Category: Democracy4you

Democracy4youराजनीति

लोकतंत्र या तंत्रलोक

  • अरुण कुमार पासवान

 

राजतंत्र, कुलीनतंत्र, गणतंत्र, लोकतंत्र, मन्त्र तंत्र, स्नायु तंत्र, ऐसे-ऐसे शब्द हम तब से सुनते आए हैं जब न तो इनका अर्थ समझते थे न ही इनका, कम से कम तंत्र का तो अवश्य  ही, उच्चारण करना भी आसान था। हालाँकि बाद में चलकर तो यह पाया कि कितनी जगहों में तंत्र शब्द का उच्चारण लोग जीवन भर सही नहीं करते। कहीं लोग इसे तंतर, कहीं तोंतोर, और कहीं तोन्त्रो भी बोलते हैं। पर वहाँ इस तरह के उच्चारण को ग़लत नहीं कहा- बोला जाता है, क्योंकि वहाँ शब्द पर क्षेत्रीय बोली भाषा का प्रभाव होता है और क्योंकि वे क्षेत्र हिंदी क्षेत्र नहीं होते इसलिये वहाँ के लिए इसे अपने हिसाब से बोलने की छूट होती है। हिंदी लिखते समय वे भी तंत्र ही लिखते हैं। पर हिंदी वाले होने के नाते हमारे लिए तो इसे तंत्र लिखना और तंत्र बोलना आवश्यक था। इतना ही नहीं शब्दों के सही अर्थ, सही आशय समझना भी अनिवार्य था। क्योंकि हम तो होश सम्भालते ही विद्यार्थी हो गए थे। और विद्यार्थी का एकमात्र कर्म होता है सीखना। सीखना बोलने के लिए, सीखना लिखने के लिए, सीखना व्यवहार के लिए, सीखना आचरण के लिए, सीखना जीने के लिए सीखना कमाने के लिए।

अरे-अरे ये सीखते-सीखते हम कहाँ आ गए? कमाने और जीने के लिए सीखना तो सबसे अलग है, क्योंकि हर कोई अपने ढंग से जीना, अपने ढंग से कमाना पसंद करता है। यों ये बुरी बात नहीँ है, क्योंकि कोई यदि सीखना चाहेगा तो अच्छे से ही सीखना चाहेगा। अच्छे से जीना, अच्छे से कमाना। पर ये जीने और कमाने का “अच्छे से”बड़ा कठिन डगर है, बड़ी फिसलन भरी डगर। उस पर कदम बड़ी सतर्कता से रखने होते हैं। सावधानी हटी तो दुर्घटना घटी। और कुछ लोग, आज के ज़माने में ज़्यादातर लोग भी मह सकते हैं, दुर्घटना से घबड़ाते नहीं, बल्कि दुर्घटनाओं के सहारे ही अपनी अलग पहचान बना लेते हैं, अपना कुनबा, अपनी दुनिया बना लेते हैं।

चलिए यदि आप को लगता  है कि मैं विषयांतर कर रहा हूँ, या बातों को कुछ अधिक घुमा रहा हूँ तो वापस मोड़ लेता हूँ मैं अपनी कलम को वो बात कहने के लिए जिसके लिए बात शुरू की है। राजतंत्र, कुलीनतंत्र तो कहीं कहीं ही अब रह गए हैं, कहने के लिए। गणतंत्र और लोकतंत्र में लोक को बड़ा कम फ़र्क नज़र आता है। फिर भी दुनिया के समक्ष जो तंत्र चर्चा में है वो है लोकतंत्र, जो व्यक्ति के, समाज के नागरिक के अधिकारों की बात करता है। और क्योंकि यहाँ अधिकार मूल विषय होता है, इसलिए लोग यानि ‘लोक’ इसी तंत्र की बात करना, सुनना चाहता है। लोकतंत्र का, अपने अधिकारों का समर्थक होने के नाते मैं भी लोकतंत्र की बात करने का ही इच्छुक रहता हूँ, इच्छुक हूँ।

ये भी पढ़ सकते हैं जब मतदान था एक पवित्र भाव

आइए अभी चुनाव के इन दिनों में चुनाव के प्रचार-प्रसार को देखते हुए हम लोकतंत्र की ही बात करते हैं जिसका महापर्व कहते हैं चुनाव को। आप समाचारपत्र पढ़ते होंगें, रेडियो, टीवी देखते होंगे। नेताओं के भाषणों के अंश पढ़ते, सुनते, देखते होंगे। मैं भी। चुनाव घोषणा पत्र से लेकर चुनावी भाषणों तक में जिस उदारता से नेता बातें करते हैं, जिस प्रकार की सुविधाएँ देकर लोक का उद्धार करने की बात करते हैं उससे तो लोकतंत्र का अर्थ ही गौण सा हो जाता है। और इनके भाषणों में होता क्या है? दूसरे दलों की बुराई, दूसरे नेताओं की बुराई, दूसरोँ पर घोटालों के आरोप। खुद के न तो किए का हिसाब, न अपने अपराधों के बारे में कोई सफ़ाई। योजनाएँ तो ऐसी की मानो कह रहे हों हम सत्ता में आए तो पानी में आग लगा देंगे, आसमान के तारे तोड़कर जनता में खैरात बाँट देंगे। कोई किसानों को साल में 72 हज़ार देने की बात करता है तो कोई सभी को पेंशन। कोई कहता है आपको अपना वोट बाँटना नहीं है, कोई कहता है मुझे वोट मत दो पर मुझसे किसी मदद की उम्मीद भी मत करना बाद में। और किसी की तो बात ही निराली, जो उसे वोट नहीं देगा वो पाप का भागी होगा। और सोशल मीडिया पर तो ऐसी-ऐसी ख़बरें और वीडिओज़ आते हैं कि यदि आप उन्हें सच मान लें तो आपका भगवान ही मालिक। ऐसे-ऐसे इतिहास बताते हैं कि आप को अपनी पढ़ाई और डिग्री पर संदेह होने लगे। ये आपकी काबिलियत है कि इन बातों से आप बेअसर रहते हैं जैसे ये राजनीति के खिलाड़ी आपकी ज़रूरत, आपकी हैसियत से बेअसर, बेखबर अपनी स्कोरिंग में लगे रहते हैं। उन्हें ये याद ही नहीं कि वे जो बाँटने की बात करते हैं वो उनका है या जिन्हें उन खैरातों के लिये वे हाथ फैलाने कहते हैं, उन्ही का। हर कोई कहता है मुझे 5 वर्षों के लिए अपना मालिकाना हक़ दे दो। और कहने का ढंग चाहे जैसा भी हो, मुझे तो लगता है फ़िल्म शोले में गब्बर कह रहा हो “मुझे ये हाथ दे दे ठाकुर।” और लोक अपने हाथ दे देने को मजबूर, क्योंकि इन नेताओं ने, इन राजनीतिज्ञों ने लोकतंत्र को लोकतंत्र रहने कहाँ दिया! अपनी दबंगई से, अपनी धूर्त्तता से इन्होंने स्थापित कर लिया है ‘तंत्रलोक’,जिसके आगे संविधान मजबूर है, संविधान का प्रहरी दिकभ्रमित, तो लोक क्या करे? नेता मदारी जनता जमूरा। मदारी बाँसुरी बजायेगा, डमरू बजायेगा, जमूरे के मुँह पर काला कपड़ा ढँकेगा, जमूरा वही देखेगा जो मदारी दिखाएगा, क्योंकि ये ‘लोकतंत्र’ नहीं, ‘तंत्रलोक’ है।

लेखक प्रसिद्ध मीडियाकर्मी हैं|
सम्पर्क- +919810360675,
.

 

 

18Apr
Democracy4youबिहारराजनीति

पिछड़ों की किसानी व कम्युनिस्ट धारा

  पिछले अंक में पिछड़ी जाति की जमींदारी या सोशलिस्ट धारा पर बात हुई थी। इस...

15Apr
Democracy4youलोकसभा चुनाव

लोकतान्त्रिक संस्थाओं पर बड़ा खतरा – रामनरेश राम

  रामनरेश राम सत्रहवीं लोकसभा के गठन के लिए आम चुनाव होने जा रहे हैं. यह चुनाव...

14Apr
Democracy4youलोकसभा चुनाव

भूमिहारी अस्मिता के बारे में कुछ वाजिब सवाल और बेगूसराय का चुनाव – विजय कुमार

विजय कुमार ऐसा नहीं है कि ऊँची  जात के अन्दर ऊँच-नीच का भेदभाव नहीं है। जो लोग...

13Apr
Democracy4youलोकसभा चुनाव

अंग्रेजों की धर्म व जाति संबंधी समझ से टकराने का नाम है कन्हैया

  अंग्रेजों ने भारत पर राज करने के लिए दो श्रेणियों का जमकर इस्तेमाल किया।...

11Apr
Democracy4youउत्तरप्रदेशलोकसभा चुनाव

यूपी में कांग्रेस को आक्सीजन देने में जुटीं प्रियंका गाँधी वाड्रा

  सत्रहवीं लोकसभा चुनाव में मोदी विजय रथ को रोकने के लिए रालोद, बसपा और सपा ने...

10Apr
Democracy4youलोकसभा चुनाव

कन्हैया की जीत भारत के आम जनता के सपने की जीत होगी

 मणीन्द्र नाथ ठाकुर कन्हैया ने अपना नामांकन पत्र दाख़िल किया।  विशाल जनसमूह...

10Apr
Democracy4youमध्यप्रदेशलोकसभा चुनाव

भोपाल संसदीय सीट पर  दिग्गीराजा  का सामना किससे?

  डॉ. अरविन्द जैन दिग्गीराजा उर्फ़ दिग्विजय सिंह (पूर्व मुख्यमन्त्री...

चुनाव का पूर्वानुमान
08Apr
Democracy4youलोकसभा चुनाव

क्या चुनाव का पूर्वानुमान लगाना संभव है?

    आजादी के पहले भारत को लोग जादूगरों और साँप-सपेरों के देश की तरह देखते थे, आज...

08Apr
Democracy4youलोकसभा चुनाव

2019 लोकसभा चुनाव: दूसरी पीढ़ी पर  दारोमदार

अरुण कुमार लोकसभा चुनाव 2019 के प्रथम चरण के चुनाव में अब कुछ दिन ही बचे हैं। पूरे...