चार कविताएँ : खेमकरण ‘सोमन’
जन्म : 02 जून 1984, रूद्रपुर (उत्तराखण्ड)
शिक्षा : एम.ए., बी.एड., हिन्दी लघुकथा में पी-एच. डी. कार्य सम्पन्न। कविता, कहानी, लघुकथा, उपन्यास, आलोचना, सिनेमा और समसामयिकी विषयों में विशेष रूचि। कथाक्रम, लमही, परिकथा, वागर्थ, बया, कथादेश, पुनर्नवा, पाखी, विभोम-स्वर, नया ज्ञानोदय, आधारशिला, आजकल आदि देश की लगभग सभी महत्वपूर्ण पत्र-पत्रिकाओं में रचनाएँ प्रकाशित।
कहानी ‘लड़की पसंद है’ पर दैनिक जागरण द्वारा युवा प्रोत्साहन पुरस्कार, कथादेश अखिल भारतीय हिन्दी लघुकथा प्रतियोगिता में पुरस्कृत। इन दिनों पहले कविता-संग्रह ‘नयी दिल्ली दो सौ बत्तीस किलोमीटर’ की तैयारी।
सम्प्रति : हिन्दी विभाग,राजकीय स्नातकोत्तर महाविद्यालय चौखुटिया, अल्मोड़ा, में प्राध्यापक
सम्पर्क: +919045022156, khemkaransoman07@gmail.com
कविता में सबसे कठिन है भावों और विचारों के बीच संतुलन साधना। ज़्यादातर कवि ‘प्रेम गली अति साँकरी’ में एक ही के लिए जगह बना पाते हैं – मतलब या तो कोमल भावों का आधिक्य या विचार पक्ष की प्रधानता । ऐसे में युवा कवि खेमकरण “सोमन” की कविताएँ उन्हें कविता के विरल स्वरों में शामिल करती हैं जो विचार को साधते हुए भी भाव पर अपनी पकड़ छूटने नहीं देते हैं। कवि उनकी शिनाख्त भी करता है जिनसे दुनिया बेहतर और अधिक संवेदनशील बनती है – “शुक्र है कि तुम हो तो/तुम थाम लेते हो उदास हाथों को।” ज़ाहिर है कि कवि इस संकट से वाकिफ है कि उदास हाथों को थामने वाले कम हो गये हैं।
कविता में वक्रोक्ति, मितकथन, विडम्बना और उक्तिवैचित्र्य के प्रयोगों से भी सचेत है युवा कवि साथ ही वह कहीं न कहीं पूरी राजनैतिक सामाजिक व्यवस्था और बहुप्रचारित राष्ट्रवाद को भी कटघरे में खड़ा कर देता है।
“खतरनाक नहीं है यह” कविता पाश की मशहूर कविता सबसे खतरनाक है सपनों का मर जाना की याद तो दिलाती है पर कवि विचारों से खाली हो जाना अधिक खतरनाक समझता है। खेमकरण सोमन उत्तराखंड से बुराँश के फूल की तरह खिलकर आये हैं, वैचारिक चमक के साथ। उन्होंने उम्मीदें बढ़ा दी हैं। – पंकज मित्र
1.उनमें केवल तुम ही थे
किसी ने हिन्दू देखा
किसी ने मुसलमान
किसी ने सिक्ख, किसी ने ईसाई
किसी ने यहूदी, किसी ने बौद्ध
किसी ने गोरा-काला
किसी ने देखा अमीर-गरीब
तो किसी ने जाति और धर्म
उनमें केवल तुम ही थे
जिसने ऐसा कुछ भी नहीं देखा
देखा तो बस इन्सान और इन्सानियत
फिर सबको मिलाकर बनाते चले गए
अपनी दुनिया खूबसूरत
इस तरह तुमने
पाट दी दुर्गन्ध की सभी दूरियाँ और सारे भेद
हाँ, उनमें केवल तुम ही थे
जिसकी आँखों में नहीं था
मोतियाबिन्द।
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2.दंगे जाति-धर्म तमाशा और युद्ध
वैज्ञानिक खोज रहे हैं
रेगिस्तान में पानी बनाने का तरीका
खगोलशास्त्री खोज रहे हैं चाँद पर हीलियम थ्री
भूखे खोज रहे हैं रोटी
बीमार माँ का गरीब बेटा खोज रहा है दवाई
बेरोजगार खोज रहे हैं नौकरी
पति खोज रहे हैं रिश्तों में शक
बच्चे खोज रहे हैं गेन्द लूडो कैरम और डोरेमोन
छात्र खोज रहे हैं लायब्रेरी में किताबें
अमीर लड़के खोज रहे हैं शराब
कुछ लड़कियाँ खोज रही हैं ब्वायफ्रेण्ड
बुजुर्ग खोज रहे हैं सहारा देने वाले दो हाथ
मजदूर खोज रहे हैं सड़कों में गड्ढे
चिड़िया खोज रही है कई दिनों से,
घोसला बनाने के लिए
किसी व्यक्ति का चहकता-महकता हुआ घर
हताश मन खोज रहा है
सम्बन्धों में गिरते तापमान का कारण
किसान खोज रहे है मिट्टी में रासायनिक खाद की मात्रा
अल्पसंख्यक नवदम्पति खोज रहे हैं किराये पर मकान
पर्यटक खोज रहे हैं शहर छोड़ समुद्र-किनारे
और पहाड़ों पर सकून
सभ्य व्यक्ति खोज रहे हैं महान सभ्यता
नेता-मन्त्री खोज रहे हैं दंगे जाति-धर्म,
तमाशा और युद्ध।
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3.खतरनाक नहीं है यह
पैरों के बीच खाली जगह है
पत्तियों से पत्तियों के बीच
खाली जगह है
दिल से दिलों के बीच खाली जगह है
धरा और नभ के बीच खाली जगह है
कहीं न कहीं थोड़ी न थोड़ी
ऊपर-नीचे , अंदर-बाहर खाली जगह है
ठीक है यहाँ पर सब कुछ
खतरनाक नहीं है यह
खतरनाक यह है कि
कोई विचारों से खाली है।
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4.शुक्र है कि तुम हो
शुक्र है कि किसी के अहित में उठ जाएँ
ऐसे हाथ तुम्हारे पास नहीं,
या ऐसा धर्म भी नहीं जो
बना दे तुम्हें अन्धा
फिर तुम चीखते-चिल्लाते, पगलाते हुए
जला दो बस-ट्रक, दुकानें
पेट्रोल पम्प और जीवित लोगों को
शुक्र है कि तुम रहते हो ऐसे शहर में जहाँ
हिन्दू-मुस्लिम के नाम पर तेरा-मेरा नहीं होता
या नहीं है किसी के लिए मन में कोई अंधेरा
ऐसी है वहाँ की शिक्षा-दीक्षा
धूप, हवा, पानी और रंग
शुक्र है कि तुम
भाषा और भाषाई विविधता भी समझते हो
इतना कि किसी गाय, भैंस, कुत्ते, बिल्ली
या चिड़िया को भी चोट लग जाए
तब तुम्हें लगता है कि
लग गई है तुम्हीं को गहरी चोट
शुक्र है कि अन्न-धन्न की कीमत जानते हो
जानते हो बच्चों का सरल मन भी
इसलिए न कभी किसी का अन्न-धन्न छीना
न ही छीना किसी बच्चे का मन भी
शुक्र है कि सूरज के साथ ही उठ जाते हो तुम
सर्दी में ठिठुर रहे लोगों को
धूप के वस्त्र पहनाने
और गरमाहट फैलाने के लिए
शुक्र है कि तुम हो तो तुम
थाम लेते हो उदास हाथों को
उनकी उदासियाँ दूर कर
निरन्तर संघर्ष का रास्ता चुनने-चुनवाने के लिए
शुक्र है कि तुम हो तो
शुक्रिया कहने का आत्मिक भाव भी
नहीं हुआ है खत्म अभी
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