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2019 लोकसभा चुनाव: दूसरी पीढ़ी पर  दारोमदार

  • अरुण कुमार

लोकसभा चुनाव 2019 के प्रथम चरण के चुनाव में अब कुछ दिन ही बचे हैं। पूरे भारत में यूपीए और एनडीए के बैनर तले अधिकांश पार्टियाँ एकजुट हो गईं हैं। अधिकांश लोकसभा क्षेत्रों में सीधा मुकाबला दिखाई दे रहा है। पश्चिम बंगाल देश का एकमात्र राज्य है जहाँ तृणमूल कांग्रेस, भारतीय जनता पार्टी, कांग्रेस और वामपंथी पार्टियों के रूप में जनता के पास चुनने के लिए चार विकल्प मौजूद हैं। ओडिसा में बीजू जनता दल, भारतीय जनता पार्टी और कांग्रेस के रूप में जनता के पास तीन विकल्प हैं। एक अन्य राज्य आंध्रप्रदेश में भी दो से अधिक पार्टियों में से एक को चुनने का विकल्प वहाँ की जनता के पास होगा। दिल्ली में मुख्यमन्त्री अरविन्द केजरीवाल बार-बार कांग्रेस के साथ गठबंधन कर त्रिकोणीय मुकाबले को टालने की कोशिश में हैं लेकिन कांग्रेस की तरफ से अभी तक कोई उचित बयान नहीं आया है। कुल मिलाकर देश के अधिकांश लोकसभा क्षेत्रों में यूपीए और एनडीए के बीच सीधा मुकाबला है।

लोकसभा चुनाव 2019 की एक और खास बात यह है कि राजनीतिक पार्टियों की दूसरी पीढ़ी ने इस बार नेतृत्व संभाला है। सबसे पहले सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी की बात करें तो हम देखते हैं कि अटल-आडवाणी युग पूरी तरह समाप्त हो गया है। अटल बिहारी वाजपेयी की मृत्यु और लालकृष्ण आडवाणी का गुजरात के गांधीनगर से चुनाव न लड़ने से भाजपा की पूरी जिम्मेदारी मोदी-शाह के कंधों पर आ गयी है। मुरली मनोहर जोशी, सुषमा स्वराज, उमा भारती भी चुनाव नहीं लड़ रहे हैं। इससे पता चलता है कि पार्टी में अटल-आडवाणी युग के अवशेष भी खत्म हो गए। एकबार फिर भाजपा की तरफ से प्रधानमन्त्री पद के उम्मीदवार नरेन्द्र मोदी हैं और इस बात के भी कयास लगाए जा रहे हैं कि यदि भाजपा दुबारा सत्ता में आती है तो अमित शाह गृहमन्त्री बन सकते हैं।

दूसरी राष्ट्रीय पार्टी है- कांग्रेस। भारत की इस सबसे पुरानी राजनीतिक पार्टी का 19 वर्ष तक अध्यक्ष रहने के बाद सोनिया गांधी ने अपने पुत्र राहुल गांधी को 2017 में अध्यक्ष बनाया। 2014 का लोकसभा चुनाव कांग्रेस ने सोनिया गांधी के ही नेतृत्व में लड़ा था। 2019 के लोकसभा चुनाव में भले ही सोनिया गांधी अपनी परम्परागत सीट रायबरेली से चुनाव लड़ रही हैं लेकिन राष्ट्रीय स्तर पर कांग्रेस पार्टी का चेहरा राहुल गांधी हैं। यदि कांग्रेस जीतती है तो राहुल गांधी ही देश के प्रधानमन्त्री होंगे। चुनावों की घोषणा से ठीक पहले प्रियंका गांधी को जिस तरह पार्टी का महासचिव और पूर्वी उत्तर प्रदेश का प्रभारी बनाया गया उससे भी स्पष्ट संदेश मिलता है कि कांग्रेस पार्टी में भी पूरी तरह नेहरू-गांधी परिवार की अगली पीढ़ी राहुल-प्रियंका युग की शुरुआत हो चुकी है।

अब आते हैं बिहार जहाँ के कद्दावर नेता लालू प्रसाद यादव चारा घोटाला मामले में जेल में हैं। उनकी पार्टी राष्ट्रीय जनता दल ने 2014 का लोकसभा और 2015 का विधानसभा चुनाव उनके नेतृत्व में ही लड़ा था। 2014 के मोदी लहर में राष्ट्रीय जनता दल का प्रदर्शन कुछ खास नहीं रहा था और उसे बिहार की कुल 40 सीटों में से 4 सीटों पर सफलता मिली थी।  2015 का विधानसभा चुनाव लालू यादव ने नितीश कुमार के साथ मिलकर लड़ा था और कुल 243 सीटों में से 81 पर जीत हासिल की थी। इस लोकसभा चुनाव में राजद का नेतृत्व लालू प्रसाद के छोटे बेटे तेजस्वी यादव कर रहे हैं। तेजस्वी यादव पार्टी का चेहरा तो हैं ही सारे रणनीतिक फैसले भी ले रहे हैं। यह एक तरह से राष्ट्रीय जनता दल में लालू यादव की दूसरी पीढी के नेतृत्व की शुरुआत है।

उत्तरप्रदेश में मायावती, अखिलेश यादव और अजीत सिंह ने भाजपा से मुकाबले के लिए महागठबंधन बनाया है। अब तक राष्ट्रीय लोकदल की तरफ से चौधरी चरण सिंह के बेटे अजीत सिंह फैसले लेते थे। इस बार पार्टी की तरफ से सारे फैसले अजीत सिंह के बेटे जयंत चौधरी ले रहे हैं। हालांकि पार्टी के अध्यक्ष अजीत सिंह ही हैं लेकिन बहुत जल्दी ही जयंत कमान संभाल सकते हैं। बहुजन समाज पार्टी की सुप्रीमो तो मायावती ही हैं लेकिन पार्टी की तरफ से जो स्टार प्रचारकों की जो सूची जारी की गयी है उसमें मायावती के भतीजे आकाश आनंद का नाम है। आकाश आनन्द का नाम मायावती और सतीश चंद्र मिश्रा के बाद तीसरे नम्बर पर है लेकिन बसपा के उत्तर प्रदेश अध्यक्ष आर एस कुशवाहा से ऊपर है।

समाजवादी पार्टी से भी मुलायम-शिवपाल युग की पूरी तरह समाप्ति हो गई है। 2017 के उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव के ठीक पहले अखिलेश यादव ने पार्टी की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक बुलाकर अपने पिता मुलायम सिंह यादव को राष्ट्रीय अध्यक्ष के पद से हटा दिया और खुद राष्ट्रीय अध्यक्ष बन गए। इसके अलावा सपा में नंबर दो की हैसियत रखने वाले चाचा शिवपाल यादव को भी सभी पदों से हटा दिया। वर्तमान में अखिलेश यादव ही सपा के सुप्रीमो हैं। मुलायम सिंह के लाख विरोध के बावजूद उन्होंने मायावती के साथ आधी से अधिक सीटें दे दीं। सपा 2019 का लोकसभा चुनाव पूरी तरह से अखिलेश यादव के नेतृत्व में लड़ रही है।

नरेन्द्र मोदी और पलानीस्वामी

दक्षिण भारत के तमिलनाडु मे भी यह पहला चुनाव है जिसमें दो बड़े नेता अनुपस्थित हैं। 2016 में जयललिता के निधन के बाद उनकी पार्टी अन्नाद्रमुक का नेतृत्व प्रदेश के मुख्यमन्त्री पलानीस्वामी कर रहे हैं तो वहीं विपक्षी पार्टी द्रमुक ने भी 2018 में अपने नेता एम करुणानिधि को खो दिया है।  इस चुनाव में द्रमुक का नेतृत्व करुणानिधि के पुत्र एमके स्टालिन कर रहे हैं। इस बार तमिलनाडु में दोनों राष्ट्रीय पार्टियाँ भाजपा और कांग्रेस दोनों क्षेत्रीय पार्टियों के सहारे लड़ रही हैं। भाजपा ने अन्नाद्रमुक के साथ गठबंधन किया है और केवल 5 सीटों पर लड़ रही है। अन्नाद्रमुक के शिवकाशी विधायक राजेन्द्र भाला जी ने कहा था कि अम्मा जयललिता के जाने के बाद ‘ नरेन्द्र मोदी हमारे डैडी’ तक कह दिया था। भाजपा- अन्नाद्रमुक गठबंधन के एक दिन बाद ही कांग्रेस और द्रमुक ने भी गठबंधन की घोषणा की। गठबंधन के तहत कांग्रेस नौ और द्रमुक 30 सीटों पर चुनाव लड़ रही है। पुदुचेरी सीट पर कांग्रेस पार्टी लड़ेगी। इस गठबंधन को दोनों वाम दल, प्रतिबंधित संगठन एलटीटीई की खुली समर्थक रही वीसीके और इंडियन यूनियन मुस्लिम लीग भी समर्थन दे रही है। इन पार्टियों को द्रमुक ने अपने हिस्से में से 10 सीटें दी हैं। द्रमुक् केवल 20 सीटों पर लड़ रही है।

जयललिता की अन्यतम सहयोगी रहीं शशिकला नटराजन के भतीजे दिनाकरन भी अपनी पार्टी अम्मा मक्कल मुनेत्र कड़गम (एएमएमके)  को तमिलनाडु की सभी 38 सीटों पर लड़ा रहे हैं। दिनाकरन ने एक सीट चेन्नै गठबंधन के तहत सोशल डेमोक्रेटिक पार्टी को दी है। दिनाकरन खुद पन्नीरसेल्वम के पुत्र पी रवींद्र नाथ के खिलाफ लड़ेंगे।

पार्टियों की यह दूसरी पीढी की सफलता या असफलता का पता 23 मई 2019 को चलेगा जब लोकसभा चुनाव के नतीजे आएंगे। फिलहाल ये सभी चुनाव प्रचार में कड़ी मेहनत कर रहे हैं।

लेखक दिल्ली विश्वविद्यालय के लक्ष्मीबाई कॉलेज में असिस्टेंट प्रोफेसर हैं|

सम्पर्क-  +918178055172, aruncrjd@gmail.com

 

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लोक चेतना का राष्ट्रीय मासिक सम्पादक- किशन कालजयी
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