सिनेमा

M फॉर माँ, मेड और मैडी

 

नेटफ्लेक्स वेब सीरिज़ ‘मेड’ स्टेफ़नी लैंड की आत्मकथा “मेड: हार्ड वर्क, लो पे, एंड मदर्स विल टू सर्वाइव” से प्रेरित है। ‘मेड’ सिर्फ मेड (सफाईकर्मी) के रूप में एलेक्स की कहानी नही है बल्कि पितृसता से त्रस्त ‘बयोपोलर डिसऑर्डर’ एलेक्स की माँ पाउला तथा इसी पितृसत्ता से अपनी बेटी मैडी को सुरक्षित करने के संघर्ष की यात्रा है। उसकी बेटी मैडी भविष्य की स्त्री की प्रतीक है, जिसके लिए एलेक्स नया मार्ग खोज रही है, जहाँ वे अपने पंखों से आकाश की ऊँचाइयों को माप सकें, जीवन का आनंद ले सकें। इसके लिए शिक्षा ही बेहतरीन विकल्प है इन्हीं संघर्षों के बीच ही उसे आगे पढ़ने के लिए मिसौला में स्कोलरशिप मिलती है ।

‘मिसौला मोंटाना’ जहां माउंटेन पर बड़ा सा M लिखा है, वह अपनी बेटी मैडी को भी वहां लेकर जाना चाहती है। हालांकि वह जानती है कि “अभी हमारी मंजिल आई नहीं, पहुंचने का रास्ता कठिन है बहुत ऊंचा है, बहुत कष्ट आयेंगे लेकिन विश्वास है कि एक दिन पहुंचे जाएंगे और जब पहुंचेंगे तो मैं मेडी को बताऊंगी M का मतलब है मैडी”। यह एलेक्स की बनाई दुनिया होगी जहाँ पितृसत्ता के नियम नहीं होंगे। उसके जीवन की दूसरी धुरी है उसकी माँ पाउला , प्रतिभावान होते हुए भी जिसके अस्तित्व को सदैव नकारा गया, समुचित अनुकूल परिस्थितियां न मिल पाने के कारण जिसका संघर्ष व्यर्थ हो गया क्योंकि मनोरोगी होने के कारण वह अपनी बेटी को वह खुशियाँ न दे सकी जैसा वह चाहती थी।

शारीरिक मानसिक प्रताड़नाओं, पति के दुर्व्यवहार से उत्पीड़ित पाउला अपनी बेटी एलेक्स को लेकर घर छोड़ देती है , कभी वापस नहीं लौटती, जिसका ख़ामियाज़ा कहें या सज़ा! समाज उसे मनोरोगी बना देता है। लेकिन जब एलक्स उसे अपने साथ मोन्टाना ले जाना चाहती है तो वह मना कर देती है “मैं यही रहुँगी मेरी माँ यही रही थी, उसकी माँ भी यही रही थी सारी लैंग्ली लेडी यही रहीं है” एलेक्स जब कहती है “मैं भी लैंग्ली लेडी हुँ’… पर मैं जा रही हुँ ” यह कहने पर माँ कहती है … “तुम अलग हो” एलेक्स अलग है इसलिए चिर-परिचित, बने बनाये मार्ग पर चलना उसे मंजूर नहीं वह एक नए मार्ग पर निकल पड़ती है, जिस तरह कभी उसकी माँ निकली थी मगर माँ भटक गई या पितृसत्ता में उसके मार्ग अवरुद्ध कर दिए गए।

घर छोड़ने के संदर्भ में एलेक्स अपने पिता से कहती है – “मैं आपसे छुप रही थी पापा, हम अलास्का इसलिए नहीं गए कि मम्मी आप से भाग रही थी बल्कि हम आपसे छुप रहे थे आपके गुस्से ने हमें डरा दिया था।” ‘गुस्सा’! गुस्से में इंसान क्या से क्या कर जाता है उसे खुद भी पता नहीं चलता विशेषकर एक तो पौरुष का उन्माद और शराब के नशे में ‘गुस्सा’। एलेक्स अपनी मम्मी के हालात से डरी हुई थी ‘डर’ जो उसके पिता की देन है। इसलिए वह अपनी बेटी मैडी को अपने पति शॉन के गुस्से से बचा रही थी, जिसमे उसे अपने पिता का प्रतिबिम्ब दिखाई देने लगा था। हमारे समाज में पुरुष को जब-तब-कब-किस बात पर गुस्सा आ जायेगा पता ही नहीं चलता, गुस्से में तोड़फोड़, मारपीट गाली-गलौज सहज माना जाता है। दूसरी ओर स्त्री, जिसे सदा धैर्य सिखाया जाता है, क्रोध उसके चरित्र को बिगाड़ देगा इसलिए उसे दबा कर रखे, लेकिन दोनों ही स्थितियाँ अतिवादिता के कारण घर के संतुलन को बिगड़ देती है। डी.वी.शैल्टर में उसकी सहेली डेनियल कहती है-“तुम्हें लड़ना होगा, ..अगर हक दिखाना है तो वहां जाकर गुस्सा दिखाओ” फिल्म सन्देश देती है कि अभिव्यक्ति अनिवार्य है चाहे किसी भी रुप में हो, डर कर भागने से मंजिल नहीं मिलेगी।

एलेक्स राइटर बनना चाहती थी लेकिन वह प्रेग्नेंट हो गई उसके अनुसार ‘प्रेग्नेंट होना कोई खराब बात तो नहीं’ लेकिन बच्चे होने के बाद एक स्त्री की प्राथमिकताएँ एक झटके में बदल जाती है और वह सिर्फ ‘माँ’ रह जाती है ! रोजिना कहती है ‘मैं कैसे सो सकती हूँ, मैं एक माँ हूँ’ परिस्थितियों ने रोजिना, एलेक्स की माँ पाउला और एलेक्स को सिंगल मॉम बना दिया, पितृसत्तात्मक समाज में सिंगल माँ होना आसान नहीं, जहां माना जाता है कि पिता विहीन समाज विश्रृंखल हो जाता है, वहां अकेली स्त्री के अस्तित्व को यह समाज कैसे स्वीकार करेगा बल्कि उसे हर कदम पर प्रताड़ित किया जाता है कुछ अपनी ममता से वशीभूत वह समर्पित हो जाती है।

डी.वी. शेल्टर की डेनियल अपने बच्चे के कारण ही बार-बार उस पति की ओर लौटती है जिसने उसे जान से मारने की कोशिश की। तभी डी.वी.शेल्टर की हेड कहती है “लड़कियां अपने घर लौट जाती हैं, लड़कियों को रिश्ता तोड़ने से पहले कई बार सोचना पड़ता है, डेनियल तीसरी बार आई थी मेरे साथ 5 बार हो चुका है” लेकिन पाउला वह घर नहीं लौटती ‘घर’ की तलाश में भटकती रहती है पर वैवाहिक संस्था की ओर लौटना उसकी विवशता बन जाती है, उसकी दुर्दशा देख कौन न रो देगा? एलेक्स का पति जब कहता है “मैं तुम्हें मेरे घर में रहने देता हुँ, मेरे पैसों का खाना खाती हो, मेरे पैसों की बियर पीती हो सब कुछ मेरे पैसों का है अगर यहां से चली गई तो अकेली पड़ जाओगे, घर छोड़कर जाओगी तो अकेली नहीं रह पाओगी” तो यही अकेलापन स्त्री को डराता है?

रोजिना जो बहुत पैसे वाली है आर्थिक रूप से स्वतंत्र है, उसके घर में रखा एक-एक सामान उसके पैसे से आया है लेकिन फिर भी ‘घर’ और परिवार के नाम पर उसे जो सम्मान मिलना चाहिए नहीं मिलता, उसकी तरह यदि उसका पति जेंम्स कमा रहा होता तो उसका बहुत सम्मान होता लेकिन रोजिना! उसे उसका पति अपना- सा नहीं लगता, ना प्यार महसूस होता है ना कोई प्यार करने वाला,वह मायूस- निराश हो चुकी है, क्योंकि जेम्स अब उससे तलाक़ चाहता है जेम्स तीसरी शादी करेगा, क्योंकि रोजिना माँ न बन सकी, उसकी हर मिसकैरेज के बाद वह उससे दूर होता चला गया वो एलेक्स को समझाती है “कभी किसी को अपना फायदा मत उठाने देना, अपनी मेहनत को कभी किसी को कम मत महसूस कराने देना, मेहनत!

मेहनत ही है कि जो भरोसे के लायक है, बाकी सब खोखला है” पति से अपने सम्बन्ध के विषय में रोजिना कहती है कि “जैसे अल्जाइमर के मरीज , जान पहचान है पर फिर भी अजनबीपन है, “जानती हुँ मुझे उससे प्यार है, पर मैं उसे पहचान नहीं पाती और फिर उस अनजान आदमी को मैं घर से धक्के मार कर निकालना चाहती हुँ और फिर उसी आदमी को वापस पाना चाहती हुँ” ‘5 साल और 6 आईवीएफ के बाद 3 लाख डॉलर खर्च करने के बाद आज एक अनजान औरत की कोख में उसका 5 महीने का बच्चा है पर उसे कुछ भी महसूस नहीं होता उसका समस्त स्रोत सोख लिया गया, शायद इसलिए अजीब गुस्सा, खीज, कुंठा, दुख, अकेलापन माँ न बन पाने की पीड़ा रोजिना को क्रूर बना देती है। रोजिना के जीवन पर एलेक्स लिखती है- ‘सपनों के घर में रहने का अर्थ हो सकता है कि वहां बड़े हॉल, लम्बी अलमारी हो, लेकिन वह अकेलेपन से बचकर छुपने की जगह हो शायद, शीशे की दीवारें आपको अपना अकेलापन दिखाती हैं इतना बड़ा घर जिसमें खुद को खो देते हैं” 

मानसिक प्रताड़ना के चलते जब एलेक्स अपना घर छोड़ आई और अब वो पुलिस में भी रिपोर्ट नहीं लिखवा सकती क्योंकि उस पर शारीरिक अत्याचार नहीं हुआ हालांकि डोमेस्टिक वायलेंस शेल्टर में उसे स्थान मिलता है क्योंकि वहाँ मानसिक प्रताड़ना को भी डोमेस्टिक वायलेंस के अंतर्गत गिना जाता है।संविधानिक कानून और समाज जहां पितृसत्ता का वर्चस्व है , के बीच की खाई को भर पाना आसान नहीं क्योंकि पितृसत्तात्मक समाज संवैधानिक नियमों को दरकिनार कर देती है, इसलिए स्त्री की मदद के लिए स्त्री को ही पहल करनी होगी।

अपनी अधूरी पढ़ाई के विषय में एलेक्स कहती है कि मेरी माँ को घूमने का शौक था इसलिए 6 अलग-अलग स्कूलों में उसकी पढ़ाई हुई जबकि माँ अपने लिए ‘अपना घर’ खोज रही थी। असुरक्षा की भावना, एक अनजान डर उसके भीतर घर कर चुका था, वो स्थिर नहीं थी। मनोवैज्ञानिक इस अवस्था को ‘बयोपोलर डिसऑर्डर’ एक मानसिक बीमारी मानते हैं, इस स्थिति में व्यक्ति का मूड /मानसिक अवस्थाएँ बदलती रहती हैं जो सामान्य श्रेणी में नहीं आता, जैसे कि पाउला (एंडी मैकडोवेल) के अभिनय में पाते हैं, जब कभी वह अति उन्माद की स्थिति में अति उत्साहित, अतिसक्रिय होती है तो अत्यधिक खुश, बहुत ज्यादा और ऊँचा-ऊँचा अनर्गल बोलती है, खूब पेंटिंग करती है लेकिन तब वह आस-पास के लोगों पर, उनकी बातों पर बहुत कम ध्यान केन्द्रित करती है।

उत्पीड़न न सह पाने की अवस्था में उसका मनोरोग बढ़ता गया, वह भावुक और सनकी होती गई, यहाँ तक कि अपनी कामुकता के विषय में स्वघोषित बातें करती चली जाती, वह अपने पुरुष मित्र पर अपने विश्वास को बनाये रखना चाहती है, जानती है कि वह उसे धोखा दे रहा है, विश्वास टूटने पर, संबधो के प्रति क्रूर भी हो जाती है जब बेटी एलेक्स से कहती है “मैं तुम्हारी बेटी को नहीं संभाल सकती! मेरी अपनी जिन्दगी है!… मैं काम करती हूँ अपने खुद के लिए …तुम खुश हो न, कि तुमने मुझे झूठा साबित कर दिया…जबकि तुम कितनी किस्मत वाली हो… तुम्हें तो किसी पुरुष के साथ सोना भी नहीं पड़ता और वे दोनों कैसे तुम्हारे आगे पीछे दुम हिलाते घुमते हैं … तुम्हारी नजर है मेरे बॉयफ्रेंड पर”।

WHO के अनुसार पुरुषों की तुलना में महिलाएँ एंग्ज़ाइटी, डिप्रेशन, बयोपोलर डिसऑर्डर आदि मानसिक रोगों की ज्यादा शिकार होतीं हैं और इस दर्दनाक अवस्था का कारण है- लैंगिक भेदभाव पर आधारित हिंसा, सामाजिक समानता का अभाव, सामाजिक-पारिवारिक दबाब, जिन्हें महिलायें जन्म के साथ ही अनुभव करने लगती हैं, विडंबना कि हमारे समाज में महिलाओं की इस अवस्था को असामान्य माना ही नहीं जाता , या फिर सीधे पागल करार कर दिया जाता है। एंडी मैकडोवेल का अभिनय इन अवस्थाओं को बेहतरीन ढंग से प्रस्तुत करता है। वह वास्तविक जीवन में भी उनकी बेटी एलेक्स यानी मार्गरेट क्वाल्लीपर उनका अभिनय भारी पड़ता हैं।

डी.वी.शेल्टर पहुंचकर एलेक्स यह भी जानने की कोशिश कर रही है कि वह इन हालात में कैसे पहुँची यानी “वे कौन से हालात थे जो मेरे लिए बनाए गए या मैंने ये राह खुद चुन ली, मुझे मालूम ही नहीं पड़ा मैं कब इन हालातों में धंसती चली गई और आज मैं अपने और अपनी बेटी के लिए एक घर नहीं ढूंढ पा रही हुँ ” पति ने पहले ही कह दिया था अगर यहां से चली जाओगे तो अकेली पड़ जाओगी, क्योंकि समाज में अकेली महिला का साथ कोई नहीं देता, कोर्ट भी नहीं, इसके लिए उसे खुद को साबित करना होता है कि सिंगल मदर के रूप में वह बच्चे को पाल सकती हो यानी एलेक्स को भी जो अब तक मैडी का लालन-पालन करती आ रही है, उसको कोर्ट में साबित करना है कि मैं बच्चे को पाल सकती हुँ सिर्फ माँ की ममता से कस्टडी नहीं मिलती। इसलिए वो बेटी से कहती है “चढ़ाई बहुत मुश्किल होगी लेकिन हम ऊपर तक पहुंच ही जाएंगे” जिस दिन पहुंच जाएंगे मैं अपनी बेटी को बताऊंगी कि यह नई दुनिया उसी के लिए है।

फिल्म के संवाद पितृसत्ता की सूक्ष्मता से छानबीन कर बताते हैं कि स्त्रियों के लिए यह कितनी घातक है। डेनियल, पाउला, एलेक्स, रोजिना इनका संघर्ष बताता है वास्तविकता कितनी क्रूर है। शायद इसलिए ही दर-दर भटकने के बाद हताश माँ एलेक्स को समझा रही है कि “उसे मत छोड़ो वह कोशिश कर रहा है” माँ को लग रहा है कि उसने अपने पति को छोड़कर गलती की थी हालांकि वह कह नहीं रही, डेनियल भी शारीरक प्रताड़ना के साथ मानसिक प्रताड़ना को स्पष्ट करती है- “वो काटने से पहले भोंकते हैं” शॉन कहता है ‘तुम जॉब कैसे कर सकती हो! मैडी को कौन को संभालेगा?’ एलेक्स के पास वापस वही समस्या आ जाती है, स्त्री काम करके इंडिपेंडेंट होना चाहती है लेकिन इंडिपेंडेंट यानि स्वतंत्रत होने के लिए बच्चों की देखभाल एक प्रश्न है जिसका एकमात्र उत्तर ‘माँ’ ही है। स्पष्ट है कि औरत स्वतंत्र हो ही नहीं सकती, उसे दोनों चीजें संभालनी हैं, दोनों मैनेज करें।   

यही मूल समस्या है एक औरत की उसकी स्वतंत्रता जो बच्चों के साथ बंधी हुई है और वह बच्चों को पालना स्वीकार करती है। एलेक्स जो अपनी जिंदगी अपनी शर्तों पर जीना चाहती है, घर छोड़ देती है, उसके पैसे तेजी से खत्म हो रहे हैं डॉलर को जब स्क्रीन के कोने में लाल रंग से काटते हुए दिखातें हैं, तो समझ आता है कि पैसा कितना ज़रूरी है।नौकरी करने के लिए उसके पास कोई खूबी या कोई स्किल्स भी नहीं बिना किसी जॉब के मैडी को बेहतर जीवन देना मुमकिन नहीं होगा, इसलिए टॉयलेट साफ़ करने को भी तैयार है।

घरेलू हिंसा से संबंधित फिल्म का केन्द्रीय संवाद घरों में लगने वाले फंगस से सम्पृक्त है-“धीरे-धीरे यह बढ़ता जाता है” एलेक्स के पिता कहते हैं– “तुम्हारे घर की जो फंगस है ना यह तो बस अभी शुरुआत है, बस यूं समझ लो उसे खत्म करने के लिए दीवारें तोड़ने पड़ेंगी कारपेट उखाड़ना पड़ेगा बहुत बड़ा काम है।” उसी प्रकार से पितृसत्ता में ‘घर की संकल्पना’ में हिंसा रुपी फंगस स्त्री अस्तित्व को खोखला करती जाती है! जब एलेक्स पिता से कहती है कि “क्या आप मेरे पक्ष में गवाही दें सकतें हो कि आपके सामने शान ने मेरे साथ दुर्व्यवहार किया” तो वो साफ़ इनकार कर जाते हैं कि ‘मैं यह नहीं कर पाउँगा।’ 

लेकिन सत्ता और वर्चस्व की एकतरफा फंगस धीरे-धीरे यह बढ़ती जाती है यानी मार-पिटाई हिंसा गाली-गलौज जिसकी आदत हो जाती है , तब जरूरी हो जाता है कि ‘चेंज योर लाइफ’ दरवाज़े न खुल पायें तो दीवारों को तोड़ना पड़ेगा, अन्यथा सड़ो, ज़मीन उखाड़नी होगी, अपने लिए नई ज़मीन तैयार करनी होगी। फंगस वाले घर में रहकर बीमार होने से बेहतर है बिना ‘घर’ के खुले आकाश में विचरण करना जो एलेक्स कर रही है। इसके विपरीत पति से मार खाई हुई औरत डेनियल,जो बार बार लौट जाती है वह रास्ते में एलेक्स को पहचानने तक से मना कर देती है ,वह हैरान है, ‘उसको मारने की कोशिश करने वाले इंसान के साथ कोई कैसे रह सकता है’ डेनियल जिन्दगी जीने के लिए खुद से झूठ बोल रही है।

एक बार को लगता है कि पिता बदल गये ,पति बदल गया लेकिन वो सिर्फ भ्रम है, माया है एलेक्स का पिता कहता है -“मैं तुम्हारी मम्मी से बहुत डरता था, वह बहुत मूडी है एकदम गुस्सा आ जाता था, मैं भी यंग था उसे संभालना मेरे बस का नहीं था, मैं बाप का रोल नहीं निभा सका पर मैं अच्छा नाना जरूर बन सकता हुँ” लेकिन जब अच्छा पिता बनने का मौका बेटी ने दिया तो साफ़ मना कर गया, क्योंकि वो शॉन यानी पितृसता के साथ है, पिता कह रहा है कि “अगर मैंने कुछ देखा भी तो वही यंग कपल के बीच में थोड़ी सी अनबन” वास्तव में यह पितृसत्ता सोच ही है जो दूसरे पुरुष का साथ दे रहा है, और मानने को तैयार नहीं कि अगर पति पत्नी को डांटता है या उस पर ज़ोर जबरदस्ती करता है तो वह भी प्रताड़ना के अंतर्गत आता है ‘मेंटली टॉर्चर’ !

जबकि अपने जमाई शॉन के पक्ष में वह कह रहा है कि ‘शॉन को इस समय हमदर्दी की जरूरत है…’ और बेटी उससे उसे कोई सरोकार नहीं। इसी प्रकार नेट, उसका मित्र भी उसे अपने घर से जाने के लिए कह देता है “क्या मैं सिर्फ तुम्हारे बच्चे संभालने के लिए हुँ? तुम ‘शॉन’ के साथ सो सको इसलिए मैं तुम्हारी बच्ची नहीं संभाल रहा हुँ, तुम्हें यहां से जाना होगा मुझे तुम्हारी परवाह है, पर मैं यह सब नहीं देख सकता” अंत में वह ‘काइंड मैन’ पुरुष ही रह गया एक अच्छा पुरुष!!! जो एलेक्स के साथ ‘डेट’ पर जाना चाहता है इसी आशा में उसकी मदद कर रहा है।

मिसौला की स्कॉलरशिप मिलने के बाद शॉन को समझ नहीं आ रहा कि वह दो-दो जॉब कर रहा है ताकि उन्हें पैसे की कमी ना हो और यह आगे पढ़ने की बात रही है, आगे पढ़ने का मतलब दूसरा शहर , जहां वह मैडी को भी लेकर जाएगी। तब उसकी प्रतिक्रिया में एक औंस भी बदलाव नहीं था, जैसा कि पितृसत्तात्मक मानसिकता में होता है,उसके गढ़े गये अहं को चोट लगती है कि उसके बिना पूछे उसने आगे पढ़ने का निर्णय क्यों लिया, पूछे बिना कैसे अप्लाई कर दिया, और सबसे बड़ी बात यदि वह पढ़ेगी तो मैडी को कौन रखेगा यहीं पुरुष सोच पकड़ में आती है, जब एक औरत अपने पति की तरक्की पर खुश होती है,जहां उसकी नौकरी होती है ,जहां तबादला होता है, उसी शहर में उसके साथ नया घर सजाती है। तो स्त्री की तरक्की पर पुरुष विक्षुब्ध क्यों हो जाता है “तुम मुझसे बिना पूछे सारे प्लान बना लेती हो… तुम ने सब कुछ बर्बाद कर दिया है।”

जब रोजिना उसकी नोटबुक उसे वापस करने आती है तब शॉन उसे डांट रहा है कि ‘मैडी को तैयार करना तुम्हारा ‘काम’ है’ काम ! काम तो है लेकिन यह काम किसी गिनती में नहीं आते हैं’ यहाँ दृश्य बहुत ही प्रतीकात्मक है कि एलेक्स अंध गह्वर में कहीं गिरी पड़ी है, अपने ही मन के किसी कोने में अपने आप को समेट रखा है जहां उसे बाहर की कोई आवाज नहीं आती। यदि वह वहां से न निकलती तो मृतप्राय हो चुकी थी लेकिन नोटबुक का वापस मिलना, उसकी अभिव्यक्ति का वापस मिलना ही है और अब वो दुबारा दोगनी शक्ति और दृढ़ संकल्प के साथ आगे बढ़ती है। उसके अनुसार कभी-कभी हम अपने अनुभवों से आक्रांत हो जातें है कि कागज़ कलम तक नहीं पकड़ पाते लेकिन अभिव्यक्ति जरूरी है।

इसलिए डी.वी. शैल्टर की उत्पीड़ित महिलाओं से एलेक्स कहती है- “आप अपने जीवन का वो पल लिखो जिसमें आप सबसे ज्यादा ख़ुश थी या आपको लगता है कि आप उस पल में सबसे ज्यादा खुश हो सकती हैं, ड्रीम हैप्पीनेस… सच को ऊंची आवाज में बोलने से बेहतर है उसे लिखना! क्योंकि लिखना आपसे कोई छीन नहीं सकता, कोई नहीं कह सकता आप गलत है” अनुभव, वह सपना ,आपको प्रेरणा देगा, सदा आगे बढ़ने के लिए। अंत में शॉन पूछता है कि ‘तुम चमक रही हो या मेरी नजर का धोखा है’ तो एलेक्स कहती है कि ‘हाँ मैं चमक रही हुँ।’ उसकी जीत की चमक। एलेक्स की यात्रा एक नई दुनिया की खोज है इसके लिए उसके पास कोई ‘रोडमैप’ नहीं है कोई सुविधाएं नहीं है कुछ है तो सिर्फ संघर्ष ,अपने ऊपर विश्वास। 10 एपिसोड की यह वेब सीरीज फिल्म हर लड़की को प्रेरणा देने वाली है कि अपने ऊपर होने वाले किसी भी अत्याचार चाहे शारीरिक हो चाहे मानसिक , इनकार करना होगा। और पितृसत्ता को भी ठहर कर सोचना होगा कि यदि उसने स्त्री को उसका अधिकार और सम्मान नहीं दिया तो वह शॉन की तरह अकेला रह जाएगा

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रक्षा गीता

लेखिका कालिंदी महाविद्यालय (दिल्ली विश्वविद्यालय) के हिन्दी विभाग में सहायक आचार्य हैं। सम्पर्क +919311192384, rakshageeta14@gmail.com
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