हलफ़नामा

एक फिल्मकार का हलफनामा : भाग-13

 

  गतांक से आगे…

     शूटिंग करते जब रात घिरने लगी तब लाइट मैन को कहा कि एक सीन मुझे इस घर के बाहर का चाहिए, जिसमें पूरा घर तो दिखे ही, साथ ही इस घर का खपरैल छत भी चांदनी रात में दृष्टिगोचर होना चाहिए। इस सीन को इस तरह फिल्माना है कि घर के बरामदे में एक व्यक्ति लालटेन टांगता दिखेगा और खत्री जी कचहरी से लौटते हुए घर में प्रवेश कर रहें हैं। बस इतना ही फिल्माना है। लेकिन इस अमावस की रात को चांदनी में बदलना है, उसी तरह लाइट सेट करें। खाना आ चुका था, उन सबों को कहकर मैं भी खाने बढ़ा।

    दो घंटे बाद लाइट मैन ने आकर कहा- “लाइट ओके है, शूट कर सकते हैं”। जाकर देखा तो उसकी लाइटिंग समझ पर हैरान! इस घनी और अंधेरी रात में पूरा मकान पूर्णिमा की चांदनी से नहाया दिखा। कल ही हुई हल्की बारिश से भींगे खपड़े चमक रहे थे। कैमरामैन को कहा चलिए कैमरा ऑन कीजिए और इस तरह यह शॉट सम्पन्न हुआ।

      रघुनाथपुर लोकेशन पर तीन दिन शूटिंग के बाद खत्री जी की पत्नी की भूमिका के लिए सुबंती बनर्जी और अन्य को फोन किया कि अब आप का हिस्सा शूट होना है, सुबह आ जाएं। सुबह रामदयालु नगर पहुंच उन्हें घर लाकर कहा कि आप फ्रेश हो, खा-पीकर बेगम के साथ शूटिंग स्थल पर पहुंचे।

     मुहूर्त से पूर्व ही अयोध्या प्रसाद खत्री की भूमिका के लिए तब के दरभंगा डीआईजी रवींद्र कुमार सिंह को कह रखा था और उन्होंने हामी भी भरी थी। किन्तु समय पर उन्हें खबर दी तो उन्होंने कहा कि मुझे कंजक्टिवाइटिस हो गया है, फ्लड लाइट आंखें झेल नहीं सकती, आप शूटिंग कैंसिल कर दें। सुनकर आवक! उनके लिए शूटिंग स्थगित करने का क्या परिणाम होगा, उन्हें क्या पता! फिर से सारे लोगों को जुटाने का अर्थ कहाँ से आयेगा? सोचता, मन ही मन कुढ़ता शूटिंग कर तो रहा था लेकिन दिमाग वहीं अटका रहा। 

     एक दृश्य की शूटिंग के लिए सुबंती बनर्जी जब ड्रेसअप हो मेकअप करा रही थी तब उसने हंसते हुए पूछा – ‘ फिल्म का नायक कौन है? अभी तक मिलवाया नहीं!’ यहाँ तो मन में उथल पुथल मची थी लेकिन उसे हंसकर कहा – “जल्दी ही भेंट होगी।”

     फिल्म के घोषित नायक के न आने के कारण मुझे चिन्तित देख विवेक राव दोपहर का खाना खाते वक्त कहा – ‘सर, एक बात कहूं?’ मेरे ‘कहो’ कहने पर झिझकते हुए बोला – “सर, कई दिनों से देख रहा कि अबतक जितने भी शॉट्स फिल्माये गए हैं, उसके संपन्न होते समय देखता रहा कि आप के हाथ में स्क्रिप्ट तो कभी रहती नहीं, हमलोग के पास होती है, लेकिन किसी भी शॉट में कोई भी एक्टर अपने डायलॉग का एक शब्द भी गलत बोलता है तो आप खट से ‘कट’ बोलकर शूटिंग रोक देते हैं और आर्टिस्ट को पूरा संवाद बोल कर बताते हैं कि संवाद में कौन सी गलती हुई, किस शब्द को छोड़ा या कौन से शब्द अपने मन से आयातित कर लिए! मतलब आप को इस फिल्म के सारे पात्रों के पूरे संवाद और दृश्य पूरी तरह कंठस्थ है! मेरी बात मानिए तो खत्री जी वाली भूमिका के लिए डीआईजी साहेब का इंतजार न कर आप स्वयं करें।” कभी एक्टिंग तो की नहीं थी लेकिन उसकी बात सुन मंथन करता शूटिंग करता रहा।

सुबंती बनर्जी

   आज सुबंती बनर्जी  जिस सीन के लिए मेकअप करा रही थी वह खत्री जी के साथ होने वाले दृश्य की घड़ी आ गई थी इसीलिए वह नायक को खोज रही थी। जब वह मेकअप कर- कराकर हटी तो मैं उसी कुर्सी पर धम्म से बैठ मेकअप मैन मानिक बनिक को कहा – “चलो अब चालीस साला उम्र वाले खत्री जी का मेकअप करो”। तो आश्चर्य से सुबंती के मुंह खुले के खुले रह गए और उसने शिकायत की- “यह तो अच्छी बात नहीं, इतने दिनों तक मेरे हीरो को छुपाए रखा!”

     अशोक आदित्य और अंजना भाटी समय से आ गईं। अंजना जी का काम देर रात में खत्म हुआ तो रात ही लौटना चाह रही थीं। वो गाड़ी हायर कर पटना से आईं थी तो लौटते समय गाड़ी का भाड़ा ड्राइवर को देने के लिए अशोक आदित्य से कहलवाया। चार हजार ड्राइवर को देकर विदा किया। इन दोनों ने अन्य कोई पारिश्रमिक लेने से साफ़ इंकार कर मुझे उपकृत कर दिया।

     पूरी यूनिट के साथ हमलोग सुबह डुमरी गांव के लिए प्रस्थान किए। अरुण ठाकुर को पहले से ही जनरेटर और कुछ पंखों की व्यवस्था के लिए कह रखा था। रात बारिश हुई थी जिसके कारण डुमरी में घुसते ही कई जगह उतर कर गाड़ी को ठेल-ठाल कीचड़ से निकालना पड़ा। डुमरी पहुंच अरुण ठाकुर के अहाते में डेरा डाल पूर्व से चिन्हित लोकेशन पर काम शुरू किया। उमस भरे माहौल में यहाँ कई दृश्य फिल्माते-फिल्माते रात हो गई लेकिन एक सीन फिल्माना शेष रह गया था जिसे पूरा किए बिना लौटने का मतलब था कल फिर यहाँ का चक्कर। इसलिए रुककर यहाँ के मंदिर में भजन शूट करने के बाद ही पैकअप किया। यहाँ के लोगों ने शूटिंग में काफी सहयोग दिया और खाने-पीने की व्यवथा अरुण ठाकुर के जिम्मे थी, जिसका भुगतान वे पहले ही ले चुके थे। उन सभी का आभार प्रकट करता रात दो बजे वापस।

    आज हमलोग शूटिंग के लिए लाव लश्कर के साथ धर्म समाज संस्कृत कॉलेज के प्रांगण में पहुंचे। यहाँ दो सीन फिल्माने थे। एक किताब दुकानदार से खत्री जी की नोकझोंक , दूसरे अंग्रेजों को खत्री जी द्वारा पढ़ाया जाने वाला दृश्य। इसलिए उन दोनों स्थलों का एक दिन पूर्व ही काजू को कहकर रंग रोगन करवा चुका था। सामान उतरते ही पता नहीं कॉलेज के विशाल प्रांगण के बाहर कैसे यह खबर लोगों तक पहुंच गई कि आस पास से शूटिंग देखने वाले बूढ़े, बच्चे, युवा, युवतियों की भीड़ उमड़ने लगी। शूटिंग करने में इस तरह व्यवधान उत्पन्न होने लगा कि कैमरा के पास तक लोग आने लगे। लाख समझाने का कोई असर न देख अंततः शूटिंग रोक थाने को फोन किया। आधे घंटे बाद थाने की जीप फोर्स संग पहुंची तब जाकर भीड़ नियंत्रित हुई और वह सीन संपन्न हो सका। इस सीन में किसी हीरो-हीरोइन को न पाकर भीड़ स्वतः तेजी से छंटने लगी और दूसरे सीन के होने तक गायब! दूसरे दृश्य की शूटिंग प्रारंभ होने से पूर्व ही सुबंती बनर्जी, आशालता नारायण के साथ शूटिंग देखने के ख्याल से पहुंच गई तो मैं डर गया कि कहीं फिर न भीड़ उमड़ पड़े! लेकिन पैकअप होने तक ऐसा कुछ हुआ नहीं।

संजय पंकज और तारिक इमाम

   खादी भंडार के प्रांगण में जब शूटिंग करने हमलोग पहुंचे तो यहाँ भी भीड़ उमड़ी। यहाँ दो आर्टिस्ट की जरूरत थी जो पूर्व से सुनिश्चित नहीं कर पाया था। जनरेटर सप्लायर सुधीर सहनी और उसके असिस्टेंट को समझा बुझा कर शूटिंग के लिए तैयार किया कि आपको कुछ नहीं करना है। बस, वैद्य जी दवा की पुड़िया देंगे और आपलोग उसे ले प्रणाम कर वापस मुड़ जायेंगे। वे दोनों थोड़ा सहमते हुए तैयार हुए तो मेकअप करवाकर शूटिंग संपन्न किया। भीड़ किसी चिकने-चुपड़े  हीरो-हीरोइन को न पा उदास हो लौट गई। तांगा आ गया तो सबकुछ व्यवस्थित कर आराम से देर रात तक दृश्य फिल्माते रहें। 

    मुजफ्फरपुर के कभी जमींदार रहे केदारनाथ महथा के ऐशगाह वाली हवेली में एक सीन फिल्माया। जो बड़े आराम से बिना विघ्न के संपन्न हो गया। यह सम्पन्न होने के बाद मानू बाबू की हवेली में देवकी नंदन खत्री को सम्मानित किए जाने वाले दृश्य का अंकन होना था। यह उनके आंगन में होना तय था तो आंगन के बरामदे में ट्राली शॉट के लिए पटरियां बिछाने को कहा। लाइट मैन को लाइट सेट करने को बोलकर मुख्य आर्टिस्टों को रेडी होने का इशारा किया। इस दृश्य में कुछ ज्यादा ही लोगों की और जरूरत थी, जिसकी खबर कुछ लोगों को दी। खबर पाकर कई लोग शूटिंग स्थल पर आ गए, उनमें समीक्षा प्रकाशन का राजीव भी पहुंच घिघियाया तो उसे भी उस भीड़ का हिस्सा बना दिया। आर्टिस्ट की कमी देख कुछ टेक्नीशियन को भी उस समारोह वाले दृश्य को फिल्माते समय ड्रेसअप करा कर बैठाया। इस सीन में देवकीनन्दन खत्री की भूमिका तारिक इमाम कर रहे थे। श्रीनारायण महथा की संजय पंकज और अयोध्या प्रसाद खत्री की भूमिका में मैं तो था हीं। संजय पंकज को यह भूमिका इसलिए दी कि वे शहर में होने वाले हर मंचों पर मंच का संचालन बखूबी करते नज़र आते रहे थे, और यहाँ भी उनकी यही भूमिका थी। तारिक अनवर और संजय पंकज ने अपनी भूमिका के लिए कोई भी पारिश्रमिक न लेकर अपना सहयोग दिया

.

Show More

वीरेन नन्दा

लेखक वरिष्ठ कवि और संस्कृतिकर्मी हैं। सम्पर्क +919835238170, virenanda123@gmail.com .
0 0 votes
Article Rating
Subscribe
Notify of
guest

0 Comments
Inline Feedbacks
View all comments

Related Articles

Back to top button
0
Would love your thoughts, please comment.x
()
x