बेवजह शोर मचाती ‘मुंबई सागा’
{Featured in IMDb Critics Reviews}
निर्माता : भूषण कुमार, कृष्ण कुमार, अनुराधा गुप्ता, संगीता अहिर
निर्देशक : संजय गुप्ता
कलाकार : जॉन अब्राहम, इमरान हाशमी, महेश मांजरेकर, सुनील शेट्टी, काजल अग्रवाल
अपनी रेटिंग : 2 स्टार
एक तो यह समझ नहीं आता कि ये गायतोंडे इतना फेमस क्यों है! अधिकांश टपोरी टाइप फ़िल्म हो या किसी को टपोरी घोषित करना हो उसे बम्बई में शायद यही नाम मिलता होगा। इस फ़िल्म में भी उसी की कहानी है कुछ कुछ। वैसे तो सब फ़िल्म के ट्रेलर से ही साफ हो जाता है कि कहानी मुंबई नहीं बम्बई की है। जब सड़कों पर गैंगस्टरों का राज हुआ करता था। हर गली चौराहे पर ये मिल जाते थे। दो गैंगस्टर उसी बॉम्बे पर अपना राज चाहते हैं। एक अमर्त्या राव (जॉन अब्राहम) और दूसरा गायतोंडे (अमोल गुप्ते) लेकिन शेर ही राजा होता है तो इन दोनों शेरों में कौन राज करेगा वही इस फ़िल्म में है। इन दोनों की दुश्मनी है। पुराने ढर्रे से यह दुश्मनी दिखाई गई है। जिसे देख देख कर अब हम ऊब चुके हैं।
फिल्म मुंबई सागा में बालासाहब ठाकरे से मेल खाता भी एक हीरो है। तो इसी बॉम्बे से गैंगस्टर के कल्चर का खात्मा करने के लिए इंस्पेक्टर विजय सावरकर (इमरान हाशमी) की एंट्री भी है। तो इनके आतंक से बम्बई मुक्त हुई के नहीं यह तो फ़िल्म देखकर पता चलेगा लेकिन फ़िल्म देखने गए तो आपकी जेब जरूर धन मुक्त हो सकती है। इस कोरोना काल में धन का अभाव और बढ़ सकता है इसलिए बेहतर होगा घर पर रहें सुरक्षित रहें किसी ऑनलाइन प्लेटफॉर्म पर आने का इंतजार करें।
इस फ़िल्म को देखने के बाद लगता है शायद अब कहने के लिए या आपकी थाली में परोसने के लिए अब मसाले बेहद कम हो चलें हैं। एक्शन करते समय जॉन अच्छे लगे हैं, लेकिन जैसे ही उनका तांडव पर्दे पर शुरू होता है आपके कान के पर्दे फटने लगते हैं। इसके बजाए टुकड़ों में ही सही इमरान हाशमी ठीक-ठाक लगे। अमोल गुप्ते भी जितना उनसे कहा गया उतना ही करते नजर आए अपनी तरफ से जरा भी दमखम दिखाने की कोशिश बेवजह भी नहीं की।
निर्देशन की हवा जगह-जगह निकलती दिखाई देती है। तकनीक के स्तर पर फिल्म औसत है। सिनेमेटोग्राफी भी असरदार नहीं है। फ़िल्म की एडिटिंग ठीक कही जा सकती है। फिल्म का संगीत दिया है पायल देव और यो यो हनी सिंह ने। बंदूक को केवल शौक के लिए रखता हूं, डराने के लिए नाम ही काफी है। ‘घोड़ों के रेस में गधे पर दांव लगाया है तूने, तेरी गाड़ी बुलेटप्रूफ है तू नहीं।’ ‘धोखे की खासियत है, देने वाला अक्सर खास होता है।’ ये कुछ डायलॉग फिर भी ठीक लगे।