दीया
विशेष

अंधेरे में सूर्य को याद करने का एक तरीका है दीया

 

हमारे पास रोशनी है तो हम अपना बसंत पहचान सकते हैं। हमारे पास रोशनी है तो हम जिंदगी में बहुत देर पतझर के साथ नहीं रह सकते। रोशनी जिंदगी में निरंतरता का प्रतीक है। कहीं किसी कोने पर जलते हुए एक दीये की रोशनी हमारे समय के आर-पार फैल सकती है, इसलिए दीये का जलते रहना जिंदगी में बहुत जरूरी है।

अंधेरे की चौखट पर जब जलता है कोई दीया तो मन में एक सूर्य सा उगता है। शायद इसलिए भी कि हम इंसान अक्सर किसी न किसी तरह की रोशनी की तलाश करते हैं, जो हमें दुख की जगह से सुख तक नए रास्ते दिखाए। इसलिए जलते दीये की रोशनी के पास जाना एक ऐसे विस्तार में प्रवेश करना है, जिसका कोई ओर-छोर नहीं होता, जो कभी-कभी अनंत भी हो सकता है। रहस्य का उद्घाटित हो जाना भी हो सकता है और भेद का खुल जाना भी। रोशनी के सहारे ही तो मन आकाश को याद कर पाता है। यह भी कि आकाश रोशनी के सहारे ही मन तक आता है और हम अनंत विस्तार में डूबने-उतराने के लिए निकल पड़ते हैं।

बड़ी प्राचीन उक्ति है… हर आदमी का अपना एक दीया होता है। उस दीये की रोशनी में वह अपने होने को देखता है। लेकिन इसमें कोई दो राय नहीं कि यह देखना नितांत व्यक्तिगत होता है। हर व्यक्ति उस दीये को अपनी तरह से देखता है। यह देखना दीये को आकार देने वाली आंखों और दीये को जलते हुए देखने वाली आंखों तक आते-आते कितना बदल जाता है, कभी गौर किया है आपने? लेकिन यह फर्क सिर्फ आज का नहीं है। सदियों से है….तब से है, जब से इंसानी सभ्यता में मिट्टी को दीये का आकार मिला, दीये को बाती और तेल मिले, चिंगारी की संभावना बनी और फिर रोशनी ने एक अनंत विस्तार पाया। सदियों पहले भी, दीये को जलते हुए देखना इतना सुदृढ़ रहा होगा कि अलग अलग स्तर पर देखने में फर्क के बावजूद उसे परंपरा बनते हुए देर नहीं लगी?

उल्लास की ऊंचाई को दर्शन की गहराई से जोड़कर देखने वाले लोग इस जिंदगी को रोशनी के पुंज में तौलते रहे हैं। रोशनी को एक सर्वकालिक सर्वदेशी भाषा के रूप में भी हम देखने के हिमायती रहे। हैं। ऐसा तब भी था, जब मानव ने आग पर काबू पाया सोखा था और उसे संजोया था। तब आग के लिए वनस्पति तेलों, पत्तियों और लकड़ियों को जलाया जाता था। इतिहास में दिलचस्पी रखने वाले और अध्ययन करने वाले बताते हैं कि आग के आविष्कार के बाद मनुष्य ने आग को किसी ठोस वस्तु पर जलाना शुरू किया, ताकि इसे एक स्थान से दूसरे स्थान पर ले जाया जा सके। आग पर काबू पाने की इसी कवायद ने मानव को दीये बनाने के लिए प्रेरित किया और अंधकार पर प्रकाश की विजय का सिलसिला शुरु हुआ।

वैसे अगर मानवीय मन को परखने वाले दिमाग के पास जाएं तो इंसानों की जिंदगी में रोशनी यूनिवर्सल मेमोरी की तरह है। अगर जीवविज्ञान को देखें तो यह यूनिवर्सल मेमोरी पशुओं में ज्यादा दिखाई देती है। मनुष्य में कम एक कबूतर के नवजात बच्चे को भी यह बोध होता है कि बिल्ली दुश्मन है। उसके पास कोई स्मृति नहीं, लेकिन फिर कैसे बतख के बच्चे को पता है कि चील दुश्मन है? यह यूनिवर्सल मेमोरी है। हालांकि कई बार हम इंसान कई कारणों से अपनी यूनिवर्सल मेमोरी से दूर हो जाते हैं, लेकिन आग या रोशनी को लेकर अभी भी हम अपने यूनिवर्सल मेमोरी के करीब हैं। इसलिए अंधेरा कितना भी असीम क्यों न हो…उसे हद में तो हम बांध ही लेते हैं।

इसलिए भी हमारे लिए एक जलता हुआ दीया उम्मीद भरी निगाहों से आकाश को देखने का न्योता है। अंधेरे में सूर्य को याद करने का एक तरीका है। सच है, रोशनी कोई रास्ता नहीं है…लेकिन रास्ते को पा लेने के हमारे साहस का सबसे बड़ा साथी तो है ही

.

 

कमेंट बॉक्स में इस लेख पर आप राय अवश्य दें। आप हमारे महत्वपूर्ण पाठक हैं। आप की राय हमारे लिए मायने रखती है। आप शेयर करेंगे तो हमें अच्छा लगेगा।

लेखक वरिष्ठ पत्रकार, व्यंग्यकार एवं कलाकार हैं। सम्पर्क choudharydeoprakash@gmail.com

0 0 votes
Article Rating
Subscribe
Notify of
guest

0 Comments
Inline Feedbacks
View all comments


डोनेट करें

जब समाज चौतरफा संकट से घिरा है, अखबारों, पत्र-पत्रिकाओं, मीडिया चैनलों की या तो बोलती बन्द है या वे सत्ता के स्वर से अपना सुर मिला रहे हैं। केन्द्रीय परिदृश्य से जनपक्षीय और ईमानदार पत्रकारिता लगभग अनुपस्थित है; ऐसे समय में ‘सबलोग’ देश के जागरूक पाठकों के लिए वैचारिक और बौद्धिक विकल्प के तौर पर मौजूद है।
sablog.in



विज्ञापन

sablog.in






0
Would love your thoughts, please comment.x
()
x