सिनेमा

एक गंभीर फ़िल्म ‘माइलस्टोन’

 

{Featured in IMDb Critics Reviews}

 

निर्देशक – इवान एर
कास्ट – सुविन्दर विक्की , लक्षविर सरन
रिलीजिंग प्लेटफॉर्म – नेटफ्लिक्स
अपनी रेटिंग – 4 स्टार

माइल स्टोन नाम से नेटफ्लिक्स पर आई फ़िल्म एक उम्दा और गम्भीर होने साथ-साथ कसी हुई फ़िल्म है। माइल स्टोन जिसे मील का पत्थर कहा जाता है हिंदी में, का प्रीमियर बीते शुक्रवार नेटफ्लिक्स पर हुआ। इवान एर निर्देशित फिल्म में सुविंदर विक्की मुख्य भूमिका में गालिब के रूप में तो वहीं पाश के रूप में लक्षविर सरन नजर आए।

इससे पहले यह फ़िल्म 77 वें वेनिस इंटरनेशनल फिल्म फेस्टिवल के ओर्रीजोंटी (होराइजन्स) सेक्शन में दिखाई जा चुकी है। तथा 25 वें बुसान इंटरनेशनल फिल्म फेस्टिवल और पिंग्याओ इंटरनेशनल फिल्म फेस्टिवल में भी इसका प्रदर्शन किया गया था। सिंगापुर के फिल्म फेस्टिवल में एशियन फीचर फिल्म श्रेणी में विक्की को सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन का पुरस्कार मिला और माइलस्टोन को सर्वश्रेष्ठ फिल्म का पुरस्कार मिला।

मील का पत्थर एक ट्रक ड्राइवर आदमी ग़ालिब की कहानी कहती है जो ज्यादातर ट्रक चलाता नजर आता है। हालांकि उसका जन्म कुवैत में हुआ था लेकिन अब वह दिल्ली में एक ट्रक ड्राइवर के रूप में काम करता है। अचानक से उसकी कमर में दर्द भी शुरू हो जाता है। बेचारे की बीवी एताली मर चुकी है (जो सिक्किम की रहने वाली थी) इसलिए उसने घर आना भी कम कर दिया है। और यही वजह है कि वह अपनी ड्यूटी भी दिन-रात करने लगा है। ग़ालिब के माध्यम से उनके जीवन के विभिन्न पहलुओं को उनकी यात्रा और संबंधों के माध्यम से हम पर्दे पर देखते हैं।

सबकुछ अच्छा होने के बावजूद फ़िल्म एताली की मौत का कारण स्पष्ट नहीं करती, उसके परिवार वाले कुछ रुपए और शराब बेचने के लाइसेंस के साथ समझौता कर लेते हैं। ग़ालिब अपनी बीवी के चलते ही शहर दिल्ली में आकर रहने लगता है। अब यह गम्भीर फ़िल्म एक ट्रक ड्राइवर के किन दुःखों को अभिव्यक्ति प्रदान करती है वह आप फ़िल्म देखकर अंदाजा लगा सकते हैं। एक ऐसे दौर में यह फ़िल्म आई है जब हर कोई त्राहिमाम कर रहा है उस दौर में कौन गम्भीर फ़िल्म फ़िल्म देखना चाहेगा। ऊपर से उसमें एक भी गाना नहीं है। दरअसल गाने की जरूरत भी नहीं है। दुखों को बांटने की कोशिश करती हुई भी फ़िल्म है यह। Milestone Review: A layered presentation of the intense life of a truck driver

ड्राइवर की गाड़ी का साउंडस्केप, चेकपॉइंट, ड्राइवरों के बीच की बातचीत और उनकी दिनचर्या, ड्राइव, ट्रांसफर, आदि सभी इस मील के पत्थर में कैद हैं। मील पत्थर फ़िल्म अपनी संपूर्णता के आवरण में लिपटी गहरी नीली और भूरे रंग में  रंगी कैनवास पर नजर आती है। ग़ालिब के कैरेक्टर में एक किस्म की शांति और दर्द नजर आता है। फ़िल्म के कुछ एक संवाद बेहद खूबसूरती से लिखे गए हैं। मसलन जब हम एक भिखारी को अपनी कार की खिड़कियों पर दस्तक देते देखते हैं, तो हम बहरे होने का दिखावा करते हैं लेकिन यह सब होने के बावजूद भी बोलने वाले होंगे लेकिन सुनने वाला कोई नहीं। इसके अलावा ‘कपड़े देख के बंदा पढ़ने वाली इस दुनिया को क्या पता कि कौन किसके लिए जी रहा है। जिसको जितना समझने में फायदा मिलता है वह उतना ही समझना चाहता है।’

ग़ालिब की ट्रक ड्राइवरी की यात्रा केवल एक ट्रक ड्राइवर की कहानी नहीं है, बल्कि कमोबेश यह हर एक व्यक्ति की कहानी है। यह दुःख, निराशा, अकेलापन, भय और बहुत कुछ दर्शाती है। यदि आप एक गंभीर और ठहरी हुई फ़िल्म देखना पसंद करते हैं तो यह आपके लिए ही बनी है। जो लोग फ़िल्म में हमेशा हंसी, मज़ाक, हल्का, फुल्का और मनोरंजन देखना पसंद करते हैं बेहतर होगा वे इस किस्म की फ़िल्म से दूर ही रहें वरना सेहत पर असर पड़ सकता है।

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तेजस पूनियां

लेखक स्वतन्त्र आलोचक एवं फिल्म समीक्षक हैं। सम्पर्क +919166373652 tejaspoonia@gmail.com
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