सिनेमा

खूब लड़ी मर्दानी ‘रानी अवंती बाई लोधी’ थी

 

हमारे भारत के इतिहास में अंग्रेजी राज की गुलामी से आजादी दिलाने में बहुत से वीरों-वीरांगनाओं ने अपना बलिदान दिया है। लेकिन अफसोस कि इतिहास में उन रानियों का ज्यादा जिक्र नहीं मिलता जिन्होंने रानी लक्ष्मीबाई या रानी दुर्गावती की भांति ही अपना अदम्य साहस, न्याय के बलबूते अपनी छाप छोड़ी।

ऐसी ही एक दलित मर्दानी जन्मीं थीं 16 अगस्त 1831 को एक पिछड़े लोधी राजपूत समुदाय में। बचपन में ही तलवार बाजी, नृत्य के अलावा अंग्रेजी राज से देश को आजाद कराने का सपना भी उस रानी ने पाल लिया था। ब्याही जाने के बाद तब के सागर नर्बदा प्रदेश और आज के मध्यप्रदेश में अंग्रेजों के खिलाफ जब जंग हुई तो इस रानी ने भी अपने मजबूत कंधों से, तलवार की तीखी नोक से कई दुष्टों का संहार किया। और अंत में उसी तलवार को अपनी छाती में भोंक लिया।

इंडिपेंडेंट डायरेक्टर्स के लिए एक बड़ी मुसीबत बजट की भी होती है। वही इस सीरीज के साथ भी हुआ है। सीरीज को देखते हुए आप इसकी कमियों के चलते बजट की कमी का सहज अंदाजा लगा सकते हैं। गुरु जी बने वीरेंद्र नाथनीय, रानी अवंती बाई के बचपन एवं ब्याही जाने तक के सीन में ओश राजपूत, रूपल जैन, तांत्रिक बने इंद्र पटेल , पंडित बने सुभाष नागर का अभिनय ठीक रहा। कुमार शिवम के लिखे कुछ अच्छे डायलॉग्स को सीरीज के एक्टर थोड़ा और अच्छे से निभाते तो सीरीज बेहतरीन हो सकती थी।

डबिंग इस सीरीज की सबसे बड़ी कमी है साथ ही बजट के अभाव में सेट भी उतने दमदार नहीं बन पाए। अमित चौरे , रवि केसरिया का कैमरा , संदीप राजपूत का मेकअप , अतुल कुमार के लिरिक्स ने सीरीज को बेहतर बनाने में योगदान दिया। लिरिक्स के मामले में विवाह का लोकगीत ‘बाई को बीरो आयो’ खासा प्रभावित करता है। बैकग्राउंड स्कोर थोड़ा और उठाया जाना चाहिए था।

इस सीरीज की कमियां बताती हैं कि इसके निर्देशक महेंद्र सिंह लोधी एवं उनकी टीम को थोड़े संसाधन और दिए जाएं तो ये बेहतर काम कर सकते हैं। रानी अवंती बाई को जो स्थान अब तक के इतिहासकार नहीं दिला पाए उन दुःखों तथा अफसोस पर यह सीरीज मरहम लगाती है तथा आगे आने वाले एपिसोड में भी अवश्य मरहम लगाएगी। सीरीज को बनाने में बहुत सी जनश्रुतियों एवं रानी पर उपलब्ध अब तक कि किताबों के इतर रिसर्च एवं जानकारियों का सहारा लिया गया है। यही वजह है कि मनोरंजन से दूर सार्थक सिनेमा बनकर बाहर आया है जिसे सराहा जाना चाहिए।

कहते हैं एक बार रानी ने अपनी ओर से क्रान्ति का सन्देश देने के लिए अपने आसपास के सभी राजाओं और प्रमुख जमींदारों को चिट्ठी के साथ कांच की चूड़ियां भिजवाईं, उस चिट्ठी में लिखा था- ‘‘देश की रक्षा करने के लिए या तो कमर कसो या चूड़ी पहनकर घर में बैठो तुम्हें धर्म ईमान की सौगंध जो इस कागज का सही पता बैरी को दो।’’

अब देखते हैं इसके आने वाले निर्माणाधीन एपिसोड्स में यह बातें किस तरह से जगजाहिर हो पाती हैं। अभी इस सीरीज के चार ही एपिसोड आए हैं जिन्हें निर्देशक के अपने बनाए गए ओटीटी ‘डी जी सिनेमाज’ के इस लिंक पर देखा जा सकता है। 

अपनी रेटिंग – 3 स्टार (आधा अतिरिक्त स्टार इतिहास में धूल चढ़ी रानी के इतिहास की धूल की परतों को साफ कर सार्थक सीरीज बनाने के ख़ातिर)

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तेजस पूनियां

लेखक स्वतन्त्र आलोचक एवं फिल्म समीक्षक हैं। सम्पर्क +919166373652 tejaspoonia@gmail.com
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