सृजनलोक

छः कविताएँ : मिथिलेश कुमार राय

  • मिथिलेश कुमार राय 
24 अक्टूबर, 1982 ई0 को बिहार में सुपौल जिले के छातापुर प्रखण्ड के लालपुर गांव में जन्म। हिन्दी साहित्य में स्नातक। सभी प्रमुख पत्र-पत्रिकाओं व वेब पत्रिकाओं में रचनाएं प्रकाशित। वागर्थ व साहित्य अमृत की ओर से पुरस्कृत। पहली कहानी स्वरटोन पर ‘द इंडियन पोस्ट ग्रेजुएट’ नाम से फीचर फिल्म का निर्माण। लोकोदय नवलेखन सम्मान के तहत पहला कविता संकलन ‘ओस पसीना बारिश फूल’ प्रकाशित| कुछेक साल पत्रकारिता करने के बाद बीते पांच वर्षों से ग्रामीण क्षेत्रों में अध्यापन।
सम्पर्क – फोन- 09546906392, mithileshray82@gmail. com
राजधानी में उच्च शिक्षा हासिल करने के बाद मिथिलेश कुमार राय ने गाँव में रहना तय किया। अपने घर – परिवार में। गाँव – जवार के बीच। मिथिलेश की कविता – आँख वहाँ के अभावग्रस्त जीवन के सूक्ष्म प्रसंगों को देखती है। पिता के जीवन में ‘थोड़े का महत्व’ के जरिए या कक्का की समझाइश के मार्फत। गोया थोड़ा पन ही जीवन का पर्याय बन, इसे परिभाषित कर रहा है। कहना होगा कि थोड़ी सी जमीन के जोतदार होने ने थोड़े पन की संरचना विकसित की है। इसी से समझ बनती है — भूखे पेट और जीभ के मध्य मौजूद तनाव की; भरे पेट और स्वाद के शरारत की परस्परता की। स्वाद ग्रंथियों के जागने का अवलोकन और उसकी आर्थिकी का संजाल कवि बखूबी समझता है। महत्वपूर्ण यह भी कि मिथिलेश का कवि-मन इस अभाव और वंचना के जीवन में सौंदर्य से मिलने वाला सकर्मक खाद-पानी न सिर्फ देख पाता है बल्कि उसकी अहमियत भी समझता है। पिछली पीढ़ी की तुलना में अगली पीढ़ी के लिए न सिर्फ प्राकृतिक संसाधनों की उपलब्धता कम हो रही है अपितु सौन्दर्य के दृश्य और स्मृतियां भी। भादो की बारिश की भाषा नहीं समझने वाले इस दौर में  धूप, पसीने , कट-कट करते दांत, अलाव और कांपती छाती की आवाज़ सुनने की संवेदना और उसे कविता में ढालने का शाऊर इस कवि को विशिष्ट बनाता है। – राजीव रंजन गिरि
स्केच : प्रीतिमा वत्स

1● पिता के जीवन में थोड़े का महत्व

पिता को तड़के एक घूंट चाय की तलब होती है
और जब दोपहर को उन्हें प्यास लगती है
वे सिर्फ आधे गिलास पानी की मांग करते हैं

पिता थोड़ी सी जमीन के जोतदार थे
वे रात को खाना इन शब्दों से मांगा करते हैं
कि बन गई हो तो दो रोटी परोस दो
फिर दो कौर खाने के बाद
वे एक छोटी सी डकार लेते हैं
और यह कहते हैं कि उनका पेट भर गया है

चार पहर रात के बाद जब सुबह होती है
पिता कहते हैं कि उनकी नींद
दो पहर रात को ही उचट गई थी

पिता की आँखों में बहुत कम चमक है
चेहरे पर तो उससे भी कम
बहुत हँसने वाली बातों पर
वे सिर्फ मुस्कुराकर रह जाते हैं
और यह कहते हैं
कि अब कुछ दूर चलने पर ही
उनका दम फूलने लगता है

जरा सा हल्ला होने पर
पिता चौंक उठते हैं
और कहते हैं कि
तब उनके दिल की धड़कन
उनको थोड़ी सी बढ़ी लगती है

पिता किसी अनजाने डर से
कुछ सहमे से रहते हैं

2● भूखे आदमी का कौर
कक्का कहते हैं कि बहुत भूखे आदमी का कौर
सामान्य से थोड़ा बड़ा होता हैभूखा आदमी रोटी जल्दी-जल्दी तोड़ता है
खाते समय उसको
उसमें नमक-मिर्ची के कम-बेसी होने का पता नहीं चलता है
और न ही उसको यह भान रह जाता है
कि खाने के लिए वह किस दिशा में
मुंह करके बैठ गया हैजब उसका पेट भर जाता है
उसकी स्वाद-ग्रंथियां तभी जागृत हो पाती हैंकहते हैं कि भूख पेट का तनाव होता है
और जब पेट तनाव में रहता है
तब जीभ की एक नहीं चलती हैकक्का कहते हैं कि भरे पेट की जीभ ही
स्वाद की बदमाशियां रचती हैं
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3● चेहरे से ऐसा नहीं लग रहा था कि स्त्री ने बुरा मान लिया है

चेहरा से ऐसा नहीं लग रहा था
कि स्त्री ने बुरा मान लिया है
ऐसा भी नहीं लग रहा था
कि उसे इस बात का दुःख हो रहा है
अगर इस तरह की कोई बात होती
तो उसका चेहरा पहले की तरह ही सपाट नजर नहीं आता
उस पर कोई रंग चढ़ता

या तो उसकी आँखें क्रोध में बड़ी हो जाती
या थोड़ी सी लाल
या वह अपनी आँखों में आंसू भर लेती
अगर वह यह सब नहीं कर पाती तब भी
उसके चेहरे की बनावट में कुछ परिवर्तन अवश्य आता

उसकी बंद जुबान खुल जाती
या वह तनकर खड़ी हो जाती
वह जोर-जोर से बोलने लगती
अपनी सफाई में कुछ कहती
या मुँह फुलाकर बिस्तर पर ही लेट जाती

लेकिन उसके लिए गालियां
शायद कोई गाली ही नहीं थी
जिसकी बरसात
अब भी उसका मरद उस पर किए जा रहा था

यह रोजमर्रा का कोई शब्द था जैसे
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4● मौसम एक गवाह है

बेईमान मत कहिए साहब
चाहे तो धूप से पूछ लीजिये
जितना लिया सब झलकता है इस देह पर
यह जो रंग सांवला है
वो इस बात का सबूत है
कि चुकाने को ही जेठ में भी घर से बाहर ही रहा था

चाहे तो आप बहते हुए पसीने से पूछ सकते हैं
मेरी रात की नींद भी इस बात की गवाही देगी
कि चुकाने की फिक्र में
वह भिनसारे तक बाहर ही रही थी

भादो की बारिश की भाषा आप नहीं समझेंगे
तलवे देखकर तो अनुमान लगा ही सकते हैं
जरा सोचकर देखिए
कि पैर कादो में क्यों दौड़ लगाता रहा

हजम करने की मंशा रहती तो
पूस में किसका मन करता है पछिया में टहलने का
चाहे तो इस मेड़ से पूछ लीजिये
मेड़ पर जल रहे उस अलाव से

कट-कट करते दांत
और काँपती छाती की आवाज से पूछ लीजिये
कि चुकता करने के उद्यम में ही
यह कुकुर खांसी उठी है
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5● सुंदर दृश्यों के बारे में

सुंदर दृश्यों को
मैं सपने में देखा करता हूँ
सवेरे उसी की याद में
मेरे होंठों को मुस्कुराहट की छूट मिलती है

हमें सुंदर दृश्यों को याद रखना चाहिए
और उसे बार-बार दुहराना चाहिए
एकदिन हताश पिता ने मुझे यह सलाह दी थी
मैं यह समझ सकता था
कि उनके पास सुंदर दृश्य बहुत कम हैं
लेकिन पिता हमारे लिए चिंतित थे
उन्हें लगता था
कि हमारे पास
बहुत कम सुंदर दृश्य रह जाएंगे

सुंदर दृश्यों के अभाव में
चेहरे सख्त हो जाते हैं
और आँखें पथरा जाती हैं
बहुत दिनों तक जब एक भी सुंदर दृश्य नहीं दिखता
तब हृदय की धड़कन मध्यम पड़ जाती है
और फिर वह
सिर्फ अपनी एक देह को जिंदा रखने के लिए धड़कने लगता है
यह सब बुजुर्ग पिता ने ही समझाया था
और कहा था
कि अगर सुंदर दृश्य नहीं रह जाएंगे
तो हम
हम कैसे रह जाएंगे

अपने पिता की सलाह को मानते हुए
मैं सपने में देखे सुंदर दृश्यों को
नोट कर लेता हूँ
या उसका उच्चारण करता हूँ
लेकिन जब इनमें से कुछ नहीं कर पाता
तब उसे याद करता हूँ
और इस तरह अपने हृदय की धड़कन को
ताकत देता हूँ
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6● जब खेत कृषक के प्रेम में मुसकाता है

जब खेत कृषक के प्रेम में मुसकाता है
वसंत आता है

यह वाक्य
सरसों के खिले हुए फूलों से प्रस्फुटित हुआ था
जिसे पंछी किल्लोल करते हुए सुन रहे थे
और पछिया
इस दृश्य को निहारती हुई
धीमे-धीमे बह रही थी

फसलें जब मगन होती हैं
वे एक लय में डोलने लगती हैं
तब जो धुन बनता है
उसमें तितलियां पंख पसार कर नृत्य करती हैं

धूप एक फूल है
जिसको इसी दृश्य से खिलने की सुध आती है

इस दृश्य से
उम्मीद सरक कर पास आ जाती है
तब जब होंठ मुस्कुराते हैं
चलते पैरों की धमक से
थिरकने का मन बनता है
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सबलोग

लोक चेतना का राष्ट्रीय मासिक सम्पादक- किशन कालजयी
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