मुद्दा

सामाजिक न्याय बनाम वैश्विक शांति

 

समाज एक से अधिक लोगों के समुदायों से मिलकर बने एक वृहद समूह को कहते हैं, जिसमें सभी व्यक्ति मानवीय क्रिया-कलाप करते हैं। मानवीय क्रिया-कलाप में आचरण, सामाजिक सुरक्षा और निर्वाह आदि की क्रियाएं सम्मिलित होती हैं। मनुष्य सामाजिक प्राणी है। मनुष्य सभी प्राणियों में सर्वश्रेष्ठ है। अन्य प्राणियों की मानसिक शक्ति की अपेक्षा मनुष्य की मानसिक शक्ति अत्यधिक विकसित है। समाज रूपी मकान जब न्याय रूपी स्तम्भ पर खड़ा होता है तो ऐसा समाज सौम्यता, समानता और शांति का प्रतीक होता है।

सामाजिक न्याय, विश्व में शांति कायम करने का एक महत्वपूर्ण अंग है। सामाजिक न्याय (सोशल जस्टिस) की बुनियाद सभी मनुष्यों को समान मानने के आग्रह पर आधारित है। सामाजिक न्याय अर्थात समानता का अधिकार। न्याय ही समाज में फैली तमाम तरह की बुराईयों और गैर-सामाजिक तत्वों पर लगाम लगाने उन्हें सजा देने तथा तमाम नागरिकों के नैतिक और मानवाधिकारों की रक्षा करता हैं। यह दिवस खास कर समाज में फैली फैली असमानता और भेदभाव जैसी कुरीतिओं के प्रति तेजी से उठ रहे असमानता और भेदभाव से समाजिक न्याय की मांग को देखते हुए कई कानून बने लेकिन आज भी यह बुराई हमारे समाज में फैली हुयी हैं।

इसे दूर करने के लिए कई बार विचार विमर्श हुए और इसके निदान के लिए कई अभियान भी चलाये गए|लेकिन फिर भी अभी तक समाज से यह बुराई नहीं मिट पायी। सामाजिक न्याय एक सपना का सपना ही बना रहा। समाज में फैली भेदभाव और असमानता के कारण मानवाधिकारों का हनन लगातार होता रहा। भारत में अशिक्षा, ग़रीबी, बेरोजगारी, महंगाई और आर्थिक असमानता ज्यादा है। इन्हीं भेदभावों के कारण सामाजिक न्याय बेहद विचारणीय विषय हो गया है।

डॉ. मार्टिन लूथर किंग जूनियर (15 जनवरी 1929 – 4 अप्रैल 1968) अमेरिका के एक पादरी, आन्दोलनकारी (ऐक्टिविस्ट) एवं अफ्रीकी-अमेरिकी नागरिक अधिकारों के संघर्ष के प्रमुख नेता थे। उन्हें अमेरिका का गांधी भी कहा जाता है। मार्टिन लूथर किंग ने कहा था कि “जहां भी अन्याय होता है वहां हमेशा न्याय को खतरा होता है। यह बात केवल वैधानिक न्याय के बारे में ही सही नहीं है क्योंकि एक विवेकपूर्ण समाज से सदैव समावेशी प्रणाली के लिये रंग, नस्ल, वर्ग, जाति जैसी किसी भी प्रकार की सामाजिक बाधा से मुक्त न्याय सुनिश्चित करने की उम्‍मीद की जाती है ताकि समाज का कोई भी व्यक्ति अपने न्याय के अधिकार से वंचित न हो सके।

किसी को भी न्याय से वंचित रखना न केवल सामाजिक न्याय के सिद्धांतों के खिलाफ है, बल्कि संविधानिक प्रावधानों के भी खिलाफ़ हैं। अंतर्राष्ट्रीय शांति दिवस की स्थापना 1981 ई. में संयुक्त राष्ट्र महासभा द्वारा की गई थी। दो दशक बाद, 2001 ई.में, महासभा ने सर्वसम्मति से 21 सितम्बर को अहिंसा और संघर्ष विराम की अवधि के रूप में नामित करने के लिए मतदान किया। अंतर्राष्ट्रीय शांति दिवस 2021 ई. की थीम है – “एक समान और टिकाऊ दुनिया के लिए बेहतर पुनर्प्राप्ति” (रीकवरिंग बेटर फॉर एन एक्वीटेबल एंड सस्टेनेबल वर्ल्ड)।

प्रत्येक वर्ष 21 सितंबर को दुनिया भर में अंतर्राष्ट्रीय शांति दिवस मनाया जाता है। संयुक्त राष्ट्र महासभा ने इसे 24 घंटे अहिंसा और संघर्ष विराम के माध्यम से शांति के आदर्शों को मजबूत करने के लिए समर्पित दिन के रूप में घोषित किया है। वर्ष 2021 में, जैसा कि हम लोग कोविड-19 महामारी से ठीक हो गए हैं और हम लोग रचनात्मक और सामूहिक रूप से सोचने के लिए प्रेरित हो रहे हैं कि कैसे सभी को बेहतर तरीके से ठीक करने में मदद की जाए और कैसे अपनी दुनिया को अधिक समान, अधिक न्यायपूर्ण बनाने में मदद की जाए। हम दुनिया को कैसे न्याय संगत, समावेशी, टिकाऊ और स्वस्थ बना सकते हैं।

अप्रैल 2021 तक, विश्व स्तर पर 687 मिलियन से अधिक कोविड-19 वैक्सीन खुराक का प्रबंध किया जा चूका है, लेकिन 100 से अधिक देशों को एक भी खुराक नहीं मिली है। स्वास्थ्य सेवा तक पहुंच की कमी के मामले में संघर्ष में फंसे लोग विशेष रूप से कमजोर होते हैं। पिछले मार्च में वैश्विक युद्धविराम के लिए महासचिव की अपील के अनुरूप, फरवरी 2021 में सुरक्षा परिषद ने सर्वसम्मति से एक प्रस्ताव पारित किया जिसमें सदस्य राज्यों को स्थानीय संघर्षों के लिए “निरंतर मानवीय विराम” का समर्थन करने का आह्वान किया गया।

वैश्विक युद्धविराम का सम्मान करना जारी रखना चाहिए, ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि संघर्ष में फंसे लोगों को जीवन रक्षक टीकाकरण और उपचार तक पहुंच प्राप्त हो। महामारी के साथ कलंक, भेदभाव और घृणा में वृद्धि हुई है। वायरस सभी पर हमला करता है, बिना इस बात की परवाह किए कि हम कहां से हैं या हम किस पर विश्वास करते हैं। मानव जाति के इस आम दुश्मन का सामना करने के लिए, हमें याद दिलाया जाना चाहिए कि हम एक दूसरे के दुश्मन नहीं हैं।

महामारी की तबाही से उबरने में सक्षम होने के लिए, हमें एक दूसरे के साथ शांति स्थापित करनी होगी। हमें प्रकृति के साथ शांति बनानी चाहिए। हमें एक हरित और टिकाऊ वैश्विक अर्थव्यवस्था की जरूरत है जो रोजगार पैदा करे, उत्सर्जन को कम करे और जलवायु प्रभावों के प्रति लचीलापन बनाए। 2021 के ग्लोबल पीस इंडेक्स (जी.पी.आई) में बांग्लादेश को 163 देशों में से 91वें स्थान पर रखा गया है। सूची के अनुसार, बांग्लादेश दक्षिण एशिया में तीसरा सबसे शांतिपूर्ण है।

श्रीलंका 2020 से 19 पायदान नीचे गिरकर इस साल की रैंकिंग में वैश्विक स्तर पर 95वें और दक्षिण एशिया में चौथे स्थान पर पहुंच गया है। दक्षिण एशिया में शांति में सबसे बड़ा सुधार पाकिस्तान में हुआ, जो पिछले साल की रैंकिंग से दो पायदान ऊपर उठकर वैश्विक स्तर पर 150वें और इस क्षेत्र में छठे स्थान पर रहा। आइसलैंड दुनिया का सबसे शांतिपूर्ण देश बना हुआ है, जो 2008 से इस स्थिति में है। यह न्यूजीलैंड, डेनमार्क, पुर्तगाल और स्लोवेनिया द्वारा सूचकांक के शीर्ष पर शामिल हो गया है।

अफगानिस्तान लगातार चौथे वर्ष दुनिया का सबसे कम शांतिपूर्ण देश है, इसके बाद यमन, सीरिया, दक्षिण सूडान और इराक हैं। यमन को छोड़कर, सभी को कम से कम 2015 के बाद से पांच सबसे कम शांतिपूर्ण देशों में स्थान दिया गया है, 2010 के बाद से अफगानिस्तान को तीन सबसे कम शांतिपूर्ण देशों में स्थान दिया गया है। भारत अपने पिछले साल की रैंकिंग से दो पायदान ऊपर चढ़कर दुनिया का 135वां सबसे शांतिपूर्ण देश और इस क्षेत्र में 5वां देश बन गया है।

इस क्षेत्र में भूटान और नेपाल को पहले और दूसरे सबसे शांतिपूर्ण के रूप में नामित किया गया है। हिंसा के जरिये जोर जुल्म से बात मनवाना असहिष्णुता है। असहिष्णुता गुंडों के द्वारा की जाती है। असहिष्णुता से दृढ़ संकल्पित रूप से सामना करने की जरुरत है। रक्त से किसकी प्यास बुझती है, क्या आप जानते हैं? पिशाचों व पशुओं की, तुम तो फिर मनुष्य ही हो। असहिष्णुता गुंडाराज को चरितार्थ करती है। बोलने का अधिकार हमारा जन्मजात अधिकार है। यदि बोलना बंद कर दिया गया तो हमारी आवाज़ और हमारे विचार सीमित हो जाएंगे। इसलिए भारतीय संविधान के अनुच्छेद 19(क) के अंदर हमें बोलने की स्वतंत्रता दी गई है। यह हमारा मौलिक अधिकार है।

अतः हम इसे लेकर न्यायालय में भी जा सकते हैं। भारतीय संविधान में स्वतंत्रता का अधिकार मूल अधिकारों में सम्मिलित है। इसकी 19, 20, 21 तथा 22 क्रमांक की धाराएँ नागरिकों को बोलने एवं अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता सहित 6 प्रकार की स्वतंत्रता प्रदान करतीं हैं। भाषण और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता भारतीय संविधान में धारा 19 द्वारा सम्मिलित 6 स्वतंत्रता के अधिकारों में से एक है। 19(क) वाक् और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता, 19(ख) शांतिपूर्ण और निराययुद्ध सम्मेलन की स्वतंत्रता, 19(ग) संगम, संघ या सहकारी समिति बनाने की स्वतंत्रता, 19(घ) भारत के राज्य क्षेत्र में सर्वत्र अबाध संचरण की स्वतंत्रता, 19(ङ) भारत के राज्यक्षेत्र में सर्वत्र कही भी बस जाने की स्वतंत्रता, 19(छ) कोई भी वृत्ति, उपजीविका, व्यापार या कारोबार की स्वतंत्रता। भारत में जो आपसी सौहार्द बिगाड़ने का प्रयास करे वह भारतीय कम व आतंकी ज्यादा है।

मानवता, सहिष्णुता की जननी है। सच्ची मानवता तब जन्मेगी, जब दुनिया से असहिष्णुता मिटेगी, जब दुनिया में लोगों को जीने की स्वतंत्रता होगी, जब दुनिया से वहशीपन हटेगा, जब उगता सूरज सारे अँधेरे को लील जाएगा, जब शेर की गर्जन से हिरन जान बचाकर नहीं भागेंगे, शेर पर भरोसा होगा तब दुनिया से बुराई का अंधकार छट जाएगा और सही मायने में सहिष्णुता का राज होगा। बृहदारण्यक उपनिषद में विद्यमान एक मन्त्र है। यह मन्त्र मूलतः सोम यज्ञ की स्तुति में यजमान द्वारा गाया जाता था। “असतो मा सद्गमय। तमसो मा ज्योतिर्गमय। मृत्योर्मामृतं गमय ॥” – बृहदारण्यकोपनिषद् 1.3.28। जिसका अर्थ है – मुझे असत्य से सत्य की ओर ले चलो। मुझे अन्धकार से प्रकाश की ओर ले चलो। मुझे मृत्यु से अमरता की ओर ले चलो॥

एक समय था जब भारत की संस्कृति किसी परिचय की मोहताज नहीं थी। हिंदुस्तान की संस्कृति ऋग्वेद जितनी पुरानी है। ऋग्वेद की रचना ईसा मसीह के जन्म लेने के 2500 वर्ष पूर्व की है। सफल जीवन के चार सूत्र हैं-जिज्ञासा, धैर्य, नेतृत्व की क्षमता और एकाग्रता। जिज्ञासा का मतलब जानने की इक्षा। धैर्य का मतलब विषम परिस्थितयों में अपने को सम्हाले रहना। नेतृत्व की क्षमता का मतलब जनसमूह को अपने कार्यों से आकर्षित करना। एकाग्रता (एक+अग्रता) का अर्थ है एक ही चीज पर ध्यान केन्द्रित करना।

यही चारो सूत्र आपके ज्ञान को विशेष स्वरूप प्रदान करता है। ज्ञान, शान्ति का प्रतीक है। अज्ञानता, अशांति का प्रतीक है। विश्व में शान्ति वही कायम कर सकता है, जो ज्ञानी है। अज्ञानी तो अशांति का कारक होता है। भारत जैसे देश में अब बलात्कारियों की संख्या बढ़ गई है। आए दिन बलात्कार की घटनाएं सुनने को मिल जाती हैं। बलात्कारी अज्ञानी होते हैं। अज्ञानता ही सारे अपराधों की जननी है। ज्ञान संस्कारों की जननी है। किसी भी देश की संस्कृति व संस्कार, उस देश में शान्ति को स्थापित करने में अहम् भूमिका निभाती है। भारत जैसे देश को अपनी वैदिक संस्कृति व सभ्यता में लौटना होगा तभी इस देश में शान्ति कायम हो सकती है।

सत्य, अहिंसा विरोधी रथ पर सवार हो सत्ता के चरम शिखर पर पहुँचने वाले सुधारकों की मनोदशा ठीक नहीं है। सुधारकों की प्रवृत्ति ठीक होती तो देश में सत्य, अहिंसा का प्रवाह होता। बलात्कार, भारत में महिलाओं के खिलाफ चौथा सबसे आम अपराध है। राष्ट्रीय क्राइम रिकॉर्ड्स ब्यूरो के मुताबिक साल 2019 में भारत में करीब 32 हजार रेप के मामले दर्ज हुए थे। 27 नवंबर 2019 को हैदराबाद के बाहरी इलाके शमसाबाद में 26 वर्षीय महिला डॉक्टर प्रियंका रेड्डी के साथ सामूहिक बलात्कार हुआ था। फिर उनके शरीर को पेट्रोल डाल कर जला दिया गया था। जली हुई लाश मिलने से पूरे इलाके में सनसनी फैल गई थी।

वारदात की सूचना मिलते ही जहाँ पुलिस सक्रिय रूप से मामले की जाँच में जुट गई थी, तो वहीं दूसरी ओर सोशल मीडिया यूजर्स भी प्रियंका रेड्डी (पशु चिकित्सक) के लिए न्याय की गुहार लगे थे। देश के हर राज्य से ऐसी घटनाएं आए दिन हो रही हैं। इस प्रकार की घटनाएं समाज के बदलते स्वरुप, नेताओं के कोरे वादे और इंसानियत के साथ खिलवाड़ का वीभत्स रूप दर्शाती है।

बलात्कारियों ने ले ली कितनो की जान,
हुआ अव्यवस्थित सिस्टम का भयावह चरितार्थ ,
कौन होगा इसका जिम्मेदार?”

सरकार को हायर एजुकेशन, प्राइमरी एजुकेशन, मिडिल एजुकेशन सिस्टम में नैतिक शिक्षा के विषय का प्रावधान करना चाहिए। भारत सरकार को प्रत्येक जिले के बस स्टैंड, रेलवे स्टेशन, टैक्सी स्टैंड, टोल प्लाजा, हाई वे आदि मुख्य जगहों पर नैतिक मूल्यों से सम्बंधित कोटेशन के बैनर और पोस्टर लगवाने चाहिए। समाज वहशीपन का शिकार हो रहा है। समाज में असहिष्णुता का विकास हो रहा है। समाज में बढ़ती बेरोजगारी, अशिक्षा, नैतिक मूल्यों का पतन आदि बुराइयां ही दरिंदगी और वहशीपन का कारण हैं। न्याय, ज्ञान का प्रतीक है। अन्याय, अज्ञानता का प्रतीक है। अतएव हम कह सकते हैं कि सामाजिक न्याय विश्व में शान्ति कायम करने का महत्वपूर्ण आधार है। सामाजिक न्याय, वैश्विक शांति के मार्ग को प्रशस्त करता है

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शंकर सुवन सिंह

लेखक वरिष्ठ स्तम्भकार एवं विचारक हैं तथा शुएट्स (नैनी प्रयागराज) में असिस्टेंट प्रोफेसर हैं ! सम्पर्क +919369442448, shanranu80@gmail.com
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