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निर्देशक- सुभाष कपूर
कलाकार- हुमा कुरैशी, सोहम शाह, अमित सियाल, प्रमोद पाठक, विनीत कुमार, अतुल तिवारी, कन्नन अरुणाचलम और कनी कुश्रुती आदि
रिलीजिंग ओटीटी प्लेटफॉर्म- सोनी लिव
एक मुख्यमंत्री की कम पढ़ी लिखी पत्नी जो ब्याहकर आई थी कभी। एक दिन मुख्यमंत्री से कहती हैं बच्चे बड़े हो गए। तुम्हें हम दिखाई नहीं देते। तुमने शादी के समय कहा था महारानी बनाकर रखूंगा। बस फिर क्या यहीं से उसके जीवन की दशा और दिशा बदलनी शुरू होती है। छठ पूजा के समय मुख्यमंत्री को गोली लगती है और वे तुरंत बना देते हैं अपनी पत्नी को मुख्यमंत्री। लो जी बन गई घर की रानी अब महारानी। अब और क्या चाहिए। हम महिलाओं को ऊपर उठते हुए ही तो देखना चाहते हैं न!
खैर दस एपिसोड में बंटी 45 से 50 मिनट के एपिसोड की कहानी बिहार की पृष्ठभूमि पर लालू यादव और बिहार की पहली महिला मुख्यमंत्री बनने वाली राबड़ी देवी के जीवन पर आधारित नजर आती है। नजर आती है है नहीं ध्यान रखें ऐसा इसके मेकर्स ने भी कहा है और डिस्क्लेमर भी दिया है। हालांकि इसमें बाजी राबड़ी देवी यानी हुमा कुरैशी ने ही मारी है। बिहार में नब्बे के अंतिम दशक में हुए चारे घोटाले के नामजद आरोपी लालू और उनकी पत्नी पर पूरी तरह से आधारित भी नहीं है सीरीज। काश की हो पाती और हम कहते कि स्कैम 1992 के बाद सोनी लिव (SonyLIV) की वेब श्रृंखला महारानी एक राजनीतिक गलियारे के खुरपेंच राहों पर सफर करती हुई कहानी है।
भीमा भारती (सोहम शाह) बिहार में निचली जाति के मुख्यमंत्री हैं हालांकि उनकी इस जाति का उल्लेख नहीं है। उनकी पत्नी रानी (हुमा कुरैशी) अपने तीन बच्चों के साथ अपने गांव में रहती हैं, जो राजधानी पटना से बहुत दूर स्थित है। भीमा की हत्या के प्रयास में उनके वहां से मुश्किल से बचने के बाद, भीम सिंह रानी को सिंहासन पर बैठा देता है। यहां एक ब्राह्मण नेता नवीन (अमित सियाल) भी नजर आते हैं। कम पढ़ी-लिखी और ज्ञानाभाव और देहाती व्यवहार के चलते रानी उपहास का कारण भी बनती है। लेकिन अंततः एक दुर्जेय चुनौती के रूप में उभरती है।
इस रानी के महारानी बनने में हमें दस एपिसोड की यह खासी लंबी सीरीज देखनी होगी। राजनीति के भरपूर किस्से बॉलीवुड हमें सुना और दिखा चुका है। ये अंत हीन किस्से हैं जिसे हमेशा चटखारे लेकर देखा जाता है। सुभाष कपूर, नंदन सिंह और उमा शंकर सिंह लिखित और करण शर्मा द्वारा निर्देशित इस सीरीज में निर्देशन, लेखन दोनों नजरिये से कसावट बरतने की गुंजाइश नजर आती है। भाषा के स्तर पर भी सीरीज काफी गुंजाइश छोड़ती है।
अभिनय के नजरिये से हुमा कुरैशी जंचती है और लीक से हटकर किरदारों में रंग जमाने वाली हुमा कुरैशी के लिए इस सीरीज को देखा जा सकता है। हालांकि सोहम शाह, अमित सियाल, अतुल तिवारी, कनी कुश्रुती, प्रमोद पाठक और मोहम्मद अशफाक हुसैन कभी अच्छे तो कभी कमजोर नजर आते हैं।
‘हमसे 50 लीटर दूध दूहा लो, 500 गोबर का गोइठा बनवा लो पर एक दिन में इतना फाइल पर अंगूठा लगाना, ना.. हमसे ना हो पाएगा।‘ कहने वाली और सचिवालय को शौचालय बोलने वाली महारानी जब कहती है कि हम अनपढ़ हैं, कम पढ़ें लिखें हैं तो इसमें सत्ता का ही दोष है। तब लगता है वह सत्ताई भाषा सीखने लगी है। जाति बिहार का ही नहीं पूरे देश का सच है इस बात को भी सीरीज दिखाती है। इसके अलावा छठ पूजा, लोकगीत के रंग में रंगी भी नजर आती है।
‘स्कैम 1992’ के बाद ‘महारानी’ सोनी लिव के लिए बड़ा शो है। और लंबी सीरीज होने बावजूद अपने साथ इसके दूसरे सीजन की सम्भावना भी छोड़ जाता है। 90 के दशक के बिहार में हुए 958 करोड़ के चारे घोटाला, चौथी पास घरेलू महिला के फर्श से अर्श तक पहुँचने की कहानी से लेकर लक्ष्मणपुर और बाथे नरसंहार है। सब मिलकर भी उस कदर प्रभाव नहीं डाल पाते है जैसी उम्मीद इसके ट्रेलर या इसके बज को बनाते समय इसकी तस्वीर हमारे दिमाग में बनाई गई थी। हालांकि सियासी चालों में लिपटी इस सीरीज की कहानी में कब रानी भारती को मोहरा बनाया जाता है और कब वह उन सत्ता लोलुप लोगों का शिकार हो जाती हैं उन्हें पता ही नहीं चलता। इसमें भी नवीन कुमार, गौरी शंकर जैसे लोग सत्ता का पूरा खेल ही बदलकर रख देते हैं।
अपनी रेटिंग – 2.5 स्टार
तेजस पूनियां
लेखक स्वतन्त्र आलोचक एवं फिल्म समीक्षक हैं। सम्पर्क +919166373652 tejaspoonia@gmail.com
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