अभी तक सुशांत ने अपने जादू के जलवे का पूरा खेल नहीं दिखाया था। दिखाता, इससे पहले ही उसका खेल सिमट गया। वह मर गया। कहते हैं अपने हाथों मरा। कुछ को लगता है हाथ किसी और का था। एक का नहीं, कई खानसामे के हाथ थे। कहने वाले ऐसा भी कह रहे हैं। नैपोटिज्म और माफिया की हांडी में रेसिपी बनी। अंधेरे में हाथ टटोले जा रहे हैं। अब तक मुंबई पुलिस टटोल रही थी। अब पटना पुलिस भी अंधेरे में टार्च लेकर निकल पड़ी है।
सुशांत के पिता ने पटना में एफआईआर कर दिया है। रिया को फ्रेम में ले लिया है। एक्शन में पटना पुलिस आ गयी। मुबंई पहुँच गयी है पुलिस। आगे देखना बाकी है क्या होता है। कुछ होता हुआ का अहसास दे रहा है।
टीवी चैनलों को टीआरपी बढ़ाने का मौका मिल गया है। सुशांत के चाचा हों या सुशांत के पिता के वकील सभी के बाइट चला- चबा रहे हैं। रिया के घर के बाहर कैमरे ने डेरा डाल दिया है। उनका धंधा ही कुछ ऐसा है कि वे देवर दीवाने की तरह दाना देखते ही चुगने पहुँच जाते हैं।
सुशांत के मरने के बाद से ही कंगना एक्टिव हो गयीं। एक्टिव नहीं एक्टिविस्ट हो गयीं। अकेले दम पर हो गयीं। बहादुर हैं। अगर बहादुर न होतीं तो यह सोच कर चुप रह सकती थीं कि पानी में रह कर मगरमच्छ से बैर क्यों लेना। लेकिन मगरमच्छों के रहते भी अकेले तैरने की कूवत वे रखतीं हैं। सैल्यूलाइड की इस पहाड़ी छोकरी के लिए सैल्यूट बनती है। सैल्यूट भी और फ्लाइंग किस भी।
कंगना के अकेले दम पर लगभग डेढ़ महीने लगातार एक्टिविस्ट की भूमिका में रहने के बाद सबको खामोश कर देने वाले बिहारी बाबू शत्रुघ्न सिन्हा के मुँह में जमा दही ढीला पड़ा। बिहारी बाबू ने उनकी पीठ थपथपाई। हौसला दिया। हुनर और जज्बा दोनों में लज्जत देखी। कहा कि बॉलीवुड किसी की जागीर नहीं है। और सुशांत के लिए सीबीआई जांच की माँग भी की।
कंगना के साथ साथ शेखर सुमन ने भी मोर्चा संभाला। लगातार न्याय की माँग की। पटना भी गये। प्रेस कॉंफ्रेंस भी किया। सुशांत की मौत का हिसाब माँगा। पटना तो गए थे पर्दे पर न्याय माँगने वाले नाना पाटेकर भी। सुशांत के पिता का दुख भी बांटा, मगर न्याय की माँग गलती से भी नहीं की। हम इसे मगरमच्छ के आंसू नहीं कह सकते। आखिर कुछ लोग फेंस पर भी होते हैं।
मनोज बाजपेयी ने बड़का कलाकार साबित किया है अपने को पर्दे पर। सुशांत के मामले में भी उनकी कलाकारी ने हमारा दिल तोडा़ है। भगवान न करे कि उनकी यह कलाकारी उनके कलाकार जीवन का अन्त न कर दे। उनका अभिनय कौशल उनके जमीरदार होने की सूचना तो देता है। मनोज बाजपेयी ने खुद ही कहीं कहा है कि सुशांत उनके घर का बच्चा था। बहुत करीब था। घर आता था। खाना खाता था।
सुशांत सिंह राजपूत की मौत से अनुपम खेर को गहरा धक्का लगा था। वे उसके पिता नहीं थे, लेकिन फिल्मी पर्दे पर एक बार पिता का रोल किया था। रोल भी ऐसे पिता का किया था जो अपने बेटे के सैटल न होने पर कितने अनसैटल हो जाते हैं। अपने उसी पर्दे के बेटे की मौत की खबर से एक सच्चे पिता की तरह वे अनसैटल हो गए। शक्ति कपूर की आवाज में भी दर्द गहरा था। उनकी बेटी श्रद्धा कपूर सुशांत की फिल्म में बराबर की अदाकारा थीं। दोनों का ही सुशांत से गहनापा नहीं था, एक दो बार मिले भर थे। इतने भर से अनुपम खेर और शक्ति कपूर विचलित दिखे। सुशांत के पिता चौहत्तर वर्ष के हैं। इस उम्र में अपने होनहार बेटे की मौत से कितने विचलित हो गए होंगे। बेटे सुशांत की उम्र केवल चौतीस थी। हे परवरदिगार! दर्द सहने की ताकत बनाए रखना।
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मृत्युंजय श्रीवास्तव
लेखक प्रबुद्ध साहित्यकार, अनुवादक एवं रंगकर्मी हैं। सम्पर्क- +919433076174, mrityunjoy.kolkata@gmail.com

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