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कोरोना काल में महत्वपूर्ण है विश्व रक्तदाता दिवस की अहमियत समझना

 

कोरोना काल और विश्व रक्तदान दिवस

कोरोना काल में हमने देखा कि सोशल मीडिया पर प्लाज़्मा दान के लिए लोग एक दूसरे से दानदाता उपलब्ध कराने के लिए मदद की गुहार लगा रहे थे और कुछ लोग निःस्वार्थ भाव से दानदाताओं को जरूरतमंदों तक पहुंचाने में सम्पर्कसूत्र का काम कर रहे थे। इस समय देशभर में कोरोना टीकाकरण का काम चल रहा है और टीकाकरण के कुछ दिन बाद तक रक्तदान नही कर सकते, जिस वज़ह से महामारी की वज़ह से पहले ही रक्तदान के लिए जाने से हिचक रहे रक्तदाताओं की संख्या और घट गई है।

रक्तदान का इतिहास रहा है कि इसे स्वेच्छा से करने वालों की हमेशा ही कमी रही है, विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार 62 देशों ने प्रति 1000 लोगों पर 10 से कम दान एकत्र करने की रिपोर्ट दी है। यही वज़ह थी जिस कारण विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा वर्ष 2005 से हर वर्ष 14 जून को विश्व रक्तदाता दिवस मनाना शुरू किया गया। 14 जून 1869 को जन्में रक्त समूह के जनक ऑस्ट्रियाई रोगविज्ञानी ‘कार्ल लैंडस्टेनर’ की याद में इसके लिए 14 जून का दिन चुना गया।

इस वर्ष विश्व स्वास्थ्य संगठन ने इसका विषय ‘रक्त दो और दुनिया को धड़काते रहो’ रखा है और इटली इसकी मेज़बानी कर रहा है। इसका उद्देश्य रक्त आधान के लिए सुरक्षित रक्त और सुरक्षित रक्त उत्पादों की आवश्यकता के साथ ही राष्ट्रीय स्वास्थ्य प्रणालियों में स्वैच्छिक, अवैतनिक रक्त दाताओं के महत्वपूर्ण योगदान के बारे में वैश्विक जागरूकता बढ़ाना है। यह दिन उन रक्तदाताओं को धन्यवाद देने के लिए मनाया जाता है जो निस्वार्थ भाव से रक्त देकर दूसरों की जान बचाते हैं और ऐसे लोगों को प्रोत्साहित किया जाता है जिन्होंने आज तक रक्तदान नही किया है।

विश्व रक्तदाता दिवस के दिन सभी देशों को यह याद दिलाया जाता है कि विश्व में हमेशा रक्त की पर्याप्त आपूर्ति बनी रहे और समय पर इसकी पहुंच सब तक हो, सुरक्षित रक्त तक अब भी बहुत कम लोगों की पहुंच है और निम्न और मध्यम आय वाले लोग इसके लिए संघर्ष करते हैं।

भारत में रक्तदान की स्थिति

भारत का पहला ब्लड बैंक मार्च 1942 को रेड क्रॉस के संचालन में कोलकाता में खोला गया था। अब भारत में रक्तदान बहुत से संगठनों और अस्पतालों द्वारा रक्तदान शिविरों के माध्यम से होता है।भारत में 18-65 वर्ष की उम्र के बीच के लोग रक्तदान कर सकते हैं और रक्तदाता का वज़न 45 किलोग्राम से ऊपर होना चाहिए। रक्तदाता शारीरिक और मानसिक रूप से स्वस्थ होना चाहिए एवं रक्तदाता ने शराब का सेवन ना किया हो। रक्तदाता रक्तदान से फैलनी वाली सभी बीमारियों से मुक्त हो और एक बार रक्तदान करने के बाद पुरुष 90 दिन व महिलाएं 120 दिन बाद फिर से रक्तदान कर सकती हैं।

भारत में वर्ष 1996 में सुप्रीम कोर्ट के निर्देश के अनुसार स्वैच्छिक रक्तदान को बढ़ावा देने, सुरक्षित रक्त आधान सुनिश्चित करने, रक्त केन्द्रों को बुनियादी ढांचा प्रदान करने और मानव संसाधन विकसित करने के उद्देश्य से राष्ट्रीय रक्त आधान परिषद का गठन किया गया था और पेशेवर रक्तदान पर रोक लगा दी गयी थी। भारत सरकार ने अप्रैल 2002 में राष्ट्रीय रक्त नीति को अपनाया। जिसका उद्देश्य पर्याप्त और सुरक्षित रक्त की आपूर्ति के लिए आसान पहुंच को सुनिश्चित करना और एक राष्ट्रव्यापी प्रणाली विकसित करना है।

रक्तदान के बाद बरती जाने वाली सावधानियां और उससे होने वाले फ़ायदे

राष्ट्रीय रक्त आधान परिषद के अनुसार रक्तदान के बाद उपयुक्त मात्रा में तरल पदार्थ पीना चाहिए और कोई भारी काम करने से बचना चाहिए। रक्तदाता को रक्तदान के तुरंत बाद धूम्रपान और ड्राइविंग से बचना चाहिए। रक्तदान के बाद लगे बैंडेज को 6 घण्टे बाद ही निकालना चाहिए और किसी भी प्रकार की समस्या आने पर ब्लड बैंक से सम्पर्क करना चाहिए।

अमेरिकन जनरल ऑफ एपिडेमियोलॉजी द्वारा किये गये एक अध्ययन में फिनलैंड के ऐसे 2682 पुरुषों के नमूने लिए गए जिन्होंने साल में कम से कम एक बार रक्तदान किया था। उनमें रक्तदान ना करने वाले लोगों से दिल का दौरा पड़ने का जोखिम 88% कम था। रक्तदान करते रहने से शरीर में आयरन की मात्रा सन्तुलित रहती है। रक्तदान करने से रक्तदाता के रक्त का विश्लेषण निःशुल्क हो जाता है और उसे अपने शरीर में हेपेटाइटिस, एचआईवी जैसी गम्भीर बीमारियों के होने या ना होने के बारे में जानकारी उपलब्ध हो जाती है। रक्तदान करने से रक्तदाताओं को इसके शारीरिक और मानसिक लाभ भी मिलते हैं। रक्तदान कर गर्व का अनुभव होता है और रक्तदाता के आत्मविश्वास में भी वृद्धि होती है।

रक्तदान के लिए प्रोत्साहन की आवश्यकता

स्वैच्छिक रक्तदान को प्रोत्साहित करने के लिए समाज में रक्तदान को लेकर जो मिथक हैं उन्हें तत्काल खत्म किए जाने की जरूरत है। किसी की निरक्षरता, रोज़गार की स्थिति और आर्थिक सामाजिक स्थिति भी रक्तदान के मिथकों को लेकर उत्तरदायी है। बीमारी, चक्कर आना, वज़न कम, उच्च रक्तचाप, मोटापा, दौरे, यौन रोगों का डर भी रक्तदान के प्रति नकारात्मक दृष्टिकोण बनाता है।

एशियन जनरल ऑफ ट्रांसफ्यूजन सांइस के रक्तदान सम्बन्धित शोध पर रक्तदान अधिक करने के लिए जो अनुशंसाएं की गई है उसमें से प्रमुख है कि जनता के मन में रक्तदान से सम्बंधित जो ज्ञान है उसमें सुधार की आवश्यकता है। विद्यालयों के पाठ्यक्रमों में स्वैच्छिक रक्तदान को प्रभावित करने वाले खतरों को बारे में पढ़ाया जा सकता है। विश्व रक्तदाता दिवस पर एक बार रक्त देने के बाद रक्त बीमा योजना शुरू की जा सकती है

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हिमांशु जोशी

लेखक उत्तराखण्ड से हैं और पत्रकारिता के शोध छात्र हैं। सम्पर्क +919720897941, himanshu28may@gmail.com
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