हलफ़नामा

एक फिल्मकार का हलफ़नामा – 10

 

गतांक से आगे….

            दो दिन चले इस मुहूर्त-शूटिंग के पश्चात जब सबको विदा कर रहा था तो कैमरामैन ने कहा कि अब मैं समझा कि आप कैसी फिल्म बना रहे हैं, मुझे आगे भी मौका दीजिएगा, कोई शिकायत का मौका नहीं दूँगा। उसकी बात सुन खिझाया मन और खीझ उठा।

            ‘दो दिन बाद पटना आ ही रहा हूँ, पहले इन दोनों दिन की शूटिंग का हिस्सा देख लूं फिर  आगे की बात होगी।’ – कहकर उन सबको चलता किया। 

     पटना में जब दोनों दिन की शूटिंग का नेगेटिव देखा तो माथा पकड़ लिया। पहले दिन की मेहनत पर तो पानी पहले ही अजय नान्दे फेर चुके थे। उसमें से कोई भी दृश्य फिल्म में रखने लायक तो था नहीं! शूटिंग के सारे रा स्टॉक लेकर स्वाधीन दास के साथ बुझे मन से लौटा। रास्ते में स्वाधीन दास को कहा- “दादा, ऐसे काम नहीं चलेगा। आगे की शूटिंग के लिए मुंबई या कलकत्ता से सारे टेक्नीशियन लाना पड़ेगा।” तो दादा ने कहा कि मुंबई की जगह कलकत्ता ज्यादा सस्ता पड़ेगा। ‘ठीक है, मैं भी अपने श्रोत से मुंबई का रेट पता करता हूँ।” और फिर आगे कहा कि क्यों न हमलोग वैसे न्यू कमर कैमरामैन और टेक्नीशियन की तलाश करें, जिनके भीतर कुछ अच्छा करने का जज़्बा हो? वैसे लोग कम पैसे में काम करने को मिल भी जाएंगे और उनमें बेहतर काम करने की ललक भी होगी। इससे हमारा मक़सद पूरा होगा और उनकी पहचान भी बनेगी। दादा ने कहा कि कलकत्ता जाकर तलाशना होगा। हमलोग मुजफ्फरपुर पहुँचे और दूसरे दिन मिलने की बात कह अपने-अपने घर की ओर मुड़े।

   दूसरी शाम उनसे बातचीत में यही तय हुआ कि आगे की शूटिंग के लिए कलकत्ता या बम्बई के टेक्नीशियन से बात की जाए। दादा कलकत्ता जाकर बात करने की बात कही तो मैं बोला कि 04 जनवरी 2005 को अयोध्या प्रसाद खत्री की 100वीं पुण्यतिथि है, दिली इक्षा तो थी कि उसी अवसर पर एक वृहद आयोजन करने की, किन्तु वह तो संभव न हो सका। तो अब उस अवसर पर कम से कम उनके द्वारा बनवाये ‘शिव-मंदिर’ के प्रांगण में संगीत-संध्या का आयोजन कर उसका श्रीगणेश तो कर ही सकते हैं। उन्होंने सहमति जताते अपनी भतीजी रूपाली दास की म्यूजिक टीम को भी उस कार्यक्रम में शरीक करने की बात कही तो मैंने खुशी जताई और उन्हें कहा कि यह 4 जनवरी वाला कार्य संपादित हो जाता है तब कलकत्ता जाने की बात तय होगी।

4 जनवरी, 2004 को खत्री जी द्वारा निर्मित मंदिर में संपन्न संगीत संध्या की तस्वीर

  04 जनवरी की तैयारी में लग गया। संगीतज्ञ मुन्नाजी के बटलर स्थित उनके क्वार्टर जाकर मिला। उनसे इस प्रसंग में बात कर उक्त कार्यक्रम में हिस्सा लेने को कहा और रुपये की बात तय-तमन्ना कर चलने को हुआ तो उन्होंने कहा कि मेरे हारमोनियम पर संगत करने के लिए किसी तबलाबादक को लेना पड़ेगा। मैंने कहा कि सतीश महाराज को कहूँगा, यदि उन्हें बैंक से फुर्सत न मिली तो दीपक को बोल दूँगा। आप निश्चिंत रहे, ये मैं कर लूँगा। आप 4 जनवरी को पुरानी बाजार स्थित उस मंदिर में तीन बजे पहुँच जाएं। मैं वही मिलूँगा। और हाँ, खत्री जी वाला मंदिर पूछने पर कोई उसका पता नहीं बता पायेगा, आप मक्खन साह चौक से उत्तर की ओर बढ़ेंगे और करीब सौ-दो सौ क़दम चलने के बाद बायीं ओर गली में घुसते ही वह मंदिर दिख जाएगा। वैसे मक्खन साह चौक पर त्रिशूल हिलता मंदिर के बारे में पूछेंगे तो लोग बता देंगे। उन्होंने पूछा- “त्रिशूल हिलता मंदिर?” मैंने बताया – “हाँ, 1934 के भूकंप में उस मंदिर का कुछ हिस्सा भी ढह गया था और मंदिर के शिखर पर शिव की मूर्ति के साथ जो त्रिशूल था वह भूकंप के कारण महीनों हिलता रहा, जिसे देखने वालों की अथाह भीड़ वर्षों तक उमड़ती रही थी। नाना प्रकार के किस्से चलते रहे। कोई इसे शिवजी के गुस्से का तांडव बताता….तो कोई शिवजी की  महिमा…तो कोई प्रभु की लीला! इसी कारण उस शिवालय का नाम पड़ गया- “त्रिशूल हिलने वाला मंदिर।” 

 आज कोई यह भी नहीं जानता कि करीब सवा सौ साल पहले इस मंदिर का निर्माण अयोध्या प्रसाद खत्री ने कराया था और 34 के भूकंप में ढहे हिस्सों का जीर्णोद्धार स्व. जगदीश नारायण नंदा द्वारा संपन्न हुआ था। इन सब बातों का ज़िक्र बिहार राष्ट्रभाषा परिषद से करीब 60 वर्ष पूर्व 1960 में छपी पुस्तक “अयोध्या प्रसाद खत्री स्मारक ग्रंथ” में ललित कुमार सिंह नटवर के ‘परिचायिका’ शीर्षक आलेख में तस्वीर संग मंदिर प्रसंग दर्ज है।

    रंगकर्मी विमल विश्वास के सहयोग से अयोध्या प्रसाद खत्री की एक तस्वीर बनवाकर उस मंदिर परिसर में लगवायी। जब यह तस्वीर वहाँ लगवा रहा था तो उस मंदिर को कब्जाए लोगों में से एक पंडित ने कहा कि यह मंदिर मेरे दादा ने बनवाया था। यह सुन मैं हत्थे से उखड़ गया- ‘ज़्यादा होशियारी न दिखाएं पंडीजी, ये जो तस्वीर देख रहे हैं न, उन्हीं के द्वारा बनवाया गया था यह मंदिर! क्या यहीं हैं आपके दादा?’ पूछने पर सहम कर सिर झुका लिया। तब थोड़ी सख़्ती में प्रेम की चाशनी घोल उनसे कहा- ‘ये तस्वीर यहाँ से नहीं हटनी चाहिए। आपलोग इस परिसर में रह रहे हो, उससे मुझे कोई मतलब नहीं, आपलोग रहिए, लेकिन इस तस्वीर की देखभाल होनी चाहिए। यदि गायब हुई तो इस….।’ आगे का वाक्य छोड़ आगे कहा- ‘मेरे पास इस बात के सारे सबूत हैं कि यह मंदिर अयोध्या प्रसाद खत्री द्वारा 1890 में बनवाया गया था।’ यह सब बोलता उन्हें हड़काया तो वह चुपचाप ‘हूँ, हाँ’ करते सुनते रहे और मैं मन ही मन मुस्कुराते हुए उन्हें बताया – ‘4 जनवरी को हमलोग यहाँ पर उनकी 100वीं पुण्यतिथि पर एक संगीत का कार्यक्रम कर रहे हैं, उस दिन यह परिसर साफ़ और सूखा रहना चाहिए।’ उन्होंने सहमति जताई तो मैं वापस मोतीझील बढ़ गया, जहाँ से बनने दिया गया बैनर लेना था।

   4 जनवरी को तीन बजे दिन से ‘संगीत-संध्या’ का आयोजन तय कर यहाँ के साहित्य और संस्कृतिकर्मियों को निमंत्रित किया। लेकिन इस आयोजन में शहर के लेखकों में केवल राजेन्द्र प्रसाद सिंह, डॉ. शांति सुमन और डॉ. रश्मि रेखा, बृज भूषण पांडेय ही थे। साथ में नाट्यकर्मी स्वाधीन दास, एन.के.नंदा, डी.के.नंदा, सुनील कुमार। अन्य कोई स्थानीय स्वनामधन्य कवि-गण, लेखक नहीं! इस कार्यक्रम में शिरक़त करने वाले अन्य लोगों में मेरे घर परिवार के लोग, रिश्तेदार। तीन घण्टे चले इस कार्यक्रम में मुन्नाजी, सीमा नंदा, इप्शा ईशान, रूपाली दास और उसकी टीम की लड़कियों ने गीत गाये। हारमोनियम मुन्नाजी ने संभाला और तबला पर दीपक ने संगति की। इस संगीत कार्यक्रम में निराला, नेपाली और राजेंद्र प्रसाद सिंह रचित गीत गाये गये। राजेन्द्र प्रसाद सिंह की रचना ”घोड़ा न हाथी, लो आ गए बराती, बादल से घेरे दुअरिया रे दूल्हा…’ का गायन सीमा नंदा और इप्शा ईशान ने किया तो राजेन्द्र जी के साथ सभी झूम उठे। कार्यक्रम पश्चात राजेन्द्र प्रसाद सिंह एवं डॉ. शांति सुमन ने अपने-अपने उद्गार प्रकट करते बधाई दी और आगे की योजना के लिए शुभकामनाएं। आज हमारे बीच राजेन्द्र प्रसाद सिंह और एन.के.नंदा नहीं हैं।

   इस तरह अयोध्या प्रसाद खत्री पर 1960 के बाद पहली बार इस शहर में उनकी 100वीं पुण्यतिथि का कार्य संपन्न हुआ और अयोध्या प्रसाद खत्री का नाम पहली बार आसपास के लोगों और नए जेनरेशन ने सुना। लघुतम स्तर पर ही सही, संपन्न इस कार्यक्रम ने आगे होने वाले बड़े आयोजन की आधारशिला बनी…

जारी...

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वीरेन नन्दा

लेखक वरिष्ठ कवि और संस्कृतिकर्मी हैं। सम्पर्क +919835238170, virenanda123@gmail.com .
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