऑस्कर अवार्ड्स फिल्मोत्सव में 8 ऑस्कर मिले थे। किंग्सले द्वारा निभाया गया गाँधी जी का अहम किरदार एक मील का पत्थर साबित हुआ। एक ब्रिटिश अभिनेता को भारत के राष्ट्रपिता के किरदार में इतना बेहतरीन उतरते हुए देखना लोगों के लिए अविश्वसनीय था। राष्ट्रपिता के चरणों में कृतज्ञ नमन करते हुए फ़िल्म देखना अलग ही अनुभूति कराता है। देखिएगा अगर आपने अभी तक नहीं देखी तो।
अपनी रेटिंग – 4 स्टार
.
तेजस पूनियां
लेखक स्वतन्त्र आलोचक एवं फिल्म समीक्षक हैं। सम्पर्क +919166373652 tejaspoonia@gmail.com
Related articles

अपने ही ‘अनेक’ के फेर में उलझती फिल्म
तेजस पूनियांMay 30, 2022
फिल्म देखिए, पसन्द आए तो पैसे दीजिए!
तेजस पूनियांMay 28, 2022
उलझनों को सुलझाती ‘ग्रुप डी सीजन 2’
तेजस पूनियांApr 25, 2022
कमाठीपुरा के बाज़ार में खड़ी ‘गंगूबाई’
तेजस पूनियांFeb 25, 2022
फ्लॉवर और फायर के बीच ‘पुष्पा’
तेजस पूनियांFeb 19, 2022डोनेट करें
जब समाज चौतरफा संकट से घिरा है, अखबारों, पत्र-पत्रिकाओं, मीडिया चैनलों की या तो बोलती बन्द है या वे सत्ता के स्वर से अपना सुर मिला रहे हैं। केन्द्रीय परिदृश्य से जनपक्षीय और ईमानदार पत्रकारिता लगभग अनुपस्थित है; ऐसे समय में ‘सबलोग’ देश के जागरूक पाठकों के लिए वैचारिक और बौद्धिक विकल्प के तौर पर मौजूद है।
विज्ञापन
